कुछ शब्द डिक्शनरी से ग़ायब हो रहे हैं: अमरेन्द्र यादव की कविता
हर बीतते दिन के साथ, बहुत कुछ पीछे छूट जाता है. कैलेंडर के पन्नों के बदलते ही काफ़ी कुछ बदल...
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हर बीतते दिन के साथ, बहुत कुछ पीछे छूट जाता है. कैलेंडर के पन्नों के बदलते ही काफ़ी कुछ बदल...
हाल ही में बहुत कम अंतराल के बीच लेखिका, सम्पादक शरद सिंह ने पहले अपनी मां को हार्ट अटैक के...
समय कठिन है और यदि आप ख़ुद को स्वस्थ रखना चाहते हैं तो अपनी प्रतिरोधक क्षमता यानी इम्यूनिटी को सही...
यदि आपको नल आर्ट पसंद हैं, लेकिन बेहद सादे तो आपको बता दें कि सादे-से नेल आर्ट्स बेहद आकर्षक लगते...
यदि आप भी उन लोगों में से हैं, जिन्हें गेरुए रंग से प्यार है तो हम यहां आपको इस रंग...
यदि सतर्क रहा जाए, सजग रहा जाए तो आप किसी भी परिस्थिति में अपनी ज़िंदगी को सही दिशा दे सकते...
यदि आज के समय में, जबकि मास्क पहनना बेहद ज़रूरी है, आपका किसी ऐसे समारोह में जाना बहुत ही ज़रूरी...
कवियों-लेखकों ने मां को परिभाषित करने का हर युग में प्रयास किया है. सोशल मीडिया प्लैटफ़ॉर्म इंस्टाग्राम पर हिंदी लिखनेवालों...
मां कहने को तो एक शब्द है, पर जब इसे परिभाषित करने जाएं तो दुनिया के सारे शब्द कम पड़...
जैसे-जैसे समय बदलता है हर चीज़ बदलती है. मातृत्व और उसका अनुभव भी समय के साथ थोड़ा-थोड़ा बदल जाता है....
हर वह शख़्स फिर चाहे वह महिला हो या पुरुष ‘अफ़लातून’ ही है, जो जीवन को अपने शर्तों पर जीने का ख़्वाब देखता है, उसे पूरा करने का जज़्बा रखता है और इसके लिए प्रयास करता है. जीवन की शर्तें आपकी और उन शर्तों पर चलने का हुनर सिखाने वालों की कहानियां ओए अफ़लातून की. जीवन के अलग-अलग पहलुओं पर, लाइफ़स्टाइल पर हमारी स्टोरीज़ आपको नया नज़रिया और उम्मीद तब तक देती रहेंगी, जब तक कि आप अपने जीवन के ‘अफ़लातून’ न बन जाएं.
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