सआदत हसन मंटो की इस कहानी में एक लड़की है फ़हमीदा, जो सुरमे की दीवानी है. गोरी-चिट्टी फ़हमीदा को सुरमा बेइंतहा पसंद है. आगे चलकर उसका यह सुरमा प्रेम उसकी ज़िंदगी को बदलकर रख देता है.
फ़हमीदा की जब शादी हुई तो उसकी उम्र उन्तीस वर्ष से अधिक नहीं थी. उसका दहेज तैयार था, इसलिए उसके माता-पिता को कोई कठिनाई नहीं हुई. पच्चीस के लगभग जोड़े थे और जेवरात भी, लेकिन फ़हमीदा ने अपनी मां से कहा कि वह सुरमा, जो विशेष रूप से उनके यहां आता है, चांदी की सुरमेदानी में डालकर उसे ज़रूर दें, साथ ही चांदी का सुरमचू भी.
फ़हमीदा की यह इच्छा तुरन्त पूरी हो गई. आज़म अली की दुकान से सुरमा मंगवाया. बरकत की दुकान से सुरमेदानी और सुरमचू लिया और उसके दहेज में रख दिया.
फ़हमीदा को सुरमा बहुत पसन्द था. शायद इसलिए कि उसका रंग बहुत अधिक गोरा था. वह चाहती थी कि थोड़ी सी स्याही भी उसमें शामिल हो जाए. होश संभालते ही उसने सुरमे का इस्तेमाल शुरू कर दिया था.
उसकी मां उससे अक्सर कहती,‘फहमी, यह तुम्हें क्या खब्त सवार हो गया है? जब-तब आंखों में सुरमा लगाती रहती हो?’
फ़हमीदा मुस्करायी,‘अम्मीजान, इससे नज़र कमज़ोर नहीं होती-आपने ऐनक कब लगवाई थी?’
‘बारह वर्ष की उम्र में!’
फ़हमीदा हंसती,‘अगर आपने सुरमे का इस्तेमाल किया होता, तो आपको कभी ऐनक की ज़रूरत महसूस न होती. असल में हम लोग कुछ अधिक ही रोशन-ख़्याल हो
गए हैं, लेकिन रोशनी के बदले हमें अंधेरा-ही-अंधेरा मिलता है.’
उसकी मां कहती,‘जाने क्या बक रही हो !’
‘मैं जो कुछ बक रही हूं, सही है. आजकल लड़कियां नकली भवें लगाती हैं. काली पेंसिल से ख़ुदा जाने अपने चेहरे पर क्या कुछ करती हैं, लेकिन नतीजा क्या निकलता है-चुड़ैल बन जाती हैं.’
उसकी मां की समझ में कुछ भी न आया,‘जाने क्या कह रही हो, मेरी समझ में तो खाक भी नहीं आया.’
फ़हमीदा कहती, ‘अम्मीजान, आपको इतना तो समझना चाहिए कि दुनिया सिर्फ़ खाक ही खाक नहीं-कुछ और भी है.’
उसकी मां उससे पूछती,‘और क्या है ?’
फ़हमीदा जवाब देती,‘बहुत कुछ है-खाक में भी सोने के कण हो सकते हैं.’
खैर, फ़हमीदा की शादी हो गई. पहली मुलाक़ात मियां-बीवी की बड़ी दिलचस्प थी. जब फ़हमीदा के खाविन्द ने उससे बात की तो उसने देखा, उसकी आंखों में स्याहियां तैर रही हैं.
उसके खाविन्द ने पूछा,‘तुम इतना सुरमा क्यों लगाती हो?’
फ़हमीदा झेंप गई और जवाब में कुछ न कह सकी.
उसके खाविद को यह अदा पसन्द आई और वह उससे लिपट गया, लेकिन फ़हमीदा की सुरमा लगी आंखों से टप-टप काले आंसू बहने लगे.
उसका खाविंद बहुत परेशान हो गया,‘तुम रो क्यों रही हो?’
फ़हमीदा खामोश रही.
उसके खाविंद ने एक बार फिर पूछा,‘क्या बात है-आख़िर रोने की वजह क्या है? मैंने तुम्हें कोई दुःख पहुंचाया?’
‘जी नहीं.’
उसके खाविंद ने हौले-हौले उसके गाल पर थपकी दी और कहा,‘जानेमन, जो बात है, मुझे बता दो-अगर मैंने कोई ज़्यादती की है तो उसकी माफ़ी चाहता हूं. देखो, तुम इस घर की मलका हो-मैं तुम्हारा ग़ुलाम हूं लेकिन यह रोना-धोना अच्छा नहीं लगता-मैं चाहता हूं कि तुम सदा हंसती रहो.’
फ़हमीदा रोती रही.
उसके खाविंद ने उससे एक बार फिर पूछा,‘आख़िर इस रोने की वजह क्या है?’
फ़हमीदा ने जवाब दिया,‘कोई वजह नहीं, आप पानी का एक गिलास ला दीजिए मुझे.’
उसका खाविंद फ़ौरन पानी का एक गिलास ले आया . फ़हमीदा ने अपनी आंखों में लगा हुआ सुरमा धोया. तौलिए से अच्छी तरह साफ़ किया-आंसू स्वयं सूख गए.
उसके बाद वह अपने पति से बातचीत करने लगी.
‘मैं माफ़ी चाहती हूं कि मैंने आपको इतना परेशान किया. आप देखिए, मेरी आंखों में सुरमे की एक लकीर भी बाक़ी नहीं रही.’
उसके पति ने कहा,‘मुझे सुरमे से कोई आपत्ति नहीं. तुम शौक़ से इसका उपयोग करो, मगर इतना अधिक नहीं कि आंखें उबलती हुई नज़र आएं.’
फ़हमीदा ने आंखें झुकाकर कहा,‘मुझे आपकी प्रत्येक आज्ञा का पालन करना है-भविष्य में मैं कभी सुरमा नहीं लगाऊंगी.’
‘नहीं-नहीं, मैं तुम्हें इसे लगाने से मना नहीं करता-मैं सिर्फ़ यह कहना चाहता हूं कि… कि मेरा मतलब है, किसी चीज़ को थोड़ा किफ़ायत से इस्तेमाल किया जाए, ज़रूरत से ज़्यादा जो भी चीज़ इस्तेमाल में आएगी, अपनी क़द्र खो देगी.’
फ़हमीदा ने सुरमा लगाना छोड़ दिया, लेकिन फिर भी वह अपनी चांदी की सुरमेदानी और चांदी के सुरमचू को रोज़ निकालकर देखती थी और सोचती थी कि ये दोनों चीज़ें उसकी ज़िन्दगी से क्यों अलग हो गईं. वह क्यों इनको अपनी आंखों में जगह नहीं दे सकती. सिर्फ़ इसलिए कि उसकी शादी हो गई है? सिर्फ़ इसलिए कि वह अब किसी की मल्कियत हो गई है?
या हो सकता है कि उसकी इच्छाशक्ति ख़त्म हो गई है?
वह कोई फ़ैसला नहीं कर सकती थी. किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सकती थी.
एक वर्ष के बाद उसके घर में चांद-सा बच्चा आ गया.
फ़हमीदा निढाल थी, लेकिन उसे अपनी कमज़ोरी का कोई अहसास नहीं था.
इसलिए कि वह अपने लड़के की पैदाइश पर प्रसन्नता रहित थी. उसे यूं महसूस होता था, जैसे उसने कोई बहुत बड़ी ग़लती की है.
चालीस दिन के बाद उसने सुरमा मंगवाया और अपने नवजात शिशु को लगाया. लड़के की आंखें बड़ी-बड़ी थीं. उनमें जब सुरमा लगा तो वे और भी ज़्यादा बड़ी हो गईं.
उसके पति ने कोई आपत्ति न की कि वह बच्चे की आंखों में सुरमा क्यों लगाती है-इसलिए कि उसे बड़ी और ख़ूबसूरत आंखें पसन्द थीं.
दिन अच्छी तरह गुज़र रहे थे. फ़हमीदा के पति शुजाअत अली को तरक्की मिल गई थी. अब उसका वेतन डेढ़ हज़ार रुपए के क़रीब था.
एक दिन उसने अपने लड़के को, जिसका नाम उसकी बीवी ने आसम रखा था, सुरमा लगी आंखों के साथ देखा-वह उसको बहुत प्यारा लगा. उसने बड़ी उत्सुकता से उसको उठाया, चूमा, चाटा और पलंगड़ी पर डाल दिया-वह हंस रहा था. वह अपने नन्हे-मुन्ने हाथ-पांव इधर-उधर मार रहा था.
उसकी सालगिरह की तैयारियां हो रही थीं. फ़हमीदा ने एक बहुत बड़े केक का ऑर्डर दे दिया था. मुहल्ले के सब बच्चों को दावत दी गई थी कि उसके लड़के की पहली सालगिरह बड़ी शान से मनाई जाए.
सालगिरह निश्चित रूप से शान से मनाई जाती, मगर दो दिन पूर्व आसम की तबीयत ख़राब हो गई और ऐसी हुई कि उसका जिस्म ऐंठने लगा.
उसे अस्पताल ले गए. वहां डॉक्टरों ने उसकी जांच की. जांच के बाद मालूम हुआ कि उसे डबल निमोनिया हो गया है.
फ़हमीदा रोने लगी, बल्कि सिर पीटने लगी,‘हाय, मेरे लाल को यह क्या हो गया है? हमने तो उसे फूलों की तरह पाला है!’
एक डॉक्टर ने उससे कहा,‘मैडम, ये बीमारियां इन्सान के वश में नहीं हैं. वैसे डॉक्टर के नाते मैं आपसे कहता हूं कि बच्चे के जीने की कोई उम्मीद नहीं.’
फ़हमीदा ने रोना शुरू कर दिया,‘मैं तो स्वयं मर जाऊंगी–ख़ुदा के लिए डॉक्टर साहब, इसे बचा लीजिए. आप इलाज करना चाहते हैं-मुझे अल्लाह के घर से उम्मीद है कि मेरा बच्चा ठीक हो जाएगा.’
डाक्टर ने बड़े शुष्क लहजे में कहा,‘ख़ुदा करे, ऐसा ही हो.’
‘आप इतने नाउम्मीद क्यों हैं?’
‘मैं नाउम्मीद नहीं, लेकिन मैं आपको झूठी तसल्ली नहीं देना चाहता.’
‘झूठी तसल्लियां आप मुझको क्यों देंगे-मुझे यक़ीन है कि मेरा बच्चा ज़िन्दा रहेगा.’
‘ख़ुदा करे, ऐसा ही हो.’
मगर ख़ुदा ने ऐसा न किया और वह तीन दिन के बाद अस्पताल में मर गया.
फ़हमीदा पर देर तक पागलपन की स्थिति बनी रही. उसके होश-व-हवास गुम थे. कोयले उठाती, उन्हें पीसती और अपने चेहरे पर मलना शुरू कर देती.
उसका पति बहुत परेशान था. उसने कई डॉक्टरों से सलाह की. दवाएं भी दीं. अपेक्षित परिणाम नहीं हुआ. फ़हमीदा के मन-मस्तिष्क में सुरमा ही सुरमा था. वह हर बात कालिख के साथ सोचती थी.
उसका पति उससे कहता,‘क्या बात है, तुम इतनी चिंतित क्यों रहती हो?’
वह जवाब देती,‘जी, कोई ख़ास बात नहीं-मुझे आप सुरमा ला दीजिए.’
उसका पति उसके लिए सुरमा ले आया-मगर फ़हमीदा को पसन्द न आया.
अतः वह स्वयं बाजार गई और अपनी पसन्द का सुरमा ख़रीदकर लाई. अपनी आंखों में लगाया और सो गई, जिस तरह वह अपने बेटे आसम के पास सोया करती थी.
सुबह जब उसका पति उठा और उसने अपनी पत्नी को जगाने की कोशिश की, तो वह मुर्दा पड़ी थी. उसकी बगल में एक गुड़िया थी, जिसकी आंखें सुरमे से भरपूर थीं.
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