कुछ लोग हर रिश्ते में अपना नफ़ा तलाशते हैं? हर आपदा में अवसर खोजते हैं. और वहीं कुछ बेहद साफ़दिल व भावुक लोग होते हैं, जो उनकी चिकनी-चुपड़ी बातों में आ जाते हैं. ऐसी कहानी है दो दोस्तों हांस और ह्यूग की.
बहुत दिन हुए, हांस नाम का एक साधारण परंतु ईमानदार व्यक्ति था. वह कोई बहुत प्रसिद्ध व्यक्ति नहीं था, सिवा उसके दयालु हृदय एवं प्रायः मुसकराते विनोदी गोल चेहरे के. वह छोटे से कॉटेज में रहता था, जिसके परिसर के बाग़ में दिनभर काम करता रहता. उस पूरे इलाक़े में उसका बगीचा सबसे सुंदर था. तरह-तरह के फूल वहां हरदम खिले रहते थे. अलग-अलग रंग के, विभिन्न सुगंधवाले. कई-कई प्रकार के मौसम के अनुसार बदलते महीनों के संग-संग एक-दूसरे का स्थान ग्रहण करते. इसलिए वह उद्यान हमेशा ख़ूबसूरत बना रहता, अपनी ख़ुशबू चारों ओर बिखेरता हुआ.
उसके कई दोस्त थे, पर सबसे विश्वसनीय था चक्कीवाला ह्यूग. वह अमीर चक्कीवाला हांस के प्रति बहुत समर्पित था. इतना कि उसकी बगिया के सामने से गुज़रते हुए वह सदा हांस की चारदीवारी से अंदर झांकता ज़रूर था. कभी वहां से निकलते हुए फूलों को तोड़कर बड़ा-सा गुलदस्ता बना लेता, स्वादिष्ट सब्जियों को उखाड़ लेता या फलों के मौसम में चेरी, आलूबुखारे आदि से अपनी जेब अवश्य भर लेता.
‘सच्चे मित्रों का द्वैत भाव से परे प्रत्येक वस्तु पर समान अधिकार होना चाहिए.’ ह्यूग कहता रहता. हांस मुसकान के साथ गरदन हिलाता और गर्व करता कि उसका दोस्त इतने आदर्श विचारोंवाला है.
अकसर पड़ोसियों को यह विचित्र लगता कि ह्यूग प्रतिदान में कभी कुछ नहीं देता, जबकि उसकी चक्की में सौ बोरे आटे के बहुधा यों ही पड़े रहते; उसके पास छह दुधारू गाएं थीं; ऊनी भेड़ों का बहुत बड़ा बाड़ा था. हांस इन टिप्पणियों के लिए अपने मस्तिष्क को कभी त्रास नहीं देता था. अपितु उसे ह्यूग द्वारा निस्स्वार्थ दोस्ती पर की गई चमत्कारिक उक्तियां सुनकर बेहद प्रसन्नता होती थी.
हांस अपने बगीचे में परिश्रम करता रहता. वसंत, ग्रीष्म और शरद ऋतु में वह बहुत सुखी रहता, लेकिन शीत काल में बाज़ार में बेचने के लिए उसके बाग़ में न फूल होते थे और न फल; तब ठंड और भूख से चिंतित वह खिन्न रहता. उस अवधि में रात में सोने से पूर्व चंद सूखे नाशपाती अथवा मूंगफली के दाने ही उसका भोजन होते. शीत में वह एकांत वास भी झेलता, क्योंकि उन दिनों ह्यूग कभी उससे मिलने नहीं आता था.
‘‘जब तक बर्फ़बारी होती रहेगी, मेरा हांस को मिलने जाना उचित नहीं है,’’ ह्यूग अपनी पत्नी से कहता,‘‘क्योंकि जब लोग मुश्क़िल में होते हैं, उन्हें अकेला छोड़ देना चाहिए. मिलनेवालों को उन्हें सताना नहीं चाहिए. कम-से-कम मेरी तो दोस्ती को लेकर यही सोच है और मैं सही हूं, मुझे इस पर पूरा भरोसा है. इसलिए मैं वसंत की प्रतीक्षा करूंगा, फिर उससे मिलने जाऊंगा. तब वह मुझे बास्केट भरकर अपने सर्वोत्तम गुलाब देगा. ऐसा करना उसे बहुत ख़ुशी देगा.’’
‘‘आप निश्चित ही दूसरों के लिए अत्यंत सहृदय रहते हैं.’’ देवदार से बने विशाल हॉल में आरामकुरसी पर बैठते हुए उसकी पत्नी बोली,‘‘सच में बहुत गहरी दोस्ती के बारे में आपके वचन सुनना असीम अह्लादकारी होता है. मुझे विश्वास है कि फ़ादर भी इतनी विद्वत्तापूर्ण बातें नहीं कर सकता, हालांकि वह तीन मंज़िला मकान में रहता है और अपनी छोटी उंगली में अंगूठी धारण करता है.’’
‘‘क्या हम हांस चाचा को यहां नहीं बुला सकते?’’ ह्यूग के बड़े बेटे ने पूछा,‘‘यदि वे तक़लीफ़ में हैं तो उन्हें मैं अपनी आधी रबड़ी दे सकता हूं और अपने खरगोश दिखा सकता हूं.’’
‘‘तुम कितने मूर्ख लड़के हो!’’ ह्यूग चिल्लाया,‘‘मैं समझ नहीं पा रहा, तुमको स्कूल भेजने का क्या लाभ हुआ. लगता है, तुम कुछ सीख नहीं पाए हो. अगर हांस यहां आ गया और उसने हमारा गरम बंगला, बढ़िया भोजन, शराब का संग्रह देखा तो वह ईर्ष्या से भर उठेगा. जलन बहुत ख़तरनाक होती है, जिससे किसी का भी स्वभाव डगमगा सकता है. मैं कभी नहीं चाहूंगा कि हांस की फ़ितरत बिगड़े. मैं उसका सबसे अच्छा दोस्त हूं. हमेशा ध्यान रखूंगा कि वह किसी तरह भी उत्तेजित न हो. इसके अलावा, यदि वह यहां आता है तो मुझसे थोड़ा आटा उधार मांग सकता है. यह मैं बर्दाश्त नहीं कर सकता. आटा एक चीज़ है तो दोस्ती दूसरी. उनमें घालमेल करना ठीक नहीं. कारण, दोनों शब्दों की वर्तनी भिन्न है, उनका भावार्थ अलग है. कोई भी इस फ़र्क को बूझ सकता है.’’
‘‘आप कितना अच्छा बोलते हैं.’’ ह्यूग की पत्नी अपना गिलास गरम बियर से भरते हुए बोली,‘‘मुझे काफी उनींदापन लग रहा है, मानो मैं चर्च में हूं.’’
‘‘बहुत से लोग क्रियाशील होते हैं,’’ ह्यूग ने कहा,‘‘लेकिन बहुत कम बेहतर बोल पाते हैं. यह सिद्ध करता है कि इन दो गुणों में बोल पाना ज़्यादा दुश्वार है और अधिक उत्कृष्ट भी.’’ ह्यूग ने सामने बैठे अपने बेटे की ओर कठोर दृष्टि डाली. बेटा अपने आप पर इतना लज्जित हो उठा कि उसका चेहरा लाल हो गया और वह सिर झुकाए चाय पीता रहा. बहरहाल, वह इतनी कम वय का था कि क्षमा-योग्य था.
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जैसे ही शीत ऋतु समाप्त हुई, गुलाब अपनी पंखुड़ियां खोलने लगे. ह्यूग ने अपनी पत्नी से कहा कि अब मैं हांस को मिलने जाऊंगा.
‘‘वाह! कितना भावना से भरा दिल है आपका!’’ उसकी पत्नी बोली,‘‘आप हमेशा दूसरों के बारे में सोचते हैं. और याद रखना, अपने साथ फूलों के लिए बड़ी बास्केट ले जाना मत भूलना.’’
ह्यूग ने चक्की की धुरियों को लोहे की मज़बूत जंजीर से बांधा और बांहों में बास्केट संभाले पहाड़ी से नीचे उतरने लगा.
‘‘नमस्ते, हांस.’’ उसने अभिवादन किया.
‘‘नमस्ते.’’ हांस ने अपने फावड़े पर झुके-झुके कहा. उसकी कनपटियों के मध्य मुसकान पसर गई.
‘‘और…ठंड के मौसम में तुम्हारा क्या हाल-चाल रहा?’’ ह्यूग ने पूछा.
‘‘आपका यह पूछना मुझे वाक़ई बहुत अच्छा लगा, बहुत!’’ हांस बोला,‘‘कैसे बताऊं, मेरा वक़्त बेहद ख़राब गुज़रा, लेकिन अब वसंत लौट आया है और मैं ख़ुश हूं. मेरे फूल खिल रहे हैं.’’
‘‘हम ठंड में तुम्हारे बारे में लगातार बातें करते रहे.’’ ह्यूग बोला,‘‘और दुःखी थे कि तुम कैसे जी रहे होगे.’’
‘‘यह आपका सौजन्य है.’’ हांस ने कहा,‘‘मुझे कभी-कभी शक़ होता रहा कि कहीं आप मुझे भूल तो नहीं गए.’’
‘‘हांस, मुझे तुम्हारे शक़ पर आश्चर्य हो रहा है.’’ ह्यूग बोला,‘‘दोस्ती कभी नहीं भूलती. यही उसकी ख़ूबी है. मुझे डर है कि तुम्हें जीवन की कविता समझ नहीं आती, वैसे तुम्हारे गुलाब कितने प्यारे लग रहे हैं.’’
‘‘निश्चित ही वे बहुत आकर्षक हैं.’’ हांस ने जवाब दिया,‘‘और मेरे लिए यह ख़ुशकिस्मती है कि वे इतने सारे हैं. मैं बाज़ार में ले जाकर उन्हें बेचूंगा और उन पैसों से अपना ठेला पुनः ख़रीदूंगा.’’
‘‘अपना ठेला ख़रीदोगे? यानी तुमने अपना ठेला बेच दिया था! ऐसी बेवकूफ़ी क्यों की तुमने?’’
‘‘सच बताऊं? मुझे मजबूरन बेचना पड़ा. मेरे लिए ठंड के दिन बड़े मुसीबत भरे होते हैं. मेरे पास रोटी ख़रीदने के लिए भी पैसे नहीं होते. मैंने पहले अपने कोट के चांदी के बटन बेचे, फिर अपनी चांदी की चेन, अपना लंबा पानी का पाइप और अंत में अपना ठेला. लेकिन मैं ये सब फिर से ख़रीद लूंगा.’’
‘‘हांस’’, ह्यूग ने कहा,‘‘मैं अपना ठेला तुम्हें दे दूंगा. वह पूरा दुरुस्त तो नहीं है, उसकी एक बाजू टूट गई है, उसके चक्कों के स्पोक थोड़े ख़राब हैं. बावजूद इसके मैं वह तुम्हें दे दूंगा. मुझे पता है, यह मेरी उदारता होगी और बहुतांश लोग मुझे परले दर्जे का अहमक मानेंगे. लेकिन मैं दुनिया से इतर हूं. मैं सोचता हूं, यह उदारता मित्रता का सुगंधित अर्क है. सिवा इसके मेरे पास अपना नया ठेला है. हां, तुम निश्चिंत रहो, मैं अपना ठेला तुम्हें दे दूंगा.’’
‘‘सच में यह आपकी कृपा होगी.’’ हांस ने कहा और उसका विनोदी गोल चेहरा हर्ष से पूरी तरह चमक उठा,‘‘मैं उसे सुधार लूंगा, मेरे यहां लकड़ी का एक तख्ता पड़ा हुआ है.’’
‘‘लकड़ी का पटरा!’’ ह्यूग बोला,‘‘वही तो है, जो मैं अपनी भूसे की कोठरी के लिए ढूंढ़ रहा था. उसकी छत में बहुत बड़ा छेद हो गया है. मैं यदि उसे बंद नहीं करूंगा तो सारा भूसा गीला होता रहेगा. तुमने कितना बढ़िया सुझाव दिया है. यह ग़ौर करने लायक है कि एक क्रिया सदा अन्य को जन्म देती है. मैंने तुम्हें अपना ठेला दे दिया है और अब तुम अपना तख्ता मुझे दे दोगे. निश्चित ही ठेला लकड़ी के तख्ते से ज़्यादा क़ीमती है. लेकिन सच्ची दोस्ती इन व्यर्थ की बातों पर ध्यान नहीं देती. तुम जल्दी से वह पटरा ले आओ, ताकि मैं आज ही अपनी भूसे की कोठरी का काम शुरू कर सकूं.’’
‘‘बिल्कुल!’’ हांस ने उत्साहित होकर कहा और भागते हुए भीतर जाकर तख्ता खींच लाया.
‘‘यह पटरा पर्याप्त बड़ा तो नहीं है.’’ ह्यूग ने उस पर दृष्टि डाली. ‘‘और मुझे नहीं लगता कि मैं छत का छेद बंद कर लूंगा तो ठेले के लिए लकड़ी बचेगी. पर इसके लिए मैं दोषी नहीं हूं. और जब मैंने तुम्हें अपना ठेला दे ही दिया है, मैं उम्मीद करता हूं कि बदले में तुम मुझे थोड़े-बहुत फूल दे ही दोगे. यह लो मेरी बास्केट और ध्यान रहे, उसे लबालब भरना है.’’
‘‘लबालब?’’ हांस ने दुःखी होकर कहा, क्योंकि वह बास्केट बहुत ही बड़ी थी. उसे मालूम था कि उसे समूची भर दिया तो बाज़ार में ले जाने के लिए उसके पास फूल नहीं बचेंगे. और वह अपने चांदी के बटन लेने हेतु उतावला था.
‘‘मुझे नहीं लगता कि जब मैंने तुम्हें अपना ठेला दे ही दिया है तो चंदेक फूलों पर मेरा अधिकार नहीं बनता. मैं ग़लत हो सकता हूं, पर मैंने सोचा था कि दोस्ती सच्ची दोस्ती स्वार्थ से काफ़ी अलहदा होती है.’’
‘‘मेरे मित्र, मेरे सबसे प्रिय मित्र,’’ हांस ने प्रोत्साहित हो कहा,‘‘तुम मेरे बाग़ के सारे फूल ले जा सकते हो. मैं तुम्हारे अनमोल वचन अपने चांदी के बटन के ऐवज में किसी रोज़ सुनना चाहूंगा.’’ वह दौड़कर गया और गुलाब के सारे फूल तोड़कर ह्यूग की बास्केट पूरी भर दी.
‘‘अलविदा, हांस.’’ ह्यूग ने अपने कंधे पर तख्ता और हाथों में बास्केट लेकर पहाड़ी की तरफ़ जाने से पहले कहा.
‘‘अलविदा!’’ हांस ठेले की होनेवाली प्राप्ति को लेकर प्रसन्न हो कुदाल चलाते हुए बोला.
अगले दिन हांस अपने पोर्च में हनीसकल की बेल को चढ़ा रहा था कि उसने ह्यूग को रास्ते पर से उसे पुकारते सुना. वह सीढ़ी से कूदा और बगीचे से होते हुए परिसर की दीवार तक जा पहुंचा. वहां ह्यूग अपनी पीठ पर आटे का बड़ा-सा बोरा लादे खड़ा था. वह बोला,‘‘मेरे प्यारे हांस, क्या तुम मेरी खातिर यह बोरा बाज़ार तक ले जा सकोगे?’’
‘‘ओह! मुझे माफ़ कर दो.’’ हांस ने उत्तर दिया,‘‘मैं आज बहुत व्यस्त हूं. मुझे अपनी तमाम बेलों को ऊपर चढ़ाना है, फूलों के पौधों को पानी देना है और घास काटनी है.’’
‘‘अच्छा, ऐसी बात है.’’ ह्यूग ने कहा,‘‘मेरे ख़याल से जब मैं तुम्हें अपना ठेला दे रहा हूं, तुम्हारा इनकार करना दोस्ती का उल्लंघन है.’’
‘‘अरे नहीं, ऐसा मत कहो. मैं दोस्ती के विपरीत कभी नहीं जा सकता.’’ वह भागते हुए जाकर अपनी टोपी ले आया और अपने कंधों पर ह्यूग का बोरा लादकर घिसटता हुआ आगे बढ़ गया.
उस दिन बहुत गरमी थी. रास्ता धूल भरा था. और जब हांस छह मील पैदल चलता चला गया, वह बुरी तरह थक गया था. वह एक जगह बैठकर थोड़ा आराम करने रुक गया. पुनः हिम्मत कर उठा और बाज़ार तक जा पहुंचा. मामूली इंतज़ार के बाद उसने वह आटे का बोरा अच्छी क़ीमत में बेच दिया. वह तुरंत घर लौट आया कि देर होने पर राह में उसे कोई लूट न ले.
‘‘यह दिन बहुत कठिन रहा’’, हांस ने अपने आपसे कहा, जब वह सोने जा रहा था. ‘‘लेकिन मैं ख़ुश हूं कि मैंने ह्यूग को नकारा नहीं, क्योंकि वह मेरा सबसे अभिन्न मित्र है और अलावा इसके वह मुझे अपना ठेला भी देनेवाला है.’’
सवेरे-सवेरे ह्यूग अपने आटे के बोरे के पैसे लेने आ धमका, जबकि थका-मांदा हांस अभी बिस्तर में ही था.
‘‘तुम बहुत आलसी हो. चूंकि मैं तुम्हें अपना ठेला देने जा रहा हूं, तुम्हें और मेहनत करने की ज़रूरत है. आलस भयंकर पाप है और मैं अपने किसी भी दोस्त को काहिल और सुस्त नहीं देखना चाहता. मेरी इस साफ़-बयानी का तुम्हें बुरा नहीं मानना चाहिए. हां, अगर्चे मैं तुम्हारा मित्र नहीं होता, सपने में भी ऐसा न कहता. लेकिन उस दोस्ती का क्या फ़ायदा, जिसमें आदमी खुलकर न कह सके. प्रशंसा की मोहक बातें कर कोई भी किसी को लुभा सकता है, परंतु सच्चा दोस्त अकसर चुभनेवाली बातें कर दर्द दे सकता है. वह ईमानदार मित्र है तो ऐसा करेगा, क्योंकि वह जानता है, वह ठीक कर रहा है.’’
‘‘क्षमा करना,’’ हांस अपनी आंखें मसलते और रात की टोपी हटाते हुए बोला,‘‘मैं इतना थका हुआ था कि मैंने सोचा, थोड़ी देर और लेटे रहते हैं, पक्षियों की चह-चह सुनते हुए. क्या आपको पता है, मैं पंछियों के गीत सुनते हुए ज़्यादा अच्छा काम कर लेता हूं.’’
‘‘बहुत बढ़िया!’’ हांस की पीठ थपथपाते हुए ह्यूग बोला,‘‘मेरी इच्छा है कि तुम फौरन तैयार होकर मेरी चक्की पर आ जाओ, ताकि मेरे लिए भूसे की कोठरी की मरम्मत कर सको.’’
बेचारा हांस अपने बाग़ में जाकर काम करने के लिए बहुत आतुर था, क्योंकि दो दिनों से वह पौधों को सींच नहीं पाया था. लेकिन वह अपने प्रिय मित्र को कैसे मना कर दे?
‘‘यदि मैं कहूं कि मैं बहुत व्यस्त हूं तो क्या वह मित्रता के विरुद्ध होगा?’’ उसने संकोची कातर आवाज़ में पूछा.
‘‘क्या सच?’’ ह्यूग ने जवाब दिया ‘‘मैं तुम्हें अपना ठेला दे रहा हूं तो आवश्यक नहीं कि मैं तुम पर ज़ोर डालूं. अर्थात् तुम इनकार करोगे तो वह मरम्मत मैं ख़ुद कर लूंगा.’’
‘‘नहीं, नहीं, किसी क़ीमत पर नहीं!’’ हांस ऊंचे स्वर में बोला. वह बिस्तर से बाहर आया, कपड़े पहने और ह्यूग की चक्की पर जा पहुंचा.
वह सूर्यास्त तक वहां मरम्मत करता रहा, तब कहीं जाकर ह्यूग उसके हाल-चाल जानने वहां आया.
‘‘क्या तुमने छत का छेद पूरी तरह बंद कर दिया?’’ ह्यूग ने प्रसन्नतापूर्वक पूछा.
‘‘लगभग हो गया है.’’ सीढ़ी से उतरते हुए हांस बोला.
‘‘आह! जो कार्य दूसरों के लिए किया जाता है, उससे उम्दा कुछ नहीं.’’
‘‘आपको बोलते हुए सुनना मेरा सौभाग्य है.’’ हांस ने बैठकर अपने कपाल से पसीना पोंछते हुए कहा,‘‘बिरला सौभाग्य! लेकिन मेरा दुर्भाग्य है कि आपकी तरह मुझे सुंदर कल्पनाएं नहीं सूझतीं.’’
‘‘सूझेंगी, तुमको भी सूझेंगी.’’ ह्यूग बोला,‘‘लेकिन तुमको और परिश्रम करना पड़ेगा. अभी तुम महज मित्रता के प्रयोग से जुड़े हो, किसी दिन सिद्धांत को भी छू लोगे.’’
‘‘क्या सच?’’ हांस ने पूछा.
‘‘मुझे इसमें कोई शंका नहीं है.’’ ह्यूग ने उत्तर दिया,‘‘लेकिन अभी तुमने छत दुरुस्त कर दी है, बेहतर होगा कि घर जाकर आराम करो, ताकि कल मेरी भेड़ों को पहाड़ पर चरने के लिए ले जा सको.’’
अदना-सा हांस इसके जवाब में कुछ कहने की हिम्मत नहीं जुटा सका.
अगली सुबह ह्यूग अपनी भेड़ों को लेकर उसके कॉटेज पर आ गया. हांस चुपचाप उनको हांकते हुए पहाड़ की ओर चल पड़ा. सवेरे से शाम हो गई, जब वह लौटा. वह थकावट से इतना चूर-चूर हो गया था कि कुरसी पर बैठे-बैठे ही नींद के आगोश में चला गया. जब उसकी नींद खुली, चारों ओर भरपूर उजाला फैल चुका था.
‘‘अब बगिया में कितना मज़ा आएगा…’’ कहते हुए वह सीधे अपने काम में लग गया.
वह अपने फूलों का साज-संभाल संपूर्ण मन से कर नहीं पा रहा था, क्योंकि उसका दोस्त ह्यूग बारहा आकर अपने किसी-न-किसी मशक्कत भरे लंबे काम में उसे जोत देता या अपनी चक्की पर मदद के लिए बुला लेता. कभी-कभी हांस बहुत अवसादग्रस्त हो जाता कि उसके फूल सोचते होंगे, कहीं वह उन्हें भूल तो नहीं गया है. वह स्वयं को इस तर्क से दिलासा दे लेता कि ह्यूग उसका गहरा मित्र है. फिर अपने-आपसे कहता, वह मुझे अपना ठेला भी तो देनेवाला है, जो शुद्ध उदारता का कार्य है.
हांस इस प्रकार ह्यूग के कामों को अंजाम देता रहा और ह्यूग मित्रता से संबंधित सारी उच्च कोटि की बातें करता रहा. हांस उसके कथनों को डायरी में लिख लेता और रात में पढ़ता रहता, क्योंकि वह एक अध्ययनशील छात्र रहा था.
एक रात ऐसा हुआ कि हांस जब अपनी अंगीठी के नजदीक बैठा था, किसी ने दरवाजा ज़ोर से खटखटाया. वह एक तूफ़ानी रात थी. आंधी भयंकर आवाज करती हुई हांस के मकान की मानो परिक्रमा कर रही थी. उसने पहले सोचा कि इसी वजह से दरवाजा खड़खड़ाया होगा. लेकिन पुनः खटखट हुई, एक बार, दूसरी बार और तेज़.
‘‘शायद वहां कोई तूफान में फंसा हुआ यात्री होगा.’’ हांस बुदबुदाते हुए दरवाज़े की ओर लपका.
वहां ह्यूग खड़ा था-एक हाथ में कंदील और दूसरे में डंडा उठाए.
वह चिल्लाया,‘‘मेरे प्यारे हांस, मैं बहुत मुसीबत में हूं. मेरा छोटा बेटा सीढ़ी से गिर पड़ा है और जख्मी हो गया है. मैं डॉक्टर के पास जा रहा हूं, पर वह इतनी दूर रहता है और यह रात इतनी तूफ़ानी है कि मुझे अभी-अभी सूझा कि मेरे बजाय तुम जाओ तो बेहतर रहेगा. तुम्हें मालूम है, मैं तुम्हें ठेला देनेवाला हूं, इसलिए बदले में तुम्हें यह उपकार करना ही चाहिए.’’
‘‘बिल्कुल,’’ हांस बोला,‘‘यह मेरे लिए सम्मानसूचक है कि आप मेरे यहां आए. मैं अभी जा रहा हूं. लेकिन यह रात इतनी अंधेरी है कि मैं कहीं गिर सकता हूं, सो आप अपना कंदील मुझे दे दो.’’
‘‘नहीं भाई, यह मेरा नया कंदील है. उसे कुछ हो गया तो मेरा भारी नुक़सान होगा.’’
‘‘कोई बात नहीं. मैं उसके बिना चला जाऊंगा.’’ हांस ने अपना फर का कोट पहना, गले में मफलर लपेटा और निकल पड़ा.
वह भयानक झंझावाती रात थी, ऐसी अंधेरी कि हांस बड़ी मुश्किल से देख पा रहा था. हवाएं बला की तेज़ चल रही थीं. हांस के लिए खड़े रहना भी कठिन हो रहा था. किसी तरह तीन घंटे पैदल चलने के बाद वह डॉक्टर के बंगले पर पहुंचा. उसने कुंडी बजाई.
‘‘कौन है वहां?’’ डॉक्टर ने अपने शयनकक्ष से झांका.
‘‘डॉक्टर, मैं हूं हांस.’’
‘‘क्या चाहिए तुम्हें?’’
‘‘चक्कीवाले ह्यूग का बेटा सीढ़ी से गिर पड़ा है और चोटिल हो गया है. ह्यूग का संदेश है कि आप जल्दी से उसके घर चलें.’’
‘‘ठीक है.’’ डॉक्टर लालटेन लेकर नीचे आया, अपने घोड़े पर सवार हुआ और ह्यूग के मकान की दिशा में चल पड़ा. निरीह हांस उसके पीछे दौड़ता हुआ आगे बढ़ा.
तूफ़ान की गति पल-पल तीव्रतर होती जा रही थी. फिर मूसलधार बरसात शुरू हो गई. हांस को कुछ सूझ नहीं रहा था. वह घोड़े की रफ़्तार साध नहीं पाया और रास्ता भटक गया. वह उस बंजर भूमि में जा फंसा, जहां पर बड़े-बड़े गड्ढे थे और एक विशाल गड्ढे में डूब गया.
अगले दिन चरवाहों को उसकी लाश मिली, जो एक लंबे-चौड़े गड्ढे में तैर रही थी. वे उसे उसके कॉटेज पर ले आए.
हांस इतना लोकप्रिय था कि उसकी शव-यात्रा में समूचा गांव सम्मिलित हुआ. ह्यूग सबसे अधिक शोक व्यक्त कर रहा था. उसने सबको संबोधित किया,‘‘हांस का मैं घनिष्ट मित्र था. इसलिए मेरा हक़ बनता है कि मैं सबसे आगे रहूं.’’ वह अपने काले लबादे में उस शव-यात्रा के एकदम सामने पहुंचा गया और अपने रूमाल से हर क्षण आंखें पोंछता जा रहा था.
हांस को मिट्टी के सुपुर्द करने के पश्चात् जब साथ गए कतिपय लोग बार में मीठे केक के साथ शराब का सेवन करने बैठे तो लुहार बोला,‘‘हांस का जाना हम सबके लिए व्यक्तिगत क्षति है.’’
‘‘मेरे लिए तो सबसे ज़्यादा.’’ ह्यूग बोला,‘‘क्योंकि मैंने उसको अपना ठेला तक़रीबन दे ही दिया था. मैं समझ नहीं पा रहा कि अब उसका क्या करूं. वह टूटी-फूटी हालत में घर में कबाड़-सा पड़ा हुआ है. मैं उसे बेचूं तो कोई एक पैसा भी नहीं देगा. मैं दोबारा किसी को अपनी कोई वस्तु देने के प्रति सावधानी बरतूंगा. अधिक दयावान बनने से हर इनसान दुःख ही पाता है.’’
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