‘भारत में दलित, भारत के दलित’ श्रृंखला की पिछली कड़ी में सामाजिक चिंतक, लेखक और दयाल सिंह कॉलेज, करनाल के पूर्व प्राचार्य डॉ रामजीलाल ने हरियाणा में दलितों की ज़िलेवार संख्या पर बात की. आज वे बता रहे हैं इतनी बड़ी संख्या के बावजूद दलितों पर होनेवाले अत्याचारों का कोई अंत क्यों नहीं है? वे दलितों के ख़िलाफ़ होनेवाले अत्याचारों की अनेक घटनाओं का ज़िक्र कर रहे हैं, जिससे यह साबित होता है कि दलित उत्पीड़न की घटनाएं इक्का-दुक्का नहीं हैं. साथ ही इन घटनाओं पर सरकार व प्रशासन के रवैये पर भी चर्चा करेंगे.
दलित उत्पीड़न: इस अंधेरी रात की सुबह नहीं
कहते हैं गहरी अंधेरी रात के बाद सुबह होती है, पर दलितों पर होनेवाले अत्याचारों के मामले में यह अंतहीन यातना की सुरंग जान पड़ती है. पूरे देश की नहीं केवल हरियाणा की बात करें तो सन् 2005 में सोनीपत ज़िले के गोहाना क़स्बे में बाल्मीकि बस्ती में आग लगाई गई तथा बाल्मीकि जाति के लोगों को जान बचाकर भागना पड़ा. सन् 2010 में मिर्चपुर गांव में दिन दहाड़े दलित घरों को आग लगाई गई, जिसमें एक विकलांग युवती और उसके 70 वर्ष के पिता जिंदा जल गए और दलित समुदाय के लोगों को अपनी जान बचाने के लिए गांव से पलायन करना पड़ा. भिवानी ज़िले के रतेरा गांव में 5 मार्च 2013 को दलितों को विवाह समारोह में घुड़चढ़ी की रसम के दौरान रोका गया और बेरहमी से पीटा गया. इस प्रकरण के बाद इस गांव से भी दलितों ने पलायन किया. रोहतक के मदीना गांव में दलित महिला से बलात्कार किया गया और उसके परिवार के लोगों की निर्मम हत्या कर दी गई. इस गांव से भी पीड़ित परिवार पलायन कर गए. कैथल ज़िले के पबनावा गांव में दलित समुदाय के युवक के द्वारा अंतर्जातीय विवाह करने के कारण गांव से निष्कासित किया गया. वर्ष 2012 में हिसार ज़िले के गांव दावड़ा में दलित युवती के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया और उसका एमएमएस बनाकर ब्लैकमेल किया गया. परिणाम स्वरूप उसके बाप ने मजबूर होकर आत्महत्या कर ली.
वर्ष 2011 में रोहतक की अपना घर गैर सरकारी संस्था में बेसहारा बच्चियों, बच्चों और महिलाओं को प्रताड़ना का सामना करना पड़ा. यह गैर-सरकारी संस्था अपना घर के समाचार पत्रों में प्रसारित रहे. हिसार ज़िले के भैणीअकबरपुर गांव में दलित समुदाय की युवती का अपहरण किया गया और अपराधियों की अपेक्षा पीड़ित परिवार को ही पुलिस के द्वारा प्रताड़ित किया गया. परिणामस्वरूप परिवार के पांच सदस्यों ने ज़हर खाकर आत्महत्या का प्रयास किया व 4 सदस्यों की मौत हो गई. 26 अप्रैल 2013 को मेवात में दलित महिला को निर्वस्त्र करके घुमाया गया. हिसार ज़िले के भगाना गांव में दलित उत्पीड़न, जींद ज़िले के खेड़ी गांव में एक ही परिवार की तीन लड़कियों की घर में हत्या कर दी गई. 11 जनवरी 2013 को खरखोदा में दलित किशोरी के साथ सामूहिक बलात्कार और 26 मार्च 2013 को झज्जर ज़िले के जहांगीरपुर गांव में दलित महिलाओं को होली पूजन से रोकना, रोहतक ज़िले के अजायब गांव में दलित युवती के साथ सामूहिक बलात्कार, कुरुक्षेत्र में दलित युवती के साथ सामूहिक बलात्कार, सोनीपत के देबडू गांव में दलित महिला से सामूहिक दुष्कर्म, 31 जुलाई 2010 को जींद ज़िले के नंदगढ़ गांव तथा भिवानी ज़िले के गांव देवसर में दलित युवक की हत्या, 10 जनवरी 2013 को फतेहाबाद ज़िले के बनावांली गांव में दलित युवती के साथ सामूहिक दुष्कर्म की घटनाएं की हरियाणा के सभ्यचारी, सदाचारी व संस्कारी समाज के चेहरे पर काले धब्बे हैं.
आप कहेंगे कि ये आंकड़े कहां से लाए गए हैं तो, जनहित कांग्रेस (बीएल) तथा भारतीय जनता पार्टी के नेताओं कुलदीप विश्नोई, डॉ. हर्षवर्धन, प्रोफ़ेसर रामविलास शर्मा, धर्मपाल मलिक, कृष्ण लाल गुर्जर, जय सिंह राणा, प्रोफ़ेसर गणेशी लाल एवं नफे सिंह बाल्मीकि द्वारा राष्ट्रपति के नाम 1 मई 2013 को ज्ञापन के आधार पर यह आंकड़ा दिया गया है.
अत्याचार, की कुछ और अख़बारी कतरनें
भिवानी ज़िले के लोहारहेड़ी गांव में पानी की किल्लत के कारण एक दलित युवक 16 जून 2012 को कुएं से पानी का मटका भरकर घर ले गया. इस पर स्वर्ण जाति के लोगों ने जाति सूचक शब्दों की गालियां, मार-पिटाई की और घर जलाने की धमकी तक दी और यह भी कहा कि यदि पुलिस को शिकायत की तो उसको अंजाम भुगतने होंगे. (दैनिक जागरण, 19 जून 2012, पृ. 3) जींद ज़िले के हथों गांव में स्वर्ण जाति के लोगों के द्वारा 25 वर्षीय अनिल की हत्या करके उसे रस्सी में बांधकर खेतों में जला दिया गया. परंतु हत्या के आरोपियों के खिलाफ पुलिस की कार्रवाई न करने से नाराज़ होकर के 40 दलित परिवारों ने गांव से पलायन किया. (दैनिक जागरण, 29 जून 2012, पृ. 2).
दलित युवक को जि़ंदा जलाकर हत्या (इस्माइलपुर-यमुनानगर) तथा संविधान निर्माता डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की मूर्तियों को तोड़ना व पुतले बनाकर आग लगाना (थाना उकलाना बुड्ढा खेड़ा के दो निवासियों को बाबा साहब भीमराव अंबेडकर के पोस्टर को आग लगाकर वायरल किया (शान-ए-उकलाना, 15 अगस्त 2023) यह एक सामान्य बात है.
हरियाणा में दलितों के विरुद्ध सन 2006 में अनेक अत्याचार के मामले समाचार पत्रों की सुर्खियां बनते रहे. इनमें झाटौली जिला गुड़गांव में विकलांग लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार (3 जनवरी 2006), कैलाना पुलिस स्टेशन गन्नौर के अंतर्गत 13 वर्षीय दलित लड़की का बलात्कार व हत्या (4 फरवरी 2006), महमदपुर- जिला करनाल (14 फरवरी 2006), फरमाना- सोनीपत (22 फरवरी 2006), ढीगमाजरा जिला फतेहाबाद (जुलाई 2006), किला जफ़रगढ़-जींद (1 सितंबर 2006), लिसान गांव-जिला रेवाड़ी (1 सितंबर 2006), दलितों के घरों को जलाना सालवन-जिला करनाल (मार्च 2007), गोहाना कांड दलित बस्ती को जलाना (अगस्त 2005), दूलीना पुलिस चौकी-झज्जर कांड-मॉब लिंचिंग 5 दलित युवाओं को मारना (अक्टूबर 2002) इत्यादि काले धब्बे हैं. फ़रवरी 2003 से मार्च 2007 तक दलित व ऊंची जातियों के संघर्ष में जातियों के मध्य ख़ूनी संघर्ष होते रहे परंतु मुकदमों में बरी होने की संख्या ज़्यादा रही है.
अत्याचार की कहानी, आंकड़ों की ज़ुबानी
दलित वर्गों का सामाजिक और आर्थिक बहिष्कार किया गया है. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो 2017 के अनुसार पूरे भारत में दलितों के सामाजिक बहिष्कार के 63 मामले पुलिस थानों में पंजीकृत हुए. हरियाणा में सबसे अधिक कुचर्चित बहिष्कार का मामला भाटला गांव में हुआ. तीन वर्ष के पश्चात भारत के सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि भाटला गांव के बहिष्कार के मामले का मामले की इंक्वायरी बाहर के पुलिस अधिकारियों से द्वारा की जाए.
सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश हरियाणा के पुलिस के दलितों के प्रति दृष्टिकोण पर प्रश्न चिन्ह लगाता है. अनेक गांवों में दलितों के मंदिरों में प्रवेश पर रोक लगाई गई. वास्तव में यह एक ‘अदृश्य अथवा छुपा हुआ भेदभाव’ है (मानव अधिकार रिपोर्ट, 2006). हरियाणा में दलितों के विरुद्ध होने वाले अत्याचारों में निरंतर वृद्धि हो रही है.
इतिहास में ट्राइबल सोसाइटी में एक ट्राइब दूसरे ट्राइब पर निरंतर मध्य खूनी संघर्ष व हमले होते थे. हरियाणा में इस प्रकार की स्थिति 2007 में भी समाचार पत्रों की सुर्खियां बनती रही. उदाहरण के तौर पर दलितों की बस्तियों पर सशस्त्र हमला (सालवन, जिला करनाल 1 मार्च 2007, फरल (जिला कैथल, 28 फरवरी 2007, व वजीरपुर पटौदी , रोहतक के महम में पक्का मकान बनाने के कारण हमला), दलितों की शादी में घुड़चढ़ी की रस्म अदायगी पर बर्बरता पूर्ण हमला (गांव बाहरी, तहसील असंध,24 मई 2007 व सांजरवास गांव 2017), धमकाला गांव जिला रेवाड़ी में दलित युवती का बलात्कार व युवती द्वारा आत्महत्या, आंगनबाड़ी की दलित महिलाओं को खाना बनाने से रोकना (जोहड़ माजरा, जिला करनाल), दलित महिला व पुरुष सरपंचों के साथ पुलिस चौकी में पुलिस के सामने स्वर्णों द्वारा बर्बरता पूर्ण व्यवहार (रंदौली गांव- जिला करनाल), स्वर्णों द्वारा दलित सरपंच की बर्बरता पूर्ण पिटाई (जिला यमुनानगर) तथा मंदिरों में प्रवेश को रोकना (चाहड़ो गांव यमुनानगर व बीबीपुर ब्राह्माणान), मंदिर निर्माण को रोकना व पिटाई करना (हिसार बालसमंद व बीबीपुर ब्राह्माणान ,काढ़ौली पहलाद पुर गांव-सोनीपत मामूली घटना के कारण दलित बस्ती पर सशस्त्र आक्रमण (24 दिसंबर 2007), जुलाना के गोसाई खेड़ा गांव में बच्चों के विवाद में रामचंद्र नामक दलित की हत्या (हेमंत सिंह, शब्द मोर्चा, करनाल, फुले-अंबेडकर मिशन प्रचार मंच, 2023, प्रथम संस्करण, पृ.171-175).
6 अक्टूबर 2012 को अपनी ही जाति के दो युवकों के द्वारा 10 वर्षीय नाबालिक दलित लड़की के साथ जींद ज़िले के सच्चा खेड़ा गांव में बलात्कार किया गया. हम हर रोज वसुधैव कुटुंबकम अथवा सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास अथवा हरियाणा एक हरियाणवी एक इत्यादि नारे लगाते हैं, परंतु जिस तरीक़े से दलितों के विरुद्ध अत्याचार की घटनाएं बढ़ रही हैं उससे प्रतीत होता है की यह नारे बिल्कुल खोखले और अर्थहीन हैं.
वर्तमान शताब्दी में हरियाणा में दलितों पर होने वाले अत्याचारों के निरंतर वृद्धि दृष्टिगोचर होती है. इसका वार्षिक सिलसिलेवार वर्णन इस प्रकार है- सन् 2000 (117), सन् 2001 (229), सन् 2002 (243), सन् 2003 (217), सन् 2004 (288), सन् 2005 (288), सन् 2006 (283), 2007 (227), सन् 2008 (303), सन् 2009 (380), सन् 2011 (408), सन् 2012 (252), सन् 2013 (493), सन् 2014 (830) केस पुलिस थानों में पंजीकृत हुए. यदि हम सन् 2000 के आंकड़ों के आधार पर देखें तो सन् 2014 में यह संख्या लगभग 7 गुणा है. इसका स्पष्ट तात्पर्य यह है कि कांग्रेस नीत हुड्डा सरकार के कार्यकाल में दलितों पर अत्याचार के मामलों में वृद्धि हुई है और इसमें सन् 2011 तथा सन् 2013 में आंकड़ों के आधार पर ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे राज्य में प्रशासनिक मशीनरी की हालत लगभग लचर थी.
संक्षेप में, सन् 1994 से सन् 2003 तक पुलिस थानों स्थानों में पंजीकृत होने वाले अत्याचारों की संख्या 1,305 थी. सन् 2004 से सन् 2013 तक यह संख्या बढ़ कर 3198 हो गई. अन्य शब्दों में एक दशक में दलितों पर होने वाले अत्याचारों की संख्या में 245% की वृद्धि हुई (टाइम्स ऑफ़ इंडिया 9 अगस्त 2014)
बदली सरकार, पर नहीं बदला सरोकार
ऊपर बताए गए ज़्यादातर आंकड़े हरियाणा में कांग्रेस पार्टी की सरकार के दौरान के थे. पर ऐसा नहीं है कि 2014 में भाजपा सरकार के आने के बाद दलितों की स्थिति में कोई सुधार आया हो. आंकड़ों की मानें तो भारतीय जनता पार्टी के सत्ता में आने के बाद दलितों पर होनेवाले अत्याचार में वृद्धि हुई है. उदाहरण के तौर पर सन् 2013 में सन् 2012 के अपेक्षा 17% वृद्धि थी. जबकि सन् 2014 में 21 दलितों की हत्या के कारण 19% की वृद्धि हुई. सन् 2015 भारतीय जनता पार्टी के सत्ता में आने के बाद दलितों के विरुद्ध अत्याचार के मामलों में कमी दृष्टिगोचर नहीं हुई. दलितों के विरुद्ध अत्याचार के मामले मीडिया के द्वारा प्रदर्शित नहीं किए गए, परंतु भारत सरकार के गृह मंत्रालय की राष्ट्रीय अपराध पंजीकरण शाखा के अनुसार सन् 2015 में दलितों के विरुद्ध 510 मामले, सन् 2016 में 25.29 प्रतिशत वृद्धि के साथ 639 मामले व सन् 2017 में 20% वृद्धि के साथ 765 मामले मामले पुलिस थानों में पंजीकृत हुए. राष्ट्रीय अपराध पंजीकरण शाखा (NCRB) के अनुसार गैर-अनुसूचित जातियों द्वारा अनुसूचित जाति के विरुद्ध अपराध के पंजीकृत मामलों की संख्या सन् 2018 में 961, सन् 2019 में 1086और सन् 2020 में 1210 है. हरियाणा में अनुसूचित जाति के विरुद्ध घटित अपराधों की दर 2020 में बढ़कर 23.7 है. (स्रोत: राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो, भारत में अपराध, 202091)
भारतवर्ष में प्रत्येक राज्य में चाहे वह किसी भी पार्टी के द्वारा शासित हो दलितों के विरुद्ध अत्याचार कम होने की अपेक्षा निरंतर बढ़ रहे हैं. भारतवर्ष के गृह मंत्रालय के राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के अनुसार भारत में सन् 2019 में दलितों के विरुद्ध अत्याचारों के 39961 मामले पुलिस थाना में पंजीकृत हुए थे. परंतु सन, 2021 में यह संख्या बढ़कर 50,900 हो गई अर्थात तीन वर्ष में 11% की वृद्धि हो गई. अखिल भारतीय स्तर पर दलितों के अत्याचारों में 11% की वृद्धि हुई. राज्यों का सिलसिलेवार विवरण इस प्रकार है. राजस्थान में 11% ,उत्तर प्रदेश में11%, हिमाचल प्रदेश में 29%, गोवा में 33%, मध्य प्रदेश में 36%, उत्तराखंड में 46% और जहां हरियाणा के मुख्यमंत्री यह नारा लगाते हैं हरियाणा एक हरियाणवी वहां दलितों के अत्याचारों में 50% वृद्धि हुई है. अन्य शब्दों में अखिल भारतीय प्रतिशत से लगभग 5 गुणा अधिक है. एक लाख संख्या के पीछे 40, लाख से अधिक आबादी वाले राज्य में दलितों के विरुद्ध होने वाले राज्यों की श्रेणी में हरियाणा का रेट 30.8 है. जबकि अखिल भारतीय रेट 25.3 है.
भारतीय जनता पार्टी तथा जननायक जनता पार्टी के गठबंधन के समय सन् 2019 से सन् 2022 तक दलित वर्ग के विरुद्ध ग़ैर-दलित जातियों के द्वारा अपराधों की संख्या में और अखिल भारतीय अपराध दर की अपेक्षा कांग्रेस नीत हुड्डा सरकार से भी कहीं अधिक है, क्योंकि बार-बार दलित विरोधी मानसिकता सोशल मीडिया के द्वारा प्रचारित की जा रही है और सरकार की स्थिति हुड्डा सरकार से भी अधिक लचर प्रकट होती है. हमारा अभिमत यह है कि दलितों के विरुद्ध अत्याचारों को रोकने सभी राज्य सरकारें चाहे वह किसी भी दल के द्वारा शासित हो पूर्णतया असफल है. राजनेताओं के लिए दलित जीवन का कोई महत्व दृष्टिगोचर नहीं होता.
दलित विरोधी अत्याचारों के मामलों में न्याय प्राप्त करना एक चुनौती क्यों?
भारतीय न्यायालय में दलितों के ख़िलाफ़ होनेवाले अत्याचार के मुक़दमों में लगातार वृद्धि हो रही है. सन् 2006 में विभिन्न न्यायालयों में 85,260 थे. सन् 2016 में यह संख्या बढ़कर 1,29,881 हो गई. विवादों में बरी होने वाले आंकड़े भी बढ़ रहे हैं. उदाहरण के तौर पर सन् 2006 में बरी होकर छूटने वाले वालों की संख्या 72% थी जो सन् 2016 में दो प्रतिशत की वृद्धि के साथ 74 %हो गई. विभिन्न न्यायालयों में अपराधियों के बरी होने की संख्या में वृद्धि होने के कारण मुख्य कारण–छानबीन में पुलिस द्वारा जानबूझकर देरी करना, पीड़ित और परिवार सदस्यों को सुरक्षा का अभाव, परिवार को जान का ख़तरा तथा पुलिस द्वारा आईपीसी की धाराओं को उचित तरीक़े से न लगाना हैं. राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के चेयरमैन के अनुसार जून 2019 में एससी/ एसटी वर्गों के विरुद्ध अत्याचार के लगभग 40,000 मुक़दमे लंबित थे.
दलित वर्ग को अत्याचार होने के बावजूद भी न्याय प्राप्त करना बहुत कठिन है क्योंकि:
प्रथम, सामाजिक व राजनीतिक व्यवस्था में दलित कास्ट के विरुद्ध भेदभाव की भावना आज भी निरंतर जारी है.
दूसरा कारण यह है कि दलित आर्थिक तौर पर कमज़ोर होने के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में अधिपत्य प्राप्त भू मालिकों पर आश्रित हैं और वह किसी भी रूप में उनको चुनौती देने में समर्थ नही हैं.
तीसरा, प्रायः देखा गया है कि ग्रामीण क्षेत्र में बाहुबली, धन बली और राजनीतिक दृष्टि से सत्ता प्राप्त व्यक्ति के विरुद्ध यह जानते हुए भी कि अत्याचार हुआ है गवाही देने के लिए तैयार नहीं हैं.
चौथा, सामाजिक भेदभाव और जातिवाद के कारण अपराधियों को अपनी-अपनी जातियों का समर्थन प्राप्त होता है जो अपराधियों के पक्ष में खड़े नज़र आते हैं.
पांचवां, भारतीय पुलिस, नौकरशाही तथा राजनीतिक गठबंधन के कारण पूर्ण राजनीतिक व्यवस्था अपराधियों के शिकंजे में आ चुकी है और यह गठबंधन दलितों, महिलाओं, अल्पसंख्यकों तथा सामाजिक और आर्थिक रूप में कमज़ोर व्यक्तियों के विरूद्ध है.
छठां, पुलिस के द्वारा एफ़आईआर दर्ज करने में आनाकानी करना अथवा देरी लगाना और अपराधी की अपेक्षा पीड़ित को ही प्रताड़ित करने के असंख्य उदाहरण हैं.
सातवां, पुलिस जातिवाद, धन, धर्म अथवा राजनीतिक दबाव के कारण एफ़आईआर दर्ज नहीं करती अथवा दर्ज करते समय आईपीसी की धाराओं को ठीक तरह से नहीं लगाना और तथाकथित इंक्वायरी के आधार पर राजनीतिक पहुंच अथवा रिश्वत के आधार पर मुख्य अपराधी का नाम भी एफ़आईआर से काट दिया जाता है.
आठवां, आम आदमी के लिए पैसे के अभाव के कारण बहुत बेहतरीन वक़ील करना बहुत अधिक कठिन है और उसके बाद दिहाड़ी-काम छोड़ कर बार-बार कोर्ट के चक्कर लगाना यह भी अधिक कष्टदायक होता है.
नौवां, महिलाओं के लिए अत्याचार के विरुद्ध लड़ना और भी अधिक कठिन कार्य है. क्योंकि बाहुबली उनके परिवार के सदस्यों को बार-बार धमकियां देकर भयभीत करने का प्रयास करते हैं और उनको अंजाम घुटने की भी चेतावनी देते हैं.
संदर्भ
https://www.newslaundry.com/2020/03/05/in-indias-villages-upper-castes-still-use-social-and-economic-boycotts-to-shackle-dalits
https://timesofindia.indiatimes.com/india/crimes-against-dalits-rise-245-in-last-decade/articleshow/39904583.cms
https://timesofindia.indiatimes.com/india/crimes-against-dalits-rose-19-in-2014-murders-rose-to-744/articleshow/49488994
https://www.newsclick.in/India-Enters-Amrit-Kaal-Growing-Atrocities-Against-Dalits
जैसा कि हमने देखा दलितों के ख़िलाफ़ बढ़ रहे अत्याचारों की कड़ी कहीं न कहीं उनकी आर्थिक और सामाजिक स्थिति से जुड़ती है. इस श्रृंखला के अगले भाग में हम दलितों की आर्थिक और सामाजिक स्थिति की पड़ताल करेंगे.