चीन की यात्रा पर पहुंची रीना पंत, जिन्हें यात्रा करना ख़ासा पसंद है, आज हमें बता रही हैं चीन में अपने तीसरे गंतव्य बीजिंग के भ्रमण के बारे में. वे बता रही हैं कि वहां महिलाएं कौन सा पारंपरिक परिधान पहनती हैं, शेयरिंग इकॉनमी क्या है और यहां के लोग कैसे हैं. आइए, उनके साथ बीजिंग की गलियों की सैर करते हैं.
चीन में हमारा तीसरा गंतव्य था बीजिंग. हांग्ज़ोउ से बीजिंग की दूरी लगभग उतनी ही है, जितनी मुंबई से दिल्ली की, पर ट्रेन की रफ़्तार के कारण हम पांच घंटे में ही बीजिंग पहुंच गए. बीजिंग जाते हुए हमने फ़र्स्ट क्लास का टिकट लिया था, पर हमारी सीट टॉयलेट के पास वाले कूपे में मिली थी. लगातार लोगों के आने जाने से बहुत डिस्टर्ब हो रहा था. अत: वहां से लौटते हुए हमने बिज़नेस क्लास का टिकट लिया. किराया ज़्यादा था, पर अनुभव बहुत सुंदर था. यहां ठंड के कारण पूरी ट्रेन में सेंट्रल हीटर होता है और पीने के लिए गर्म पानी की व्यवस्था भी होती है. हम जब बीजिंग पहुंचे उस समय तापमान एक डिग्री था और रात के दस बजे थे.
बीजिंग भी हम तीन दिन रूके. पहले दिन हम फ़ॉरबिडन सिटी देखने निकले. वहां पहुंचकर पता चला कि फ़ॉरबिडन सिटी के टिकट तो सात दिन पहले ही बुक हो जाते हैं. मैंने ‘वेनेसा हुआ’ और ‘मेलिसा एडे’ की ‘फ़ॉरबिडन सिटी सिरीज़’ पढ़ी थी. सो मुझे यह जगह देखनी थी. मैं बहुत निराश हुई. बाहर-बाहर घूमकर हम उसके सामने के समर गार्डन में गए. आम तौर पर लोग पहले फ़ॉरबिडन सिटी जाते हैं, फिर समय गार्डन. यह ऊंचाई पर है जहां से फ़ॉरबिडन सिटी और पूरे शहर का नज़ारा देखा जा सकता है.
बीजिंग चीन की राजधानी और बहुत पुराना शहर है. सड़कों पर चलते हुए इसे अच्छी तरह देखा और समझा जा सकता है. यहां लड़कियां सुंदर हेडगीयर के साथ छिपूं नामक पारंपरिक परिधान पहनती हैं. मौसम की तरह ही लोगों का व्यवहार भी ख़ुशगवार है. पुरानी फ़ैक्ट्रियों को ओपन आर्ट गैलरी का रूप दिया गया है, जो कला के प्रति वहां के बाशिंदों के प्रेम की कहानी बताता है.
दिल्ली की तरह ही बीजिंग भी गोलाई में स्थित है. यहां भी रिंग रोड है. इमारतें भी वैसी ही लगतीं हैं. बीजिंग के केंद्र में प्रसिद्ध ऐतिहासिक त्यांनमान स्क्वैर है और चारों ओर शहर फैला है. यहां सभी राजनैतिक गतिविधियां होती हैं.
आज हमें वॉल ऑफ़ चायना देखने जाना था. टॉम हमें अपनी टैक्सी में सुबह साढ़े सात बजे लेने पहुंच गया. वह सात बजे निकलना चाहता था, क्योंकि बाद में भीड़ हो जाती. मुझे इतनी ठंड लग रही थी कि मैं इतनी सुबह नहीं निकलना चाहती थी. टॉम हमें अपने परिवार के बारे में बताता रहा. वह बीजिंग रूस और चीन की बॉर्डर पर स्थित एक गांव हार्विन से आया था, जहां का तापमान जाड़ों में -50 डिग्री रहता है. टॉम अच्छी अंग्रेज़ी बोल लेता है इसलिए विदेशी पर्यटकों में काफ़ी लोकप्रिय है. टॉम ने बताया कि उसकी एक बेटी है (चीन में अभी भी ज़्यादातर लोग वन चाइल्ड पॉलिसी का पालन करते हैं), जो फ़ैशन डिज़ाइनर का कोर्स करने अमेरिका या आस्ट्रेलिया जाना चाहती है पर उसकी पत्नी बेटी को संगीत सिखाना चाहती है (वहां भी माता-पिता अपनी इच्छा बच्चों पर थोपने की हिम्मत रखते हैं).
हमारे होटल से वॉल ऑफ़ चायना 70 किलोमीटर दूर था. वॉल पर चढ़ने के बहुत से प्रवेश द्वार हैं, पर ये हम जैसे कम चलने के आदी लोगों के लिए टूरिस्ट फ्रैंडली द्वार माना जाता है. सुबह साढ़े आठ-नौ के बीच हम वॉल के रोपवे में थे. रोप वे से नीचे का नज़ारा अद्भुत था. उससे भी अद्भुत था रोप वे की कुर्सी में बैठना. एक ओर से ख़ाली कुर्सी आती है और दूसरी ओर आपको तेज़ी से उस पर बैठ जाना होता है. जब तक आप कुछ समझें एक आदमी आपकी बांह पकड़कर झटपट बैठा देता है और जब आप कुछ देखने की स्थिति में आते हैं आपको नीचे गहरी खाई दिखती है. टॉम हमारे साथ दीवार तक आया और हमें यह बताकर वापस हो गया कि हमें और क्या-क्या व कैसे देखना चाहिए. पहले हम उस गए, जो थोड़ा मुश्किल है, ताकि बाद में आसान रास्ते पर घूम सकें. वहां बहुत कम लोग दिख रहे थे. शायद ठंड के कारण और उस दिन वर्किंग डे भी था.
दीवार में छोटी-छोटी सीढ़ियां हैं. जितना मुश्किल ऊपर चढ़ना है, उससे ज़्यादा मुश्किल है उतरना. वहां सीधी खड़ी चढ़ाई है, मैं एक जगह बैठ गई. पति और बेटी अगले टावर तक गए. जहां सैनिक चौकसी करते थे या आराम करते और भोजन इत्यादि करते होंगे, उन्हें टावर कहा जाता है. जब तक हम दूसरी ओर गए तब तक धूप निकल आई थी और लोग भी बढ़ने लगे थे.
इस बीच फ्रांस से आए दो पर्यटकों से भी हमारी काफ़ी बातचीत हुई. उन्होंने हमें अपने यहां आने का निमंत्रण दिया और मैंने उन्हें अपने यहां निमंत्रित किया.
दीवार का एक छोटा सा भाग भी हम पूरा नहीं कर पाए. मैं तीन किलोमीटर चली, क्योंकि लौटना भी था, पर घर के बाकी दोनों सदस्य पांच किलोमीटर तक गए. दीवार पर चढ़ना जितना रोमांचक है, उतरना उससे भी ज़्यादा. उतरने के लिए फिसलपट्टी है. जिसमें एक लकड़ी की कुर्सी दी जाती है, जिसके आगे के हैंडल से आप गति तेज़, कम या रोक सकते हैं. यह हमारे लिए ही नहीं, बल्कि हर पर्यटक के लिए बहुत रोमांचक होता है. इस तरह मैंने आज दुनिया के सात आश्चर्यों (seven wonders) में से तीसरा आश्चर्य भी देख लिया.
टॉम हमारा इंतज़ार कर रहा था. लौटते हुए मैंने उसे बताया कि हम फ़ॉरबिडन सिटी नहीं देख पा रहे हैं. उसने तुरंत फ़ोन कर के हमारे लिए टिकटों का इंतज़ाम कर दिया. शाम को हम एक बार फिर घूमने निकले. वहां एक नवविवाहित जोड़ा प्री वेडिंग शूट कर रहा था, हमने भी उनके साथ फ़ोटो खिंचवाई.
अगला दिन फ़ॉरबिडन सिटी देखने का था. फ़ॉरबिडन सिटी में भीतर चार दिशाओं से जाया जा सकता है. हम साउथ डोर से गए थे. फ़ॉरबिडन सिटी विश्व का सबसे बड़ा महल है. इसे बनाने में कुल चौदह वर्ष लगे. इसे अलग-अलग राजाओं द्वारा कई बार तोड़ा गया. लकड़ी का बना होने के कारण इसके आग से जलने का खतरा रहता है. इसमें कुल नौ हज़ार कमरे हैं. यहां का खाद्यान्न गृह अनूठा है. छतों पर की गई नक्काशी देखने योग्य है. मेरी बेटी तो इसी बात से हैरान थी कि इतने बड़े बड़े दरवाज़ों को खोला कैसे जाता होगा. हमने खूब तस्वीरें लीं. मेरा मन तृप्त था.
बीजिंग में बहुत ठंड होने के कारण दरवाज़ों में भारी प्लास्टिक के पर्दे लगे होते हैं. जहां-जहां हम घूमे, वहां जगह जगह साइकिल, मोबाइल चार्जर और छतरियों के स्टैंड दिखे. बहुत कम दामों में आप किराए पर लेकर इन चीज़ों को जब आपका काम हो जाए तो उस जगह छोड़ चले जाइए. इसे यहां पर ‘शेयर्ड इकॉनमी’ कहते हैं. यहां साफ़-सुथरे टॉयलेट की व्यवस्था है. हर टॉयलेट में गर्म पानी आता है.
यहां लोग सिगरेट बहुत पीते हैं. सिगरेट का धुआं मेरे दिमाग में बस गया. यही नहीं, वे मोबाइल का इस्तेमाल हद से ज़्यादा करते हैं, पता नहीं काम कैसे कर लेते हैं.
लौटते हुए हमारी बुकिंग बिज़नेस क्लास में थी. हम बिज़नेस क्लास के लाउन्ज में पहुंचे तो नाश्ता और कॉफ़ी हमारा इंतज़ार कर रहे थे. हमने पहले ही इतना खा रखा था कि अब कॉफ़ी के अलावा और कुछ खाने का मन नहीं था. मुझे डर था कि हमारी ट्रेन मिस न हो जाए इसलिए मैं हड़बड़ी कर रही थी पर परिचारिका ने कहा कि आप आराम कीजिए, मैं आपको उचित समय में बता दूंगी. थोड़ी देर बाद वो आई और हमें हमारे डिब्बे तक छोड़ गई. कोच में हमारा स्वागत कर रही परिचारिका ने हमें सीट बताई और हम आराम से हांग्ज़ोउ पहुंचे.
वापसी का दिन था. बेटी और उसके मित्रों के लिए ढेर सारा खाना बना हम रवाना हुए. बच्चों को ख़ुशी से रहते देख माता-पिता मुतमुइन हो जाते हैं. पहले मैं उससे कहती थी कि इस जगह को जल्दी छोड़ दो पर इस बार कहकर आई कि यहां से निकलने की जल्दी मत करो.
मैं लिखने में बहुत आलसी हूं, पर मेरे मित्र चीन के बारे में जानने को और ख़ास तौर पर यह जानने को कि कैसे इतने वर्षों से हमारी बेटी वहां रह रही है, बहुत उत्सुक रहते हैं. यही वजह है कि मैंने अपनी चीन यात्रा को कलमबद्ध किया. चीन के लोगों ने अपनी विनम्रता और प्यार से मेरा दिल जीत लिया. कभी वे मुझे मेरे देश में मिलेंगे तो मैं भी उन्हें प्रेम से सराबोर कर दूंगी.
फ़ोटो साभार: रीना पंत