वर्तिका नन्दा की यह कविता उन रानियों की कहानी है, जिनके पास सारे सच तो थे, पर ज़ुबां बंद थी. सुख-सुविधाओं की चारदीवारी में क़ैद की गई रानियों के दिल की बात है यह कविता.
उनकी आंखों में सपने तैरते ही नहीं
वे भारी पलकों से रियासतें देखती हैं
सत्ताओं के खेल
राजा की चौसर
वे इंतज़ार करती हैं
अपने चीर हरण का
या फिर आहुति देने का
वे जानती हैं
दीवार के उस पार से होने वाला हमला
तबाह करेगा सबसे पहले
उनकी ही दुनिया
पर वे यह भी जानती हैं
गुलाब जल से चमकती काया
मालिशें
ख़ुशबुएं
ये सब चक्रव्यूह हैं
वे जानती हैं
पत्थर की इन दीवारों में कोई रौशनदान नहीं
और पायल की आवाज़ में इतना ज़ोर नहीं
चीखें यहीं दबेंगी
आंसू यहीं चिपकेंगे
मकबरे यहीं बनेंगे
तारीख़ें यहीं बदलेंगी
पर उनकी क़िस्मत नहीं
रानियां बुदबुदाती हैं
गर्म दिनों में सर्द आहें भरती हैं
सुराही सी दिखकर
सुखी रहती हैं-अन्दर, बहुत अन्दर तक
राजा नहीं जानते
दर्द के हिचकोले लेती यही आहें
सियासतों को, तख़्तों को,
मिट्टी में मिला देती हैं एक दिन
राजा सोचा करते हैं
दीवारें मज़बूत होंगी
तो वे भी टिके रहेंगे
राजा को क्या पता
रानी में ख़ुशी की छलक होगी
मन में इबादत और
हथेली में सच्चे प्रेम की मेहंदी
तभी टिकेगी सियासत
रानियां सब जानती हैं
पर चुप रहती हैं
आंखों के नीचे
गहरे काले धब्बे
भारी लहंगे से रिसता हुआ ख़ून
थका दिल
रानी के साथ चलता है
तो समय का पहिया कंपकंपा जाता है
सियासतें कंपकंपा जाती हैं
तो राजा लगते हैं दहाड़ने
इस कम्पन का स्रोत जानने की नर्माहट
राजा के पास कहां है
रानियां जो जानती हैं
वे राजा नहीं जानते
न बेटे
न दासियां
हरम के अन्दर हरम
हरम के अन्दर हरम
तालों में
सीखचों में
पहरे में
हवा तक बाहर ठहरती है
और सुख भी
रानियां सब जानती हैं
पर मुस्कुराती हैं
मुस्कुराहट चस्पां है
बाक़ी भाव भी बाहर हैं पत्थरों की दीवारों के
दफ़न होंगे यहीं
रानियां जानती हैं
चाहे कितनी ही बार लिखे जाएं इतिहास
फटे हुए ये पन्ने उड़कर बाहर जा नहीं पाएंगे
रानियों के पास सेना नहीं है
सत्ता नहीं
राजपाट भी नहीं
लेकिन उनके पास सच है
मगर अफ़सोस!
सच के सन्दूकों की चाबी भी
राजा के ही पास है
हां, रानियां ये भी जानती हैं
कवयित्री: वर्तिका नन्दा
कविता संग्रह: रानियां सब जानती हैं
प्रकाशक: वाणी प्रकाशन
Illustration: Raja Ravi Verma Painting by Pinterest