गुजरात के पोरबंदर में जन्मे मोहनदास करमचंद गांधी यानी हमारे राष्ट्रपिता को अहमदाबाद से ख़ास लगाव था, यही कारण है कि वहां साबरमती आश्रम की स्थापना की गई. दक्षिण अफ्रीका से वर्ष 1915 में वापस भारत लौटने के बाद यही उनका निवास स्थान था. कस्तूरबा भी वहीं रहती थीं. आश्रम में दोनों के कक्ष देखे जा सकते हैं. साबरमती या जिसे अब गांधी आश्रम कहा जाता है, का सारा वातावरण ऐसा आभास देता है जैसे मानो बापू कहीं आसपास ही मौजूद हैं. साबरमती आश्रम का भ्रमण कर के लौटी सुमन बाजपेयी बता रही हैं कि यहां आपको हर जगह मिलेगी बापू की छाप.
गुजरात जीवंत संस्कृति और अपनी वेशभूषा के लिए जितना प्रसिद्ध है, उतना ही लोकप्रिय है अपने पर्यटन स्थलों के लिए. पोरबंदर में जन्मे गांधी जी को अहमदाबाद से ख़ास लगाव था, यही कारण है वहां साबरमती आश्रम की स्थापना की गई. दक्षिण अफ्रीका से 1915 में वापस भारत लौटने के बाद यही उनका निवास स्थान था. कस्तूरबा भी वहीं रहती थीं. दोनों के कक्ष वहां देखे जा सकते हैं. साबरमती या जिसे अब गांधी आश्रम कहा जाता है, का सारा वातावरण ऐसा आभास देता है जैसे मानो बापू कहीं आसपास ही हैं. इसमें स्थित संग्रहालय में गांधी जी से जुड़ा तमाम साहित्य उपलब्ध है. गांधी जी के जीवन से जुड़े दुर्लभ चित्र और पेंटिंग्स देख लगता है जैसे गांधी जी अभी भी हमारे बीच हैं.
गांधी जी का पहला आश्रम
दक्षिण अफ्रीका से लौटने के पश्चात महात्मा गांधी ने भारत में अपना पहला आश्रम 25 मई, 1915 को अहमदाबाद के कोचराब क्षेत्र में स्थापित किया था. इस आश्रम को 17 जून, 1917 को साबरमती नदी के किनारे स्थानांतरित किया गया. साबरमती नदी के तट पर स्थित होने के कारण इस आश्रम को ‘साबरमती आश्रम’ नाम दिया गया. साथ ही इस आश्रम को ‘हरिजन आश्रम’ और ‘सत्याग्रह आश्रम’ के नाम से भी जाना जाता है. महात्मा गांधी ने वर्ष 1917 से वर्ष 1930 तक साबरमती आश्रम में निवास किया. 12 मार्च, 1930 को यहीं से गांधी जी ने नमक आंदोलन के लिए उठाए गए क़दम यानी दांडी मार्च की शुरूआत की थी. उन्होंने इसी आश्रम में कपड़ों को कातना और बुनना शुरू किया था. गांधी जी एवं उनके साथी देश की आजादी के लिए, ब्रिटिश सरकार के ख़िलाफ़ यहीं बैठकर योजना बनाते थे.
आश्रम-स्थल के आसपास
यह आश्रम तीन अद्भुत स्थलों से घिरा हुआ है, एक ओर विशाल पवित्र साबरमती नदी, है तो दूसरी तरफ श्मशान घाट है और एक तरफ़ जेल है. गांधी जी यहां रहने वालों को सत्याग्रही कहते थे. उनका मानना था सत्याग्रही के पास जीवन में दो ही विकल्प होते हैं, जेल जाना या जीवन समाप्त करके श्मशान जाना.
आश्रम का मुख्य स्थल हृदय कुंज है, जहां बापू रहा करते थे. यहां गांधी जी की प्रयोग की जाने वस्तुओं को आज भी सहेज कर रखा गया है. उनके द्वारा उपयोग की गई मेज, चरखा, उनका खादी का कुर्ता एवं स्वयं गांधी जी द्वारा लिखी गईं कुछ चिट्टियां को सहेज कर रखा गया है. आश्रम में प्रार्थना के लिए गांधी जी ने मुख्य रूप से मगन निवास और हृदय कुंज के बीच उपासना मंदिर नाम का स्थान बनवाया था, वह प्रार्थना किया करते थे.
संग्रहालय को पांच इकाइयां में बांटा गया है- एक पुस्तकालय, दो फ़ोटो गैलरी और एक सभागृह है. इस संग्रहालय में एक स्थान है जिसे “माय लाइफ़ इज़ माय मैसेज गैलरी” कहते हैं. इसमें उनके जीवन से जुड़ी विशाल 8 पेंटिंग्स है, जिसमें गांधी जी के जीवन की कहानी क़रीब से देखी जा सकती है.
साबरमती आश्रम के सामने बने तोरण रेस्तरां में जाने का अर्थ है बेहतरीन गुजराती थाली का आनंद उठाना. तोरण रेस्तरां यहां के प्रसिद्ध रेस्तरां हैं, जो जगह-जगह बने हुए हैं. सब्ज़ी, रोटी, पूरी, भाखरी, खिचड़ी, दाल, फरसाण, चूरमा लड्डू, खीर…स्वाद इतना बेमिसाल था कि पेट भरने के बावजूद दो लड्डू खा ही लिए.
गांधीनगर की यात्रा
साबरमती आश्रम से सीधे हम गांधी नगर जाने के लिए निकल गए. गांधी नगर जाने के लिए बहुत साफ़-सुथरी, चौड़ी सड़कें हैं. रास्ता कैसे कट गया पता ही नहीं चला. रास्ते में हमने ढोकला खाया और छाछ पी. जलेबी और गाठिया का स्वाद भी हम चख चुके थे. आज़ादी के बाद आज का गुजरात बम्बई का हिस्सा था, जिसकी वर्ष 1947 से वर्ष 1960 तक राजधानी मुंबई ही थी. फिर 1 मई वर्ष 1960 को गुजरात नया राज्य बना. तब अहमदाबाद ही राजधानी बनी, पर साथ में गांधीनगर नाम का नया शहर भी बन रहा था. अहमदाबाद के पुराना और ज़्यादा तंग शहर होने के कारण एक ऐसे नए शहर को बसाने की ज़रूरत पड़ी, जो अहमदाबाद के पास ही हो और इसीलिए वर्ष 1970 में गुजरात की राजधानी गांधी नगर स्थानांतरित कर दी गई.
गांधी को महसूस किया दांडी कुटीर में
गांधीनगर में पहला पड़ाव था दांडी कुटीर. एक हैरत करने वाले चमत्कार की तरह था इसका प्रवेश. शांति, सुकून और सफ़ाई-तीनों ही चीजें देखने को मिलीं. दांडी कुटीर, महात्मा गांधी के जीवन और शिक्षाओं पर निर्मित भारत का सबसे बड़ा और एकमात्र संग्रहालय है. गांधी जी के शुरुआती जीवन की झलक को ऑडियो-विशुअल की मदद से ख़ूबसूरती से चित्रित किया गया है. संग्रहालय को विशेष रूप से महात्मा गांधी की जीवनी पर आधारित और परिष्कृत तकनीक के साथ बनाया गया है, जिसमें ऑडियो, वीडियो और 3-डी दृश्य, 360 डिग्री शो और डिस्प्ले का उपयोग किया जाता है.
दांडी कुटीर एक 41 मीटर ऊंचे शंकु के आकार वाले गुंबद के अंदर स्थित है, जो नमक के ढेर का प्रतीक है. यह नमक का टीला वर्ष 1930 के ब्रिटिश शासन द्वारा लगाए गए नमक कर के ख़िलाफ़ किए गए प्रसिद्ध दांडी मार्च का प्रतिनिधित्व करता है.
नई तकनीक से युक्त है यह संग्रहालय
भारत में नवीनतम तकनीक से युक्त ऐसा कोई और म्यूज़ियम नहीं है. तक़रीबन 10,700 वर्ग मीटर में फैले इस संग्रहालय में 40.5 मीटर का सॉल्ट म्यूज़ियम है. इससे जब बाहर आते हैं तो लगता है मानो गांधी जी की पोरबंदर से दिल्ली तक की पूरी यात्रा देखकर आए हैं. इसमें 14 प्रकार के मल्डीमीडिया हैं और इस यात्रा की शुरुआत तीसरे फ़्लोर से होती है, फिर दूसरे व पहले फ़्लोर पर आते हैं. यह एक सेल्फ़ गाइडेड म्यूज़ियम है, जहां आपको प्रवेश करते ही हेडफ़ोन दिया जाता है, जो सेंसर से जुड़ा होता है. इसमें ऑडियो गाइड सिस्टम लगा है यानी आप जिस भी पोस्टर के सामने रुकते हैं, उसके बारे में आप इसमें सुन सकते हैं.
तीसरे फ़्लोर पर बचपन से लेकर उनके लंदन पढ़ने जाने की यात्रा को दर्शाया गया है है, दूसरे फ़्लोर पर लंदन से दक्षिण अफ्रीका की यात्रा का वर्णन है और पहले फ़्लोर पर एक ट्रेन है, जिसमें बैठकर वह तब बनारस आए थे, जब बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की नींव रखी गई थी. स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े पहलुओं को भी यहां देखा जा सकता है. यहां आना गांधी जी को जानने-समझने के किसी अद्भुत अनुभव से कम नहीं है.