लोग कहते हैं कि समय के साथ घाव भर जाते हैं, लेकिन सच तो यह है कि ये घाव अपने आप नहीं भरते. इसके लिए आपको ख़ुद भी कोशिश करनी पड़ती है. ख़ासतौर पर तब, जब आपने अपने किसी क़रीबी व्यक्ति को खो दिया हो, उनकी मृत्यु हो गई हो. लेकिन… जीवन तो अपने प्रिय व्यक्ति के जाने के बाद भी चलता रहता है. और यह बात भी बहुत ज़रूरी है कि आप इस जीवन के साथ तब तक क़दम मिला कर चलते रहें, जब तक ख़ुदा की यह नेमत आपके पास है. कैसे उबरें अपने क़रीबी को खोने के दुख से? यहां हम इसी मुद्दे पर चर्चा कर रहे हैं.
अपने किसी क़रीबी को खो देना बहुत दर्दनाक होता है. यह एक ऐसा आघात होता है, जो आपके मन और शरीर दोनों पर ही असर डालता है. यूं तो हम समय के साथ-साथ इस क्षति से उबरने का अपना ख़ुद का तरीक़ा भी ढूंढ़ ही लेते हैं, लेकिन यदि हमें शोक की इस प्रक्रिया की बुनियादी बातों की जानकारी हो तो हम थोड़ा व्यावहारिक तरीक़े से इस दुख से उबर सकते हैं.
यहां हम जिन बातों के बारे में बता रहे हैं, जिस प्रक्रिया के बारे में बता रहे हैं, वे अपनी जगह हैं, लेकिन आपको इस दुख से उबरने में अपनों का जो संबल चाहिए, वो ज़रूर लें. यदि आप किसी दोस्त, परिजन, कलीग से किसी तरह की बात कहना चाहते हैं, डिस्कस करना चाहते हैं तो ज़रूर करें. इससे आपको संबल मिलेगा. और यदि दुख से उबरने के लिए अकेले रहना चाहते हैं तो इस बारे में भी खुल कर कहें.
यूं तो हर व्यक्ति को इस तरह के दुख और आघात से उबरने में अलग-अलग समय लग सकता है. हम किसी के लिए कोई समय सीमा नहीं तय कर सकते, लेकिन अपनी किताब ‘ऑन डेथ ऐंड डाइंग’ में लेखिका एलिज़ाबेद कुब्लर-रॉस ने शोक के पांच चरणों, जिसे उन्होंने डीएबीडीए कहा है, के बारे में बताया है. ज़रूरी नहीं कि ये चरण नीचे दिए गए क्रम के अनुसार ही घटें, लेकिन दुख की प्रक्रिया में ये चरण मौजूद ज़रूर होते हैं. ये चरण हैं: इनकार, ग़ुस्सा, मोलभाव, डिप्रेशन और स्वीकारना.
इनकार यानी डिनायल: पहले-पहल तो आपको अपने प्रियजन को खोने की बात पर भरोसा ही नहीं होता और आप यह बात सुनकर स्तब्ध रह जाते हैं. आप सच्चाई को स्वीकार ही नहीं कर पाते, क्योंकि इससे आपको दुख महसूस होता है. यदि आप भी ऐसा महसूस कर रहे/रही हैं तो जान लें कि यह एक आपकी एक सहज प्रतिक्रिया है.
ग़ुस्सा यानी ऐंगर: जब यह सच आपके सामने स्पष्ट होता है, फिर भी आप इससे इनकार करना चाहते हैं तो आपको ग़ुस्सा आता है. यह ग़ुस्सा मृत्यु को प्राप्त हुए प्रियजन पर, डॉक्टर पर यहां तक कि ईश्वर पर भी निकल सकता है. ऐसे समय में क्रोधित हो जाना भी समान्य है. यदि ऐसे में आपके भीतर भी धीरज की कमी हो रही हो, बार-बार ग़ुस्सा आ रहा हो तो चिंता न करें, बल्कि उस नाराज़गी को व्यक्त कर दें.
मोलभाव यानी बार्गेनिंग: अपने प्रियजन को खोने के नुक़सान की भरपाई आसान नहीं होती. इस स्टेज में आप मन के भीतर ख़ुद से या फिर सर्वशक्तिमान ईश्वर से बातचीत करते हैं, पूछते हैं कि यदि ऐसा होता तो…, यदि वैसा होता तो… तब आप यह विश्लेषण कर रहे होते हैं कि क्या कुछ किए जाने से आपके स्नेहीजन की जान बच सकती थी.
अवसाद यानी डिप्रेशन: इस बीच जब आपको बार-बार अपने परिजन की मृत्यु की याद आती है, आप गहरे शोक में डूब जाते हैं. यह भी स्वाभाविक ही है. अमूमन कुछ दिनों में और थोड़े-थोड़े प्रयास से आप इस अवसाद से उबर जाएंगे. साथ ही यह सच भी आपको महसूस होगा कि जीवन अब कभी वैसा नहीं होगा, जैसा उस व्यक्ति की मौजूदगी में हुआ करता था. यदि डिप्रेशन का यह दौर लंबा चले और आप अकेले इससे उबरने में सक्षम न हों तो प्रोफ़ेशनल मदद लेने से बिल्कुल न झिझकें.
स्वीकारना यानी ऐक्सेप्टेंस: हालांकि यह स्टेज स्वीकृति की तरह बताई गई है, जहां आप अपने क़रीबी के बिना रहने को स्वीकार लेते हैं, लेकिन फिर भी समय-समय पर आपको ऊपर की चार स्टेजेज़ का एहसास होता रह सकता है. बस, फ़र्क़ इतना होता है कि अब आप इस सच के साथ रहना और डिनायल, ऐंगर, बार्गेनिंग, डिप्रेशन वगैरह को मैनेज करना सीख लेते हैं.
फ़ोटो: गूगल