किसी ने क्या ख़ूब कहा है कि जो यह कहता है कि जीने के लिए केवल एक ही ज़िंदगी है, वह शायद किताब पढ़ना नहीं जानता होगा. यह बात हम सभी जानते हैं कि पढ़ना एक ऐसी आदत है, जो हमें हर तरह से समृद्ध बनाती है. यदि बतौर माता-पिता आप भी चाहते हैं कि आपके बच्चों में किताबें पढ़ने की आदत आए तो आप सही आलेख पर हैं. यहां हम बता रहे हैं कि कैसे आप अपने बच्चे/बच्चों में किताबें पढ़ने की आदत डाल सकते हैं.
हम पढ़ने की आदतों की चाहे कितनी भी ख़ूबियां गिना दें, लेकिन इंटरनेट और स्मार्टफ़ोन के इस दौर में यह बात अपनी जगह पूरी तरह सही है कि लोगों में किताबें पढ़ने की आदत घटी है. यदि आप पैरेंट्स हैं तो आप अपनी रीडिंग हैबिट्स पर ध्यान दे कर ही इस बात से सहमत हो सकते हैं. आपको बता दें अमेरिका में हुई रिसर्च के अनुसार, पिछले 20 वर्षों में वहां के लोगों की पढ़ने की आदत में सात प्रतिशत तक की कमी आई है.
हमारा देश भी पढ़ने की आदत में कमी से अछूता नहीं रहा है. इसके कई कारण हैं, लेकिन इंटरनेट की सर्वसुलभता इसका एक बड़ा कारण है. इन दिनों बच्चे केवल पाठ्यक्रम या कोर्स की किताबें पढ़ कर ही गुज़ारा कर रहे हैं, क्योंकि इन किताबों को पढ़ने से उन्हें आगे जा कर नौकरी मिलेगी. इस प्रक्रिया में वे जीवन में समृद्ध होने, ख़ुश रहने और नई-नई जानकारियां जुटाने के लिए किताबें पढ़ने की आदत का विकास नहीं कर पाते हैं. यदि आप चाहते/चाहती हैं कि आपके बच्चों में पढ़ने की आदत विकसित हो तो इसके लिए आपको अपनी ओर से प्रयास करने होंगे. आइए जानें, किन बातों का ध्यान रख कर या उन्हें अमल में ला कर आप बच्चों में रीडिंग हैबिट्स का विकास कर सकते/सकती हैं:
जल्द से जल्द शुरुआत करें
जब आपका बच्चा छह माह का होता है, उसकी देखने की क्षमता अच्छी तरह विकसित होने लगती है. ऐसे समय में यदि उसके आसपास रंग-बिरंगी किताबें होंगी तो वह उनकी ओर ज़रूर आकर्षित होगा. बड़े-बड़े चित्रों वाली ऐसी किताबें, जिन्हें वे फाड़ न सकें उनके आसपास ही रखिए. इन किताबों को उनके हाथ में थमा दीजए और उन्हें ख़ुद ही किताबों के पन्ने पलटने दीजिए. लगभग दो साल के होते-होते बच्चे चीज़ों को समझने भी लगते हैं. यह सही समय है, जब आप उन्हें इन किताबों में लिखी चीज़ें पढ़ कर सुनाएं. रोज़ रात सोने से पहले एक किताब उनके साथ मिल कर पढ़ें.
नई किताबें शामिल करें लेकिन…
जब बच्चे तीन साल के हो जाएं तो उनके कलेक्शन में नई किताबें शमिल करें, लेकिन पुरानी किताबों को भी जब तक अलट-पलट कर उनकी पसंदीदा कहानियां सुनाते रहें. किताबों को रखने की एक निश्चित जगह बनाएं और उन्हें किताबें उस जगह से निकालना और रखना भी सिखाएं. बच्चों के साथ किताब पढ़ने के रोज़ाना के रूटीन को कम से कम उनके पांच साल के होने तक कभी न बदलें. इससे वे अपने पाठ्यक्रम के अलावा दूसरी किताबों की ओर आकर्षित होंगे.
रोल मॉडल बनें
तीन साल के बाद बच्चे वही करेंगे, जो वे आपको करता देखेंगे. यदि आप उनमें रीडिंग हैबिट डालना चाहते हैं तो बहुत ज़रूरी है कि आप ख़ुद भी उन्हें किताबें पढ़ते हुए दिखाई दें. यदि आप लैपटॉप या स्मार्ट फ़ोन में डूबे रहेंगे तो बच्चों को पढ़ने के लिए कितना भी समझाएं, यह कारगर नहीं होगा. बच्चे में पढ़ने की आदत तभी पनपेगी, जब वह आपको ऐसा करते देखेंगे.
लायब्रेरी जाएं, ग्रुप्स बनाएं
ज़रूरी नहीं कि हर बार बच्चों को नई किताब ख़रीद कर ही दी जाए. आप उन्हें लायब्रेरी का सदस्य बनाएं और सप्ताह में कम से कम एक या दो किताबें पढ़ने की चुनौती लेने कहें. बच्चे चुनौतियां पसंद करते हैं. जब वे अपनी चुनौती पर खरे उतरें तो उन्हें और किताबें पढ़ने को प्रोत्साहित करें. आप उनके ऐसे दोस्तों का ग्रुप भी तैयार करत सकते/सकती हैं, जो आपस में बदल-बदल कर किताबें पढ़ने की आदत बना सकें. यदि आप बच्चों के छुटपन से ही उनमें ये आदतें डाल देंगे/देंगी तो आपके बच्चों के भीतर पढ़ने की आदत अपने आप विकसित हो जाएगी.
पढ़ने की आदत बच्चों को कई फ़ायदे पहुंचाती है
यह तो कहा ही जाता है कि जिन बच्चों को अपने पाठ्यक्रम से अलग किताबें पढ़ने की आदत होती है, वे हर दृष्टि से समृद्ध होते हैं. लेकिन छुटपन से पढ़ने की आदत डालने के कई और भी फ़ायदे होते हैं:
बच्चों का शब्द ज्ञान बढ़ता है: जो बच्चे ज़्यादा किताबें पढ़ते हैं, उनका शब्द ज्ञान यानी वॉकेबलरी बहुत अच्छा होता है. वे अपनी बात रखते हुए सही शब्दों का चयन करते हैं और यह बात उनके आगे के जीवन में बहुत काम आती है.
ध्यान केंद्रित कर पाते हैं: ज़्यादा किताबें पढ़ने वाले बच्चे, उन बच्चों की तुलना में ज़्यादा समय तक और ज़्यादा कुशलता से अपना ध्यान केंद्रित कर पाते हैं, जो इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स के साथ ज़्यादा समय बिताते हैं.
स्कूल के साथ तालमेल बिठाना आसान होता है: जो बच्चे बचपन से किताबें पढ़ने की आदत अपना लेते हैं, उन्हें स्कूल में चीज़ें आसान लगती हैं. क्योंकि किताबें पढ़ते हुए वे शब्दों, ध्वनियों आदि को पहले से ही जानते समझते हैं.
बच्चे उत्सुक बनते हैं: अलग अलग तरह की किताबें बच्चों का न सिर्फ़ भावनात्मक विकास करती हैं, बल्कि वे उनके भीतर और अधिक उत्सुकता जगाती हैं. बच्चों के उत्सुक होने के साथ-साथ उनके भीतर चीज़ों को लेकर जागरूकता अपने आप आने लगती है.
फ़ोटो : फ्रीपिक