पालतू पशुओं को पालने वालों से पूछिए कि ये पशु उन्हें कितना प्यार-दुलार देते हैं. कुत्ते और बिल्ली तो यह बात भांप लेते हैं कि उनके मालिक का मन उदास है और फिर वे उनके आगे पीछे घूम घूम कर अपना लाड़ जताते हैं. पालतू पशु चाहे जो हो, वह आपके तनाव को दूर करता है और आपको संवेदनशील भी बनाता है. इस तथ्य से जुड़ी कई रिसर्च जब-तब सामने आती रहती हैं. आइए, देखें कैसे ये पशु हमें तनावमुक्त और संवेदनशील बनाते हैं.
जानवरों को तो मनुष्य बहुत पहले से पालता आया है. उन्हें पालतू बनाना मनुष्यों के लिए अपने जीवन को आसान करने का ज़रिया भी रहा है. मसलन, कुत्ते पाल कर अपने खेतों की रक्षा करना; गधे पाल कर उनसे बोझ उठवाना; घोड़े पाल कर आवाजाही में उनका इस्तेमाल करना; हाथियों को पाल कर युद्ध में इस्तेमाल करना; गाय, भैंस और बकरी से दूध पाना और बैलों से खेत जुतवाना. यह भी सच है कि मनुष्य और जानवरों का ये साथ मनुष्य और जानवरों दोनों को ही फ़ायदा पहुंचाता रहा है.
तनावमुक्त करते हैं पेट्स
यूं तो यह बात कई स्टडीज़ में साबित हो चुकी है कि अपने घर पर किसी पालतू जानवर यानी पेट को पालने से लोगों को तनावमुक्त होने में मदद मिलती है, लेकिन ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी ऑफ़ यॉर्क में हाल में आई महामारी के लॉकडाउन फ़ेज़ के दौरान की गई एक रिसर्च में यह बात फिर साबित हो गई है कि अच्छा मानसिक स्वास्थ्य पाने, अकेलेपन को मिटाने और तनाव को कम करने में पेट्स अहम् भूमिका निभाते हैं. इस शोध में लगभग 6000 प्रतिभागियों ने अपनी राय रखी, जिनके पास महामारी के दौरान कम से कम एक पालतू जानवर था. इन पेट ओनर्स के पास कुत्ते, बिल्ली, मछली, कछुए या अन्य तरह के पालतू जानवर थे.
इन प्रतिभागियों में से 90 प्रतिशत ने माना कि उनके पालतू जानवर ने उन्हें लॉकडाउन के दौरान भावनात्मक रूप से सुदृढ़ रखा, 96 प्रतिशत ने माना कि अपने पेट की वजह से वे स्वस्थ और फ़िट रह सके. हालांकि 68% ने यह भी माना कि वे अपने पेट के लिए चिंतित भी थे, कि कहीं महामारी का असर उनके पेट पर भी तो नहीं आ पड़ेगा?
संवेदनशीलता और ज़िम्मेदारी
दूसरी ओर यह बात भी ध्यान देने जैसी है कि जब हम तनावग्रस्त होते हैं तो अपने बारे में भी ठीक से नहीं सोच पाते, ऐसे में किसी दूसरे व्यक्ति के प्रति संवेदनशील होना तो दूर की कौड़ी है. लेकिन जब हम बिना तनाव के सामान्य अवस्था में हों तो दूसरे इंसानों और प्राणियों के बारे में सोचने और संवेदनशील होने में हमें देर नहीं लगती. और पेट्स हमें तनावमुक्त बना कर इस स्टेट में पहुंचा देते हैं कि हम दूसरों के दुख-दर्द को समझ सकें. और जब हम अपने आसपास के दूसरे लोगों की समस्याओं को समझेंगे, तो ज़ाहिर है उनकी मदद के लिए क़दम उठाएंगे ही. इस तरह हम पालतू जानवरों का ख़्याल रखते हुए, ज़िम्मेदार नागरिक की भूमिका में आ ही जाएंगे.
इसके अलावा पालतू जानवरों से मिलने वाला बिनाशर्त स्नेह आपको ज़िम्मेदार भी बनाता है. मनुष्य की बोली न बोल पाने वाले इन जानवरों को समय पर खाना देना, टहलाने ले जाना, उनसे बातें करना और हाव-भाव, चाल-ढाल से ही यह बात समझ लेना कि उनकी तबियत ठीक नहीं है. फिर तुरंत उनकी तीमारदारी शुरू करना, उन्हें पशु चिकित्सक के पास ले जाना… ये सभी बातें संवेदनशीलता की मिसाल ही तो है.
तरह–तरह के पेट्स
अमूमन हम पेट्स का अर्थ कुत्तों को पालने से ही लगाते हैं और इस बात में कोई शक़ भी नहीं कि कुत्ते बहुत शानदार और प्यारे पालतू जानवर साबित होते हैं. लेकिन दुनिया में लोग कई और तरह के पेट्स भी पालते हैं.
एक ऑस्ट्रेलियन स्टडी के मुताबिक़ बिल्लियों के मालिकों का मानसिक स्वास्थ्य उन लोगों की तुलना में बहुत बेहतर पाया गया, जिनके कोई पेट्स नहीं हैं. बेहतर मानसिक स्वास्थ्य बेहतर सोच को जन्म देता है और बेहतर सोच आपको बतौर इंसान बेहतरीन बनाती है. बेहतरीन इंसानों की मौजूदगी से यह दुनिया भी तो बेहतरीन होगी, है ना?
इसके अलावा इन दिनों लोग मछलियों, कछुओं, चिड़ियों, सफ़ेद चूहों, खरगोशों को भी अपना पेट बनाते हैं. और ये सभी जानवर अपने सहज करतबों से अपने मालिक के तनाव को दूर करने का काम करते हैं.
फ़ोटो: पिन्टरेस्ट