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द चाइल्ड: कहानी एक झूठे सच की (लेखक: मोपासां)

टीम अफ़लातून by टीम अफ़लातून
February 14, 2023
in क्लासिक कहानियां, बुक क्लब
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maupassant_stories_in-Hindi
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कई बार आपके बारे में दूसरे लोग वह सच जानते हैं, जो आपको पता नहीं होता. ऐसी ही कहानी है मोपासां की कहानी द चाइल्ड.

लेमोनिये इस समय विधुर हैं. उनका केवल एक ही बच्चा है. लेमोनिये अपनी पत्नी को मुग्ध भाव से प्यार करते थे. उस प्रेम में कुछ उच्च भाव भी था. सम्पूर्ण विवाहित जीवन में उन्हें एक बार भी ऊबने का अवसर नहीं पड़ा था. उनका प्रेम कभी भी पुराना नहीं हुआ था. वह बहुत ही नेक, ईमानदार, सीधे-सादे और निष्कपट मनुष्य थे. वह किसी का भी अविश्वास नहीं करते थे; किसी से भी उनको द्वेष या ईर्ष्या नहीं थी.
एक ग़रीब पड़ोसिन पर मुग्ध होकर, उन्होंने उसके साथ विवाह करने की इच्छा प्रकट की थी; अन्त में उसी से विवाह भी किया. वह कपड़ों का व्यापार करते थे. व्यापार से अच्छा लाभ होता था. इसलिए उन्हें सन्देह नहीं था कि कोई-न-कोई युवती बहुत आग्रह के साथ उनसे विवाह करेगी.
इसके सिवाय इस ललना ने सचमुच ही उन्हें सुखी किया था. वह उसके सिवाय और किसी की भी तरफ़ नहीं देखते थे, और किसी के भी बारे में नहीं सोचते थे. भोजन के समय वह उस प्यारे मुख पर से आंखें एक बार भी नहीं हटा सकते थे, और इसलिए नाना प्रकार की गड़बड़ कर बैठते थे; रकेबी में मदिरा और नमकदान में जल उड़ेल देते थे. फिर एक बच्चे की तरह हंस देते और कहते, ‘देखो, जान, मेरे प्रेम का पारा कुछ ऊपर चढ़ गया है, इसीलिए मैं इस तरह कर रहा हूं.’
उनकी पत्नी ‘जान’ शान्त तथा नम्र भाव से ज़रा मुस्करा देती; फिर पति के प्रेम-भरे वाक्यों से कुछ संकुचित होकर, दूसरी तरफ़ ताकती हुई बेकाम की बातें करने की चेष्टा करती. पर लेमोनिये टेबिल के ऊपर से हाथ बढ़ाकर उसके हाथ पकड़ते और धीमे स्वर से इस तरह कहते, ‘मेरी प्यारी ‘जान’, मेरी रानी!’
फिर वे ज़रा घबराते हुए कहते,‘लो जी, ज़रा समझदार बनो, तुम भी खाओ, मुझे भी खाने दो!’
फिर एक गहरी सांस लेकर वे रोटी का एक टुकड़ा तोड़ते और धीरे-धीरे चबाते रहते.
पांच साल तक उन लोगों के कोई बच्चा नहीं हुआ था. फिर सहसा पता चला कि जान गर्भवती है. इस हालत में वे पत्नी से एक क्षण के लिए भी अलग नहीं होते थे. उन्हें यह एक रोग-सा हो जाता देखकर, जिस बुढ़िया नौकरानी ने उन्हें पाला था, जिसके ऊंचे स्वर से मकान सदा गूंजता रहता था, वह कभी-कभी ज़बरन ज़रा हवा खाने के लिए, उन्हें मकान से बाहर कर दरवाज़ा बन्द कर देती थी.
एक युवक के साथ लेमोनिये की बहुत मित्रता थी. यह युवक लेमोनिये की पत्नी को बचपन से जानता था. शहर के कोतवाल के दफ़्तर में वह काम करता था. युवक का नाम दिरतूर था. दिरतूर सप्ताह में तीन बार लेमोनिये के मकान में दोपहर का भोजन करता, मालकिन के लिए अच्छे-अच्छे फूल भी लाता; कभी-कभी वह थियेटर का टिकट भी ला देता और अकसर, भोजन के अन्त में, सरल चित्त लेमोनिये, प्रेम के आवेश से पत्नी की ओर देखते हुए कह उठते,‘तुम्हारी तरह संगिनी, और उनकी तरह मित्र रहने पर दुनिया में केवल सुख ही सुख है!’
***
बच्चा प्रसव करने के दूसरे दिन पत्नी की मृत्यु हो गई. इस शोक से लेमोनिये जीवन्मृत हो गए. केवल बच्चे का मुख देखकर उन्हें कुछ तसल्ली हुई. छोटा-सा जीव सिकुड़ा पड़ा हुआ,‘टें टें,’ कर रहा था.
इस बच्चे पर उनका असीम प्यार था. कुछ समय में यह प्यार एक रोग की तरह दिखने लगा. इस प्यार में मृत पत्नी की केवल स्मृति ही नहीं थी, इसमें उनकी प्रियतमा का कुछ शारीरिक अंश भी बच गया था. पत्नी के रक्त-मांस, उसके जीवन की धारा, उसका सार मानो इस बच्चे के भीतर था. मानो पत्नी का जीवन उसके भीतर आ गया था. शिशु को जीवन दान देने के लिए ही मानो उसकी माता अन्तर्हित हुई थी. शिशु के पिता उसे आवेश से चुम्बन करते. पर इसी शिशु ने उनकी पत्नी का वध किया था, उसके जीवन को चुरा लिया था, मानो उसके स्तन पीते समय उसके जीवन का कुछ अंश चूस लिया था. अब लेमोनिये बच्चे को पालने की शय्या पर लेटा कर उसके पास बैठकर, एकटक उसकी ओर देखते रहते! इसी तरह घंटे पर घंटे बीतते जाते; जैसे वे देखते रहते और कितनी ही दुख की बातें, सुख की बातें उन्हें याद आ जातीं. फिर जब बच्चा सो जाता, उसके चेहरे की ओर झुककर देखते हुए निःशब्द रोते रहते और आंसुओं से बच्चे के कपड़े भिगो देते.
बच्चे की उम्र बढ़ने लगी. पिता और एक क्षण भी उससे अलग नहीं रह सकते. उसके चारों तरफ़ घूमते-फिरते, चहलक़दमी करते, उसे स्वयं कपड़े पहनाते, स्नान कराते, खिलाते. उन्हें लगता, मित्र दिरतूर भी मानो बच्चे को बहुत प्यार करता था. मां-बाप जिस तरह स्नेह के उच्छ्वास से चुम्बन करते हैं, वह भी उसी तरह बच्चे को चुम्बन करता. वह बच्चे को कन्धे पर रखकर घुमाता; घोड़ा बन कर, अपने पैरों पर उसे बैठा कर उसे घंटों नचाता रहता; फिर सहसा उसे घुटनों पर उलट-फेंककर, उसका छोटा कुर्ता उठा कर, उसकी कोमल मांस भरी जांघों पर, उसके पैरों के मोटे गोल पुट्ठों पर चुम्बन करता. तब लेमोनिये आनन्द से प्रफुल्लित होकर धीमे स्वर से कहता,‘मेरा बच्चा! मेरा प्यारा बच्चा!’
तब दिरतूर शिशु को और भी हृदय में कस कर अपनी मूंछों से उसके कन्धे पर गुदगुदी करता.
पर यह प्रतीत होता था कि शिशु पर बुढ़िया नौकरानी ‘सेलेस्त’ का स्नेह नहीं है. बच्चे के लड़कपन के से व्यवहार से वह नाराज़ हो उठती, और इन दोनों पुरुषों का यह प्यार-दुलार देखकर प्रतीत होता, वह मन-ही-मन जल जाती.
वह अक्सर कहती,‘क्या इस तरह से लड़का पाला जाता है? तुम लोग उसे बिगाड़ रहे हो.’
***
और कई साल बीत गए. बच्चे की उम्र इस समय नौ साल की थी. वह अभी तक अच्छी तरह अक्षर नहीं पहचान सकता था. अधिक प्यार से वह बिगड़ गया था. वह बहुत ज़िद्दी एवं बहुत क्रोधी हो गया था. वह जो भी ज़िद करता, पिता मान जाते; उसी की इच्छा के अनुसार चलते. उसे जिस तरह के भी खिलौने की इच्छा होती, दिरतूर एक-पर-एक लाकर उसकी इच्छापूर्ण करता, और उसे तरह-तरह की मिठाइयां लाकर खिलाता.
सेलेस्त नाराज़ होकर चिल्लाती,‘बड़े शर्म की बात है, महाशय! तुम दोनों मिलकर इस लड़के का सत्यानाश कर रहे हो! सुन रहे हो, तुम लोग इस लड़के का सत्यानाश कर रहे हो! यह ठीक नहीं, यह ठीक नहीं! पीछे पछताओगे…’
लेमोनिये ने हंसते हुए जवाब दिया,‘तुम क्या चाहती हो, कहो? यह सच है कि मैं बच्चे को कुछ ज़्यादा ही प्यार करताहूं. मैं उसकी बात टाल ही नहीं सकता. अब तुम जो भला समझो, करो.’
बच्चा ज़रा दुबला हो गया था. कुछ रोगी-सा दीखता था. डॉक्टर ने कहा, कोई ख़ास मर्ज नहीं है सिर्फ़ ख़ून की कमी है. उन्होंने दवा का नुस्ख़ा लिख दिया, और भेड़ का मांस और गाढ़ा शोरबा खाने की सलाह दी.
पर बच्चा मिठाइयों के सिवाय और कुछ भी खाना पसन्द नहीं करता; कोई दूसरी चीज़ें खाने को वह तैयार ही नहीं होता था. बच्चे के पिता अन्त में निराश होकर तरह-तरह की स्वादिष्ट मिठाइयां भर पेट खिलाने लगे.
एक दिन शाम को सेलेस्त दृढ़ निश्चय के साथ एक बड़ा कटोरा भर कर शोरबा बना कर लाई. कटोरे का ढक्कन झट खोल कर एक बड़ी चम्मच शोरबे में डुबो कर वह बोली ‘यह शोरबा, इस तरह का शोरबा तुम लोगों के लिए और कभी नहीं बनाया गया था. अब अगर बच्चा इसे खा ले, तो बड़ा अच्छा हो.’
लेमोनिये ने डर कर सिर नीचा कर लिया. वे समझ गए मामला ठीक नहीं है.
नौकरानी ने मालिक का कटोरा लेकर, स्वयं ही उसमें शोरबा भर दिया, और कटोरे को मालिक के सामने रख दिग.
तब नौकरानी ने बच्चे का कटोरा लेकर उसमें एक चम्मच शोरबा डाल दिया. फिर दो कदम पीछे हट कर प्रतीक्षा करने लगी.
बच्चे ने आग-बबूला होकर कटोरे को सामने से हटा दिया, और घृणा के साथ जबान से ‘थू-थू’ करने लगा.
नौकरानी का चेहरा पीला पड़ गया; उसने झट पास आकर चम्मच में शोरबा भरा और उस शोरबे-भरे चम्मच को बच्चे के अधखुले मुंह के भीतर जबरन घुसेड़ दिया.
बच्चे की सांस रुकने लगी. वह कांपने लगा, थूकने लगा, फिर उसने नाराज़ होकर दोनों हाथों से पानी का गिलास उठा कर नौकरानी को मारा. तब नौकरानी भी नाराज़ होकर, हाथ से उसका सिर दबा कर जबरन चम्मच पर चम्मच शोरबा खिलाने लगी. बच्चे ने उल्टी कर दी, हाथ-पैर पटकने लगा. देह सिकोड़ी-उसका मुंह लाल हो उठा. प्रतीत हुआ, मानो उसी क्षण उसकी सांस बन्द होकर वह मर जाएगा.
उसके पिता पहले विस्मय से इतने स्तम्भित हो गए थे कि चुप बैठे रहे. फिर एकाएक पागल की तरह दौड़े हुए आकर नौकरानी की गर्दन पकड़कर उसे दीवार की ओर ढकेलते हुए बोले,‘हट यहां से! पशु कहीं की!’
पर नौकरानी ने एक धक्का देकर अपने को छुड़ा लिया. उसके बाल बिखर गए थे, उसकी टोपी कन्धे पर गिर गई थी, उसकी आंखें आग की तरह जल रही थीं. वह जोर से चिल्ला उठी,‘महाशय, तुम्हें क्या हो गया है? तुम लोग बच्चे को मिठाई खिला कर मार रहे थे, और मैं उसे शोरबा पिलाकर बचाने की कोशिश कर रही थी, यही मेरा अपराध है! इसीलिए तुम मुझे मारने को तैयार हो गए?’
सिर से पैर तक कांपते हुए उन्होंने कहा,‘जा, चली जा यहां से! चली जा…चली जा…! पशु कहीं की!’
तब नौकरानी क्रोध से पागल होकर उनके सामने जाकर खड़ी हुई, और उनकी आंखों पर अपनी आंखें रखकर, कांपते हुए स्वर से बोली, ‘ऐ! तुम्हें विश्वास है…तुम मेरे साथ इस तरह का बर्ताव करोगे? आह! पर नहीं…और, यह किसलिए? किसलिए?…इस लड़के के लिए, जो बिलकुल ही तुम्हारा नहीं है…नहीं…बिलकुल ही तुम्हारा नहीं है…तुम्हारा नहीं, है….तुम्हारा नहीं है…यह बात तो दुनिया जानती है…हां परमात्मा! केवल तुम्हारे सिवाय यह बात सारी दुनिया जानती है…पनसारी से पूछो… गोश्तवाले से पूछो…रोटीवाले से पूछो…सबसे पूछो…सबसे…!’
क्रोध से स्वर अटक जाने से वह रुक-रुककर कहने लगी, फिर वह उनकी ओर देखती हुई चुप रही.
लेमोनिये निर्वाक खड़े रहे. उनका मुख पीला हो गया था; उनके दोनों हाथ स्थिर लटक रहे थे. कुछ क्षणों के बाद उन्होंने कम्पित स्वर से केवल यह कहा, ‘तू कहती…?…तू कहती?…कहती क्या है?’
तब नौकरानी ने शान्त स्वर से जवाब दिया,‘जो मैंने कहा है, वही फिर कहतीहूं. हां, परमात्मा! यह बात तो सारी दुनिया जानती है!’
लेमोनिये दोनों हाथ ऊपर उठा कर, क्रोध से क्रूर पशु की तरह उस पर झपटे और उसे ज़मीन पर पटकने की कोशिश की. पर बूढ़ी होने पर भी नौकरानी ताक़तवर थी. वह उनके हाथों से झट फिसल कर आत्म-रक्षा के लिए टेबल के चारों तरफ़ दौड़ने लगी; दौड़ते-दौड़ते फिर सहसा चेहरे को भयानक बनाकर, तेज़ स्वर से चिल्लाने लगी,‘बेवकूफ़, ज़रा उस पर नज़र तो डालो, ज़रा अच्छी तरह से देखो, यह लड़का दिरतूर की शक्ल का है या नहीं? उसकी नाक देखो, उसकी आंखें देखो-क्या तुम्हारी आंखें और नाक और बाल उसी तरह के हैं? क्या तुम्हारी औरत उस तरह की थी? मैं फिर कह रही हूं, यह बात सारी दुनिया जानती है, तुम्हारे सिवाय और सब जानते हैं. शहर भर में यह एक हंसी की बात हो गई है. ज़रा ग़ौर से देखो…’
फिर वह दरवाज़ा खोलकर बाहर चली गई. बेचारा बच्चा डरा हुआ अपने शोरबे के कटोरे के सामने बिना हिले-डुले बैठा रहा.

Illustration: Pinterest

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