अपने देश की कमियों और ख़ूबियों के बारे में तब पता चलता है, जब हम किसी दूसरे देश की यात्रा पर जाते हैं. वरिष्ठ लेखिका ज्योति जैन ने अपनी थाईलैंड की यात्रा का सजीव वर्णन करते हुए बताया है कि क्यों विदेशों की ख़ूबसूरती के बावजूद उन्हें अपना देश यानी भारत सबसे प्यारा है.
यूं तो भारत में अकेले ही बिल्कुल अलग-अलग तरह के पर्यटन स्थल हैं, जो अपने आप में विभिन्न प्रकार की सुंदरता को समेटे रहते हैं. केरल समुद्र के साथ नारियल वृक्षों से आच्छादित है, तो कश्मीर बर्फ़ से. गुजरात, मरुभूमि राजस्थान की अपनी रंगीली दुनिया है तो उत्तरांचल फूलों के गंध से भरा है. जब भारत से बाहर घूमने के बारे में सोचा तो सबसे आसान व क़रीबी जगह थाइलैंड की योजना बनी. पासपोर्ट तैयार थे. मुंबई से रात साढ़े ग्यारह बजे की फ़्लाइट थी. चूंकि विदेश यात्रा का पहला मौक़ा था अत: औपचारिकताओं को पूरा करने के लिहाज से चार घंटे पहले ही एयरपोर्ट पहुंच गए.
थाई एयरवेज़ के उस प्लेन में दाख़िल होते ही पहला सुखद अनुभव रहा बेहद ख़ूबसूरत थाई एयर होस्टेस. दोनों हाथ जोड़े ये कन्याएं अपने पारंपरिक थाई लिबास में सजीधजी थीं, जो साड़ी व गाउन का मिला-जुला रूप है. सबातिखा…. (नमस्ते) कहते हए उन्होंने अभिवादन किया. (मुझे अनायास ही हम भारतीयों का साड़ी से परहेज़ याद आ गया). साढ़े चार घण्टे आरामदायक यात्रा के बाद अपने नियत समय पर घोषणा हुई कि हम बैंकाक के स्वर्णभूमि एयरपोर्ट पर लैण्ड करने वाले हैं. खिड़की से नीचे झांका तो पूरा बैंकाक दूधिया रोशनी में नहाया हुआ नज़र आ रहा था और बीच-बीच में पीली रोशनी से आड़ी-तिरछी लकीरें खींची हुई मालूम हो रही थीं. जैसे ग्राफ़ पेपर पर होती है. असल में वो पीली लाइट्स वाली लकीरें, सड़कें थीं. आसमान साफ़ था और ऊषा की लालिमा की हल्की दस्तक देता गुलाबी आभारंग लिए था. मैंने घड़ी देखी, सुबह के चार बजे थे. मैं चौंकी चार बजे ये नज़ारा! तब बेटी ने मोबाइल देख वहां का वक़्त बताया-साढ़े पांच बजे थे. मुझे ध्यान आया कि थाईलैंड हमसे डेढ़ घंटा आगे है. उतरते और बाहर निकलते छह-सवा छह बज गए.
थाईलैंड में हमारा अगला पहला पड़ाव बैंकाक न होकर फुकट था. लेकिन भारत से वीजा न लेकर, हमें वहीं पर ऑन अराइवल वीजा
लेना था और इस सारे काम के लिए वक़्त था कुल ढाई घण्टे. यदि थाईलैंड जाना है तो पहले तो वीजा यहीं से लेकर जाएं तो बेहतर. कई प्रोग्राम ऐसे बनने हैं कि समय नहीं रहता, और ऐसे में ऑन अराइवल वीज़ा लें तो हमारी ग़लती न दोहराएं कि सभी व्यक्ति फ़ॉर्म लेकर बैठ गए. एक या दो व्यक्ति फ़ॉर्म भरें, बाक़ी लाइन में लग जाएं, ताकि वहां का काम डेढ़ घण्टे की जगह आधे घण्टे में हो जाए. पासपोर्ट की फ़ोटोकॉपी व पासपोर्ट साइज़ फ़ोटो (4×6 से.मी.) हमेशा अपने पास रखें. पासपोर्ट पर आख़री ठप्पा लगाने वाले व्यक्ति ने हमें चेताया-गो फास्त. … यू आर लेत… हमने दौड़ते हुए एयरपोर्ट के लंबे चौड़े रास्ते को तय किया और समय पर बोर्डिंग कर लिया. बोर्डिंग करते वक़्त एक थाई महिला अधिकारी ने मुझसे कुछ कहा-मैं पलटी. लगा कहीं कोई पेपर तो गड़बड़ नहीं. वो फिर बोली-लेकिन उसकी थाई टोनवाली अंग्रेज़ी मेरी समझ में नहीं आई, पर साथ ही उसने मुस्कुराकर हाथ की ऊंगलियों से मेरे परिधान की ओर इशारा करते हुए नाइस कहा. मैंने मुस्कराकर थैंक्स कहा. भले ही एक-दूसरे की भाषा न समझें, लेकिन फिर भी मुस्कुराहट वह भाषा है, जो दुनिया का हर व्यक्ति समझता है.
बहरहाल, फुकेट एयरपोर्ट से उतरकर वहां से कार द्वारा लगभग पचास मिनट में हम विलेज कोकोनट रिसॉर्ट के पायर (Piar) पर पहुंचे. उस पचास मिनट में फुकेट का ज़मीनी सौंदर्य अद्भुत था. पूरे रास्ते दोनों ओर रबर के ऊंचे व्यवस्थित लगे पेड़ थे और मौसम सुहावना था. पायर पर पहुंच कर बोट में बैठे जहां से रिसोर्ट जाना था. वो 10-15 मिनट का रास्ता था. विलेज कोकोनट नारियल के वृक्षों व पूर्णतः हरियाली से समृद्ध आईलैंड है. अगले तीन दिन वहीं हमारा पड़ाव था. फुकेट में किसी भी आईलैंड पर भारतीय भोजन उपलब्ध नहीं होता, वहां सी-फूड का ज़्यादा चलन है, अतः हमने रूम के बजाय विला बुक किया, जो हम पांच लोगों के लिए इकॉनामिकल भी था और किचन की सुविधा थी. शाकाहारी हिन्दुस्तानी के लिए ये सबसे बढ़िया ऑप्शन है.
अगले दिन सुबह स्क्रूज़ द्वारा फीफी आयरलैंड के लिए रवाना हुए. (यहां ये ध्यान रहे कि अपने पासपोर्ट हमेशा होटल के लॉकर में छोड़कर जाएं. साथ सिर्फ़ फ़ोटोकॉपी ले जाएं.) फीफी आयरलैंड के लिए हमारे रिसॉर्ट से क़रीब ढाई घण्टे का सफ़र था. फीफी वॉटर स्पोर्ट्स के लिए प्रसिद्ध है. वहां किनारे के बजाय बीच समुद्र में जाकर जहाज़ की सीढ़ियों से हम पानी में उतरे. हमें वहीं लाइफ़ जैकेट व स्नार्कलिंग मास्क दिए गए थे. गहरे सागर में अपने चारों ओर व पानी के भीतर मछलियों के बीच अपने को पाना एक रोमांचक अनुभव था. हमारी क़िस्मत अच्छी थी कि जब हम फीफी रवाना हुए तब बारिश नहीं हुई अन्यथा समुद्र में उठती क़रीब 15 मीटर ऊंची लहरों के कारण ट्रिप कैंसल हो जाती है. लौटते हुए क़रीब एक घण्टे के सफ़र के बाद भारी बारिश में उस शांत हरे-नीले समुद्र ने हमें अपना रौद्र रूप भी दिखा ही दिया, जहाज़ की पहली मंजिल से समंदर की ऊंची लहरों का अट्टहास रोंगटे खड़े कर रहा था.
फुकेट में आप हर दिन वॉटर स्पोर्ट्स के लिए अलग-अलग आईलैंड पर जा सकते हैं, जैसे जेम्स बाण्ड पर स्कूबा ड्राइविंग, किसी और आईलैंड पर कयाकिंग, बनाना राइड्स आदि…
फ़ुकेट में हर जगह का अपना अलग ही अनुभव रहा, क्योंकि तीसरे दिन जब हम फुकेट फैंटेसी पहुंचे तो लगा परियों के देश में आ गए हैं और सारी चीज़ें जीवन्तऔर हर शो व्यवस्थित. वहां आप शेर के बच्चे को गोद में खिला सकते हैं, तो एक साथ कई हाथियों का स्टेज शो देख सकते हैं. यह शो थाई संस्कृति की कहानी है.
वहां के लोगों की थाई और टूटी-फूटी अंग्रेज़ी और मेरी हिन्दी और कामचलाऊ अंग्रेज़ी के साथ तीन दिन फुकेट आईलैंड का आनंद लेने
के बाद हम बैंकाक पहुंचे. बैंकाक पहुंचने पर पता चला कि वहां भारतीय संस्कृति का प्रभाव कितना गहरा है. पहले तो एयरपोर्ट का नाम ही स्वर्णभूमि दिखा. फिर वहां के राजा को किंग रामा-1,2,3… ऐसे नाम दिए गए हैं. वर्तमान में वहां किंग रामा नाइन्थ हैं और लोग उनका बेहद सम्मान करते हैं. कारण किंग रामा सिर्फ़ जनता व देश की भलाई का सोचते हैं और समृद्धि के बारे में सोचते हैं, न कि स्वयं की.
बैंकाक में गोल्डन बुद्ध मंदिर जिसे ट्राई मिगा (यानी तीन मित्रों द्वारा बनाया गया) भी कहते हैं और रिक्लाइनिंग बुद्ध मंदिर (लेटे हुए बुद्ध की प्रतिमा) भी अद्भुत थे. जिनके बनने के समय के पर्याप्त प्रमाण तो नहीं, किंतु वहां के लोग उसे अयोध्या पीरियड का निर्माण बताते हैं. ये बैंकाक का सबसे लंबा व थाईलैण्ड का तीसरा बड़ा मंदिर है. 46 मीटर लंबा व 15 मीटर ऊंचा. लेटे हुए बुद्ध के पंजों में 108 शुभचिह्न अंकित हैं. टनों सोने की बनी ये मूर्तियां समृद्धशाली थाई इतिहास की कहानी कहती हैं. वहां के कई मंदिर, व भव्य स्थलों पर भारत की स्पष्ट छाप दिखाई देती है. कई जगहों के नाम अशोक हैं, वहीं ‘सियाम’ ओसनवर्ल्ड में सियाराम प्रतिध्वनित होता है. एयरपोर्ट पर समुद्र मंथन की कहानी कहता बड़ा सा स्टेच्यू है, जिसमें बड़े से वासुकि नाग को लिए असुर व देव सागर मंथन कर रहे हैं भगवान विष्णु बीच में बड़े कमल पर विराजित हैं. सियाम ओशनवर्ड में पहले समय पर दिखाई गई 5डी मूवी और फिर कांच की सुरंग में अपने चारों ओर समुद्र में शार्क सहित अन्य मछलियों ने रोंगटे खड़े कर दिए. अगले दिन सफ़ारी वर्ल्ड में जिराफ़ के झुण्ड व बाक़ी जानवरों के अलावा गैंडे तथा शेर व टाइगर झुण्ड (8 से 10 शेरों के झुण्ड) देखना रोमांचक रहा. भारत में कभी 2-3 से ज़्यादा बाघ नहीं देखे.
फुकेट के बजाए बैंकाक में गाइड हिन्दी के 4-6 शब्द बोलते नज़र आए और उनकी अंग्रेज़ी भी बेहतर थी. क्योंकि वहां 40 से 50 प्रतिशत टूरिस्ट भारतीय होते हैं. यही कारण है कि वहां हमें हमारे होटल अमारी वॉटरगेट (पेयरबरी रोड) के बाहर मात्र 10 मिनट पैदल की दूरी पर चोटीवाला, खाना-ख़ज़ाना, सांझा चूल्हा जैसे भारतीय व वेज रेस्टॉरेंट मिल गए. कई लोग बैंकाक को शॉपिंग डेस्टिनेशन कहते हैं, वहां का रूबी व अलग-अलग रंगों के सफ़ायर प्रसिद्ध है. मगर मुझे शॉपिंग के लिए हिन्दुस्तान ही बेहतर लगा. यहां चीज़ें भी बेहतर हैं और करन्सी भी. थाई बहात के मुकाबले रुपए की क़ीमत आधी है. सो घूमने फलों व खाने पर ख़र्च करें, शॉपिंग से बचें. वहां घूमते हुए कई बातें सुखद व कुछ शर्मिंदगीवाली भी थीं. सुखद ये कि सड़कों पर गंदगी व अतिक्रमण बिल्कुल नहीं है. शहर व्यवस्थित है, फिर भी गाड़ियां अधिक हैं, तो जाम लग जाता है, पर वहां कोई हॉर्न नहीं बजाता. मैं रुकता हूं, आप पहले निकल जाएं की भावना ड्रायवरों में देखने को मिली. इसी कारण जाम टिकता नहीं. सिग्नल पर लोग अपने आप ही रुकते हैं. सड़क के दोनों ओर जगह-जगह कचरा पेटियां हैं, लोग कचरा उसी में डालते हैं. स्वअनुशासन का एक बेजोड़ उदाहरण. शर्म से सिर झुक गया जब देखा हर जगह बोर्ड थाई भाषा या इंग्लिश में ही थे किंतु कहीं-कहीं सिर्फ़ हिन्दी में. जहां लिखा था ‘यहां थूकना मना है.’ हमारी संस्कृति को पश्चिम आत्मसात किए हुए है, लेकिन हम अपने ही देश में अपनी संस्कृति की क़द्र नहीं कर पा रहे हैं. पाश्चात्य संस्कृति हम भारतीयों को बहुत आकर्षित करती है. अफ़सोस होता है कि हमने वैलेन्टाइन्स डे या थर्टी फ़र्स्ट जैसे उत्सव मनाने शुरू किए हैं. साड़ी छोड़कर छोटे कपड़े भी अपना लिए, लेकिन विदेशों के अनुशासन व देशभक्ति की भावना को पास तक फटकने नहीं दिया.
थाईलैंड की कई बातें खटकती भी हैं, जैसे-ह्यूमन ट्रैफ़िकिंग, खुलेआम शराब, सिगरेट पीना, वगैरह. और हां! हम यहां सड़कों पर गाय-भैंसों से परेशान हो जाते हैं, वहां ये सब नज़र नहीं आता शायद इसीलिए वहां दूध की किल्लत रहती है. यह सच है कि भारत जैसा पारिवारिक व सामाजिक ताना-बाना सिर्फ़ भारत में ही है. मैं भारत से प्यार करती हूं, उसका सम्मान करती हूं और हमेशा यहीं रहना चाहती हूं. बस…! विदेशों में सड़कों पर स्वअनुशासन और सफ़ाई देख लगता है, काश यह सब हमारे देश में भी होता! लेकिन अब निश्चित रूप से हमारे यहां भी सुखद बदलाव हो रहे हैं.
थाईलैंड वास्तव में स्वर्णभूमि है. आर्थिक व्यवस्था के साथ वहां के लोग चरित्र व देशप्रेम के मामले में भी धनी हैं. राजवंश के प्रति प्रजा की निष्ठा का कारण राजा का चरित्रवान होना है. वह स्वयं की नहीं देश और देशवासियों की उन्नति चाहता है. देशवासियों ने भी इसे अपनी मेहनत व लगन से इतना समृद्ध बना दिया है कि पर्यटन से होने वाली आय के कारण इसे सोना उगलने वाली भूमि का खिताब मिल गया है.
एक बार फिर यहां आना चाहूंगी, यह सोचते हुए स्वदेश लौटने के लिए प्लेन में सवार होते हुए मैंने स्वर्णभूमि को कहा-कन्माय…(बाय-बाय)!
पुस्तक साभार: यात्राओं का इंद्रधनुष
लेखिका: ज्योति जैन
प्रकाशन: शिवना प्रकाशन