मतलब जानती हो कि ये सब करोगी तो अवेलेबल ही मानी जाओगी फिर भी ये सब करती हो तो सौ प्रतिशत, आइएसआई मार्क के साथ यूनिसेफ़, यूनेस्को से प्रमाणित तौर पर अवेलेबल हो, अवेलेबल हो, अवेलेबल हो… हेन्स प्रूव्ड अवेलेबल हो!जानती हो न ये सब तुम? तो करती क्यों हो ये सब? अवेलेबल हो इसीलिए ना, इन लोगों को तुमसे ही तो हिम्मत मिलती है लड़कों/पुरुषों को तुम्हीं ने तो जताया था कि तुम अवेलेबल हो. ये वो जुमले हैं जो मैंने, आपने, हम सब औरतों ने कभी ना कभी ज़रूर सुने होंगे (हमें तो कभी किसी ने कुछ नहीं कहा, मतलब जिन्हें कहा वही अवेलेबल थीं/हैं यह बताने मत आना महिलाओं प्लीज़!).तो बैक टू द पॉइंट, पहली बात ये कि हम महिलाएं हैं, पार्लेजी का बिस्कुट नहीं जो ‘अवेलेबल’ हों.
हम अगर किसी भी मुद्दे पर बातभर कर लें तो हम ‘अवेलेबल’ मान लिए जाएंगे और आपके ये मान लेने पर, आप पर सवाल भी नहीं उठेंगे… भला क्यों? सिर्फ़ इसलिए कि आप आदमी हैं? रात के 11 बजे हम ऑनलाइन हैं ये देखने आप भी तो जग ही रहे थे तो इस आधार पर हमारा कैरेक्टर असैसनेशन ही क्यों? आपका क्यों नहीं? रात पी ली थी तो बहक गया था, ये कहके आप पाक-पवित्र हो लिए और जिसके इनबॉक्स में आप घुसे थे वो छिनाल, क्यों?शादी नहीं ठीक किसी की तो आपको बाबा बनने क्यों जाना है? क्यों तीसरा बनना है? क्यों जानना है कि महिला और उसके पति के बीच संबंध कब बने थे? क्या साबित होगा इससे कि वो अवेलेबल है, आपकी कुत्सित मानसिकता और ज़लील इरादे पूरे करने के लिए?इन सभी सवालों को किसी भी महिला से पूछने से पहले अपने गिरेबान में झांकिए कि आप कितने दूध के धुले हैं? औरतें हमेशा से इज़ी टारगेट हैं, इमोशनल हैं (हां, एक्सेप्शन से इनकार नहीं है मुझे, पर उनका प्रतिशत कम ही है!). इन्सान नहीं सही, महिला तो समझिए उसे, आपके समकक्ष ही है वो भी, हाड़-मांस की बनी एक इन्सान, जिसमें बुराइयां उतनी ही स्वाभाविक हैं जितनी एक पुरूष में. प्रेम में वो भी पिघलती है, समर्पित होती है. यदि कोई नापसंद कर गई हो आपको तो उसका मतलब आपका मेल ईगो हर्ट करना नहीं होता, चुनने के अधिकार का इस्तेमाल करना होता है. बेबाकी से वो किसी भी चीज़ के बारे में अगर बात कर रही तो मतलब वो इन टैबूज़ से ऊपर उठ चुकी है. यदि उसके जीवन में सबकुछ सही नहीं है तो मतलब वो लड़ना, संघर्ष करना सीख रही है. वो कहते हैं ना कि आप कुछ भी करें तो आपकी गलतियां और रास्ते में आई चुनौतियां ये बताती हैं कि आप काम कर रहे थे. तो ये मानिए कि वो अपने आसपास खींचे गए गोले से या तो निकलना चाह रही या उस गोले को बड़ा कर रही है-सांस लेने लायक…आप पुरुष हैं और इस पितृसत्तात्मक दुनिया में ज़रा प्रिविलेज्ड भी हैं तो दोस्त बनिए, हाथ थामिए या फिर चाहें तो पीछे हम हैं-ये आश्वासन भर दे दीजिए. ना तो मैं प्रेम करने से मना कर रही ना सेक्स को टैबू बना रही बस इतना कह रही हूं कि :
• हमें ‘अवेलेबल’ का टैग देना बंद कीजिए. हम इंसान हैं, जीती-जागती महिलाएं हैं, सामान नहीं हैं!
• पॉलीगमी या एक्स्ट्रा मैरिटल अफ़ेयर भी चरित्र का मसला नहीं है. ये भरोसे, कम्फ़र्ट, पारदर्शिता, संतुष्टि और ख़ुशी आदि का मसला है.
• सेक्स पर बात करने भर से न तो औरत सेक्स के लिए अवेलेबल है ना ही कैरेक्टरलेस. यह चरित्र का पैमाना नहीं है, नहीं होना चाहिए.
• अपनी मर्ज़ी से लिव-इन में रहने वाली, अपना पार्टनर चुनने वाली या जीवन अपनी शर्तों पर जीने वाली औरतें ना तो रंडी हैं, ना छिनाल और ना ही कोई सामान. तो महिलाओं को सामान की तरह ‘अवेलेबल’ मानना बंद कीजिए. उसे देवी समझने की कोई ज़रूरत नहीं है. बस इंसान समझिए, उतना ही काफ़ी है. उसकी पूजा करने की कोई ज़रूरत नहीं है. हां, उसका सम्मान करने की ज़रूरत है, अपने से ऊपर नहीं मानिए, केवल अपने बराबर मानना है उसे.
बस इतना ही…