वॉटरस्पोर्ट्स वह रोमांच है, जिसका अनुभव सबको ज़िंदगी में कम से कम एक बार तो लेना ही चाहिए. इंदौर की वरिष्ठ लेखिका ज्योति जैन गोवा के नज़दीकी वॉटरस्पोर्ट्स ठिकाने तारकरली की अपनी यात्रा का सजीव वर्णन कर रही हैं.
काश कि मेरे पर होते
उड़ जाती नील गगन में
काश कि होती जल की रानी
तैरती गहरे सागर
कान में चिड़िया कह जाती है
पास में मेरे आकर
और वो पीली मछली बोली
पैर मेरे यूं छूकर
काश मानवी तुमसी होती
पाती प्यार का सागर
धरती भी है इतनी सुंदर
जैसे व्योम समन्दर
अपनी इस कविता की तरह मुझे हमेशा यही लगता था कि काश मैं भी चिड़िया और मछली की तरह उड़ और तैर सकती! ये शब्द सपनों में ही विचरते यदि ‘एडवेंचर ग्रुप ऑफ़ इन्दौर’ से मुलाक़ात नहीं होती. जैसे ही डॉ. अरुण अग्रवाल व प्रथमेश देसाई ने बताया कि ये टूर वॉटर स्पोर्ट्स के लिए ही है; हमने तुरंत ही हां कह दिया. जेब में सपने भरकर स्कूबा ड्राइविंग व पैरासेलिंग के ज़रिए उन्हें पूरा करने चल पड़ी.
इन्दौर से गोवा फ़्लाइट और आगे सड़क मार्ग से करीब 4-5 घंटे का रास्ता था. बेहद ख़ूबसूरत रास्ते और घने जंगलों के बीच गुज़रते हुए हमारी मंज़िल थी मालवण जो कि दक्षिण महाराष्ट्र में आता है और मालवण से आधा घण्टे का रास्ता है तारकरली. ये दोनों जगह स्कूबा ड्राइविंग व पैरासेलिंग सहित बाक़ी कई सारे वॉटर स्पोर्ट्स के लिए जानी जाती हैं.
पहले दिन टूर ऑपरेटर ने बताया कि सभी लोग स्नॉर्कलिंग करेंगे, यदि स्नॉर्कलिंग में कोई दिक़्क़त न हो तो स्कूबा भी कर सकते है. स्नॉर्कलिंग में पानी सतह पर एक ट्यूब के सहारे फ़्लोट करते हैं और एक मास्क जिसमें आंखों पर चश्मा व नाक पैक हो जाती है, पहनकर मुंह में एक नली होठों द्वारा पकड़ कर उसका सिरा पानी से बाहर रखकर उससे मुंह द्वार सांस ली जाती है. आप सतह से ही सिर पानी के अन्दर झुकाकर सारी मछलियां देख सकते हैं. स्नॉर्कलिंग सफलतापूर्वक करने के बाद स्कूबा के लिए तैयार हुए तो केवल पानी के भीतर जाने का उत्साह था, जो मेरा कई दिनों का सपना था. डर का नामोनिशान ही नहीं था. स्कूबा सूट, जूते, ऑक्सीजन सिलेंडर, मास्क आदि लगाने के बाद ट्रेनर ने मुंह में ट्यूब पैक की और क़रीब पांच-सात मिनट तक सिर पानी में डालकर मुंह से सांस लेने की प्रैक्टिस करवाता रहा. जब वह संतुष्ट हुआ तब पानी के भीतर ही इशारा करके अंगूठा ऊपर करके पूछा डन…? मैंने भी अंगूठा दिखाकर यस का इशारा किया और अगले ही पल एक हाथ से पकड़ी पानी के अंदर तक जाती बोट की सीढ़ी का सिरा छोड़ दिया.
जैसे ही मैं थोड़ा नीचे पहुंची…! ओ माई गॉड… मैं चारों ओर मछलियों से घिरी हुई थी. लाल, पीली, केसरिया, काली, सफ़ेद और नीली मछलियां. छोटी-बड़ी… सभी एक से एक सुंदर. ऐसा लग रहा था मैं भी मछली बनकर उनके साथ घूम रही हूं. वे सब मेरे हाथों को छू रही थीं. थोड़ा डायरेक्शन बदला तो सामने छोटे-बड़े कोरल थे. समुद्री वनस्पतियां पानी के साथ-साथ झूम रही थीं. ट्रेनर फिर सामने आया. हाथों से दस उंगलियां दिखाकर दिखाकर इशारा किया,‘‘10 फ़ीट नीचे आए हैं. अप या डाउन?’’ मैंने अंगूठा नीचे किया, उसने फिर कंधे का बेल्ट पकड़ा और हम और नीचे बढ़े. क़रीब बीस फ़ीट नीचे जाकर उसने एक कोरल पकड़ने का इशारा किया और कैमरे से मेरी फ़ोटो क्लिक करने लगा. फ़ोटो क्लिक करके जैसे ही मैंने गर्दन घुमाई सामने एक सफ़ेद केकड़ा नज़र आया और वो मुझसे डरकर एक कोरल की आड़ में छुप गया. इतने समय मैं आराम से मुंह से सांस ले रही थी. सूरज बिल्कुल सिर पर था, इसलिए पानी में सब कुछ साफ़ नज़र आ रहा था. (दरअसल स्कूबा के
लिए यही आइडियल वक़्त होता है). अब मैं आराम से सारी मछलियों के आगे-पीछे तैर रही थी. इस बीच दो-तीन जगह कुछ गड्ढे जैसी जगह आई जहां मेरे पांव रेत पर टिके थे. वो आधा घण्टा कब-कैसे निकल गया, पता ही नहीं चला! जैसे ही पानी की सतह पर आई, बोट से एक ट्यूब मेरी ओर आई और मैं उस ट्यूब के सहारे पानी पर लेट गई. एक अनूठा अनुभव था. अभी-अभी सागर से निकल कर आई थी, जहां एक-दो जगह रेत को भी पैर से छुआ था तो अब आंखों के आगे नीला आसमान था. मन हो रहा था एक बार फिर डुबई लगा लूं. होटल लौटते हुए बस वही अनुभव कर रही थी कि मैं अभी भी मछलियों के बीच हूं. मैं ख़ुश थी और नहीं जानती थी कि शाम को मेरी वो ख़ुशी द्विगुणित होनेवाली थी.
शाम को हम पैरासेलिंग के लिए निकले. जिस स्पीड बोट में हम बैठे थे, उसी की डेक से पैराशूट से बंधकर उड़ना था. लाइफ़ जैकेट व बेल्ट बांधकर जैसी ही उड़ना शुरू किया, कोई 30-40 फ़ुट ऊपर ले जाकर पहले समुद्र में डुबकियां खिलाई गईं, ठीक वैसे ही जैसे हम चाय को ‘डिप’ करते हैं. फिर सीधे ऊपर उठाया. रस्सी को तयशुदा ढील दे ऊपर स्थिर कर दिया.
स्पीड बोट सागर की छाती चीरकर आगे बढ़ रही थी और पैराशूट से लटकी, मैं ख़ुद को एक चिड़िया जैसा महसूस कर रही थी. यह वही अनुभूति थी जिसका सपना बरसों से देखा करती. नीचे गहरा नीला सागर, ऊपर हल्का नीला साफ़ आसमान. हमारे साथ सूरज दादा भी ऑरेंज स्विम सूट पहनकर डुबकी लगाने आए थे. एक ही दिन में दो-दो अनूठे अद्भुत अनुभव! बिल्कुल किसी परीकथा की तरह. रस्सी से जब मुझे नीचे किया तो उड़ने से मन नहीं भरा था, इसलिए एक बार फिर उड़ी.
बोट किनारे आने तक सिन्दूरी सूरज भी अस्त होने को था! आज के स्कूबा ड्राइविंग और पैरासेलिंग एक दिन पूर्व किए गए बाक़ी सारे वॉटर स्पोर्ट्स (जेट स्कींग, वॉटर स्कूटर, बनाना राइड, बम्पर राइड आदि) पर भारी पड़े.
मन में न ऊंचाई से गिरने का डर था, न सागर में डूबने का. सिर्फ़ हर्ष और उत्साह था, अपने सपने पूर्ण हो जाने का. वॉटर स्पोर्ट्स के बारे में यहां दो बातें ग़ौरतलब हैं-एक, बारिश के मौसम को छोड़ आप कभी भी वॉटर स्पोर्ट्स के लिए जा सकते हैं, दूसरी, आपको तैरना आता है तो अच्छा है, लेकिन न आता हो तब भी आप स्कूबा डाइविंग सहित सारे वॉटर स्पोर्ट्स का आनंद ले सकते हैं. मुझे लगता हर एक इंसान को ज़िंदगी में एक बार तो वॉटर स्पोर्ट्स अवश्य करना चाहिए, क्योंकि सचमुच…! अब मैं बहुत आत्मविश्वास के साथ कहती हूं कि ‘डर के आगे जीत है’ और ये बात मैं बिना कोई ख़ास कोल्ड्रिंक पिए भी कह सकती हूं!
पुस्तक साभार: यात्राओं का इंद्रधनुष
लेखिका: ज्योति जैन
प्रकाशन: शिवना प्रकाशन