‘आज़ादी’ ये एक ऐसा शब्द है, जिसके मायने बहुत गहरे हैं, क्योंकि आज़ादी के साथ आपको केवल अधिकार ही नहीं मिलते, बल्कि कुछ कर्तव्य भी तो शामिल होते हैं. और जब यह शब्द यानी आज़ादी रिश्तों के बीच आए तो यह पनघट की वह कठिन डगर हो जाती है, जिसके एक तरफ़ कुआं तो दूसरी तरफ़ खाई होती है. ज़रा सी सावधानी हटी और रिश्तों के दरकने की घटना घटी. आइए, कुछ उदाहरणों से समझते हैं कि क्या हैं वैवाहिक रिश्तों में पति और पत्नी की आज़ादी के मायने और यह भी कि अपने हिस्से की आज़ादी का हक़ कैसे हासिल किया जा सकता है?
आप चाहे लव मैरिज करें या अरेंज्ड मैरिज. विवाह में पति-पत्नी बनते ही और भी कई रिश्ते आ जुड़ते हैं, जिनका ख़्याल रखा जाना वैवाहिक रिश्तों को मज़बूत बनाने के लिए ज़रूरी होता है. लेकिन इस सब के बीच आपकाअपने व्यक्तित्व की स्वतंत्रता को बनाए रखना भी बेहद ज़रूरी है, क्योंकि यदि आपने ख़ुद को इन रिश्तों को संवारने में ही झोंक दिया तो कुछ समय बाद आप ख़ुद को खो देंगे/देंगी.
दरअसल, रिश्तों को अच्छी तरह निभाने में सही संवाद कायम करना यानी बातचीत यानी कम्युनिकेशन आपका जितना साथ देगा, उतना कोई और स्किल नहीं दे पाएगी. आज के समय में सभी लोग पहले की तुलना में ज़्यादा शिक्षित हैं और इंटरनेट व सोशल मीडिया ने उन्हें बहुत जागरूक भी बना दिया है. ऐसे में कई बार जिन बातों को पहले के समय की महिलाएं आज़ादी का हनन मानकर कह भी नहीं पाती थीं और अपने विरुद्ध अन्याय को सहते हुए अपने हक़ की मांग तक नहीं कर पाती थीं, वैसी स्थिति आज के समय की महिला की नहीं है. अपने लिए आज़ादी पाने का सबसे अच्छा तरीक़ा है अपनी बात को कुशलता से सामने वाले को समझाना और यदि आपने यह काम अच्छे से कर लिया तो आपकी आज़ादी आपसे कोई नहीं छीन सकता.
शादी-ब्याह के मामले में ‘आज़ादी’ छिनने की बात पुरुषों के साथ बहुत कम ही होती है, पर इसका यह मतलब नहीं है कि उन्हें अपना स्पेस या अपनी आज़ादी नहीं मिलनी चाहिए. आगे हम जो बिंदु उठा रहे हैं, उनमें पुरुषों की चर्चा शायद थोड़ी कम हो, क्योंकि वे शादी के बाद अपने ही घर में रहते हैं अत: आज़ादी छिनने का उतना ख़तरा उन्हें नहीं होता, लेकिन होगी ज़रूर.
आप दोनों ही कामकाजी हैं: हमारे देश में पुरुष तो घर से बाहर जाकर हमेशा से काम करते रहे हैं, लेकिन महिलाओं को अपने पैरों पर खड़ा होने का यह सुख पिछले कोई 100 वर्षों में ही मिला है और अधिकतर को तो अब तक नहीं मिला है. यदि कोई महिला कामकाजी है तो शादी के बाद उसका अपना काम जारी रखना उसकी ‘आज़ादी’ का हिस्सा है. यह उसका हक़ है, जो शादी के बाद उससे नहीं छीना जाना चाहिए. अत: बेहतर होगा कि महिलाएं शादी से पहले ही अपने भावी पति व ससुराल के लोगों से इस बारे में बात कर लें कि वे अपना काम नहीं छोड़ेंगी. अपने पैरों पर खड़े रहना आज़ादी का पहला क़दम है और वैवाहिक रिश्ता कोई जेल नहीं है, जहां जाने के लिए अपनी आज़ादी की तिलांजली देनी पड़े.
जिस तरह पुरुष अपने पसंद का काम कर सकते हैं, महिलाओं को भी इस बात की आज़ादी होनी चाहिए कि वे भी अपने पसंद का काम कर सकें, भले ही उन्हें काम के सिलसिले में बाहर जाना पड़ता हो या फिर वे देर रात घर आ पाती हों. पर यहां भी बेहतर यही होगा कि विवाह से पहले महिलाएं अपने होने वाले पति व उनके परिवार को इस बारे में खुलकर बता दें, ताकि बाद में उन्हें यह महसूस न हो कि उनकी आज़ादी का हनन हो रहा है.
पहनने-ओढ़ने की टोक: हमें नहीं लगता कि कभी किसी पुरुष से उसके ससुराल या मायके में यह कहा जाता है कि वह कैसे कपड़े पहने, लेकिन महिलाओं को इस तरह की नसीहत हमेशा दी जाती है, फिर चाहे वह उनका अपना घर हो या ससुराल. ज़ाहिर है, यह उन्हें अपनी आज़ादी के छिन जाने का एहसास देता ही है. लेकिन यहां भी महिलाएं अपने ससुराल वालों के साथ बेहतर कम्युनिकेशन के साथ डील कर सकती हैं. जैसा कि मुंबई की मेघा ने किया. वे कहती हैं, ‘‘जब मैं ससुराल जाती हूं तो सलवार सूट जैसे भारतीय कपड़े पहन लेती हूं, लेकिन जब मेरे सास-ससुर यहां आते हैं तो वह कपड़े पहनती हूं, जिसमें ऑफ़िस जाते हुए या काम करते हुए मैं सहज रहूं. मैंने शादी के बाद ही अपनी सास से इसके बारे में बात कर ली थी और चूंकि मैंने पहल की थी, उन्होंने इस बात को सहजता से स्वीकार कर लिया. वे भले ही जॉब न करती हों, लेकिन पढ़ी-लिखी हैं और इस बात को समझती हैं कि मैं कहां, क्या पहनूं ये मेरा चयन होना चाहिए,’’ यह बताते हुए वे कहती हैं, ‘‘पर मेरी यह आज़ादी मेरे भीतर कर्तव्य की भावना भी लाती है और मैं हमेशा कोशिश करती हूं कि मैं जो पहनूं, वह सलीकेदार हो. और मेरे हिसाब से यह बात तो हर महिला सोचती है.’’
यदि महिलाएं शादी के बाद जॉइंट फ़ैमिली में जा रही हों तब भी उन्हें चाहिए कि वे अपने पहनावे को लेकर पहले ही अपने ससुराल वालों से बात कर लें, उन्हें कम्युनिकेट कर दें, क्योंकि वे पूरी ज़िंदगी किसी और के पसंद के कपड़े पहनकर नहीं बिता सकतीं. यक़ीनन ये उनकी आज़ादी का हनन होगा. अत: पहले से बात कर लेना आपकी आज़ादी को बनाए रखेगा.
मी टाइम: शादी के बाद मी टाइम पाने की जद्दोजहद सभी के जीवन में आती है. महिलाओं के जीवन में कुछ ज़्यादा. लेकिन कई महिलाएं अपने पति को भी दमघोंटू से प्यार के नाम पर इस मी टाइम से वंचित कर देती हैं. दरअसल, ख़ुद के साथ बिताया गया समय यानी मी टाइम सभी के लिए ज़रूरी होता है, इससे उन्हें अपने बारे में सोचने का समय मिलता है, ख़ुद को जानने का समय मिलता है और इसके बाद वे अपने परिजनों से ज़्यादा कनेक्टेड महसूस करते हैं. यदि मी टाइम न मिले तो हर व्यक्ति खीझा खीझा सा रहता है.
कोलकाता की रेशम साहा बताती हैं, ‘‘मेरी लव मैरिज है. शादी से पहले हमने तीन वर्षों तक साथ समय बिताया. इसी बीच मेरे पति ने मुझसे साफ़-साफ़ बात कर ली थी कि वे वीकेंड्स को फ़ुटबॉल खेले बिना नहीं रह सकते. हम दोनों ने तय कर लिया था कि रविवार को जब वे फ़ुटबॉल खेलने के लिए जाएंगे तो मैं उन्हें रोकूंगी नहीं, बल्कि ख़ुद अपनी सहेलियों से मिलने चली जाऊंगी, शॉपिंग करूंगी या फिर किताबें पढ़ूंगी,’’ कुछ रुक कर वे कहती हैं, ‘‘आप शायद ही यक़ीन करें कि हमारे बीच इस बात को लेकर कभी झगड़ा नहीं हुआ कि वे संडे को फ़ुटबॉल खेलने क्यों जाते हैं, बल्कि कई बार तो मैं ख़ुद ही उन्हें स्टेडियम तक ड्रॉप करने जाती हूं, वहीं से अपने कामों के लिए निकल जाती हूं. उनकी इस खेलने की आदत से उनके बचपन के दोस्त भी आज तक कनेक्टेड हैं और हमारा दोस्तों का दायरा बढ़ा ही है.’’
अपनी-अपनी ज़िम्मेदारी: जिस तरह किसी लड़के के माता-पिता उसे पढ़ाकर लायक बनाते हैं, बिल्कुल उसी तरह किसी लड़की के माता-पिता भी उसे पढ़ाकर लायक बनाते हैं. तो जब बात अपने माता-पिता की देखभाल की हो तो जितना लड़कों का फ़र्ज़ होता है, उतना ही कामकाजी लड़कियों का भी फ़र्ज़ होता है कि वे अपने-अपने माता-पिता की देखभाल पर अपनी आय को ख़र्च कर सकें, ज़रूरत हो तो उनके पास जा सकें, रह सकें. लेकिन चूंकि पहले हमारे यहां ऐसी कोई परिपाटी नहीं रही है, महिलाओं को इस समस्या से दो-चार होना पड़ता है कि वे अपने माता-पिता की देखभाल कर सकने की इस आज़ादी को शादी के बाद खो न दें. पर आपको ऐसा करने की ज़रूरत नहीं है. इस आज़ादी को हमेशा बनाए रखें. इसके लिए यदि आपने शादी से पहले इस बारे में अपने भावी साथी और उसके परिजनों से बात कर लें. यदि आपने बात नहीं की है तो भी इस मामले में स्टैंड लेने से न चूकें और साफ़ बता दें कि ये आपका कर्तव्य है और आप इसे ज़रूर निभाएंगी.
यही नहीं, यदि आप पुरुष हैं तो आपको आगे बढ़कर अपनी पत्नी की इस ज़िम्मेदारी में साथ देना चाहिए, क्योंकि आपकी पत्नी आपके साथ रहने वाले आपके माता-पिता की देखरेख करती है तो यह पति का भी कर्तव्य है कि वह अपनी पत्नी के माता-पिता की देखभाल में उसकी मदद करे.
दरअसल, वैवाहिक रिश्तों में आज़ादी पाना और उसको निभाना मुश्किल नहीं है यदि आप अपने कम्युनिकेशन स्किल को, सही टोन और सही मैसेज के साथ सामने वाले (जिसमें आपका साथी और ससुराल वाले शामिल हैं) तक पहुंचा सकें.
फ़ोटो साभार: पिन्टरेस्ट