अधिकतर भारतीय जब कहीं पर्यटन पर जाते हैं तो वे बजाय पर्यटक के अक्सर कंज़्यूमर बन जाते हैं. इस तरह न तो वे पर्यटन का आनंद उठा पाते हैं और ना ही उस समय का वह सदुपयोग हो पाता है, जो वो ख़ुद को प्रकृति के सामीप्य में रख कर कर सकते थे. हिमांशु कुमार इस बात को बहुत ही स्वाभाविक तरीक़े से समझा रहे हैं. यदि आप भी पर्यटन की कला सीखना चाहते हैं तो यह आलेख ज़रूर पढ़ें.
हिमाचल प्रदेश में हमारे पास दिल्ली से दो संबंधी घूमने आए. मैंने उन्हें घुमाया और हम घर वापस लौटे. लौटने पर उन्होंने कहा, ‘‘आपने हमें कुछ दिखाया नहीं.’’
मैंने कहा, ‘‘बर्फ़ से ढंकी हुई पहाड़ियां, घने जंगल, झरने कलकल बहती हुई नदियां और फिर हमने दोपहर को एक झरने के पास बैठकर खाना खाया. क्या यह सब आपने नहीं देखा?’’
वह बोले, ‘‘इन चीज़ों को क्या देखना? ये तो हर जगह होती हैं.’’
यक़ीन जानिए, भारत में ज़्यादातर लोग इसी सोच के हैं. जो चीज़ मुफ़्त है उसका कोई महत्व नहीं है. साफ़ हवा, साफ़ पानी, शांत माहौल इसका उनके लिए कोई महत्व नहीं है.
हम धर्मशाला के पास रहते हैं. वहां एक जगह है मैकलोडगंज. वहां अक्सर विदेशी युवक युवती आते हैं. वह बस से उतरेंगे बैग से नक्शा निकालेंगे और कई किलोमीटर आगे जाकर सुनसान जगह में पहाड़ के ऊपर चढ़ जाएंगे.
वे किसी नदी के किनारे अपना टेंट लगाएंगे रात में आग जलाकर अपने साथ लाया हुआ सूखा मांस चाय और डबल रोटी खाएंगे.
दूसरी तरफ़ हमारे पंजाब से या दिल्ली से गए हुए लोग जब मैकलोडगंज पहुंचते हैं तो सबसे पहले महंगे से महंगा होटल खोजेंगे. फिर बाज़ार में निकल कर दबा के शॉपिंग करेंगे. भाई जी के लिए शॉल, भाभी के लिए पोंचू, बच्चों के लिए जुराबें, बहन के लिए दस्ताने-मफ़लर, अगड़म बगड़म सब. फिर पीतल की दुकानों में घुस जाएंगे बुद्धा जी की मूर्ति ख़रीदेंगे.
बे-ज़रूरत चीज़ें ख़रीदेंगे, जिसमें हुक्के से लगाकर काले रंग की तलवारें, तक शामिल हैं. फिर पतिदेव दारू पीने में भिड़ जाएंगे. और देवी अपनी बहन को फ़ोन लगाकर घंटे भर तक शॉपिंग की डिटेल बताएंगी.
इसे भारतीय लोग पर्यटन कहते हैं!
मैं गांव में रहता हूं. चारों तरफ़ हरियाली है, साफ़ हवा है, ट्रैफ़िक का कोई शोर नहीं है, लेकिन बड़े शहरों से आने वाले लोगों को इस जगह का कोई आकर्षण नहीं है.
वजह ये है कि हम असली आनंद को पहचानते ही नहीं. हम फूल के पास से गुज़र जाते हैं, लेकिन फूल की ख़ूबसूरती का आनंद नहीं ले पाते. अक्सर हम बेकार के विचारों में खोए रहते हैं. या तो हम अतीत के बारे में सोचते रहते हैं या भविष्य के बारे में. वर्तमान में जीना हमें नहीं आता!
चारों तरफ़ कितनी ताज़ी हवा है, जो आपके गालों को छू कर बह रही है. बच्चे हंसते हुए दौड़ रहे हैं, चिड़ियां चहक रही हैं… यह सब हमारे लिए महत्वहीन है.
हमारे लिए पैसा कमाना महत्वपूर्ण है. मकान बनाना बच्चों को ऊंची तालीम देना घर में सामान भर लेना महत्वपूर्ण है और फिर शांति की तलाश में धार्मिक स्थलों की तरफ़ दौड़ना या गुरुओं के चरणों में गिर जाना.
एक बड़ा अच्छा शब्द है ‘ध्यान’ जो बुद्ध का शब्द है. इसका मतलब आंख बंद करके पालथी लगाकर बैठना नहीं होता. ध्यान का अर्थ है ध्यान देना यानी होश के साथ जीना.
हमारे चारों तरफ कितने अच्छे लोग हैं कितनी अच्छी प्रकृति है उस पर ध्यान देना.अगली बार जब कभी आप कहीं घूमने जाएं तो होश में रहकर वहां की प्रकृति को ध्यान से देखिएगा. आप इस दुनिया में भी पर्यटक हैं और जहां घूमने गए हैं वहां भी पर्यटक ही हैं तो प्रकृति के कंज़्यूमर मत बनिए, क्योंकि आप उसका अंश है!
फ़ोटो : फ्रीपिक