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Home सुर्ख़ियों में नज़रिया

गांठ बांध लीजिए, हम ‘अवेलेबल’ नहीं हैं: शालिनी पांडे का नज़रिया

टीम अफ़लातून by टीम अफ़लातून
March 16, 2021
in नज़रिया, सुर्ख़ियों में
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गांठ बांध लीजिए, हम ‘अवेलेबल’ नहीं हैं: शालिनी पांडे का नज़रिया
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हमारे देश में पुरुषों को कंडिशनिंग ही इस तरह की है कि यदि किसी महिला ने उनसे हंस-बोल कर बात कर ली, उनके साथ थोड़ी देर घूम-फिर लिया, सोशल मीडिया पर चैट कर ली, फ़ोन पर बात कर ली या फिर वे किसी भी वजह से देर रात घर लौटती हैं तो अधिकतर पुरुष उन्हें अपने लिए उपलब्ध यानी ‘अवेलेबल’ समझ लेते हैं. इस बात पर क्या सोचती हैं महिलाएं, क्या है उनका रुख़ और क्या चाहती हैं वे इन बातों को अपने शब्दों में शालिनी पांडे ने बख़ूबी ढाला है. उनका नज़रिया जो ‘टीम अफ़लातून’ को पसंद आया, यहां पेश है. 

तुमने वन नाइट स्टैंड पर बात की मतलब तुम अवेलेबल हो, रात 11 बजे के बाद ऑनलाइन हो तो अवेलेबल हो, किसी को फ़ोन नंबर दे दिया/बात कर ली तो अवेलेबल हो, खुले आम शराब की बात कर रही हो तो अवेलेबल हो, हंस के बतिया रही हो तो अवेलेबल हो, आगे बढ़ के गले लग रही हो तो अवेलेबल हो. तुम्हारी अधिकतर पोस्ट स्त्रीवादी हैं, माइ बॉडी-माइ चॉइस की हिमायती हो तो मतलब एकदम अवेलेबल हो. सिंगल मदर हो तो अवेलेबल हो, शादी में दिक़्क़त है तो अवेलेबल हो, प्रेम-प्यार इश्क़-मोहब्बत पर भी लिख लेती हो तो अवेलेबल हो, तुमसे फलाने ने बद्तमीज़ी की मतलब तुम अवेलेबल हो. अवसाद का शिकार हो तो कंधों की ज़रूरत होगी यानी अवेलेबल हो. मुझसे तो आज तक ऐसी कोई ओछी बात किसी ने ना की-मतलब तुम ही अवेलेबल हो. स्क्रीनशॉट लगा रही हो तो तुम्हें ही क्यों आए मैसेज? यानी अवेलेबल हो. फ़ेसबुक पर एक साथ इतनी पोस्ट करती हो तुम्हारी तो लाइफ़ नहीं कोई लगता है-वाओ यानी अवेलेबल हो. अनजान लोगों से दोस्ती कर लेती हो यानी अवेलेबल हो, इतना टिपटॉप सज-संवर के रहती हो तो अवेलेबल हो, लिव इन में रह रही हो तो अवेलेबल हो और भी ब्ला ब्ला ब्ला…

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Tags: choicescontemporary thoughtsdiscriminationdo not judgeequal rightsequalityfemale conditioningfeminismmale conditioningpatriarchal thoughtspatriarchyrespecttreat as a humanwe are not ‘available’women’s issuesअवेलेबलआधुनिक महिलाओं की सोचइन्सानइन्सानियतउपलब्धनारीवादपितृसत्तात्मक सोचपुरुषों की कंडिशनिंगफ़ेमिनिज़्मबराबरीबराबरी का दर्जामहिलाओं के मुद्देवन नाइट स्टैंडसामयिक सोच
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हर वह शख़्स फिर चाहे वह महिला हो या पुरुष ‘अफ़लातून’ ही है, जो जीवन को अपने शर्तों पर जीने का ख़्वाब देखता है, उसे पूरा करने का जज़्बा रखता है और इसके लिए प्रयास करता है. जीवन की शर्तें आपकी और उन शर्तों पर चलने का हुनर सिखाने वालों की कहानियां ओए अफ़लातून की. जीवन के अलग-अलग पहलुओं पर, लाइफ़स्टाइल पर हमारी स्टोरीज़ आपको नया नज़रिया और उम्मीद तब तक देती रहेंगी, जब तक कि आप अपने जीवन के ‘अफ़लातून’ न बन जाएं.

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