ब्यूरोक्रेसी यानी सरकारी तंत्र की कार्यप्रणाली को लाल फीताशाही कहा जाता है. लाल फीताशाही मतलब हद दर्जे की लेट लतीफ़ी और अपना काम दूसरों पर टालने की प्रवृत्ति. कृष्ण चंदर की दशकों पहले लिखी गई यह कहानी आज के ज़माने में भी काफ़ी प्रासंगिक लगती है. सरकारी कर्मचारियों के काम करने के तरीक़े पर ज़बर्दस्त व्यंग्य है कहानी ‘जामुन का पेड़’.
रात को बड़े ज़ोर का अंधड़ चला. सेक्रेटेरिएट के लॉन में जामुन का एक पेड़ गिर पड़ा. सुबह जब माली ने देखा तो उसे मालूम हुआ कि पेड़ के नीचे एक आदमी दबा पड़ा है.
माली दौड़ा-दौड़ा चपरासी के पास गया, चपरासी दौड़ा-दौड़ा क्लर्क के पास गया, क्लर्क दौड़ा-दौड़ा सुपरिन्टेंडेंट के पास गया. सुपरिन्टेंडेंट दौड़ा-दौड़ा बाहर लॉन में आया. मिनटों में ही गिरे हुए पेड़ के नीचे दबे आदमी के इर्द-गिर्द मजमा इकट्ठा हो गया.
‘‘बेचारा जामुन का पेड़ कितना फलदार था,’’ एक क्लर्क बोला.
‘‘इसकी जामुन कितनी रसीली होती थी,’’ दूसरा क्लर्क बोला.
‘‘मैं फलों के मौसम में झोली भरके ले जाता था. मेरे बच्चे इसकी जामुनें कितनी ख़ुशी से खाते थे,’’ तीसरे क्लर्क का यह कहते हुए गला भर आया.
‘‘मगर यह आदमी?’’ माली ने पेड़ के नीचे दबे आदमी की तरफ़ इशारा किया.
‘‘हां, यह आदमी!’’ सुपरिन्टेंडेंट सोच में पड़ गया.
‘‘पता नहीं ज़िंदा है कि मर गया?’’ एक चपरासी ने पूछा.
‘‘मर गया होगा. इतना भारी तना जिसकी पीठ पर गिरे, वह बच कैसे सकता है?’’ दूसरा चपरासी बोला.
‘‘नहीं मैं ज़िंदा हूं,’’ दबे हुए आदमी ने बमुश्क़िल कराहते हुए कहा.
‘‘ज़िंदा है?’’ एक क्लर्क ने हैरत से कहा.
‘‘पेड़ को हटा कर इसे निकाल लेना चाहिए,’’ माली ने मशविरा दिया.
‘‘मुश्क़िल मालूम होता है,’’ एक काहिल और मोटा चपरासी बोला. ‘‘पेड़ का तना बहुत भारी और वज़नी है.’’
‘‘क्या मुश्क़िल है?’’ माली बोला. ‘‘अगर सुपरिन्टेंडेंट साहब हुक़ुम दें तो अभी पंद्रह बीस माली, चपरासी और क्लर्क जोर लगा के पेड़ के नीचे दबे आदमी को निकाल सकते हैं.’’
‘‘माली ठीक कहता है.’’ बहुत से क्लर्क एक साथ बोल पड़े. ‘‘लगाओ ज़ोर हम तैयार हैं.’’
एकदम बहुत से लोग पेड़ को काटने पर तैयार हो गए.
‘‘ठहरो,’’ सुपरिन्टेंडेंट बोला,‘‘मैं अंडर-सेक्रेटरी से मशविरा कर लूं.’’
सुपरिन्टेंडेंट अंडर सेक्रेटरी के पास गया. अंडर सेक्रेटरी डिप्टी सेक्रेटरी के पास गया. डिप्टी सेक्रेटरी जॉइंट सेक्रेटरी के पास गया. जाइंट सेक्रेटरी चीफ़ सेक्रेटरी के पास गया. चीफ़ सेक्रेटरी ने जॉइंट सेक्रेटरी से कुछ कहा. जॉइंट सेक्रेटरी ने डिप्टी सेक्रेटरी से कहा. डिप्टी सेक्रेटरी ने अंडर सेक्रेटरी से कहा. फ़ाइल चलती रही. इसी में आधा दिन गुज़र गया.
दोपहर को खाने पर, दबे हुए आदमी के इर्द-गिर्द बहुत भीड़ हो गई थी. लोग तरह-तरह की बातें कर रहे थे. कुछ मनचले क्लर्कों ने मामले को अपने हाथ में लेना चाहा. वह हुक़ूमत के फ़ैसले का इंतज़ार किए बग़ैर पेड़ को ख़ुद से हटाने की तैयारी कर रहे थे कि इतने में, सुपरिन्टेंडेंट फ़ाइल लिए भागा-भागा आया, बोला,‘‘हम लोग ख़ुद से इस पेड़ को यहां से नहीं हटा सकते. हम लोग वाणिज्य विभाग के कर्मचारी हैं और यह पेड़ का मामला है, पेड़ कृषि विभाग के तहत आता है. इसलिए मैं इस फ़ाइल को अर्जेंट मार्क करके कृषि विभाग को भेज रहा हूं. वहां से जवाब आते ही इसको हटवा दिया जाएगा.’’
दूसरे दिन कृषि विभाग से जवाब आया कि पेड़ हटाने की ज़िम्मेदारी तो वाणिज्य विभाग की ही बनती है.
यह जवाब पढ़कर वाणिज्य विभाग को ग़ुस्सा आ गया. उन्होंने फ़ौरन लिखा कि पेड़ों को हटवाने या न हटवाने की ज़िम्मेदारी कृषि विभाग की ही है. वाणिज्य विभाग का इस मामले से कोई ताल्लुक़ नहीं है.
दूसरे दिन भी फ़ाइल चलती रही. शाम को जवाब आ गया. ‘‘हम इस मामले को हार्टिकल्चर विभाग के सुपुर्द कर रहे हैं, क्योंकि यह एक फलदार पेड़ का मामला है और कृषि विभाग सिर्फ़ अनाज और खेती-बाड़ी के मामलों में फ़ैसला करने का हक़ रखता है. जामुन का पेड़ एक फलदार पेड़ है, इसलिए पेड़ हार्टिकल्चर विभाग के अधिकार क्षेत्र में आता है.’’
रात को माली ने दबे हुए आदमी को दाल-भात खिलाया. हालांकि लॉन के चारों तरफ़ पुलिस का पहरा था, कि कहीं लोग क़ानून को अपने हाथ में लेकर पेड़ को ख़ुद से हटवाने की कोशिश न करें. मगर एक पुलिस कांस्टेबल को रहम आ गया और उसने माली को दबे हुए आदमी को खाना खिलाने की इजाज़त दे दी.
माली ने दबे हुए आदमी से कहा,‘‘तुम्हारी फ़ाइल चल रही है. उम्मीद है कि कल तक फ़ैसला हो जाएगा.’’
दबा हुआ आदमी कुछ न बोला.
माली ने पेड़ के तने को ग़ौर से देखकर कहा,‘‘अच्छा है तना तुम्हारे कूल्हे पर गिरा. अगर कमर पर गिरता तो रीढ़ की हड्डी टूट जाती.’’
दबा हुआ आदमी फिर भी कुछ न बोला.
माली ने फिर कहा,‘‘तुम्हारा यहां कोई वारिस हो तो मुझे उसका अता-पता बताओ. मैं उसे ख़बर देने की कोशिश करूंगा.’’
‘‘मैं लावारिस हूं,’’ दबे हुए आदमी ने बड़ी मुश्क़िल से कहा.
माली अफ़सोस ज़ाहिर करता हुआ वहां से हट गया.
तीसरे दिन हार्टिकल्चर विभाग से जवाब आ गया. बड़ा कड़ा जवाब लिखा गया था. काफ़ी आलोचना के साथ. उससे हार्टिकल्चर विभाग का सेक्रेटरी साहित्यिक मिज़ाज का आदमी मालूम होता था. उसने लिखा था,‘‘हैरत है, इस समय जब ‘पेड़ उगाओ’ स्कीम बड़े पैमाने पर चल रही है, हमारे मुल्क़ में ऐसे सरकारी अफ़सर मौजूद हैं, जो पेड़ काटने की सलाह दे रहे हैं, वह भी एक फलदार पेड़ को! और वह भी जामुन के पेड़ को !! जिसके फल जनता बड़े चाव से खाती है. हमारा विभाग किसी भी हालत में इस फलदार पेड़ को काटने की इजाज़त नहीं दे सकता.’’
‘‘अब क्या किया जाए?’’ एक मनचले ने कहा,‘‘अगर पेड़ नहीं काटा जा सकता तो इस आदमी को काटकर निकाल लिया जाए! यह देखिए,’’ उस आदमी ने इशारे से बताया,‘‘अगर इस आदमी को बीच में से यानी धड़ की जगह से काटा जाए, तो आधा आदमी इधर से निकल आएगा और आधा आदमी उधर से बाहर आ जाएगा और पेड़ भी वहीं का वहीं रहेगा.’’
‘‘मगर इस तरह से तो मैं मर जाऊंगा !’’ दबे हुए आदमी ने एतराज़ किया.
‘‘यह भी ठीक कहता है,’’ एक क्लर्क बोला.
आदमी को काटने का नायाब तरीक़ा पेश करने वाले ने एक पुख़्ता दलील पेश की,‘‘आप जानते नहीं हैं. आजकल प्लास्टिक सर्जरी के जरिए धड़ की जगह से, इस आदमी को फिर से जोड़ा जा सकता है.’’
अब फ़ाइल को मेडिकल डिपार्टमेंट में भेज दिया गया.
मेडिकल डिपार्टमेंट ने फ़ौरन इस पर ऐक्शन लिया और जिस दिन फ़ाइल मिली उसने उसी दिन विभाग के सबसे क़ाबिल प्लास्टिक सर्जन को जांच के लिए मौक़े पर भेज दिया गया. सर्जन ने दबे हुए आदमी को अच्छी तरह टटोल कर, उसकी सेहत देखकर, ख़ून का दबाव, सांस की गति, दिल और फेफड़ों की जांच करके रिपोर्ट भेज दी कि,‘‘इस आदमी का प्लास्टिक ऑपरेशन तो हो सकता है, और ऑपरेशन क़ामयाब भी हो जाएगा, मगर आदमी मर जाएगा.’’
लिहाजा यह सुझाव भी रद्द कर दिया गया.
रात को माली ने दबे हुए आदमी के मुंह में खिचड़ी डालते हुए उसे बताया,‘‘अब मामला ऊपर चला गया है. सुना है कि सेक्रेटेरियट के सारे सेक्रेटरियों की मीटिंग होगी. उसमें तुम्हारा केस रखा जाएगा. उम्मीद है सब काम ठीक हो जाएगा.’’
दबा हुआ आदमी एक आह भर कर आहिस्ते से बोला,‘‘हमने माना कि तगाफुल न करोगे लेकिन खाक हो जाएंगे हम, तुमको ख़बर होने तक.’’
माली ने अचंभे से मुंह में उंगली दबाई. हैरत से बोला,‘‘क्या तुम शायर हो.’’
दबे हुए आदमी ने आहिस्ते से सर हिला दिया.
दूसरे दिन माली ने चपरासी को बताया, चपरासी ने क्लर्क को और क्लर्क ने हेड-क्लर्क को. थोड़ी ही देर में सेक्रेटेरिएट में यह बात फैल गई कि दबा हुआ आदमी शायर है. बस फिर क्या था. लोग बड़ी संख्या में शायर को देखने के लिए आने लगे. इसकी ख़बर शहर में फैल गई. और शाम तक मुहल्ले-मुहल्ले से शायर जमा होना शुरू हो गए. सेक्रेटेरिएट का लॉन भांति-भांति के शायरों से भर गया. सेक्रेटेरिएट के कई क्लर्क और अंडर-सेक्रेटरी तक, जिन्हें अदब और शायर से लगाव था, रुक गए. कुछ शायर दबे हुए आदमी को अपनी ग़ज़लें सुनाने लगे, कई क्लर्क अपनी ग़ज़लों पर उससे सलाह मशविरा मांगने लगे.
जब यह पता चला कि दबा हुआ आदमी शायर है, तो सेक्रेटेरिएट की सब-कमेटी ने फ़ैसला किया कि चूंकि दबा हुआ आदमी एक शायर है लिहाजा इस फ़ाइल का ताल्लुक न तो कृषि विभाग से है और न ही हार्टिकल्चर विभाग से बल्कि सिर्फ़ संस्कृति विभाग से है. अब संस्कृति विभाग से गुज़ारिश की गई कि वह जल्द से जल्द इस मामले में फ़ैसला करे और इस बदनसीब शायर को इस पेड़ के नीचे से रिहाई दिलवाई जाए.
फ़ाइल संस्कृति विभाग के अलग-अलग सेक्शन से होती हुई साहित्य अकादमी के सचिव के पास पहुंची. बेचारा सचिव उसी वक़्त अपनी गाड़ी में सवार होकर सेक्रेटेरिएट पहुंचा और दबे हुए आदमी से इंटरव्यू लेने लगा.
‘‘तुम शायर हो?’’ उसने पूछा.’
‘‘जी हां,’’ दबे हुए आदमी ने जवाब दिया.
‘‘क्या तखल्लुस रखते हो?’’
‘‘अवस’’
‘‘अवस!’’ सचिव ज़ोर से चीखा. ‘‘क्या तुम वही हो जिसका मजमुआ-ए-कलाम-ए-अक्स के फूल हाल ही में प्रकाशित हुआ है?’’
दबे हुए शायर ने इस बात पर सिर हिलाया.
‘‘क्या तुम हमारी अकादमी के मेंबर हो?’’ सचिव ने पूछा.
‘‘नहीं’’
‘‘हैरत है!’’ सचिव जोर से चीखा. इतना बड़ा शायर! अवस के फूल का लेखक! और हमारी अकादमी का मेंबर नहीं है! उफ-उफ कैसी ग़लती हो गई हमसे! कितना बड़ा शायर और कैसे गुमनामी के अंधेरे में दबा पड़ा है!’’
‘‘गुमनामी के अंधेरे में नहीं बल्कि एक पेड़ के नीचे दबा हुआ… भगवान के लिए मुझे इस पेड़ के नीचे से निकालिए.’’
‘‘अभी बंदोबस्त करता हूं,’’ सचिव फ़ौरन बोला और फ़ौरन जाकर उसने अपने विभाग में रिपोर्ट पेश की.
दूसरे दिन सचिव भागा-भागा शायर के पास आया और बोला,‘‘मुबारक़ हो, मिठाई खिलाओ, हमारी सरकारी अकादमी ने तुम्हें अपनी साहित्य समिति का सदस्य चुन लिया है. ये लो ऑर्डर की कॉपी.’’
‘‘मगर मुझे इस पेड़ के नीचे से तो निकालो.’’ दबे हुए आदमी ने कराह कर कहा. उसकी सांस बड़ी मुश्क़िल से चल रही थी और उसकी आंखों से मालूम होता था कि वह बहुत कष्ट में है.
‘‘यह हम नहीं कर सकते’’ सचिव ने कहा. ‘‘जो हम कर सकते थे वह हमने कर दिया है. बल्कि हम तो यहां तक कर सकते हैं कि अगर तुम मर जाओ तो तुम्हारी बीवी को पेंशन दिला सकते हैं. अगर तुम आवेदन दो तो हम यह भी कर सकते हैं.’’
‘‘मैं अभी ज़िंदा हूं.’’ शायर रुक रुककर बोला. ‘‘मुझे ज़िंदा रखो.’’
‘‘मुसीबत यह है’’ सरकारी अकादमी का सचिव हाथ मलते हुए बोला,‘‘हमारा विभाग सिर्फ़ संस्कृति से ताल्लुक़ रखता है. आपके लिए हमने वन विभाग को लिख दिया है. अर्जेंट लिखा है.’’
शाम को माली ने आकर दबे हुए आदमी को बताया कि कल वन विभाग के आदमी आकर इस पेड़ को काट देंगे और तुम्हारी जान बच जाएगी.
माली बहुत ख़ुश था. हालांकि दबे हुए आदमी की सेहत जवाब दे रही थी. मगर वह किसी न किसी तरह अपनी ज़िंदगी के लिए लड़े जा रहा था. कल तक… सुबह तक… किसी न किसी तरह उसे ज़िंदा रहना है.
दूसरे दिन जब वन विभाग के आदमी आरी, कुल्हाड़ी लेकर पहुंचे तो उन्हें पेड़ काटने से रोक दिया गया. मालूम हुआ कि विदेश मंत्रालय से हुक़्म आया है कि इस पेड़ को न काटा जाए. वजह यह थी कि इस पेड़ को दस साल पहले पिटोनिया के प्रधानमंत्री ने सेक्रेटेरिएट के लॉन में लगाया था. अब यह पेड़ अगर काटा गया तो इस बात का पूरा अंदेशा था कि पिटोनिया सरकार से हमारे संबंध हमेशा के लिए बिगड़ जाएंगे.
‘‘मगर एक आदमी की जान का सवाल है,’’ एक क्लर्क ग़ुस्से से चिल्लाया.
‘‘दूसरी तरफ़ दो हुक़ूमतों के ताल्लुक़ात का सवाल है,’’ दूसरे क्लर्क ने पहले क्लर्क को समझाया. और यह भी तो समझ लो कि पिटोनिया सरकार हमारी सरकार को कितनी मदद देती है. क्या हम इनकी दोस्ती की ख़ातिर एक आदमी की ज़िंदगी को भी क़ुरबान नहीं कर सकते.
‘‘शायर को मर जाना चाहिए?’’
‘‘बिलकुल’’
अंडर सेक्रेटरी ने सुपरिंटेंडेंट को बताया. आज सुबह प्रधानमंत्री दौरे से वापस आ गए हैं. आज चार बजे विदेश मंत्रालय इस पेड़ की फ़ाइल उनके सामने पेश करेगा. वो जो फ़ैसला देंगे वही सबको मंजूर होगा.
शाम चार बजे ख़ुद सुपरिन्टेंडेंट शायर की फ़ाइल लेकर उसके पास आया. ‘‘सुनते हो?’’ आते ही ख़ुशी से फ़ाइल लहराते हुए चिल्लाया,‘‘प्रधानमंत्री ने पेड़ को काटने का हुक़्म दे दिया है. और इस मामले की सारी अंतर्राष्ट्रीय ज़िम्मेदारी अपने सिर पर ले ली है. कल यह पेड़ काट दिया जाएगा और तुम इस मुसीबत से छुटकारा पा लोगे.’’
‘‘सुनते हो आज तुम्हारी फ़ाइल मुक़म्मल हो गई.’’ सुपरिन्टेंडेंट ने शायर के बाजू को हिलाकर कहा. मगर शायर का हाथ सर्द था. आंखों की पुतलियां बेजान थीं और चींटियों की एक लंबी कतार उसके मुंह में जा रही थी.
उसकी ज़िंदगी की फ़ाइल मुक़म्मल हो चुकी थी.
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