हमारा देश भारत, जहां होश संभालते ही मैंने जाना और पाया कि यह एक उदार, विविधता से भरा और बड़े दिल वाला मुल्क़ है. इस बात को मैंने अपने जीवन में कई बार दिल से भी महसूस किया कि वाक़ई हमारा देश उदार दिल लोगों से भरा है, लेकिन अब, जबकि ये छवि टूट रही है, यह देश से सच्चा प्रेम करने वाले कई देशवासियों का दिल भी तोड़ रही है. इसी के बारे में बात कर रहा है भगवान दास का ये नज़रिया.
वर्ष 1998 में मशहूर फ़िल्म अभिनेता दिलीप कुमार को पाकिस्तान की सरकार ने अपना सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘ निशान ए इम्तियाज़’ देने की घोषणा की थी. दिलीप साहब मुंबई में रहते थे, घोषणा होने के बाद से ही शिवसेना के लोगों ने उनसे सम्मान ठुकरा देने को कहा और ऐसा न करने पर उनका विरोध करने की बात कही. दिलीप साहब को शिवसेना का रुख़ मालूम था, लेकिन ये भी एक सच्चाई थी कि उनकी पैदाइश पार्टीशन के पहले पेशावर, पाकिस्तान की थी और इसीलिए उनका पाकिस्तान से लगाव लाज़मी था. पाकिस्तान के लोग भी दिलीप साहब को दिलोजान से चाहते थे, चाहते हैं, इसमें कोई शक़ नहीं था और कोई शक़ नहीं है.
दिलीप साहब पसोपेश में पड़ गए, बहरहाल उन्होंने प्रधानमंत्री बाजपेयी से मशवरा किया तो बाजपेयी जी उन्हें कहा कि आप जाइए और सम्मान स्वीकार कीजिए. आप कलाकार हैं और कलाकारों को सीमाओं में बंधा नहीं जा सकता और वैसे भी आपकी पैदाइश पाकिस्तान की है इस तरह तो आप दोनों मुल्क़ों के हैं. दिलीप साहब पाकिस्तान गए उन्होंने वो सम्मान स्वीकार किया. हां, इसके लिए उन्हें अपने देश में थोड़ी-बहुत लानत-मलामत तो झेलनी पड़ी, लेकिन इस बात का कोई बहुत बड़ा मुद्दा नहीं बना.
आज ये कहानी इसलिए याद आ गई कि अभी हाल में ही भारतीय कलाकार दिलजीत दोसांझ की फ़िल्म सरदारजी 3 रिलीज हुई है, इस फ़िल्म में पाकिस्तानी कलाकार हानिया आमिर ने भी काम किया है. बस फिर क्या था, हमारे देश का बायकॉट गैंग सक्रिय हो गया. दिलजीत को लानत और गालियां मिलनी शुरू हो गईं. कोई कह रहा है दिलजीत को बैन कर दो, कोई कह रहा है दिलजीत ग़द्दार है तो कोई कह रहा है कि उसकी नागरिकता रद्द कर दो. यानी एक बंदा केवल एक कलाकार के साथ काम क्या कर लेता है, लोग उसके ख़ून के प्यासे हो जाते हैं.
बहरहाल, पब्लिक के दबाव में भारत में दिलजीत की यह फ़िल्म रिलीज़ नहीं हो रही है. लेकिन आपको बता दें कि फ़िल्म पाकिस्तान में रिलीज़ हो गई है. लोग फ़िल्म का लुत्फ़ ले रहे हैं और फ़िल्म एक बड़ी सफलता की और बढ़ रही है. भारत और पाकिस्तान में तनाव काफ़ी पुराने समय से चल रहा है और अभी हाल के समय में इसमें इज़ाफ़ा ही हुआ है, लेकिन ग़ौरतलब बात ये है कि इसके बावजूद भी पाकिस्तान ने इस भारतीय फ़िल्म को बैन नहीं किया. शायद पाकिस्तान के लीडर कलाकारों को सीमाओं में नहीं बांधना चाहते. इसके उलट भारत में इस फ़िल्म को अभी तक रिलीज़ की अनुमति नहीं मिली है, जबकि ये एक भारतीय फ़िल्म है.
मैंने जब से होश संभाला है यही सुना और समझा है कि भारत एक उदार, विविधता से भरा और बड़े दिल वाला मुल्क़ है और इसके बरक्स पाकिस्तान एक कट्टरपंथी और छोटी सोच का मुल्क़ है. लेकिन दशकों की कट्टरता ने पाकिस्तान को विश्व पटल पर काफ़ी पीछे धकेल दिया है और वो शायद महसूस करता है कि अगर उसे आगे बढ़ना है और एक सफल मुल्क़ बनाना है तो उसे कट्टरता को छोड़ कर उदार बनाना होगा और अपने समाज को वैज्ञानिक सोच पर आधारित समाज बनाना होगा.
इसके विपरीत भारत, जो अब तक एक उदार और समावेशी मुल्क था, वो इसके ठीक उल्टे रास्ते पर चल पड़ा है. ऐसे में आप ख़ुद ही सोचिए कि हमारा अंजाम क्या होगा?