हमारे देश में पुरुषों को कंडिशनिंग ही इस तरह की है कि यदि किसी महिला ने उनसे हंस-बोल कर बात कर ली, उनके साथ थोड़ी देर घूम-फिर लिया, सोशल मीडिया पर चैट कर ली, फ़ोन पर बात कर ली या फिर वे किसी भी वजह से देर रात घर लौटती हैं तो अधिकतर पुरुष उन्हें अपने लिए उपलब्ध यानी ‘अवेलेबल’ समझ लेते हैं. इस बात पर क्या सोचती हैं महिलाएं, क्या है उनका रुख़ और क्या चाहती हैं वे इन बातों को अपने शब्दों में शालिनी पांडे ने बख़ूबी ढाला है. उनका नज़रिया जो ‘टीम अफ़लातून’ को पसंद आया, यहां पेश है.
तुमने वन नाइट स्टैंड पर बात की मतलब तुम अवेलेबल हो, रात 11 बजे के बाद ऑनलाइन हो तो अवेलेबल हो, किसी को फ़ोन नंबर दे दिया/बात कर ली तो अवेलेबल हो, खुले आम शराब की बात कर रही हो तो अवेलेबल हो, हंस के बतिया रही हो तो अवेलेबल हो, आगे बढ़ के गले लग रही हो तो अवेलेबल हो. तुम्हारी अधिकतर पोस्ट स्त्रीवादी हैं, माइ बॉडी-माइ चॉइस की हिमायती हो तो मतलब एकदम अवेलेबल हो. सिंगल मदर हो तो अवेलेबल हो, शादी में दिक़्क़त है तो अवेलेबल हो, प्रेम-प्यार इश्क़-मोहब्बत पर भी लिख लेती हो तो अवेलेबल हो, तुमसे फलाने ने बद्तमीज़ी की मतलब तुम अवेलेबल हो. अवसाद का शिकार हो तो कंधों की ज़रूरत होगी यानी अवेलेबल हो. मुझसे तो आज तक ऐसी कोई ओछी बात किसी ने ना की-मतलब तुम ही अवेलेबल हो. स्क्रीनशॉट लगा रही हो तो तुम्हें ही क्यों आए मैसेज? यानी अवेलेबल हो. फ़ेसबुक पर एक साथ इतनी पोस्ट करती हो तुम्हारी तो लाइफ़ नहीं कोई लगता है-वाओ यानी अवेलेबल हो. अनजान लोगों से दोस्ती कर लेती हो यानी अवेलेबल हो, इतना टिपटॉप सज-संवर के रहती हो तो अवेलेबल हो, लिव इन में रह रही हो तो अवेलेबल हो और भी ब्ला ब्ला ब्ला…