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अकेली रह रही औरतें: शैलजा पाठक की कविता

टीम अफ़लातून by टीम अफ़लातून
October 7, 2021
in कविताएं, बुक क्लब
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अकेली रह रही औरतें: शैलजा पाठक की कविता
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अकेली रह रही औरतें, अपनी प्रतिभा के दम पर घर के बाहर नाम कमाती औरतें समाज की नज़रों में हमेशा चुभती रही हैं. उसके लिए तमाम पूर्वधारणाओं को तोड़ने की ज़रूरत है. और उसको क़ैदी बनाए रखने के लिए की जानेवाली झूठी तारीफ़ें भी बंद करनी होगी. औरत को देखने की नज़र भी बदलनी होगी. शैलजा पाठक की कविता इन्हीं बिंबों के इर्द-गिर्द बुनी गई है.

अकेली रह रही औरतों के पैर में मक्खन नहीं लगे रहते,
जो जब जहां फिसल जाएं
न रीढ़ किसी भरे फल की डाल है,
जो झुक जाए हर किसी के आगे

इनकी आंखों में बेचारगी की तलाश पर तुम मुंह की खाओगे
इनके खुले कंधों पर तुम कितने ताने सुनाओगे

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कान में फ़िल्टर है इनके
जब जितना चाहती हैं उतना ही सुनेंगी

अब वो हाथ में बच्चा पकड़े कलम
या किसी ऑफ़िस के केबिन की चाभी
ये क़तई उनकी मर्ज़ी है

बॉस के साथ कॉफ़ी हाउस जाती,
अगर आप किसी गरम बिस्तर तक कि कल्पना का स्वाद लेने लगे हैं
तो आग हमेशा आपके दिमाग़ में ही लगी है

वो बच्चा नहीं पैदा कर पाई इसलिए छोड़ दी गई
पति को धोखा दी और घर से बेघर कर दी गई
अब इन दलीलों पर क़सम से ध्यान ही नहीं जाता

वो ख़ुश नहीं थी
वो बंदी महसूस कर रही थी
उन्हें पहरे नहीं थे पसंद
गालियों और तानों में कब तक देती जान

तो बस अलग हो गई
अब इनकी अलग जि़ंदगी ख़ुशहाल है
किसी पुरुष से ही पूरी हो जीवन की मुस्कान,
ये उसे धता बता मज़े से
तमाम रंग के फूलों वाली छत पर बैठी गुनगुना रही है

और ये जो आठों भुजाओं में घर-बच्चे-चिमटा-चाबी-दफ़्तर-बर्तन वाली फ़ोटो है न
वो महज़ बकवास है
ऐसी तारीफ़ों से ये फुनगी पर नहीं चढ़ेगी

ये अपने हिसाब से सब संभालेगी
तलवार भी इनकी, धार भी इनकी
ज़ुबान भी इनकी

मंडपों में ही नहीं है शक्ति
घरों में भी क़ैद है
इन्हें बेदम मारा है लोगों ने
इनके सपने खप्पर के राख की तरह छिटके हैं
ये अपमान से तिलमिलाई हैं
शिव ने कंठ में रोक लिया था ज़हर
इनके नसों में है

किसी अकेली औरत की खुली कमर
गहरे कट वाले ब्लॉउज़ में झांकने से बेहतर है, आंखों में झाकिए

देखिए कितनी ताब है
कितनी मौतों के बाद भी अड़ी है

बदलते स्वरूप को मान तो देना ही चाहिए
इनके होने को दर्ज करना चाहिए

नव रात से ज़्यादे रातें ये जग के बिताई हैं
ये जो अपनी पहचान बना रहीं
ये जो लगातार आपकी नज़रों में चुभी जा रही

और ये तो आप ही हैं न
घर की औरत साड़ी में लिपटी पसंद
दूसरी औरत खुले कपड़ों में

इस दोगले सोच को ठोकर मारती, इन औरतों के नाम घरों के नेमप्लेट लग रहे
अब ये फेंकी टूटी प्लेटों के कांच उठाते बिचारी नज़र नहीं आएंगी

क्यों न आप नज़र बदल लें
कर के देखिए…अच्छा लगेगा

Illustration: Pinterest

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