भूख की कई परिभाषाएं हो सकती हैं, जाने-माने कवि अरुण चन्द्र रॉय की कविता कुछ परिभाषाएं बता रही है.
कई प्रकार की
होती है
भूख और
कई आकार की भी
होती हैं
जैसे कहीं
आसमान के वितान-सी
विस्तृत भूख
तो कहीं संतोष के भाव-सी
लघु भूख
भूख के
रंग भी हैं
कई और
कई अर्थ भी
होते हैं
बदलते हुए स्थान और भाव के साथ
बदल जाते हैं
भूख के मायने
भूख का
इन्द्रधनुष
बीच दोपहरी में दीखता है
कभी
खेतों में
खलिहानों में
बस अड्डों पर
रेलवे स्टेशन पर
मेट्रो शहरों की लालबत्ती पर
पसारे हुए हाथ
भूख
अपनी पूरी रंगीनियत में
होती है
जब वह होती है
पांच-सितारा होटलों की लॉबी में
कारपोरेट के बोर्ड रूम में
स्टॉक एक्सचेंज की रैलियों में
भूख का विज्ञान
अलग होता है
और
पृथक होता है
भूख का भूगोल
भूख
विस्तार लिए हुई है
कारख़ानों में दम फुलाते
मज़दूरों से लेकर
स्वयं से समझौता करती
बालाओं तक
यही भूख
प्रयोगशालाओं में
सृजित कर रही है
ज़िंदगी
तो यही भूख
बेबस कर रही है
पेड़ पौधों और जंगलों को
आंखों की भूख
पेट की भूख से
होती है विलग
और
देह की भूख
पर भारी पड़ती है
सपनों की भूख
और
एक अजीब सी भूख है यह
जब कहता हूं मैं
तुमसे,
‘सदियों से
भूखा हूं मैं
तुम्हारी एक हंसी के लिए’
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