वरिष्ठ साहित्यकार अरुण कमल की कविता ‘धार’ मेहनतकश वर्ग की ज़िंदगी की कहानी कहती है. साथ ही कवि यह भी कहते हैं कि वे जो कुछ देख रहे हैं, अपनी कविता के माध्यम से वही कह रहे हैं. कविता का पूरा कच्चा माल समाज से लिया हुआ है. इसमें कुछ भी बनावटी नहीं है.
कौन बचा है जिसके आगे
इन हाथों को नहीं पसारा
यह अनाज जो बदल रक्त में
टहल रहा है तक के कोने-कोने
यह कमीज़ जो ढाल बनी है
बारिश सरदी लू में
सब उधार का, मांगा चाहे
नमक-तेल, हींग-हल्दी तक
सब कर्ज़े का
यह शरीर भी उनका बंधक
अपका क्या है इस जीवन में
सब तो लिया उधार
सारा लोहा उन लोगों का
अपनी केवल धार
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