इन कविताओं में आप सीधे स्त्री के संसार में झांक सकते हैं. इन्हें पढ़ते हुए जान सकते हैं कि अपने आसपास के सभी लोगों का जीवन संवारते हुए, ख़ुश रहते और मुस्कुराते हुए भी कई बार कितना रीता रहता है महिलाओं का मन. जैसे अनकहे ही ये कविताएं आग्रह करती हैं कि हम स्त्री को इस तरह समझने की कोशिश करें कि वह सही मायनों में प्रसन्न रह सके.
स्त्रियों का संसार
हम स्त्रियों का
अपना एक संसार है
अद्भुत, अतुलनीय
और विस्मयकारी भी
तुम्हारे बनाए विश्व के भीतर
हमने एक अनोखी दुनिया रच ली है
जिसमें कल्पना और वास्तविकता के
रंगों को निरूपित कर
सृजित किया है, नया जीवन
हमारे इस जीवंत संसार में
हम हंसती-खिलखिलाती हैं
जी भरकर मुस्कुराती हैं
और तुम्हारे संसार में गुमसुम वापसी करती हैं
पनघट पर फूलों, तितलियों से खेलती हैं
पर घर दबे पांव लौटती हैं
बसंत के दस्तक देते ही
सरसों के खेतों में
यूं ही उड़ा देती हैं अपनी चूनर
और समेट लेती हैं
प्रेम के गहरे रंग अपने भीतर
आत्मसात कर लेती हैं जीवन का उल्लास
और घूंघट ओढ़ देहरी के भीतर पांव धरती हैं
एक दूजे के स्वर से स्वर मिला
जब गाती हैं व्रत त्योहारों के गीत
तो खिलखिलाती हैं हमारी चूड़ियां
नृत्य करती हैं पायल
पर तुमसे कुछ कहने को
सकुचाए सहमे स्वर में बोलती हैं
अब तो समझो
आख़िर क्यूं रचा है
हमने अपना यह अलग संसार?
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आधा-अधूरा मन
गृहिणी का
आधा–अधूरा, अनमना-सा मन
और थकन से परिपूर्ण तन
किफ़ायत से सहेजे रहता है
अपराधबोध की ऊष्णता
प्रेमपगी स्निग्धता
स्नेहबोध की आर्द्रता
वात्सल्य की मृदुता
धरती तुल्य उदारता
अंतर्व्यथा की तपन
अपनत्व प्रमाणित करने की लगन
आवेश भरा असंतोष
स्वयं अपना ही समर्थन
ना पाने का रोष
सब कुछ संवारने का लोभ
मन का जीवंत क्षोभ
बोझिल पलकें
स्मृतियों का भार, पर
हर भाव नेपथ्य में धकेल
वह जीती है
यांत्रिक भावशून्यता को.
फ़ोटो: पिन्टरेस्ट