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ज्योतिषी का एक दिन: अतीत की परछाईं (लेखक: आरके नारायण)

टीम अफ़लातून by टीम अफ़लातून
August 28, 2021
in क्लासिक कहानियां, बुक क्लब
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ज्योतिषी का एक दिन: अतीत की परछाईं (लेखक: आरके नारायण)
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अंग्रेज़ी के लेखक आरके नारायण की मालगुड़ी डेज़ की कहानियां हर भारतीय को अपनी कहानी-सी लगती हैं. दक्षिण भारत के एक क़स्बे मालगुड़ी की छोटी-छोटी कहानियां पूरे भारत के लोगों का प्रतिनिधित्व करती हैं. हर कोई उन कहानियों में अपने सुख-दुख, जीत-हार, ग़म-ख़ुशी, हर्ष-संघर्ष को देख सकता है. आज पढ़िए उसी मालगुड़ी डेज़ की एक कहानी ‘ज्योतिषी का एक दिन’. क्या होता है, जब एक दिन देर शाम उसका अतीत उसके सामने हथेली फैलाए खड़ा हो जाता है…

ठीक दोपहर के समय वह अपना थैला खोलता और ज्योतिष की दुकान लगाता: दर्जन भर कौड़ियां, कपड़े का चौकोर टुकड़ा जिस पर कई रहस्यमयी रेखाएं खिंची थीं, एक नोटबुक ताड़पत्रों की एक किताब. उसके माथे पर बहुत-सी भभूत और थोड़ा-सा सिंदूर लगा होता, और आंखों से एक तिरछी चमक यह देखने के लिए निकलने लगती कि ग्राहक उसकी तरफ़ आ रहे हैं या नहीं, लेकिन सीधे-सादे लोग इसे दैवी-शक्ति मानकर भरोसे का अनुभव करते. उसकी आंखों की शक्ति, चेहरे पर सबसे ऊपर लगी होने के कारण भी बढ़ जाती-ऊपर माथे पर प्रभावी तिलक और नीचे गालों तक फैली बड़ी काली मूंछों के बीच दमकती दो आंखें: किसी अल्प बुद्धि के लिए भी इस तरह सजी आंखें बड़ी कारगर सिद्ध होतीं. प्रभाव जमाने के लिए वह सिर पर गेरुआ रंग की पगड़ी भी पहनता-यह रंग हमेशा सफलता प्रदान करता था. लोग उसकी तरफ़ इस तरह आकृष्ट होते, जैसे फूलों पर मक्खियां गिरती हैं.
टाउन हॉल के पार्क से लगे रास्ते पर वह इमली की एक विशाल वृक्ष की दूर-दूर तक फैली टहनियों की छाया में विराजमान होता. यह एक ऐसी जगह थी. जहां सवेरे से देर रात तक लोगों की भीड़ गुज़रती रहती. संकरी लम्बी सड़क पर दोनों तरफ़ तरह-तरह की छोटी दुकानें लगी होतीं: घरेलू दवाएं बेचने वाले, चुराए हुए लकड़ी-लोहे के सामान की दुकानें, जादूगर और सस्ते कपड़े की एक दुकान, जिसके लोग ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाकर हर वक़्त लोगों को बुलाते रहते. इसी के बगल में इसी तरह शोर करने वाली एक मूंगफली विक्रेता, जो हर दिन अपनी चीज़ को एक नया नाम देता, किसी दिन बंबई की आइस्क्रीम, किसी दिन दिल्ली के बादाम, किसी राजा की सौगात, और लोग हर वक़्त उससे ख़रीददारी कर रहे होते.
भीड़ के बहुत सारे लोग ज्योतिषी को भी घेरे रहते. वह बगल में लगी मूंगफलियों के बड़े-से-ढेर के ऊपर धुंआ देती जलनेवाली आग से निकलती हल्की रौशनी से ही अपना काम चलाता. यहां म्युनिस्पैलिटी ने कोई रौशनी नहीं मुहैया कराई थी. दुकानों पर लगी छोटी-छोटी रौशनियों से ही सबको काम चलाना पड़ता था. एक-दो के पास गैस के हंडे भी थे, जिनमें से हर वक्त ‘सूं’ की आवाज़ निकलती रहती, कुछ दुकानों पर खंभों से रौशनी की नंगी लपट निकलती रहती, कुछ साइकिलों के छोटे-छोटे लैम्पों से काम चलाते, और ज्योतिषी की तरह कुछ अपनी रौशनी के बिना ही दूसरों के भरोसे गुज़ारा कर लेते. तरह-तरह की इन बहुत-सी रौशनियों से एक अलग ही मंजूर बनता, जिनके बीच में चलते-निकलते लोगों की छायाएं अपना रहस्यमय समां बांध देतीं.
ज्योतिषी को यह माहौल इसलिए बहुत सही लगता क्योंकि जब उसने ज़िंदगी शुरू की थी तब ज्योतिषी तो बनना ही नहीं चाहता था; दूसरों की ज़िंदगी में क्या होने वाला है, यह जानना तो दूर, वह यह भी नहीं जानता था कि उसकी अपनी ज़िंदगी में अगले मिनट क्या होने वाला है! तब उसे न तो सितारों की कोई जानकारी थी, न उन बेचारे लोगों की, जो उसके ग्राहक बनते. बातें करने में जो कुशल था, जो लोगों को ख़ूब पसंद आतीं. इसलिए अनुमान और अभ्यास से इस काम में उसने अच्छी महारत हासिल कर ली. यह नहीं, दूसरे सभी धंधों की तरह यह धंधा भी उतना ही ईमान का धंधा था, और दिन भर की मेहनत के बाद वह जो भी कमाई शाम को घर ले जाता, वह ईमान की ही कमाई थी.
उसने जब गांव छोड़ा, तब यह नहीं सोचा था कि क्या करेगा. गांव में ही रहता तो वही सब काम करता जो पुरखे करते आए थे, यानी खेती का काम, शादी और बच्चे, और पुराने घर में हमेशा की तरह गुज़र-बसर. लेकिन यह नहीं होना था. उसे बिना किसी को बताए घर छोड़ना पड़ा था और आस-पास नहीं, क़रीब दो सौ मील ज़्यादा दूरी थी, दोनों स्थलों के बीच एक समुद्र की तरह.
वह कोई व्यावसायिक ज्योतिषी नहीं था. उसने अपना गांव किसी चिंता या भय के कारण गुप्त रूप से छोड़ा था. उसे यह पेशा मजबूरी में अपनाना पड़ा था. उसके जीवन के कटु अनुभवों ने उसे बहुत कुछ सिखाया था. वह मानवीय जीवन की कठिनाइयों को समझ चुका था. वह लोगों के मन की बातों को पढ़ना सीख चुका था. समय के लम्बे अन्तराल में अपने अभ्यास एवं अनुभव के सहारे उसने स्वयं में लोगों की समस्याओं के हल निकालने की उत्तम कला को विकसित किया था. वह अपनी चतुराई का प्रयोग करके थोड़ी-बहुत भविष्यवाणी भी करता था. इस प्रकार वह लोगों को आकर्षित करता था.
उसके पास मानव-जाति की दिक़्क़तों यानी विवाह, धन और मानव संबंधों की उलझनों का एक कामकाजी विश्लेषण था. लंबे समय के अभ्यास ने उसकी अनुभूतियों को पैना बना दिया था. पांच मिनट में वह समझ जाता था कि गड़बड़ क्या है. वह एक प्रश्न के तीन पैसे लेता था और तब तक मुंह नहीं खोलता था जब तक कि सामने वाला कम-से-कम दस मिनट बोल न चुके. इससे उसे दसियों जवाबों और सलाहों का सुराग मिल जाता था. जब वह सामने बैठे व्यक्ति से कहता कि तुम्हें अपनी मेहनत को पूरा फल नहीं मिल रहा है, तो दस में से नौ व्यक्ति सहमत ही होते थे. या वह पूछता,‘क्या तुम्हारे परिवार में कोई औरत है, चाहे दूर के रिश्ते में, जो तुमसे बैर रखती हो?’ या फिर उस व्यक्ति के स्वभाव का विश्लेषण पेश कर देता,‘तुम्हारी अधिकतर परेशानियां तो तुम्हारे ही स्वभाव के कारण हैं. और तुम्हारा शनि जहां बैठा है, उसके चलते तुम्हारा स्वभाव इससे अलग हो भी कैसे सकता है? तुम्हारा स्वभाव तेज़ है और बाहर से तुम बहुत रूखे हो.’ यह बोलकर वह अपने ग्राहकों का दिल जीत लेता था क्योंकि कोई कितना भी नरमदिल क्यों न हो, उसे यह सुनना अच्छा लगता है. कि उसका बाह्य रूप डराने वाला है.
मूंगफली वाले ने अपनी ढिबरी बुझाई और घर जाने को उठ खड़ा हुआ. कहीं से हरी रौशनी का एक कतरा ज्योतिषी के सामने की ज़मीन पर पड़ा. वह अपनी कौड़ियां और अन्य तामझाम उठाकर अपने झोले में रख ही रहा था कि यह हरी रौशनी चमकी. उसने सिर उठाकर देखा कि उसके सामने एक आदमी खड़ा है. उसने तोड़ लिया कि वह कोई ग्राहक है और कहा,‘तुम बहुत परेशान दिखते हो. अच्छा होगा यदि तुम थोड़ी देर बैठकर मुझसे बातचीत कर लो.’ वह आदमी जवाब में कुछ अस्पष्ट-सा बुदबुदाया. ज्योतिषी ने थोड़ा आग्रह किया तो उस व्यक्ति ने अपना हाथ उसकी नाक के नीचे फैलाते हुए कहा,‘तुम ख़ुद को बड़ा ज्योतिषी समझते हो?’
ज्योतिषी को लगा कि यह एक चुनौती है. उसने हरी रौशनी की तरफ अपनी हथेली घुमाते हुए कहा,‘तुम्हारा स्वभाव ही ऐसा है?’
उस आदमी ने कहा,‘बकवास मत करो. कुछ काम की बात बताओ.’
हमारा ज्योतिषी मित्र थोड़ा चिढ़ गया,‘मैं एक सवाल के सिर्फ़ तीन पैसे लेता हूं और जबाब ऐसा होगा कि तुम्हारे पैसे वसूल हो जाएं.’
यह सुनकर उस आदमी ने अपना हाथ खींचा और एक आना निकालकर उसकी ओर उछाल कर बोला,‘मुझे कुछ सवाल पूछना है. यदि मैंने साबित कर दिया कि तुम झांसा दे रहे हो तो तुम यह एक आना ब्याज समेत लौटाओगे.’
‘और यदि तुम्हें मेरे जवाब संतोषजनक लगे, तो क्या तुम मुझे पांच रुपए दोगे?’
‘नहीं.’
‘तो क्या आठ आने दोगे?’
‘ठीक है, मगर शर्त यह रहेगी कि यदि तुम्हारे जवाब ग़लत निकले तो तुम मुझे दोगुना पैसा दोगे.’ अजनबी ने कहा.
थोड़ी हुज्जत के बाद यह सौदा तय हो गया. ज्योतिषी जब मन ही मन भगवान से प्रार्थना कर रहा था तभी अजनबी ने बीड़ी सुलगाई. माचिस की रौशनी में ज्योतिषी को उसके चेहरे की एक झलक मिल गई. सड़क पर भागती कारों के भोंपुओं, अपने घोड़ों पर गालियां सन्नाते तांगे वालों और चहलक़दमी करते लोगों की बातचीत के शोरगुल के बीच एक ठहराव-सा आ गया. अजनबी बैठ गया, अपनी बीड़ी के कश खींचकर धुआं छोड़ते हुए काफ़ी निर्दयतापूर्वक बैठ गया. ज्योतिषी काफ़ी बेचैन हो उठा. उसने कहा,‘ये लो तुम्हारा एक आना वापस. मैं ऐसी चुनौतियों का आदी नहीं हूं. वैसे भी मुझे देर हो रही है…’ यह कहते हुए उसने सामान बांधने की तैयारी शुरू कर दी.
मगर अजनबी ने उसकी कलाई पकड़ कर कहा,‘अब तुम बच नहीं सकते. मैं तो यहां से गुज़र रहा था, तुमने ही मुझे रोक लिया था.’ उसकी पकड़ में ज्योतिषी कांपने लगा.
उसकी आवाज़ कमज़ोर पड़ गई,‘आज मुझे छोड़ दो. मैं तुमसे कल बात करूंगा.’
मगर अजनबी ने अपनी हथेली उसके सामने फैलाकर कहा,‘चुनौती तो चुनौती है, चलो बताओ.’
ज्योतिषी का मुंह सूखने लगा, उसने कहना शुरू किया,‘एक औरत है…’
अजनबी ने कहा,‘चुप रहो. मैं यह नहीं सुनना चाहता. क्या मैं अपनी तलाश में सफल रहूंगा? इस सवाल का जवाब दो और जाओ. वरना मैं तुम्हें तब तक नहीं जाने दूंगा जब तक कि तुम अपना सारा पैसा मुझे नहीं दे देते.’
ज्योतिषी ने कुछ मंत्र वगैरह पढ़े और हिम्मत जुटाकर बोला,‘ठीक है. मैं बताता हूं. पर यदि मेरी बात तुम्हें ठीक लगी तो क्या तुम मुझे एक रुपया दोगे? वरना मैं मुंह नहीं खोलूंगा, तुम जो चाहे करना.’ काफी हीलेहवाले के बाद अजनबी मान गया.
ज्योतिषी ने कहा,‘तुम्हें एक बार मरा जानकर छोड़ दिया गया था. क्या मैं सही कह रहा हूं?’
‘आह, और बताओ.’
‘एक बार तुम्हें चाकू लगा था,’ ज्योतिषी ने कहा.
‘ठीक बताया,’ अजनबी ने सीने पर निशान दिखाते हुए कहा,‘आगे?’
‘और फिर तुम्हें पास के खेत के कुएं में फेंक दिया गया था. तुम्हें मरा जानकर छोड़ दिया गया था.’
‘यदि वहां से गुज़रते कुछ लोगों ने संयोग से उस कुएं में न झांका होता, तो मैं तो मर ही गया होता.’ अजनबी ने आश्चर्य और उत्साह से बताया.
फिर उसने मुट्ठी भींचते हुए पूछा,‘मैं उसे खोजने कहां जाऊं?’
‘दूसरी दुनिया में,’ ज्योतिषी ने जवाब दिया,‘वह तो एक दूर के शहर में चार महीने पहले मर गया. अब वह तुम्हें कभी नहीं दिखेगा.’ यह सुनकर अजनबी गुर्राया. ज्योतिषी ने अपनी बात जारी रखी,‘गुरु नायक…,’ उसने पुकारा.
‘तुम मेरा नाम जानते हो?’ अजनबी हक्का-बक्का था.
‘मैं तो बाक़ी सारी बातें भी जानता हूं, गुरु नायक. अब मेरी बात ध्यान से सुनो. इस शहर से तुम्हारा गांव उत्तर दिशा में दो दिन चलने पर आता है. अगली गाड़ी लेकर लौट जाओ. यदि तुम घर से बाहर रुके तो मैं देख रहा हूं कि तुम्हारी जान को फिर एक बार खतरा है.’ उसने चुटकी भर भभूत निकालकर अजनबी की ओर बढ़ाई. ‘इसे अपने सिर पर लगाकर घर लौट जाओ. फिर कभी दक्षिण की ओर यात्रा न करना. शतायु भव.’
‘मैं फिर से घर क्यों छोड़ूंगा?’ सोचते हुए अजनबी ने कहा.
‘मैं तो कभी-कभार घर से निकलता था ताकि उसे खोजकर उसका गला घोंटकर ख़त्म कर दूं.’ उसने निराश होकर कहा,‘वह मेरे हाथ से बच निकला था. मुझे उम्मीद है कि वह बुरी मौत मरा होगा.’
‘हां’, ज्योतिषी ने कहा,‘वह एक बस के नीचे कुचला गया था.’ यह सुनकर अजनबी के चेहरे पर संतुष्टि के भाव आ गए.
जब ज्योतिषी ने अपना तामझाम समेटकर झोले में रखा तब तक वह जगह पूरी तरह निर्जन हो चुकी थी. हरी रौशनी भी गुल हो गई थी और चारों ओर घुप्प अंधेरा और खामोशी थी. मुट्ठी भर सिक्के ज्योतिषी को देकर अजनबी भी रात के अंधेरे में गुम हो गया था.
ज्योतिषी लगभग आधी रात गए घर पहुंचा. उसकी पत्नी दरवाज़े पर ही राह देख रही थी. उसने देरी का कारण पूछा. ज्योतिषी ने सारे सिक्के उसकी तरफ उछालते हुए कहा,‘गिनो इन्हें. एक आदमी ने दिए हैं.’
पत्नी ने सिक्के गिनकर कहा,‘साढ़े बारह आने.’ वह बहुत ख़ुश थी. ‘मैं कल थोड़ा गुड़ और नारियल ख़रीद पाऊंगी. बच्ची कितने दिनों से मिठाई मांग रही है. कल मैं उसके लिए अच्छी-सी चीज़ बनाऊंगी.’
‘सुअर के बच्चे ने मुझे ठग लिया. उसने एक रुपए का वादा किया था.’ ज्योतिषी बोल उठा.
पत्नी ने उसकी ओर देखा और पूछा,‘क्या हुआ? तुम परेशान क्यों हो?’
‘कुछ नहीं.’
खाना खाने के बाद चारपाई पर बैठकर उसने पत्नी को बताया,‘जानती हो, आज मेरे सिर से एक बड़ा बोझ उतर गया. इतने साल मैं सोचता रहा कि मेरे हाथ एक आदमी के ख़ून से सने हैं. इसीलिए मैं घर से भाग गया था. भागकर यहां आ गया और तुमसे विवाह किया. वह आदमी ज़िंदा है.’
वह सकते में थी,‘तुमने हत्या की कोशिश की थी?’
‘हां, गांव में, जब मैं एक नादान छोकरा था. एक दिन हमने शराब पी, जुआ खेला और बुरी तरह झगड़ने लगे. पर अब इस बारे में क्यों सोचें? चलो, सोने का वक़्त हो गया.’ जम्हाई लेते हुए उसने कहा और चारपाई पर पसर गया.

Illustration: Pinterest

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