इन दिनों हमारे देश में हमारी मातृभूमि और देशभक्ति की भावना का ज़िक्र अक्सर होता रहता है. सोशल मीडिया पर इसकी चर्चा भी होती रहती है. तो हमने सोचा कि आपके साथ मातृभूमि पर लिखी कवि सोहनलाल द्विवेदी की वह कविता साझा करें, जिसमें उन्होंने अपनी मातृभूमि की विशेषताओं का उल्लेख किया है. पद्म श्री सम्मान से सम्मानित हुए सोहन लाल द्विवेदी गांधीवादी विचारधारा क प्रतिनिधि कवि थे. उन्हें अपने ओजस्वी काव्य पाठ के लिए भी जाना जाता है.
ऊंचा खड़ा हिमालय
आकाश चूमता है
नीचे चरण तले झुक
नित सिंधु झूमता है
गंगा यमुना त्रिवेणी
नदियां लहर रही हैं
जगमग छटा निराली
पग पग छहर रही है
वह पुण्य भूमि मेरी
वह स्वर्ण भूमि मेरी
वह जन्मभूमि मेरी
वह मातृभूमि मेरी
झरने अनेक झरते
जिसकी पहाड़ियों में
चिड़ियां चहक रही हैं
हो मस्त झाड़ियों में
अमराइयां घनी हैं
कोयल पुकारती है
बहती मलय पवन है
तन मन संवारती है
वह धर्मभूमि मेरी
वह कर्मभूमि मेरी
वह जन्मभूमि मेरी
वह मातृभूमि मेरी
जन्मे जहां थे रघुपति
जन्मी जहां थी सीता
श्रीकृष्ण ने सुनाई
वंशी पुनीत गीता
गौतम ने जन्म लेकर
जिसका सुयश बढ़ाया
जग को दया सिखाई
जग को दिया दिखाया
वह युद्ध–भूमि मेरी
वह बुद्ध–भूमि मेरी
वह मातृभूमि मेरी
वह जन्मभूमि मेरी
फ़ोटो: पिन्टरेस्ट