उपन्यास ‘मैमराज़ी बजाएगी पैपराज़ी का बैंड’ एक अलग विषय पर बुना गया है. यह कहा जाए कि यह पाठक को एंटरटेन करने, तनाव मुक्त रखने वाली किसी पारिवारिक फ़िल्म-सा उपन्यास है तो बिल्कुल सही होगा. आज की फ़ास्ट लाइफ़ में इस तरह की तेज़ गति के, सहज भाषा वाले और पाठक को स्ट्रेस-फ्री कर देने वाले उपन्यास लिखे जाने चाहिए. ऐसे उपन्यास हिंदी के युवा के पाठकों में पढ़ने की रुचि जगाए रखने का काम करेंगे.
पुस्तक: मैमराज़ी बजाएगी पैपराज़ी का बैंड
विधा: उपन्यास
लेखक: जयंती रंगनाथन
प्रकाशक: हिंद युग्म
मूल्य: रु 249/-
उपलब्ध: ऐमाज़ॉन
हाल ही में हिंद युग्म से प्रकाशित हुआ जयंती रंगनाथन का उपन्यास ‘मैमराज़ी बजाएगी पैपराज़ी का बैंड’ एक ऐसा उपन्यास है, जो न सिर्फ़ पाठक को गुदगुदाता है, बल्कि ‘आगे क्या होगा’ यह जानने की ललक भी बरक़रार रखता है. यदि यह कहा जाए कि यह पाठक को एंटरटेन करने, तनाव मुक्त रखने वाली किसी पारिवारिक फ़िल्म-सा उपन्यास है तो बिल्कुल सही होगा.
छोटे से शहर भिलाई के भिलाई स्टील प्लांट की कॉलोनी में रहनेवाले लोगों और ख़ासतौर पर वहां रहने वाले परिवारों की महिलाओं के जीवन पर बुना गया यह उपन्यास आपको स्मॉल टाउन के लोगों के जीवन से, उनकी प्राथमिकताओं से, उनके परिवेश से, उनकी सोच से मिलवाता है. जिन लोगों ने ऐसा परिवेश देखा है, वे इस उपन्यास के ज़रिए उस माहौल को दोबारा जी पाएंगे और जिन्होंने ऐसा परिवेश नहीं देखा है, वे थोड़े हतप्रभ रह जाएंगे कि भई किसी के जीवन में क्या दूसरे लोगों की इतनी तांक-झांक इतना दख़ल संभव भी है! भले ही ऐसे माहौल को न देख पाने वालों को यह लगे कि ऐसा संभव नहीं है, लेकिन दरअसल यह उपन्यास इस तरह की कॉलोनीज़ की मज़ेदार सच्चाई पर ही बुना गया है.
एक जैसा जीवन जीने की आदी इस उपन्यास की महिलाओं के जीवन में रस ही इस बात से आता है कि वे दूसरों की बिन मांगे मदद करें. पर दूसरे के जीवन में यह घुसपैठ, जिसे वे मदद का नाम देती हैं, दरअसल किसी के जीवन का सिरदर्द या परेशानी का सबब बन सकता है इस बात का उन्हें कोई एहसास ही नहीं. सच पूछिए तो अपने कर्म-धर्म में लीन बड़ी निश्छल सी महिलाएं हैं ये. उपन्यास पढ़ते-पढ़ते आपको इन महिलाओं से इनकी नादानियों पर हंसी भी आती है और इनसे प्यार भी हो जाता है.
कहानी शुरू होती है भिलाई स्टील प्लांट में नए ट्रेनी इंजीनियर शशांक के जॉइन करने से. दिल्ली से आए इस बंदे को तब मॉरल और कल्चरल शॉक एक साथ लगता है, जब आधी रात को उसकी पड़ोसन स्वीटी भाभी, उसे नींद से जगाकर, बिना कोई औपचारिक जान-पहचान के अपने घर ले जाती है और अपने किचन की चोक हो गई नाली खुलवाती है. मज़े की बात ये है कि उसका अपना पति घर में होता है और सो रहा होता है. इसके बाद तो शशांक के जीवन में भिलाई की ये मैमराज़ियां इतनी घुसपैठ और इतनी उथल-पुथल मचा देती हैं कि उसका ब्रेकअप तक हो जाता है. दिलचस्प मोड़ों से गुज़रते हुए ये उपन्यास आपको सुखद अंत तक पहुंचाकर चेहरे पर मुस्कान खिला देता है.
उपन्यास के पात्र बड़े रोचक और अलहदा से हैं, जैसे- झुमकी, रौनी, डीडी, नंदू, विरल, झंडेलाल, कुणाल, सुंदरी वगैरह, जो उपन्यास पढ़ने के बाद भी पाठक के ज़ेहन में बने रहते हैं, उसे मुस्कुराने पर मजबूर कर देते हैं. आज की फ़ास्ट लाइफ़ में हिंदी में इस तरह की तेज़ गति के, सहज भाषा वाले और पाठक को स्ट्रेस-फ्री कर देने वाले उपन्यास लिखे जाने चाहिए. ऐसे उपन्यास हिंदी के युवा के पाठकों में पढ़ने की रुचि जगाए रखने का काम करेंगे. यदि आप एक प्रवाहमय और मन को मज़ेदार अनुभव देने वाला उपन्यास पढ़ना चाहते हैं तो मैं इस उपन्यास को ज़रूर रिकमंड करूंगी.