दुख और समस्या का कारण जानने की इच्छा हम सभी को रहती है. साथ ही यह एक सवाल कि ‘मैं कौन हूं?’ संसार के सभी मनुष्यों को परेशान करता है. इनके जवाब सरल भाषा में ओशो से बेहतर भला और कौन दे सकता था. यही एक कारण है कि ओशो का लेखन, उनके प्रवचन उनकी मृत्यु के तीन दशक बाद भी प्रासंगिक जान पड़ते हैं. ओशो के प्रवचनों के इस संकलन में आपको जीवन से कई सवालों के जवाब मिलेंगे और साथ में जीवन को देखने का एक नया नज़रिया भी.
पुस्तक: मन का दर्पण
लेखक: ओशो
प्रकाशक: ओशो मीडिया इंटरनैशनल
मूल्य: 350 रुपए
कैटेगरी: आध्यात्म
उपलब्ध: amazon.in
रेटिंग: 4/5 स्टार
समीक्षक: सर्जना चतुर्वेदी, वरिष्ठ पत्रकार
महान दार्शनिक, विचारक ओशो की इस किताब में ज़िंदगी के अलग-अलग पहलुओं और सवालों पर चार ओशो टॉक्स का संकलन प्रस्तुत किया गया है. ओशो के विचारों के माध्यम से इस किताब से भी पाठक को ज़िंदगी को देखने का एक नया सकारात्मक नज़रिया देखने को मिलता है, इसके साथ ही वह अपनी अनसुलझी समस्याओं के समाधान पाने में भी कामयाब नज़र आता है.
महत्वाकांक्षा के बारे में बात करते हुए ओशो इसे मानव जीवन की समस्या और दुख का मूल आधार बताते हैं, क्योंकि यदि हमारे अंदर कोई महत्वाकांक्षा ही नहीं होगी तो निश्चित ही मन में कोई अशांति भी नहीं होगी. ओशो अध्याय के अंत में बिना किसी महत्वाकांक्षा के 15 दिन जीने का प्रयोग करने का सुझाव भी देते हैं.
मैं कौन हूं? यह एक ऐसा सवाल है जिसका जवाब इस दुनिया में हर कोई तलाश रहा है, लेकिन जब तक व्यक्ति इस सवाल का जवाब स्वयं से नहीं पूछेगा, उसे सटीक जवाब नहीं मिल सकेगा. यह बात गौतम बुद्ध और उनसे सवाल पूछने आए एक अनुयायी के माध्यम से कही गई है. यह व्यक्ति सिर्फ़ ध्यान के माध्यम से ही जान सकता है कि वह कौन है. असंग की खोज अध्याय में ओशो कहते हैं कि व्यक्ति को सोचते रहना चाहिए, क्योंकि प्राचीन स्थापित सारे संप्रदाय, संगठन यही कोशिश करते रहे हैं कि आदमी सोचना शुरू न कर दे. वे जो बताते हैं बस उसे ही ग्रहण करे और सच माने. उनको यह डर भी रहा है कि अगर उसने सोचा तो, हो सकता है कि हम जो बताते हैं उससे वह सहमत न हो. जो लोग समाज को कोई सिद्धांत या आइडियोलॉजी देना चाहते हैं, वे हमेशा विचारने के दुश्मन होंगे. क्योंकि उनको हमेशा डर होगा कि विचार सिद्धांत के विपरीत न हो जाएं और उनकी सत्ता ख़त्म न हो जाए. जीवन यानी परमात्मा अध्याय में ओशो एक कहानी के माध्यम से बताते हैं कि जीवन तो हमारे द्वार पर रोज़ आता है, लेकिन हमारे द्वार बंद हैं और हम सोए हुए हैं इसलिए जीते जी हम जीवन से परिचित नहीं हो पाते हैं.
जीवन को नए दृष्टिकोण देती यह किताब बेहद ही सरल हिंदी भाषा में लिखी गई है तथा पाठक को बांधकर रखती है. रवीन्द्रनाथ टैगोर, महावीर, गौतम बुद्ध से लेकर आम व्यक्ति के जीवन से जुड़े क़िस्से उदाहरण के रूप में दिए गए हैं.