कई बार ग़म बहुत ज़्यादा होते हैं और उन्हें बयां कर पाना शब्दों के बस का नहीं होता. हमें पूरा भरोसा है कि ग़म, दर्द, ख़ैर-ख़बर और ख़ुलासे पर बुनी गई यह ग़ज़ल आपको ज़रूर पसंद आएगी.
ख़त के छोटे से तराशे में नहीं आएंगे
ग़म ज़ियादा हैं लिफ़ाफ़े में नहीं आएंगे
हम न मजनूं हैं न फ़रहाद के कुछ लगते हैं
हम किसी दश्त तमाशे में नहीं आएंगे
मुख़्तसर वक़्त में यह बात नहीं हो सकती
दर्द इतने हैं ख़ुलासे में नहीं आएंगे
उसकी कुछ ख़ैर-ख़बर हो तो बताओ यारों
हम किसी और दिलासे में नहीं आएंगे
जिस तरह आपने बीमार से रुख़सत ली है
साफ़ लगता है जनाज़े में नहीं आएंगे
फ़ोटो साभार: पिन्टरेस्ट