वसंत ऋतु हर व्यक्ति के मन में अपनी गहरी और अलग छाप छोड़ती है. कवियों और लेखकों को जहां इससे सृजन की ऊर्जा मिलती है, वहीं कृषक वर्ग को अपनी मेहनत के रूप में ऊगी फसल देखकर संतुष्टि मिलती है. प्रेमी युगल इस ऋतु के कायल हैं तो इससे जुड़ी पौराणिक मान्यताएं भी कम नहीं हैं. तो आइए मनाएं भावनाओं को विस्तार देता वसंतोत्सव इन मधुकणों के साथ.
माघ महीने की शुक्ल पंचमी को वसंत पंचमी के रूप में बहुत उत्साह से मनाया जाता है. एक तरह से यह वसंत के आगमन की मुनादी है. हिंदू महीनों के अनुसार फागुन वर्ष का अंतिम महीना है और चैत्र पहला. इस तरह हिंदू वर्ष का अंत और नव वर्ष की शुरुआत दोनों ही मन को प्रफुल्लित कर देनेवाली इस वसंत ऋतु में होते हैं. वसंत ऋतु हर व्यक्ति के मन में अपनी गहरी और अलग छाप छोड़ती है. कवियों और लेखकों को जहां इससे सृजन की ऊर्जा मिलती है, वहीं कृषक वर्ग को अपनी मेहनत के रूप में ऊगी फसल देखकर संतुष्टि मिलती है. प्रेमी युगल इस ऋतु के कायल हैं तो इससे जुड़ी पौराणिक मान्यताएं भी कम नहीं हैं.
ऋतुराज वसंत प्रकृति से जुड़ी हर चीज़ को आनंदित करता है. चाहे फिर पेड़-पौधे हों, पशु-पक्षी हों या हो मानव मन. इसके स्नेह के विस्तार की थाह पाना असंभव नहीं तो कठिन ज़रूर है. यह इतने आयामों में माधुर्य बांटता है तभी तो इसे मधुमास कहते हैं. यहां इस मधुमास के मधुकणों का आनंद लीजिए.
ऋतु वसंत की आई
नव प्रसून फूले
तरुओं ने नव हरियाली पाई
पाकर फिर से रूप सलोना
महक उठा वन का हर कोना
करती जैसे जादू-टोना
फिरी नवल पुरवाई
वसंत ऋतु पर लिखी गुलाब खंडेलवाल की इस कविता की ये पंक्तियां जो भाव अभिव्यक्त करती हैं, बिल्कुल उसी तरह ऋतुराज वसंत के आगमन का संकेत फूल, पौधे, खेत, खलिहान और यहां तक कि हमारे अंतर्मन के आह्लाद से ही मिल जाता है. सर्दियों की सिहरन कम होती है, मौसम मन को बावरा कर देता है, पेड़ों पर नए पत्ते, नए फूल दिखाई देते हैं, खेतों में खड़ी सरसों और गेहूं की फसलों का रंग, टेसू के फूलों का रंग, आम के बौर की ख़ुशबू, महुआ की गंध की मादकता और कोयलों की मधुर तान से सजी धरा सहज ही इतनी सुंदर दिखाई देती है कि मन सकारात्मकता से भर जाता है.
इतने प्यारे दिन वसंत के
वसंत के आगमन तक रातें छोटी और दिन लंबे होने की शुरुआत हो जाती है. मौसम अलमस्त हो जाता है. हवाएं सुकून पहुंचानेवाली हो जाती हैं. वसंत की शुरुआत के पांचवे दिन मनाई जाती है वसंत पंचमी. इस दिन को विद्या और संगीत की देवी शारदा का जन्मदिन माना जाता है और उनकी पूजा की जाती है. वासंती परिधानों में सजे पुरुष और नारियां देवी सरस्वती की अर्चना करते हुए इस दिन को जैसे वसंत का संपूर्ण स्वरूप ही दे देते हैं. वसंत पंचमी के दिन छोटे बच्चों का अन्न-प्राशन करना भी शुभ माना जाता है. छह माह के बच्चों को इस दिन पहली बार अन्न खिलाया जाता है. हमारे देश में इस दिन मीठा केसरिया भात बनाने का प्रचलन भी बहुत आम है. प्राचीन समय में वसंतोत्सव के समय कामदेव की पूजा भी की जाती थी. वसंत ऋतु का ये खाका महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ ने खींचा है:
सखि वसंत आया
भरा हर्ष वन के मन
नवोत्कर्ष छाया
किसलय-वसनानव-वय-लतिका
मिली मधुरप्रिय-उरतरु-पतिका
मधुप-वृहदबन्दी
पिक-स्वर नभ सरसाया…
प्रेमभरी वासंती रातें
वसंत की शामें और वसंत की रातें तो जैसे प्रेमी युगलों के नाम ही हैं. वह मौसम जो न ज़्यादा सर्द हो, न ज़्यादा गर्म; वह समय जब प्रकृति स्वयं तरह-तरह के रंग-बिरंगे फूलों से अपना श्रृंगार करती हो; वह समय जब परिंदे अपनी मधुर आवाज़ में प्रकृति के इस शृंगार की भूरी-भूरी प्रशंसा करते न थकते हों. इस समय के वर्णन को लेकर पूर्णिमा वर्मन की इस कविता में प्रेम ही तो छलकता है:
सरसों के रंग सा
महुए की गंध सा
एक गीत और कहो
मौसमी वसंत का…
वसंत में तो प्रेममय युगल को विरह की कामना से भी परहेज़ है. जिस तरह कवियों ने वसंत के गमकते दिनों की कल्पना की है, उसी तरह वसंत की रातों की कल्पनाएं भी उनसे अछूती नहीं रही हैं. कवि गोपालदास नीरज की इस कविता में आपको इसकी भी झलक मिलेगी:
आज बसंत की रात
गमन की बात न करना
धूप बिछाए फूल-बिछौना
बगिया पहने चांदी-सोना
कलियां फेंके जादू-टोना
महक उठे सब पात
हवन की बात न करना
आज बसंत की रात
गमन की बात न करना…
नव संचार करता है ऋतुराज
यह तो आपने ख़ुद भी महसूस किया होगा कि वसंत में प्रकृति के नए शृंगार के साथ ही जैसे जीवन में भी नवसंचार हो जाता है.पूर्व प्रधानमंत्री स्व. अटल बिहारी वाजपेयी की कविता में आप इस बात को सहजता से महसूस कर सकते हैं:
टूटे हुए तारों से फूटे बासंती स्वर
पत्थर की छाती में उग आया नवअंकुर
झरे सब पीले पात
कोयल की कुहुक रात
प्राची में अरुणिम की रेख देख पाता हूं
गीत नया गाता हूं…
विद्या और पठन-पाठन से बच्चों के रिश्ते की इस दिन से शुरुआत करना भी शुभ माना जाता है. विद्या की देवी सरस्वती का यह दिन विद्यार्जन शुरू कर रहे विद्यार्थियों के नाम भी होता है. जहां कवियों ने इस ऋतु की प्रशंसा में कई बातें कही हैं, वहीं वसंत और वर्षा ऋतु की तुलना स्त्री और पुरुष के रूप में भी की है. इसकी सुंदर बानगी मशहूर कवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की कविता में यूं मिलती है:
राजा वसंत वर्षा ऋतुओं की रानी
लेकिन दोनों की कितनी भिन्न कहानी
राजा के मुख में हंसी कंठ में माला
रानी का अंतर द्रवित दृगों में पानी…
पर हमें तो ऐसे वसंत की कामना है
वसंत का समय हर तरह से ख़ुशियां लानेवाला माना गया है. दुनियाभर में ग्लोबल वॉर्मिंग के बढ़ते असर के बीच भी वसंत का ठीक अपने निर्धारित समय पर आना, जैसे इस धरा पर सकारात्मकता का आना है. न बर्फ़ीली ठंडी हवाएं, न आदित्य की कठोरता का प्रकोप. आरामदेह मंद बयार और भीनी ख़ुशबू से महकता वसंत का मौसम क्लांत मन को भी शांत कर देता है, लेकिन कवियों की वसंत की कामना तो वसुधैव कुटुम्बकम सी होती है. प्रोफ़ेसर अज़हर हाशमी की कविता तो ऐसे ही वसंत की कामना करती है:
रिश्तों में हो मिठास तो समझो वसंत है
मन में न हो खटास तो समझो वसंत है
आंतों में किसी के भी न हो भूख से ऐंठन
रोटी हो सबके पास तो समझो वसंत है
दहशत से रहीं मौन जो किलकारियां उनके
होंठों पे हो सुहास तो समझो वसंत है
खुशहाली न सीमित रहे कुछ खास घरों तक
जन-जन का हो विकास तो समझो वसंत है
सब पेड़-पौधे अस्ल में वन का लिबास हैं
छीनों न ये लिबास तो समझो वसंत है