जिस सामाजिक वर्ग की सबसे ज़्यादा चिंता जताई जाती है, वह है दलित. इतनी चिंताओं और योजनाओं के बावजूद उसकी स्थिति में उस स्तर का सुधार नहीं दिखता, जितना हो जाना चाहिए था. सामाजिक चिंतक, लेखक और दयाल सिंह कॉलेज, करनाल के पूर्व प्राचार्य डॉ रामजीलाल भारत में दलितों की स्थिति और व्यथा के साथ-साथ समाधान से संबंधित लेखों की श्रृंखला ले आए हैं. आज वे बताने जा रहे हैं आख़िर किन लोगों को दलित कहा जाता है?
इतिहास के पन्नों में दलितों की खोज
भारत में जातिवाद का इतिहास हज़ारों साल पुराना है. ऋग्वेद के अनुसार भारत में चार वर्ण-ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र हैं. शुद्र का अर्थ ‘नौकर अथवा अछूत’ है. शुद्र वर्ण की तुलना व्यक्ति के शरीर के पैरों से की गई है. हज़ारों वर्ष पुरानी व्यवस्था धीरे-धीरे विभिन्न जातियों, उप-जातियों, गोत्रों, धर्मों, मतमतांरों बदलती चली गई. इस समय भारत में अनुसूचित जातियों की संख्या 1108, अनुसूचित जनजातियों की संख्या 730 (जनगणना सन् 2011) तथा पिछड़े वर्गों की संख्या 5013 है.
समय के कालचक्र के अनुसार ‘शुद्र’,’अनुसूचित जाति’ अथवा ‘वंचित जाति’ की शब्दावली में भी परिवर्तन होता चला गया. ऐतिहासिक दृष्टि से डॉ. भीमराव अंबेडकर के अनुसार हिंदू धर्म के लिए पहले ब्राह्मणवाद का प्रयोग किया जाता था. परंतु जब ब्राह्मणवाद तथा बौद्ध धर्म में वर्चस्व के लिए संघर्ष हुआ तो लगभग 400 ईसवी में भारतीय समाज में ‘अस्पृश्यता’ का उदय हुआ और यह व्यापक तौर पर समाज में फैल गई. ङॉ. अंबेडकर ने आगे लिखा है कि यदि कोई ब्राह्मण हिंदू पुजारी दलित जातियों के साथ मित्रता स्थापित करने का संदेश देता था अथवा उनके अधिकारों के लिए संघर्ष करता था तो उसे ब्राह्मण जाति से बहिष्कृत कर दिया जाता था. इस संदर्भ में उन्होंने भक्ति काल के ब्राह्मण पुजारी एकनाथ का वर्णन किया है जिसको ब्राह्मण समाज ने बहिष्कृत कर दिया था, क्योंकि वह दलित वर्गों के साथ मित्रता और उनके अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहा था. 19वीं शताब्दी में महाराष्ट्र के महान समाज सुधारक ज्योति राव फुले ने हिंदू धर्म के ‘बहिष्कृत, बिखरे हुए अथवा टूटे वर्गों’ के लिए 1880 के दशक में ‘दलित’ शब्द का प्रयोग किया था.
शुद्र से अनुसूचित जाति कहलाने तक का सफ़र
पिछली शताब्दी में ‘शुद्र’ वर्ग को सन 1935 से पूर्व ‘डिप्रेस्ड क्लासेज’ के नाम से पुकारा जाता था. दलित शब्द का आधिकारिक प्रयोग ब्रिटिश राज में 1935 से पूर्व जनगणना के लिए किया गया है. इसके पश्चात ङॉ. भीमराव अंबेडकर ने ‘दलित’ अथवा ‘अछूत’ अथवा ‘बहिष्कृत वर्ग’ इत्यादि शब्दों का प्रयोग किया और ‘बहिष्कृत भारत’ नामक समाचार पत्रिका का संपादन भी किया. तत्पश्चात महात्मा गांधी ने भक्ति कालीन संत-कवि संत नरसिंह मेहता के प्रभाव के कारण सन् 1933 में ‘हरिजन’ शब्द का प्रयोग किया और ‘हरिजन’ नामक पत्रिका का संपादन भी किया. भगत सिंह (विद्रोही छद्म उपनाम) का जून, 1928 के ‘किरती’ में ‘अछूत का सवाल’ नामक लेख प्रकाशित हुआ. इस लेख में भगत सिंह ने अछूत अथवा दलित के स्थान पर ‘असली सर्वहारा’ (Real Proletariat–असली दरिद्रतम श्रमिक वर्ग) शब्द का प्रयोग किया.
दलित शब्द के प्रयोग के लिए क्षेत्रीय आधार पर भी कुछ अंतर विद्यमान है. दक्षिण भारत में दलित के स्थान पर ‘आदि द्रविड़’, ‘आदि कर्नाटक’ इत्यादि शब्दों का प्रयोग किया जाता है. परंतु सन् 1917 में राजनेताओं के द्वारा अपनी राजनीतिक पहचान के लिए और दलित वर्ग को संगठित करने के लिए दलित के स्थान पर ‘मूल निवासी’ शब्द का प्रयोग भी किया है. उधर दूसरी ओर महाराष्ट्र में साहित्यकारों के द्वारा ‘दलित साहित्य’ की रचना करके साहित्य के इतिहास में एक नया आयाम ही नहीं जोड़ा बल्कि एक दिशा तथा पथ प्रदर्शक का काम भी किया. सन् 1989 में भारत सरकार ने अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों (अत्याचार निवारण) अधिनियम 1989 के शीर्षक में ‘अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों ‘ का प्रयोग किया. सन् 2018 में मुंबई हाई कोर्ट के द्वारा दलित के स्थान पर ‘अनुसूचित जाति’ शब्द का प्रयोग करने के लिए केंद्रीय सरकार को एडवाइजरी जारी करने का आदेश दिया. भारत सरकार के सूचना और प्रसारण मंत्रालय (I&B मंत्रालय) ने सितंबर 2018 में मीडिया चैनलों सहित सभी के लिए एडवाइजरी जारी की. इस एडवाइजरी के अनुसार “दलित” शब्द की अपेक्षा ‘अनुसूचित जाति’ शब्द का प्रयोग किया जाए.
देश के अलग-अलग हिस्सों में दलित पहचान और चेतना
डॉ. भीमराव अंबेडकर के विचारों से विश्व के वंचित वर्ग के लोग प्रेरणा ग्रहण करते हैं और करते रहेंगे. डॉ. भीमराव अंबेडकर ने अपने जीवन काल में 64 विषयों पर विस्तार पूर्वक लिखा है. अंबेडकर की जातिवाद और वर्ण व्यवस्था से संबंधित विश्व प्रसिद्ध पुस्तक “जाति का उच्छेद” (एनीहिलेशन ऑफ कास्ट, 1937) है. जातिवाद और वर्ण व्यवस्था के संबंध में उनकी अन्य पुस्तकें ‘भारत में जातियां और उनका मशीनीकरण (1916)’, ‘श्री गांधी एवं अछूतों की विमुक्ति’ (1942), ‘कांग्रेस और गांधी ने अछूतों के लिए क्या किया’? (1945), ’अछूत कौन और कैसे?’ (1948) मुख्य हैं. डा. अंबेडकर के अनुसार ‘छुआछूत ग़ुलामी से भी बदतर है’. जातिवाद और वर्ण व्यवस्था के कारण उत्पन्न अस्पृश्यता को संकुचित, अमानवीय, अवैज्ञानिक, अनैतिक, विभाजक तथा संकीर्ण माना है.
उधर उत्तरी भारत -हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश में दलित वर्गों के साथ ‘दलित’, ‘हरिजन’,’अनुसूचित जाति’ इत्यादि का प्रयोग किया जाता है. हरियाणा में विशेष तौर से दलित के साथ-साथ दलित वर्ग की जातियों का जैसे चमार, मोची, भंगी, जमादार, वाल्मीकि इत्यादि शब्दावली का प्रयोग होता है. केवल यही नहीं अपितु ग्रामीण क्षेत्रों में ‘कमीन’, ‘नीची जातियां’ इत्यादि शब्द का प्रयोग भी किया जाता है. हरियाणा के दलित जातियों के द्वारा ‘मूल निवासी’, ‘मूल भारतीय’ इत्यादि शब्दावली भी आजकल सोशल मीडिया पर दृष्टिगोचर होती है. सारांश में दलित वर्ग के लिए अछूत अथवा अछूत जाति का प्रयोग एक सामान्य बात है. यद्यपि जातिसूचक शब्दावली (चमार, मोची, भंगी) को ग़ैर क़ानूनी और आराधिक माना जाता है. इसके बावजूद भी ग्रामीण क्षेत्र में गली और मोहल्लों के नाम जातियों के नाम पर हैं. परंतु इस आधार पर कोई संघर्ष अथवा हिंसा नहीं होती. पंजाब में चमार जाति के लोगों का उद्घोष ‘गौरव से कहो, हम चमार हैं’ तथा वहां ‘मुंडे जट्टा दे’ की तर्ज पर ‘मुंडे चमारा दे’ बहुत प्रसिद्ध है. इस गाने ने चमारों सहित अन्य दलित जातियों में चेतना उत्पन्न की है. यद्यपि हरियाणा, राजस्थान और यूपी में इस प्रकार की चेतना का अभाव है.
इस श्रृंखला के अगले लेख में हम उत्तर भारत, विशेष रूप से हरियाणा में दलितों की स्थिति के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे.
संदर्भ
* दैनिक ट्रिब्यून (चंडीगढ़). 27 फरवरी 2021. पृष्ठ 8
* https://www.krantidoot.in/2016/12/The-question-of-the-untouchables.html
* डॉ.रामजीलाल, वंचित अनुसूचित जातियों के संदर्भ में डॉ भीमराव अंबेडकर का दर्शन: एक पुनर्विचार व वर्तमान संदर्भ में प्रासंगिकता
https://samajweekly.com/dr-bhimrao-ambedkar-in-the-context-of-deprived-scheduled-castes/
* सुखदेव थोराट कथा निधि सदाना सभरवाल (संपादित), दलित शक्तिकरण सामाजिक और आर्थिक दृष्टिकोण, (सेज़ भाषा, नई दिल्ली, 2019
* वंचित समाज की विसंगतियों का विवेचन, पुस्तक समीक्षा, दैनिक ट्रिब्यून, चंडीगढ़, 20 अक्टूबर 2019, पृ. 6