एक पिता के लिए बेटियां क्या होती हैं, बता रही है कुंवर बेचैन की कविता ‘बेटियां’.
बेटियां
शीतल हवाएं हैं
जो पिता के घर बहुत दिन तक नहीं रहतीं
ये तरल जल की परातें हैं
लाज़ की उज़ली कनातें हैं
है पिता का घर हृदय-जैसा
ये हृदय की स्वच्छ बातें हैं
बेटियां
पवन-ऋचाएं हैं
बात जो दिल की, कभी खुलकर नहीं कहतीं
हैं चपलता तरल पारे की
और दृढता ध्रुव-सितारे की
कुछ दिनों इस पार हैं लेकिन
नाव हैं ये उस किनारे की
बेटियां
ऐसी घटाएं हैं
जो छलकती हैं, नदी बनकर नहीं बहतीं
Illustration: Pinterest
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