तीन दिनों तक छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर का साइंस ग्राउंड, गीत-संगीत, देशी-विदेशी आदिवासी कलाकारों, उनकी संस्कृति, पहनावे, खाने और कला से जीवंत हो उठा था. मौक़ा था 28 से 30 अक्टूबर 2021 को हुए राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव का. इस महोत्सव की अद्भुत अनुभूति के बारे में और जानकारी दे रही हैं सुमन बाजपेयी
तीन दिनों तक छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर का साइंस ग्राउंड, गीत-संगीत, देशी-विदेशी आदिवासी कलाकारों, उनकी संस्कृति, पहनावे, खाने और कला से जीवंत हो उठा था. मौक़ा था 28 से 30 अक्टूबर 2021 को हुए राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव का. वर्ष 2019 में यह महोत्सव पहली बार आयोजित किया गया था. लेकिन कोविड की वजह से इसे फिर अगले साल किया नहीं जा सका. यही वजह रही कि इस वर्ष लोगों का जोश देखते ही बनता था. दूर-दूर से लोग आदिवासी जीवन और संस्कृति की झलक पाने को यहां एकत्र हुए.
माहौल देखकर लगता था कि जैसे हर कोई नर्तकों के साथ थिरकने को उत्सुक है. सात समंदर पार से आए और हमारे देश के सारे राज्यों व केंद्र शासित राज्यों के कलाकारों ने इस महोत्सव के माध्यम से गीत-संगीत के ज़रिए एक नए विशाल समाज को आकार दिया.
अपनी तरह का अनूठा कार्यक्रम
जनजातीय समाज अपनी सभ्यता, संस्कृति और परंपरा को बचाने में संघर्षरत हैं. ऐसे में इस उत्सव ने जनजाति वर्ग को वह ऊर्जा दी, जिससे निस्संदेह उन्हें अपनी सभ्यता और संस्कृति को अक्षुण्ण रखने में मदद मिल सकेगी. साथ ही, इस महोत्सव में दर्शकों को उनकी अद्भुत आंतरिक क्षमता, कला और शिल्प भी देखने को मिला.
झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने बतौर मुख्य अतिथि इसका उद्घाटन किया. उन्होंने कहा कि यह सिर्फ़ नृत्य महोत्सव नहीं, बल्कि ऐसे वर्गों के लिए सम्मान है, जो शैक्षणिक, सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े रहे हैं. यह पूरी दुनिया के लिए संदेश है कि अगर हम चाहें तो आदिवासी समाज वर्ग सबके साथ क़दम से क़दम मिला कर चल सकता है. आदिवासी नृत्य महोत्सव का कार्यक्रम अपने आप में अनूठा है.
अलग-अलग सुर-ताल के आनंदमय पल
राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव में सात देशों के नर्तक दल सहित देश के 27 राज्यों तथा छह केन्द्र शासित प्रदेशों के 59 आदिवासी नर्तक दल शामिल हुए तो नज़ारा तो रंगमय और संगीतमय होना ही था. महोत्सव में श्रीलंका, उज़्बेकिस्तान, स्वाजीलैंड, नाइजीरिया, मालदीव और युगांडा के नर्तक दल आए तो दूसरी ओर लद्दाख का जबरो नृत्य, असम का बीहू, सिक्किम के तमांग सेला, त्रिपुरा का होजागिर, अरूणांचल का जूजू-जाजा नृत्य या छत्तीसगढ़ के पारंपरिक नर्तक हों, सबने एक से बढ़कर एक प्रस्तुति देकर दर्शक दीर्घा में मौजूद लोगों को तालियां बजाने पर मजबूर कर दिया. उनके साथ-साथ दर्शक भी थिरक रहे थे और हर सुर-ताल का आनंद उठाते हुए झूम रहे थे. विभिन्न तरह की पारंपरिक पोशाकें, आभूषण और सज्जा की वस्तुएं नृत्य को और आकर्षण प्रदान कर रही थीं.
यहां गोंड जनजाति के कर्मा नृत्य-मध्यप्रदेश, कड़सा नृत्य–झारखंड, गोजरी नृत्य-जम्मू-काश्मी, गुरयाबल्लू-आंध्रप्रदेश, कारबी-तिवा-असम, डिम्सा-आंध्रप्रदेश, धप-ओडिशा, कोम्युकोवा-तेलंगाना, दंडार-मध्यप्रदेश, बोण्डा-ओडिशा, मेवासी नृत्य-गुजरात की प्रस्तुति हुई. इस अवसर पर बस्तर के सुकमा, बीजापुर और दंतेवाड़ा के लोक नर्तकों ने छत्तीसगढ़ के समृद्ध, सांस्कृतिक वैभव की अनोखी झलक प्रस्तुत की. इन कलाकारों ने मुख्य मंच के अलावा प्रांगण में अपनी लोक शैली की अभिनव प्रस्तुति से दर्शकों का मनोरंजन किया.
केरल के कलाकारों ने दक्षिण भारत में पनिया जनजाति के युवक-युवतियों द्वारा शादी-ब्याह में किए जाने वाले वट्टाकली नृत्य का प्रदर्शन किया. इसी तरह महाराष्ट्र के लोक दल ने उमंग और उत्साह के साथ विवाह के अवसर पर किया जानेवाला गारली सुसून नृत्य किया. सिक्किम के तमांग जनजाति ने ऊर्जा और शक्ति की भरमार लिए तमांग सेला नृत्य की शानदार प्रस्तुति दी. हाथ में ढपली लिए और नीले रंग के कपड़ों में सजे सिर पर टोपी लगाए कलाकारों ने अपनी अलग और निराली छाप छोड़ी.
कई पारंपरिक विधाओं पर आयोजित की गई थी प्रतियोगिता
महोत्सव में विवाह संस्कार, पारंपरिक त्यौहार, अनुष्ठान, फसल कटाई, कृषि और अन्य पारंपरिक विधाओं पर नृत्य प्रतियोगिता का आयोजन किया गया. झारखंड की ओर से विवाह संस्कार की विधा के तहत कड़सा, फसल कटाई के तहत उरांव और छऊ नृत्य की प्रस्तुति आदिवासी समुदाय के कलाकारों ने की. नर्तक दलों को कुल 20 लाख रुपए की पुरस्कार राशि, प्रमाण पत्र और ट्रॉफ़ी प्रदान की जाने की घोषणा की गई. प्रत्येक विधा में प्रथम स्थान प्राप्त करने वाले दल को पांच लाख रुपए, द्वितीय स्थान प्राप्त करने वाले दल को तीन लाख रुपए तथा तृतीय स्थान प्राप्त करने वाले दल को दो लाख रुपए की पुरस्कार राशि से सम्मानित किया गया. झारखंड टीम ने विवाह संस्कार और पारंपरिक नृत्य दोनों में 10 लाख रुपए का पुरस्कार जीता. ओडिशा की टीम दोनों वर्गों में रनर-अप रही, जबकि असम की टीम ने विवाह संस्कार वर्ग में तीसरा और छत्तीसगढ़ की टीम ने पारंपरिक वर्ग में तीसरा स्थान प्राप्त किया.
व्यंजनों और शिल्प की रही धूम
एक तरफ़ नृत्य दर्शकों को लुभा रहे थे तो दूसरी ओर साइंस कालेज मैदान में सजे विभिन्न व्यंजनों के स्टॉल, हस्तशिल्प के स्टॉल, सरकारी योजनाओं वाले स्टॉल राज्य की ख़ूबियां बताते दिखे. विभिन्न राज्यों के व्यंजन और ख़ासतौर पर छत्तीसगढ़ी स्वाद का लोगों ने छककर आनंद उठाया. पारंपरिक वेशभूषा वाले कपड़े, कोसा की साड़ी और पीतल के गढ़े गए गहने लोगों के लिए कौतूहल का विषय बने रहे. आदिवासी कला पर केंद्रित इन स्टालों में सुंदर मुद्राओं, ढोल और बांसुरी के पीतल की बनी प्रतिमाएं आकर्षण का केंद्र बनी रहीं.
सुंदर माहौल और रंगमय आयोजन, कौन नहीं जाना चाहेगा हर साल वहां? मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने इस मौक़े पर कहा कि अनेकता में एकता हमारी ताकत और पहचान है. उन्होंने कहा कि इसे जोड़ने एवं संजोने के लिए विश्व के आदिवासियों को एक मंच पर लाने के लिए यह आयोजन किया जा रहा है, ताकि वह संस्कृति को, अपनी ताक़त को जानें और आगे बढ़ें. छत्तीसगढ़ आज आदिवासियों का वैश्विक मंच के रूप में अपनी पहचान स्थापित कर रहा है.