केवल विश्व पर्यावरण दिवस के दिन चंद बातें लिखकर हम पर्यावरण को नहीं बचा सकते. हम जिस तरह अपने पर्यावरण को प्रदूषित कर रहे हैं, उस तरह तो पर्यावरण को स्वस्थ और स्वच्छ रख पाना संभव नहीं है. लेकिन जानीमानी लेखिका लक्ष्मी शर्मा बता रही हैं कि कैसे छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखकर हममें से हर एक व्यक्ति पर्यावरण को संरक्षित करने में अपनी भूमिका निभा सकता है.
पर्यावरण से प्रेम करना चाहते हैं तो पर्यावरण बचाने में लगे बड़े-बड़े नामों की तरह आपको प्रदर्शन करने की या इन प्रदर्शनों में शामिल होने की क़तई ज़रूरत नहीं है. रोज़मर्रा के जीवन में इन छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखकर आप सचमुच एक बड़े पर्यावरण योद्धा बन सकते हैं और इससे आपको मिलेगा दुनिया का सबसे बड़ा सुख-आत्मसंतुष्टि और सुकून. तो विश्व पर्यावरण दिवस पर पेश हैं अमल में लाने जैसी कुछ खरी बातें…
ज़रा-से गन्दे बन जाएं: पर्यावरण को बचाना है तो बार-बार नहाना, गमकते साबुन, कीटाणुरोधी लोशन, शैम्पू, कंडिशनर, डिओडोरेंट का उपयोग कम करना होगा. दिन में कई बार कपड़े बदलने, उन्हें झागदार डिटर्जेंट, क्लोद सॉफ़्टनर, क्लोद फ्रेगरेंटिव से धोने से बचना होगा.
साफ़-सुथरा आंगन, धुल कर झूमते पौधे, नहाई हुई कार-बाइक कल हमारे बच्चों के लिए प्यासे मरने का कारण बनेगी. रूम फ्रेशनर, टॉयलेट फ्रेशनर सब चोंचले हैं. हर समय की डस्टिंग, महंगे फ़िनाइल, सफ़ाई-उपकरण आपको माटी और माटी से उपजे जीवन से दूर करते हैं. ज़रूरत से ज़्यादा सफ़ाई आपको प्रेम की जगह हिकारत करना सिखाती है. हर वक़्त हाथ धोना (अभी कोरोना काल में ज़रूर धोएं!) आपकी त्वचा-विकार और मानसिक अस्थिरता का कारण बन सकता है.
जो बर्तन पोंछ कर रखा जा सकता है उसे धोने से बचिए, पानी बचेगा. जो बर्तन धोकर रखा जा सकता है उस पर साबुन लगाने से बचिए, पानी के साथ केमिकल पेट में जाने से बचेगा.
थोड़े आदिम बन जाएं: गैजेट्स के नवीनतम मॉडल ख़रीदने की सनक से बचें. जब तक चले अपना पुराना फ़ोन, लैपटॉप, फ्रिज, एसी, माइक्रोवेव, गाड़ी आदि को उपयोग में लें. जहां काम पंखे से चल सकता है वहां कूलर न चलाएं और जहां कूलर से चल सकता है वहां एसी न चलाएं. प्रोसेस्ड फ़ूड, परफ़्यूम, सैनिटाइज़र, टिश्यू पेपर, टॉयलेट पेपर का उपयोग यथासंभव कम करें. टिश्यू पेपर की जगह नए या पुराने कपड़े के नैपकिन और सैनिटरी पैड की जगह रीयूज़ेबल सैनिटरी कप काम में लें. जब ज़रूरी न हो बच्चे को डायपर न पहनाएं. अपने टॉवल कम धोएं, कंघा, ब्रश, नैप्किन समय से पहले न बदलें. पीने का पानी ख़ुद के बर्तनों में साथ ढोने की आदत डालें. जहां हाथ, कद्दूकस, बिलोनी, खरड़ से काम चल सकता है, वहां मिक्सर को तकलीफ़ न दें. उसका तामझाम बहुत समय और पानी लेगा. आकर्षक प्लास्टिक के समान, मोहक नॉन-स्टिक बर्तनों के मायाजाल में न बिलमाएं. मिट्टी, लकड़ी, धातु और कांच के बर्तन बरतें. बाजार जाएं तो घर के बने झोले ले जाएं. फकीरी के ठाठ का आनन्द लें.
थोड़े कंजूस बन जाएं: हर वस्तु का पूर्ण उपयोग करने से आपकी जेब भारी रहेगी और और धरती हल्की. कम ख़रीदें, अपरिग्रही बनें, दिखावे से बचेंगे तो अपनी और धरती दोनों की लाज बनी रहेगी. फालतू सामान ख़रीदकर घर को कबाड़खाना बनाने से आपको कोने में सिमटकर बैठना पड़ेगा, सो अलग.
जहां सम्भव हो वहां सार्वजनिक वाहन का प्रयोग करें. जब पांच लोग ही हो तो कोशिश करें कि एक ही गाड़ी में ठस जाएं, लेकिन बाइक पर तीन कभी नहीं बैठें वरना चालान कट जाएगा.
भावुकता के साथ यथार्थवादी बनें: गंगा (या किसी भी अन्य नदी) में कपड़े धोने से पाप जरा भी नहीं धुलते, हां गंगा (या वो नदी) ज़रूर गन्दी हो जाती है. तो बगैर साबुन डुबकी लगाएं और पुण्य के साथ ही अपना प्लास्टिक भी अपने साथ घर ले आएं.
जो सामान आपके उपयोग का नहीं उसे निशानी, स्मृतियों के नाम से सहेज कर रखने का कोई फ़ायदा नहीं, अपने हाथों किसी को उपयोग के लिए दे दें. यक़ीन मानिए, आप के बाद तक वो चीज़ बची भी रही तो आपके परिजन बिना भावना लगाए कुपात्र को दे देंगे या बेदर्दी से फेंक देंगे.
फ़ैशनेबल डरपोक होने से बचें: छिपकली-कॉकरोच, चूहे, चींटी ही नहीं, हमारे आसपास बसे अधिकांश प्राणी निरीह होते हैं, उन्हें मारने से बचें. याद रहे, ये धरती सब के लिए हैऔर सबके कारण है. बेवजह किसी प्राणी को न मारें. दुनियाभर के धर्म-ग्रंथो में जीव-दया का पाठ बेवजह नहीं लिखा गया है.
फ़ैन्सी नज़ाकत छोड़ें: जो काम ख़ुद कर सकते हैं, करें. बात-बात में वाहन को कष्ट न दें. पैदल चलें, सीढियां चढ़ें. रसोई के दाल-चावल, सब्ज़ी का पानी ज़रा दूर चलकर किचिन गार्डन में डाल आएं, वॉशिंग मशीन के पानी से आंगन धो डालें. अपने बगीचे को भी मितव्ययिता सिखाएं, वो भी आपके साथ कम में जी सकते हैं, आज़मा कर देख लें.
पौधों से बात करें: इस आपाधापी के ज़माने में किसी को किसी से बात करने का समय नहीं है, तो अपने पास उपलब्ध जगह और संसाधनों के सहारे घर में और घर के आसपास पौधे लगाएं और उनसे बतियाएं. वो फल-फूल कर जवाब जरूर देंगे. आपकी आंखों को ही नहीं, देह, मन, जीभ और बिजली के बिल को भी सुख देंगे.
पृथ्वीपति होने का सपना त्याग दें: याद रखें कि जब सल्तनत-ए-मुग़लिया और अशोक महान का साम्राज्य नहीं रहा तो आप-मैं भी या कोई और भी अमर साम्राज्य छोड़ कर नहीं जाने वाला. धरती न आकार में बढ़ सकती है, न ही मल्टी स्टोरी खेती हो सकती है. नदियां तो एकदम ही ज़िद्दी हैं, मर जाती हैं, लेकिन उजड़ने का बदला ले कर मरती हैं. वो आपको उजाड़े बिना नहीं मानतीं. इसलिए ज़रूरतभर के बसेरे के स्वामित्व में सुख पाएं.
बाजार के मायाजाल से बचें: बाज़ार महीन चालाकी से आपको सुरसा बनाएगा, अगड़म-बगड़म, अनावश्यक कचरा ख़रीदने के लिए उकसाएगा, पर आप फक्कड़पन से कबीर बनने पर अड़े रहना. याद रखिए, किश्तों में ख़रीदना किश्तों में जीना होता है.
सार ये कि जिएं और जीने दें, वरना कोई नहीं बचेगा!
फ़ोटो: पिन्टरेस्ट