• होम पेज
  • टीम अफ़लातून
No Result
View All Result
डोनेट
ओए अफ़लातून
  • सुर्ख़ियों में
    • ख़बरें
    • चेहरे
    • नज़रिया
  • हेल्थ
    • डायट
    • फ़िटनेस
    • मेंटल हेल्थ
  • रिलेशनशिप
    • पैरेंटिंग
    • प्यार-परिवार
    • एक्सपर्ट सलाह
  • बुक क्लब
    • क्लासिक कहानियां
    • नई कहानियां
    • कविताएं
    • समीक्षा
  • लाइफ़स्टाइल
    • करियर-मनी
    • ट्रैवल
    • होम डेकोर-अप्लाएंसेस
    • धर्म
  • ज़ायका
    • रेसिपी
    • फ़ूड प्लस
    • न्यूज़-रिव्यूज़
  • ओए हीरो
    • मुलाक़ात
    • शख़्सियत
    • मेरी डायरी
  • ब्यूटी
    • हेयर-स्किन
    • मेकअप मंत्र
    • ब्यूटी न्यूज़
  • फ़ैशन
    • न्यू ट्रेंड्स
    • स्टाइल टिप्स
    • फ़ैशन न्यूज़
  • ओए एंटरटेन्मेंट
    • न्यूज़
    • रिव्यूज़
    • इंटरव्यूज़
    • फ़ीचर
  • वीडियो-पॉडकास्ट
  • लेखक
ओए अफ़लातून
Home बुक क्लब क्लासिक कहानियां

अख़बार में नाम: एक अजीबोग़रीब शौक़ की कहानी (लेखक: यशपाल)

टीम अफ़लातून by टीम अफ़लातून
January 9, 2022
in क्लासिक कहानियां, बुक क्लब
A A
अख़बार में नाम: एक अजीबोग़रीब शौक़ की कहानी (लेखक: यशपाल)
Share on FacebookShare on Twitter

अख़बार में नाम छपने का अपना अलग ही चार्म होता है. लोग न जाने क्या-क्या करते हैं अख़बार में नाम छपवाने के लिए. इस कहानी के नायक गुरदास के सिर भी नाम छपवाने का भूत चढ़ जाता है.

जून का महीना था, दोपहर का समय और धूप कड़ी थी. ड्रिल-मास्टर साहब ड्रिल करा रहे थे.
मास्टर साहब ने लड़कों को एक लाइन में खड़े होकर डबल मार्च करने का ऑर्डर दिया. लड़कों की लाइन ने मैदान का एक चक्कर पूरा कर दूसरा आरम्भ किया था कि अनन्तराम गिर पड़ा.
मास्टर साहब ने पुकारा,‘हाल्ट!’
लड़के लाइन से बिखर गए.
मास्टर साहब और दो लड़कों ने मिलकर अनन्त को उठाया और बरामदे में ले गए. मास्टर साहब ने एक लड़के को दौड़कर पानी लाने का हुक़्म दिया. दो-तीन लड़के स्कूल की कापियां लेकर अनन्त को हवा करने लगे. अनन्त के मुंह पर पानी के छींटे मारे गए. उसे होश आते-आते हेडमास्टर साहब भी आ गए और अनन्तराम के सिर पर हाथ फेरकर, पुचकारकर उन्होंने उसे तसल्ली दी.
स्कूल का चपरासी एक तांगा ले आया. दो लड़कों के साथ ड्रिल मास्टर अनन्तराम को उसके घर पहुंचाने गए. स्कूल-भर में अनन्तराम के बेहोश हो जाने की ख़बर फैल गई. स्कूल में सब उसे जान गए.
लड़कों के धूप में दौड़ते समय गुरदास लाइन में अनन्तराम से दो लड़कों के बाद था. यह घटना और काण्ड हो जाने के बाद वह सोचता रहा, ‘अगर अनन्तराम की जगह वही बेहोश होकर गिर पड़ता, वैसे ही उसे चोट आ जाती तो कितना अच्छा होता?’ आह भरकर उसने सोचा, ‘सब लोग उसे जान जाते और उसकी ख़ातिर होती.’
श्रेणी में भी गुरदास की कुछ ऐसी ही हालत थी. गणित के मास्टर साहब सवाल लिखाकर बेंचों के बीच में घूमते हुए नज़र डालते रहते थे कि कोई लड़का नकल या कोई दूसरी बेजा हरक़त तो नहीं कर रहा. लड़कों के मन में यह होड़ चल रही होती कि सबसे पहले सवाल पूरा करके कौन खड़ा हो जाता है.
गुरदास बड़े यत्न से अपना मस्तिष्क कापी में गड़ा देता. उंगलियों पर गुणा और योग करके उत्तर तक पहुंच ही रहा होता कि बनवारी सवाल पूरा करके खड़ा हो जाता. गुरदास का उत्साह भंग हो जाता और दो-तीन पल की देर यों भी हो जाती. कभी-कभी सबसे पहले सवाल कर सकने की उलझन के कारण कहीं भूल भी हो जाती. मास्टर साहब शाबाशी देते तो बनवारी और खन्ना को और डांटते तो ख़लीक और महेश का ही नाम लेकर. महेश और ख़लीक न केवल कभी सवाल पूरा करने की चिन्ता करते, बल्कि उसके लिए लज्जित भी न होते.
नाम जब कभी लिया जाता तो बनवारी, खन्ना, ख़लीक और महेश का ही, गुरदास बेचारे का कभी नहीं. ऐसी ही हालत व्याकरण और अंग्रेज़ी की क्लास में भी होती. कुछ लड़के पढ़ाई-लिखाई में बहुत तेज़ होने की प्रशंसा पाते और कोई डांट-डपट के प्रति निर्द्वन्द्व होने के कारण बेंच पर खड़े कर दिए जाने से लोगों की नज़र में चढ़कर नाम कमा लेते. गुरदास बेचारा दोनों तरफ़ से बीच में रह जाता.
इतिहास में गुरदास की विशेष रुचि थी. शेरशाह सूरी और खिलजी की चढ़ाइयों और अकबर के शासन के वर्णन उसके मस्तिष्क में सचित्र होकर चक्कर काटते रहते, वैसे ही शिवाजी के अनेक क़िले जीतने के वर्णन भी. वह अपनी कल्पना में अपने-आपको शिवाजी की तरह ऊंची, नोकदार पगड़ी पहने, छोटी दाढ़ी रखे और वैसा ही चोगा पहने, तलवार लिए सेना के आगे घोड़े पर सरपट दौड़ता चला जाता देखता.
इतिहास को यों मनस्थ कर लेने या इतिहास में स्वयं समा जाने पर भी गुरदास को इन महत्वपूर्ण घटनाओं की तारीखें और सन् याद न रहते थे क्योंकि गुरुदास के काल्पनिक ऐतिहासिक चित्रों में तारीखों और सनों का कोई स्थान न था. परिणाम यह होता कि इतिहास की क्लास में भी गुरदास को शाबाशी मिलने या उसके नाम पुकारे जाने का समय न आता.
सबके सामने अपना नाम पुकारा जाता सुनने की गुरदास की महत्वाकांक्षा उसके छोटे-से हृदय में इतिहास के अतीत के बोझ के नीचे दबकर सिसकती रह जाती. तिस पर इतिहास के मास्टर साहब का प्राय: कहते रहना कि दुनिया में लाखों लोग मरते जाते हैं परन्तु जीवन वास्तव में उन्हीं लोगों का होता है जो मरकर भी अपना नाम जिन्दा छोड़ जाते हैं, गुरदास के सिसकते हृदय को एक और चोट पहुंचा देता.
गुरदास अपने माता-पिता की सन्तानों में तीन बहनों का अकेला भाई था. उसकी मां उसे राजा बेटा कहकर पुकारती थी. स्वयं पिता रेलवे के दफ्तर में साधारण क्लर्की करते थे. कभी कह देते कि उनका पुत्र ही उनका और अपना नाम कर जायेगा. ख्याति और नाम की कमाई के लिए इस प्रकार निरन्तर दी जाती रहने वाली उत्तेजनाओं के बावजूद गुरदास श्रेणी और समाज में अपने-आप को किसी अनाज की बोरी के करोड़ों एक ही से दानों में से एक साधारण दाने से अधिक अनुभव न कर पाता था.
ऐसा दाना कि बोरी को उठाते समय वह गिर जाये तो कोई ध्यान नहीं देता. ऐसे समय उसकी नित्य कुचली जाती महत्वाकांक्षा चीख उठती कि बोरी के छेद से सड़क पर उसके गिर जाने की घटना ही ऐसी क्यों न हो जाए कि दुनिया जान ले कि वह वास्तव में कितना बड़ा आदमी है और उसका नाम मोटे अक्षरों में अख़बारों में छप जाए. गुरदास कल्पना करने लगता कि वह मर गया है परन्तु अख़बारों में मोटे अक्षरों में छपे अपने नाम को देखकर, मृत्यु के प्रति विद्रूप से मुस्करा रहा है, मृत्यु उसे समाप्त न कर सकी.
आयु बढ़ने के साथ-साथ गुरदास की नाम कमाने की महत्वाकांक्षा उग्र होती जा रही थी, परन्तु उस स्वप्न की पूर्ति की आशा उतनी ही दूर भागती जान पड़ रही थी. बहुत बड़ी-बड़ी कल्पनाओं के बावजूद वह अपने पिता पर कृपा-दृष्टि रखनेवाले एक बड़े साहब की कृपा से दफ्तर में केवल क्लर्क ही बन पाया.
जिन दिनों गुरदास अपने मन को समझाकर यह सन्तोष दे रहा था कि उसके मुहल्ले के हज़ार से अधिक लोगों में से किसी का भी तो नाम कभी अख़बार में नहीं छपा, तभी उसके मुहल्ले के एक नि:सन्तान लाला ने अपनी आयु भर का संचित गुप्तधन प्रकट करके अपने नाम से एक स्कूल स्थापित करने की घोषणा कर दी.
लालाजी का अख़बार में केवल नाम ही प्रशंसा-सहित नहीं छपा, उनका चित्र भी छपा. गुरदास आह भरकर रह गया. साथ ही अख़बार में नाम छपवाकर, नाम कमाने की आशा बुझती हुई चिनगारियों पर राख की एक और तह पड़ गई. गुरदास ने मन को समझाया कि इतना धन और यश तो केवल पूर्वजन्म के कर्मों के फल से ही पाया जा सकता है. इस जन्म में तो ऐसे अवसर और साधन की कोई आशा उस जैसों के लिए हो ही नहीं सकती थी.
उस साल वसन्त के आरम्भ में शहर में प्लेग फूट निकला था. दुर्भाग्य से गुरदास के ग़रीब मुहल्ले में गलियां कच्ची और तंग होने के कारण, बीमारी का पहला शिकार, उसी मुहल्ले में दुलारे नाम का व्यक्ति हुआ.
मुहल्ले की गली के मुहाने पर रहमान साहब का मकान था. रहमान साहब ने आत्म-रक्षा और मुहल्ले की रक्षा के विचार से छूत की बीमारी के हस्पताल को फ़ोन करके एम्बुलेंस गाड़ी मंगवा दी. बहुत लोग इकट्ठे हो गए. दुलारे को स्ट्रेचर पर उठाकर मोटर पर रखा गया और हस्पताल पहुंचा दिया गया. म्युनिसिपैलिटी ने उसके घर की बहुत जोर से सफ़ाई की. मुहल्ले के हर घर में दुलारे की चर्चा होती रही.
गुरदास संध्या समय थका-मांदा और झुंझलाया हुआ दफ्तर से लौट रहा था. भीड़ में से अख़बारवाले ने पुकारा,‘आज शाम की ताजा अख़बार. नाहर मुहल्ले में प्लेग फूट निकला. आज की ख़बरें पढ़िए.’
अख़बार में अपने मुहल्ले का नाम छपने की बात से गुरदास सिहर उठा. उसके मस्तिष्क में चमक गया… ओह, दुलारे की ख़बर छपी होगी. अख़बार प्राय: वह नहीं खरीदता था परन्तु अपने मुहल्ले की ख़बर छपी होने के कारण उसने चार पैसे खर्च कर अख़बार ले लिया. सचमुच दुलारे की ख़बर पहले पृष्ठ पर ही थी. लिखा था,‘बीमारी की रोक-थाम के लिए सावधान.’ और फिर दुलारे का नाम और उसकी ख़बर ही नहीं, स्ट्रेचर पर लेटे हुए, घबराहट में मुंह खोले हुए दुलारे की तस्वीर भी थी.
गुरदास ने पढ़ा कि बीमारी का इलाज देर से आरम्भ होने के कारण दुलारे की अवस्था चिन्ताजनक है. पढ़कर दुख हुआ. फिर ख़्याल आया इस आदमी का नाम अख़बार में छप जाने की क्या आशा थी? पर छप ही गया.
अपना-अपना भाग्य है, एक गहरी सांस लेकर गुरदास ने सोचा. दुलारे की अवस्था चिन्ताजनक होने की बात से दुख भी हुआ. फिर ख़्याल आया देखो, मरते-मरते नाम कर ही गया. मरते तो सभी हैं पर यह बीमारी की मौत फिर भी अच्छी! ख़्याल आया, कहीं बीमारी मुझे भी न हो जाए. भय तो लगा पर यह भी ख़्याल आया कि नाम तो जिसका छपना था, छप गया. अब सबका नाम थोड़े ही छप सकता है.
ख़ैर, दुलारे अगर बच न पाया तो अख़बार में नाम छप जाने का फायदा उसे क्या हुआ? मजा तो तब है कि बेचारा बच जाए और अपनी तस्वीर वाले अख़बार को अपनी कोठरी में लटका ले…!
गुरदास को होश आया तो उसने सुना,‘इधर से सम्भालो! ऊपर से उठाओ!’ कूल्हे में बहुत जोर से दरद हो रहा था. वह स्वयं उठ न पा रहा था. लोग उसे उठा रहे थे.
‘हाय! हाय मां!’ उसकी चीखें निकली जा रही थी. लोगों ने उठा कर उसे एक मोटर में डाल दिया.
हस्पताल पहुंचकर उसे समझ में आया कि वह बाज़ार में एक मोटर के धक्के से गिर पड़ा था. मोटर के मालिक एक शरीफ़ वक़ील साहब थे. उस घटना के लिए बहुत दुख प्रकट कर रहे थे. एक बच्चे को बचाने के प्रयत्न में मोटर को दाईं तरफ़ जल्दी से मोड़ना पड़ा. उन्होंने बहुत ज़ोर से हार्न भी बजाया और ब्रेक भी लगाया पर ये आदमी चलता-चलता अख़बार पढ़ने में इतना मगन था कि उसने सुना ही नहीं.
गुरदास कूल्हे और घुटने के दरद के मारे कराह रहा था. कुछ सोचना समझना उसके बस की बात ही न थी.
डॉक्टर ने गुरदास को नींद आने की दवाई दे दी. वह भयंकर दरद से बचकर सो गया. रात में जब नींद टूटी तो दरद फिर होने लगा और साथ ही ख़्याल भी आया कि अब शायद अख़बार में उसका नाम छप ही जाये. दरद में भी एक उत्साह-सा अनुभव हुआ और दरद भी कम लगने लगा. कल्पना में गुरदास को अख़बार के पन्ने पर अपना नाम छपा दिखायी देने लगा.
सुबह जब हस्पताल की नर्स गुरदास के हाथ-मुंह धुलाकर उसका बिस्तर ठीक कर रही थी, मोटर के मालिक वक़ील साहब उसका हाल-चाल पूछने आ गए.
वक़ील साहब एक स्टूल खींचकर गुरदास के लोहे के पलंग के पास बैठ गए और समझाने लगे,‘देखो भाई, ड्राइवर बेचारे की कोई ग़लती नहीं थी. उसने तो इतने ज़ोर से ब्रेक लगाया कि मोटर को भी नुक़सान पहुंच गया. उस बेचारे को सज़ा भी हो जाएगी तो तुम्हारा भला हो जाएगा? तुम्हारी चोट के लिए बहुत अफ़सोस है. हम तुम्हारे लिए दो-चार सौ रुपये का भी प्रबन्ध कर देंगे. कचहरी में तो मामला पेश होगा ही, जैसे हम कहें, तुम बयान दे देना; समझे…!’
गुरदास वक़ील साहब की बात सुन रहा था पर ध्यान उसका वक़ील साहब के हाथ में गोल-मोल लिपटे अख़बार की ओर था. रह न सका तो पूछ बैठा,‘वक़ील साहब, अख़बार में हमारा नाम छपा है? हमारा नाम गुरदास है. मकान नाहर मुहल्ले में है.’
वक़ील साहब की सहानुभूति में झुकी आंखें सहसा पूरी खुल गईं,‘अख़बार में नाम?’ उन्होंने पूछा,‘चाहते हो? छपवा दें?’
‘हां साहब, अख़बार में तो ज़रूर छपना चाहिए.’ आग्रह और विनय से गुरदास बोला.
‘अच्छा, एक काग़ज़ पर नाम-पता लिख दो.’ वक़ील साहब ने कलम और एक कागज गुरदास की ओर बढ़ाते हुए कहा,‘अभी नहीं छपा तो कचहरी में मामला पेश होने के दिन छप जाएगा, ऐसी बात है.’
गुरदास को लंगड़ाते हुए ही कचहरी जाना पड़ा. वक़ील साहब की टेढ़ी जिरह का उत्तर देना सहज न था, आरम्भ में ही उन्होंने पूछा,‘तुम अख़बार में नाम छपवाना चाहते थे?’
‘जी हां.’ गुरदास को स्वीकार करना पड़ा.
‘तुम्हें उम्मीद थी कि मोटर के नीचे दब जानेवाले आदमी का नाम अख़बार में छप जाएगा?’ वकील साहब ने फिर प्रश्न किया.
‘जी हां!’ गुरदास कुछ झिझका पर उसने स्वीकार कर लिया.
अगले दिन अख़बार में छपा,‘मोटर दुर्घटना में आहत गुरदास को अदालत ने हर्जाना दिलाने से इनकार कर दिया. आहत के बयान से साबित हुआ कि अख़बार में नाम छपाने के लिए ही वह जान-बूझकर मोटर के सामने आ गया था…’
गुरदास ने अख़बार से अपना मुंह ढांप लिया, किसी को अपना मुंह कैसे दिखाता.

Illustration: Pinterest

इन्हें भीपढ़ें

फटी एड़ियों वाली स्त्री का सौंदर्य: अरुण चन्द्र रॉय की कविता

फटी एड़ियों वाली स्त्री का सौंदर्य: अरुण चन्द्र रॉय की कविता

January 1, 2025
democratic-king

कहावत में छुपी आज के लोकतंत्र की कहानी

October 14, 2024
त्रास: दुर्घटना के बाद का त्रास (लेखक: भीष्म साहनी)

त्रास: दुर्घटना के बाद का त्रास (लेखक: भीष्म साहनी)

October 2, 2024
पढ़ना-लिखना सीखो ओ मेहनत करने वालों: सफ़दर हाशमी की कविता

पढ़ना-लिखना सीखो ओ मेहनत करने वालों: सफ़दर हाशमी की कविता

September 24, 2024
Tags: Akhbar mein naamFamous Indian WriterFamous writers storyHindi KahaniHindi StoryHindi writersIndian WritersKahaniYashpalYashpal ki kahaniYashpal ki kahani Akhbar mein naamYashpal storiesअख़बार में नामकहानीमशहूर लेखकों की कहानीयशपालयशपाल की कहानियांयशपाल की कहानीयशपाल की कहानी अख़बार में नामहिंदी कहानीहिंदी के लेखकहिंदी स्टोरी
टीम अफ़लातून

टीम अफ़लातून

हिंदी में स्तरीय और सामयिक आलेखों को हम आपके लिए संजो रहे हैं, ताकि आप अपनी भाषा में लाइफ़स्टाइल से जुड़ी नई बातों को नए नज़रिए से जान और समझ सकें. इस काम में हमें सहयोग करने के लिए डोनेट करें.

Related Posts

ग्लैमर, नशे और भटकाव की युवा दास्तां है ज़ायरा
बुक क्लब

ग्लैमर, नशे और भटकाव की युवा दास्तां है ज़ायरा

September 9, 2024
लोकतंत्र की एक सुबह: कमल जीत चौधरी की कविता
कविताएं

लोकतंत्र की एक सुबह: कमल जीत चौधरी की कविता

August 14, 2024
बहुत नहीं सिर्फ़ चार कौए थे काले: भवानी प्रसाद मिश्र की कविता
कविताएं

बहुत नहीं सिर्फ़ चार कौए थे काले: भवानी प्रसाद मिश्र की कविता

August 12, 2024
Facebook Twitter Instagram Youtube
Oye Aflatoon Logo

हर वह शख़्स फिर चाहे वह महिला हो या पुरुष ‘अफ़लातून’ ही है, जो जीवन को अपने शर्तों पर जीने का ख़्वाब देखता है, उसे पूरा करने का जज़्बा रखता है और इसके लिए प्रयास करता है. जीवन की शर्तें आपकी और उन शर्तों पर चलने का हुनर सिखाने वालों की कहानियां ओए अफ़लातून की. जीवन के अलग-अलग पहलुओं पर, लाइफ़स्टाइल पर हमारी स्टोरीज़ आपको नया नज़रिया और उम्मीद तब तक देती रहेंगी, जब तक कि आप अपने जीवन के ‘अफ़लातून’ न बन जाएं.

संपर्क

ईमेल: [email protected]
फ़ोन: +91 9967974469
+91 9967638520
  • About
  • Privacy Policy
  • Terms

© 2022 Oyeaflatoon - Managed & Powered by Zwantum.

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • सुर्ख़ियों में
    • ख़बरें
    • चेहरे
    • नज़रिया
  • हेल्थ
    • डायट
    • फ़िटनेस
    • मेंटल हेल्थ
  • रिलेशनशिप
    • पैरेंटिंग
    • प्यार-परिवार
    • एक्सपर्ट सलाह
  • बुक क्लब
    • क्लासिक कहानियां
    • नई कहानियां
    • कविताएं
    • समीक्षा
  • लाइफ़स्टाइल
    • करियर-मनी
    • ट्रैवल
    • होम डेकोर-अप्लाएंसेस
    • धर्म
  • ज़ायका
    • रेसिपी
    • फ़ूड प्लस
    • न्यूज़-रिव्यूज़
  • ओए हीरो
    • मुलाक़ात
    • शख़्सियत
    • मेरी डायरी
  • ब्यूटी
    • हेयर-स्किन
    • मेकअप मंत्र
    • ब्यूटी न्यूज़
  • फ़ैशन
    • न्यू ट्रेंड्स
    • स्टाइल टिप्स
    • फ़ैशन न्यूज़
  • ओए एंटरटेन्मेंट
    • न्यूज़
    • रिव्यूज़
    • इंटरव्यूज़
    • फ़ीचर
  • वीडियो-पॉडकास्ट
  • लेखक

© 2022 Oyeaflatoon - Managed & Powered by Zwantum.