आज के समय में जन्म लेने वाले हज़ारों-हज़ार बच्चे कुछ राजनेताओं की ज़िद के चलते होने वाले युद्धों और उससे इतर भी किस तरह असमय काल के गाल में समा रहे हैं, यह बात उजागर करती हुई और जीज़स को आज का यथार्थ सुनाती हुई एक संवेदनशील कविता.
मेरे प्यारे जीज़स!
उतना क्रूर समय
नहीं था तुम्हारा
कड़कड़ाती ठंड में
पैदा हुए तुम अस्तबल में
और बच गए
जबकि घूम रहे थे हत्यारे
तुम्हारे लिए
किसी शासक के इशारे पर
इस दौर में
लाखों दुधमुंहे शिशु
बिल्कुल तुम्हारी तरह
अनायास मर जाते हैं
इनमें कोई हाथ नही
इस दौर के शासकों का
वे तो बच्चों से भी
मासूम होते हैं
दरअसल
छोटे बच्चों की मौत में
कोई थ्रिल नहीं है
इसलिए हर शासक
कुछ बड़ों को मारने के लिए
कुछ बड़ों को
सुसज्जित करता है
बमों मिसाइलों
टैंकों मोर्टारों से
एक साथ
लाखों की तादाद में मरें
ऐसी व्यवस्था की है
ज़्यादातर शासकों ने
उन्होंने भी
जो तुम्हारे गुण गाते हैं
और उन्होंने भी
जो पूजते हैं बुद्ध को
बेथलेहम की गलियों में
जैसे तुम्हें घसीटा गया
वैसे रोज़ घसीटे जाते हैं
हज़ारों हज़ार
कभी धर्म के नाम पर
कभी राष्ट्र के
तो कभी संप्रदाय के
तुमने नहीं देखे होंगे
शहर के शहर
जलते हुए
नफ़रतों के
ख़ूंख़्वार भेड़िये
नगरों में पलते हुए
तुम बेहतर समय में जन्मे
तुम्हें पता था
कौन मित्र है
और कौन हत्यारा
कौन विनम्र
कौन अहंकार का मारा
हमारे लिए तो
हत्यारे को
मित्र कहने की मजबूरी है
सत्य और हमारे बीच
उतनी ही दूरी है
जितनी तुम्हारे और
जूडस के बीच थी
आख़िरी भोजन के समय
मुझे बेहद ख़ुशी है
कि तुम नहीं जनमे
हमारे क्रूर समय में
कड़कड़ाती सर्द रातों में
उन बच्चों के बीच
जिनके जनम पर
फ़रिश्ते नहीं
यमदूत आते हैं
बधाइयां देने
कुपोषण और बीमारियां
सोहर गाती हैं
और धरती बेकरार होती है
सर्द सीने में छिपाने के लिए
जिनका कभी नहीं होता
पुनरुत्थान
तुम्हारी तरह
मेरी क्रिसमस
ओ मेरे प्यारे जीज़स!
फ़ोटो साभार: पिन्टरेस्ट