यात्राएं करना पसंद करने वाली रीना पंत, जब चीन की यात्रा पर पहुंचीं तो हांग्ज़ोउ के बाद उनका दूसरा गंतव्य था शंघाई. वे यहां की अपनी सैर के साथ-साथ यहां मौजूद घूमने लायक जगहों और लोगों की ख़ासियतें भी बता रही हैं.
मैंने पहले ही आपको बताया था कि हमने चीन में तीन जगह जाने का चुनाव किया था. हांग्ज़ोउ तो जाना ही था, लेकिन चीन में हमारी सैर का दूसरा गंतव्य था शंघाई. रेल से हांग्ज़ोउ से शंघाई हमने मात्र एक घंटे में तय की, क्योंकि हमारी ट्रेन की स्पीड 304 किलोमीटर प्रति घंटा थी.
हमारी इमारत के ठीक नीचे मेट्रो स्टेशन होने से हमारे लिए घूमना बहुत आसान हो गया था. मेट्रो द्वारा ही हम रेलवे स्टेशन पहुंचे. हमने ऑनलाइन टिकट बुक करा लिए थे. रेलवे प्लैटफ़ॉर्म पर बहुत भीड़ थी. हांग्ज़ोउ रेलवे स्टेशन तीन तल का है. पहले तल में यात्रियों के बैठने की व्यवस्था है. निचले तल में ट्रेनों का आवागमन होता है. सबसे ऊपरी तल में खानपान के स्टोर्स हैं. जिस तल में यात्रियों के बैठने की व्यवस्था है, वहीं गेट हैं जो ट्रेन चलने से सात मिनट पहले बंद हो जाते हैं. एस्कलेटर द्वारा ट्रेन तक जाया जाता है.
जिस तरह हांग्ज़ोउ नदी के किनारे बसा शहर है, उसी तरह शंघाई भी हआंगपू नदी के दोनों किनारों में बसा शहर है. शंघाई पहुंचते ही हमें सबसे पहले भोजन की व्यवस्था करनी पड़ी. होटल के सामने ही इतालवी रेस्तरां से हमने कुछ खाया और उसके बाद घूमने निकले. दो बजते-बजते ठंड बढ़ने लगी. हमारी होटल के सामने से ही सारी बस निकलती थीं तो हमने तय किया कि हम बस से ही जाएंगे. नियमानुसार बस में एक व्यक्ति एक फ़ोन से दो लोगों के टिकट का भुगतान कर सकता है. वहां सारे भुगतान फ़ोन से हो जाते हैं तो हमारे पास कैश नहीं था. बेटी ने दो लोगों का टिकट लिया, पर एक टिकट और लेना था. बेटी पास खड़े लोगों से बात कर ही रही थी कि पीछे सीट में बैठे सज्जन तेज़ी से उठे और अपनी जेब से सिक्का निकाल टिकट लेकर बेटी को थमा दिया. मुझे अच्छा लगा. हमने उससे धन्यवाद कहा तो वो झुककर शालीनता से मुस्कुरा दिए.
जहां हम बस से उतरे वहां से यू गार्डन (Yuyuan Garden) पहुंचे, जो काफ़ी दूर था. तब तक पांच बज गए थे और गार्डन बंद हो गया था सो हम आसपास घूमने लगे. सोने के गहनों के शोरूम देखकर मैं उसमें चली गई. मैंने कहीं पढ़ा था कि चीन में सोना बहुत अच्छा मिलता है. मैं सिर्फ़ उनके डिज़ाइन देखना चाहती थी. परंपरागत गहने, जिनमें बुद्ध बने थे या सुंदर फूल, केवल विवाह में पहने जाते हैं. सेल्स गर्ल ने मुझे बारीक़ कलाकारी वाले गहने दिखाकर कहा, ये मेरे ऊपर बहुत अच्छे लगेंगे तब मैंने वादा किया कि बाद में जब मेरे पास पैसा आएगा तो मैं ज़रूर उसकी दुकान से सोना खरीदूंगी. वो मुस्कुराई और हम वहां से बाहर आ गए.
जगह-जगह बने शौचालय और रखे सड़कों के किनारे रखे डस्टबिन के सही इस्तेमाल के कारण इतनी भीड़ होने पर बेहद साफ़-सफ़ाई थी.
हम पैदल चलते चलते चलते बंड (Bund) पहुंचे. बंड में सभी बड़े-बड़े बैंक, ऑफ़िसों की शानदार इमारतें हैं. बंड नदी के किनारे से लगा हुआ है. हम नदी तट पर रात के समय के किनारे-किनारे घूमते रहे, पर आज पैदल चलने के कारण थक गए थे तो बाकी का कार्यक्रम हमने दूसरे दिन के लिए स्थगित कर होटल लौटना तय किया.
अगले दिन हम नाश्ता करके जल्द ही यू गार्डन के लिए निकल गए. पहले दिन की थकान बरकरार थी सो इस बार टैक्सी लेना उचित लगा. टिकट लेकर अंदर गए तो लगा जैसे राजा महाराजाओं या कि परियों के समय में पहुंच गए हैं. कहते हैं यह जगह चैरी ब्लॉसम के समय अपने उरूज़ पर होती है, पर मुझे तो पतझड़ के मौसम में भी उतनी ही ख़ूबसूरत लगी. ‘मिंग और कविंग’ डायनेस्टी के समय बने इस गार्डन का शिल्प अप्रतिम है. शानदार राजसी सज-धज, कमरे, सुंदर तालाब, पुल और चट्टानों में बनी आकृतियां मन मोह लेती हैं. दरवाज़ों के सामने छोटे-छोटे सफ़ेद पत्थरों से बने सुंदर डिज़ाइन देख दक्षिण भारत के घरों के दरवाज़ों के सामने उकेरी रंगोली की याद आई.
स्टेज और उसके सामने राजाओं के बैठने की जगह और चारों ओर सभासदों के बैठने की जगह देखकर लगा कि नाटकों और नृत्य का वहां भी ख़ूब प्रचलन रहा होगा. यू गार्डन देखने में हमें दो घंटे का समय लगा और फिर हमने होटल जाना तय किया. दिन के भोजन और आराम के बाद दूसरी बहुत सी जगहें देखने का प्लान जो था.
हम फिर से बंड पहुंचे और वहां फ़ेरी बोट द्वारा दूसरी ओर जाकर शंघाई टावर के लिए निकले. साफ़-सुथरी नदी पर तैरती नावें और जहाज़ बहुत सुंदर लग रहे थे. ये फ़ेरी रोज़ाना इस पार से उस पार आकर नौकरी, काम करने वालों के लिए कम किराए वाला सुविधाजनक वाहन है.
शंघाई टावर दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा टावर है. जिसमें 118 मंज़िल तक लोगों को ले जाने के लिए लिफ़्ट है. मैं डर रही थी कि इतनी ऊपर लिफ़्ट से जाते हुए दम न घुटने लगे, पर लिफ़्ट में पहुंच ही हमने ख़ुद को 86वें माले में पाया और 55 सेकेंड में हम 117 वें माले पर थे. वहां से 360 डिग्री में पूरा शंघाई शहर देखा जा सकता है. टावर के भीतर जाने पर एक बड़े स्क्रीन में शंघाई के विकास की झलक दिखाई जाती है और लौटने पर लिफ़्ट के रास्ते एक दुकान पर पहुंचते हैं, जहां से आप सेवोनियर ख़रीद सकते हैं.
हम मेट्रो से बंड लौट आए. आज हमें रोशनी देखनी थी. यहां हमें दो प्यारी सी लड़कियां मिलीं, जिन्होंने हमारे साथ फ़ोटो खिंचाने की इच्छा ज़ाहिर की. हमारे भीतर सेलिब्रिटी वाली फ़ीलिंग आ रही थी. दोनों को ख़ुश देख हमें ख़ुशी हुई. ऐसे बहुत से अवसर आए जब वहां के लोगों ने हमें सेलिब्रिटी वाली फ़ीलिंग दी. रात अपने सुरूर में थी. रोशनी से हर इमारत जगमगा रही थी. ओह कितना सुंदर था!
अगले दिन हम फ्रेंच कन्सेशन गए. इस जगह पहुंचने पर ऐसा लगता है मानो फ्रांस पहुंच गए हों. इस स्थान पर गलियां ही गलियां हैं. जिन्हें हुतौंग कहते हैं. हुतौंग में कॉफ़ी शॉप, आर्ट गैलरी, छोटी-छोटी दुकानें भी हैं. चीन आए विदेशी लोग हुतौंग में रहना चाहते हैं ताकि यहां की वास्तविक ज़िंदगी से रूबरू हो सकें.
आज शंघाई से वापिस हांग्ज़ोउ जाना था. हांग्ज़ोउ में दो दिन के आराम के बाद हम बीजिंग के लिए रवाना होने वाले थे.
फ़ोटो साभार: रीना पंत