देश की प्राचीन व पवित्र मानी जाने वाली सात नदियों में से एक है नर्मदा नदी, जो मध्य प्रदेश और गुजरात राज्यों की जीवन रेखा है. देश की सभी नदियों की अपेक्षा नर्मदा नदी विपरीत दिशा में बहती है. पूर्व से पश्चिम की ओर बहने वाली इस नदी के इस दिशा में बहने का कारण इसका रिफ़्ट वैली में स्थित होना है. हालांकि नर्मदा के इस तरह विपरीत दिशा में बहने को लेकर पुराणों में भी कई कहानियां बताई गई हैं, लेकिन यहां मुकेश नेमा के कवि मन ने नर्मदा के बहाव की इस दिशा को एक अनूठा भाव दे दिया है. कविता पढ़ें और इस भाव को महसूस करें.
पता है नर्मदा
तुम क्यों हो?
शुचितापूर्ण
पवित्र और
आदरणीय सर्वाधिक.
नदियां तो हैं और भी
अनगिनत छोटी बड़ी
पर सभी तो नहीं हुई
तुम सी यशस्विनी.
जानना चाहोगी
तुम उत्तर जो
इस प्रश्न का?
उपलब्ध है
कारण सरल.
निष्ठावान शेष सभी
व्यवस्था के प्रति.
सर माथे रखे उन्होंने
वे नियम और क़ायदे
पुरुषों ने जो बनाए
लड़कियों
स्त्रियों
और नदियों के लिए.
बनी रहीं विनम्र
गृहस्थनों सी
खटती रहीं
उनके लिए
जो जानते थे बस
तिरस्कार करना.
ऐसे ही जीती रहीं
और मरीं चुपचाप सी.
एक बस तुम्हीं हठी
लीक से है जो हटी
कांटो से संकट चुने,
और चुनी चुनौतियां
राह अपनी ख़ुद बनाई
एकाकी चलती रहीं
किया अस्वीकार
बहना दूसरों की तरह
निरापद और सुरक्षित
परंपरागत पूर्व की ओर
जो होता साहचर्य
अशिष्ट सोनभद्र का.
मात्र इसलिए
नायिका हुईं तुम
मार्गदर्शक और प्रेरक
शोषित और वंचितों की.
स्वाभिमान ही
कारण बना
साहस स्वयं
निमित्त था.
सुनो नेक नर्मदा
बनी रहो सदैव ही.
होना तुम्हारा
है ज़रूरी इसलिए
ताकि लड़ें जीती रहें
मन मारती जो लड़कियां.
कवर फ़ोटो साभार: रवि शुक्ला