हिंदी के जेष्ठ कवि केदारनाथ सिंह अपनी कविताओं के माध्यम से छोटी-छोटी चीज़ों की बेचैनियों को स्वर देते हैं. कविता संग्रह सृष्टि से पहरा की इस कविता ‘कपास के फूल’ में वे कपास के फूल के महत्व को रेखांकित करते हुए, कुछ बेहद ज़रूरी सवाल पूछ रहे हैं.
वे देवता को पसंद नहीं
लेकिन आश्चर्य इस पर नहीं
आश्चर्य तो ये है कि कविगण भी
लिखते नहीं कविता कपास के फूल पर
प्रेमीजन भेंट में देते नहीं उसे
कभी एक-दूसरे को
जबकि वह है कि नंगा होने से
बचाता है सबको
और सुतर गया मौसम
तो भूख और प्यास से भी
बचाता है वह
ईश्वर को तो ठंड लगती नहीं
वैसे नंगा होना भी
वहां उतना ही सहज है
उतना ही दिव्य
इसलिए इतना यह है कि ठंड के विरुद्ध
आदमी ने ही खोजा होगा
पृथ्वी पर पहला कपास का फूल
पर पहला झिंगोला
कब पहना उसने
पहले तागे से पहली सुई की
कब हुई थी भेंट
यह भूल गई है हमारी भाषा
जैसे अपनी कमीज़ पहनकर
भूल जाते हैं हम
अपने दर्ज़ी का नाम
पर क्या कभी सोचा है आपने
वह जो आपकी कमीज़ है
किसी खेत में खिला
एक कपास का फूल है
जिसे पहन रखा है आपने
जब फ़ुर्सत मिले
तो कृपया एक बार इस पर सोचें ज़रूर
कि इस पूरी कहानी में सूत से सुई तक
सब कुछ है
पर वह कहां गया
जो इसका शीर्षक था
कवि: केदारनाथ सिंह
कविता संग्रह: सृष्टि पर पहरा
प्रकाशक: राजकमल प्रकाशन