दिखावा फिर चाहे निजी हो या सामाजिक यह किस तरह ले डूबता है, बिना सोचे-समझे लीक पर चलते चले जाने का नतीजा कैसा होता है यह जानना चाहती हैं तो इस कहानी की मिसेज़ श्रीवास्तव से ज़रूर मिलें.
कहानी शुरू करने से पहले मैं पाठकों को बता दूं कि इस कहानी के सभी पात्र असली हो सकते हैं और आपके आस-पास पाए जा सकते हैं! कहानी को लिखते हुए मुझे बराबर जान का ख़तरा बना हुआ है पर फिर भी कुछ क़िस्से उनको सुना दिए जाने पर मजबूर करते हैं. तो शुरू करें…
किसी शहर के किसी इलाके में एक बड़ी-सी बिल्डिंग थी, उसमें कई फ़्लैट्स बने हुए थे. एक लम्बा-सा गलियारा था और सभी फ़्लैट्स के दरवाज़े उसी में खुलते थे- जैसे मुंबई की चॉल में होता है… तो ज़ाहिर है कि कभी छोटा और कभी बड़ा विवाद होने की संभावनाएं लगातार बनी रहती थीं. कभी किसी के घर से गन्दा पानी दूसरे के घर के दरवाज़े तक चला जाता, तो कभी एक फ़्लैट में काम करने वाली बाई, दूसरे फ़्लैट के सामने कूड़ा ड़ाल आती, कभी कपड़े सुखाने को लेकर, तो कभी रास्ता घेरने को लेकर लगातार चलते विवाद बिल्डिंग में रौनक बनाए रखते थे , जब विवाद बहुत बढ़ जाता तो कई बार सड़क चलते लोगों को भी बीच- बचाव के लिए आना पड़ता.
लोअर मिडिल क्लास, मिडिल मिडिल क्लास दोनों श्रेणियां इस बिल्डिंग में स्थापित थीं. इसलिए कई बार क्लास इशू भी ज़ोर पकड़ लेता! साथ ही बिल्डिंग में गुटबाज़ी भी हावी थी, इसके चलते त्यौहार सामूहिक रूप से तो मनाए जाते पर तीन से चार जगह अलग-अलग!
बिल्डिंग की पानी सप्लाई की मशीन ख़राब हो जाने पर आरोप-प्रत्यारोप के चलते फ़्लैटवासी दो- तीन दिनों तक सड़क किनारे लगे सरकारी नल से पानी लाते, बाद में कहीं जा कर सहमति बन पाती और तीसरे-चौथे दिन पानी की सप्लाई सुचारु हो पाती.
इसी बिल्डिंग में एक परिवार रहता था- श्रीवास्तव परिवार. पति, पत्नी और लड़के की चाह में हुई चार लड़कियां. वर्तमान में केवल तीन लड़कियां ही साथ थीं, एक लड़की शादी कर के जा चुकी थी, पर ससुराल से प्रताड़ित हो कर उसका आना-जाना लगा ही रहता था.
घर के मुखिया मिस्टर श्रीवास्तव जिन्हें बिल्डिंग वालो ने केके नाम दे रखा था- के से कल्लू और के से… माफ़ कीजिएगा मैं अपनी कहानी में अपशब्दों के प्रयोग से बचना चाहती हूं. तो केके जी एक ड्राफ़्टमैन थे, जो ख़ुद को बड़े फ़ख्र से इंजीनियर कहते थे. उनका सारा दिन नक़्शे बनाने और क्लेश करने में बीतता था. वैसे देखा जाए तो वो घर में मौजूद चार स्त्रियों से दबे हुए थे और अक्सर अपने होने का एहसास दिलाने को चीखते चिल्लाते थे, परन्तु उनकी आवाज़ नक्कारखाने में तूती की तरह दब कर रह जाती!
यूं तो इस परिवार के सभी पात्र विचित्र थे, पर विचित्रता की धुरी मिसेज़ श्रीवास्तव पर ही टिकी हुई थी. शौक़ उन्हें बस गुटका खाने और बातें बनाने का था. मिसेज़ श्रीवास्तव जो मुश्क़िल से दसवीं पास थीं, अक्सर पड़ोसियों से झगड़ते हुए ख़ुद को बीएड बतातीं.
“आउर तुम लोगन को तो बात करन की तमीज तो है नई, समझ का रखा है, अगर मैं आज नौकरी कर रही होती तो पच्चीस-तीस हज़ार रुपैया कमा रही होती. घर-परिवार की वजह से मैंने लगी लगाई नौकरी छोड़ दई…”
नौकरी कर रही महिलाओं से उन्हें ख़ासा रश्क था. वो अक्सर ऐसी महिलाओं को कामचोर कहतीं जो घर और बच्चों की ज़िम्मेदारियों से बचते हुए बाहर हंसी-ठट्ठे में अपना समय बिताना चाहती हैं!
लड़कियों की पढ़ाई से ज़्यादा दूसरे घर भेजने पर ज़ोर था, हर शादी ब्याह के न्यौते पर कपड़ों की विशेष रूप से ख़रीदारी होती और शादी निपटते ही ये क़ीमती कपड़े गठरी में घुसा दिए जाते. ये गठरी सारे कपड़ों की पनाहगाह थी, जहां से कपड़ों को तभी बाहर की हवा खाने को मिलती जब कहीं बाहर जाना होता, दबे-कुचले से कपड़े, जिन्हें कम से कम बार तीन बार प्रेस करने के बाद ही पहनने क़ाबिल बनाया जा सकता था.
शादी में जाने से पहले इतनी भारी मात्रा में मेकअप किया जाता कि दूल्हे को दुल्हन पहचानने में भ्रम हो जाए! मिसेज़ श्रीवास्तव को रात दिन यही चिंता रहती कि सारी लड़कियों के लिए दहेज जुटाना है, अपने मिस्टर केके को वो इस बात पर ताना अक्सर देतीं. उनके ऑफ़िस से लौटते ही वो गुटके की एक पुड़िया मुंह में खाली कर लेतीं और फिर चाय का प्याला लेकर उनके पास जातीं, तब तक केके अपनी बुशर्ट उतार कर पंखा फ़ुल करके लेट जाते. कप केके तरफ़ बढ़ाते ही वो शुरू हो जातीं,‘‘लड़कियां पैदा कर-कर के डाल दईं, अब हाथ-पैर काहे नहीं मार रये? ऑफ़िस के बाद ओवरटाइम काहे नहीं करते? उहा कोनो खेत जोतत हो, जो घर आते ही पसर जात हो?”
इस पर के के भड़क कर उठ बैठते.
“तो तुमई नौकरी काहे नहीं कर लेतीं? लड़कियां तुम्हारी न हते? पूरा दिन घर में पड़े-पड़े जुगाली ही तो करत हो.“
तुरंत मिसेज़ श्रीवास्तव का बीपी हाई हो जाता.
“जुगाली? भैंस बोल रये हमको? अरे जे लड़कियां क्या अपने आप ही पल गईं? आउर, काउन से तुमने दुई- चार नौकर लगा रखे थे? मेरी किस्मत की लकीरें तक घिस गईं, इस घर के बर्तन घिसते-घिसते.”
फिर ग़ुस्से में केके कप फोड़ देते. बची हुई चाय कपड़ों, चादर, परदे, फ़र्श इन सब पर उनकी चिक-चिक के निशान छोड़ देती और मिसेज़ श्रीवास्तव अपनी साड़ी का पल्लू मुंह में ठूंस कर सुबकने लगतीं.
बिल्डिंग के सभी घरों के अंदर की बातें इस परिवार के साथ मात्र एक घंटा बिताने पर सहज उपलब्ध हो जाती थीं. साथ ही साथ वो अपनी एक औलाद के अस्पताल में बदल जाने की घटना भी बड़े हृदय- विदारक ढंग से सुनातीं, उनका मानना था कि उनकी तीसरी औलाद लड़का था, जिसे अस्पताल वालों ने बड़ी चालाकी के साथ बदल कर उन्हें लड़की थमा दी. इस बात पर कई लोगों ने उन्हें डीएनए टेस्ट करवाने की सलाह भी दी थी, जिसे उन्होंने कभी गंभीरता से नहीं लिया. पर उनकी इस बात पर कई बार इसलिए विश्वास करने का मन कर जाता, क्योंकि उस लड़की जिसका नाम पम्मी था, का स्वभाव पूरे घर से भिन्न था. उसकी रुचि पढ़ाई में अधिक थी और वो कामचोर भी बहुत थी. जबकि बाक़ी लड़कियां घर के हर काम में कुशल थीं, पर पढ़ाई में उनके हाथ तंग थे.
श्रीवास्तव परिवार की मेहमांनवाज़ी के सब कायल थे. अगर उन्हें किसी से किसी भी तरह के मतलब हल होने की सम्भावना नज़र आ जाती तो वो उसके सामने कालीन की तरह बिछ सकते थे. इतना आदर- सत्कार कि एक बार को तो आंखें भर आएं. मिसेज़ श्रीवास्तव इतना मनुहार करती कि पेट भरा होने के बाबजूद दो समोसे खाने को मजबूर हो जाना पड़ता.
काफ़ी जतन के बाद उनकी बड़ी लड़की रचना के लिए एक रिश्ता आया. रिश्ता आते ही बिल्डिंग के कई लोगों को इसकी जानकारी इस हिदायत के साथ दी गई कि बात को गुप्त रखा जाए. दो दिन में बिल्डिंग में सभी को पता चल चुका था. लड़के और उसके परिवार के बारे में बढ़ा-चढ़ा कर बताया जा रहा था. ख़ास रिश्तेदारों को इस जानकारी से दूर रखा गया था. मिसेज़ श्रीवास्तव का मानना था, कि अच्छा लड़का होने पर वो रिश्तेदार जिनकी लड़कियां शादी लायक हैं, भांजी मार सकते हैं.
ख़ुशी का माहौल था, तैयारियां ज़ोरों पर थी, बाज़ार के तीन- चार चक्कर तो रोज़ लग ही जाते होंगे. बाक़ी लड़कियां जीजू -जीजू कर के बौराई हुई थीं.
“जीजू प्राइवेट कंपनी में मैनेजर हैं. इकलौते लड़के हैं. अपना मकान है, पांच किरायेदार हैं! बहन सरकारी नौकरी में है, बहनोई बैंक में मैनेजर हैं… जीजू ये, जीजू वो… जीजू …”
पता नहीं क्यों, पर ये “जीजू” शब्द मुझे बड़ा इर्रिटेटिंग लगता है!
रात दिन जीजू-पुराण का वाचन चल रहा था, हम भी पड़ोसी होने के नाते अच्छे श्रोता का किरदार निभा रहे थे. फिर वो दिन तय हो गया जब “जीजू” अपने लाव-लश्कर के साथ लड़की देखने और शादी पक्की करने पधारने वाले थे! तैयारियां युद्ध स्तर पर चलने लगीं, आनन-फानन ज़रीना बानो, जो उनकी दाएं बगल की पड़ोसन थीं, से कालीन और क्राकरी लगभग जबरन मंगा ली गईं. एक और पड़ोसी के घर से गहरे नीले रंग के रेशमी परदे जिन पर गुलाबी रंग के फूल बिखरे हुए थे, फटाफट उतरवा लिए गए. हमारे घर से भी कुछ क़ीमती शो पीस उठवा लिए गए थे. किसी पड़ोसी ने दबी हुई आवाज़ में विरोध जताना चाहा तो उस बेचारे को लड़की की शादी का वास्ता और “कन्यादान महादान” जैसे प्रवचन देकर गंभीर रूप से इमोशनली टार्चर किया गया.
बस फिर क्या था, दो कमरों का उनका दड़बा, शानदार राजमहल लगने लगा, इस नए अवतार को देखने के लिए पड़ोसियों को मान-मनुहार करके बुलाया गया और चाय नाश्ते से उनकी भरपूर ख़ातिर की गई.
“जीजू” आज आने वाले थे, सुबह पांच बजे से ही बर्तनों की खटर-पटर और श्रीवास्तव परिवार की बटर-बटर चालू हो गयी. टोह लेने को कई पड़ोसिनें मॉर्निंग वॉक के बहाने दलान में टहलने लगीं तो जानकारी मिली कि महाभारत चालू थी. एक तरफ़ चार स्त्रियां और दूसरे मोर्चे पर अकेले केके! हालात बिगड़ते देख कुछ रुआबदार पड़ोसी बीच-बचाव को आए. मामला शांत करने तक झगड़े की असली वजह का पता नहीं चल पाया था.
बरसात शुरू हो चुकी थी, बिल्डिंग के सामने एक तालाब बन गया था, जो बिल्डिंग के ‘जल महल’ होने का भ्रम दे रहा था. लगभग शाम के चार बजे एक लाल घिसी हुई मारुति 800 बिल्डिंग के सामने रुकी. दबे-फंसे से सात लोग गाड़ी से बाहर निकले और राहत की सांस ली… ऐसी ही एक राहत की सांस शायद मारुति ने भी ली होगी! मारुति की लैंडिंग इसी छोटे तालाब में हुई, जिससे जीजू ऐंड फ़ैमिली की चरण पादुकाएं पानी और कीचड़ से लथपथ हो गईं.
मिसेज़ श्रीवास्तव जो कि एक बजे से ही बालकनी में टंगे हुए सात पुड़िया गुटका खा चुकीं थीं, तुरंत हरकत में आ गईं. गुटका थूकते हुए उन्होंने अपनी दो लड़कियां फूल मालाएं ले कर नीचे दौड़ा दिया. मिस्टर श्रीवास्तव उर्फ़ केके नई शर्ट में सिर खुजाते हुए फ़्लैट के दरवाज़े पर प्रकट हुए. मिसेज़ श्रीवास्तव ने नज़र उनको घूरा,“बटन तो ठीक से लगा लेयो.”
जब तक केके अपने बटन ठीक करते, मिसेज़ श्रीवास्तव ने तुरंत पड़ोसियों को इकठ्ठा करने को अपनी कामवाली को दौड़ा दिया.
जीजू जिसका नाम विशाल था, विशाल तो नहीं पर बांस जैसा लम्बा ज़रूर था! रंग गोरा, गाल पिचके हुए, दबी हुई नाक, शक्ल से वो ऐसा आम लगता था, जिसका अभी-अभी रस चूस के छोड़ दिया गया हो! आदर सत्कार के बाद “जीजू ” के पिताजी, जो काफ़ी मरियल थे और अभी खाकी रंग के सूट के अंदर स्थापित थे, ने घर का मुआयना करते हुए “जीजू” की बहन की तरफ़ देखते हुए गंभीरतापूर्वक सिर हिलाया. बहन ने भी गंभीरता से सिर हिलाया और बोलीं,”देखिए जी, लड़की तो ठीक है. और वैसे तो हमारे पास कोई कमी नहीं, पर आप अपनी लड़की को कुछ तो देंगे…! अभी हम छत पर एक कमरा बनवा ही रहे हैं, भाई की शादी को, उसमें ही ढाई-तीन लाख का ख़र्चा है. आपकी लड़की के आराम को ही बनवा रहे हैं!”
“वैसे भी आपके घर की शानो-शौकत देख कर ढाई-तीन लाख कैश कोई बहुत बड़ी रकम तो है नहीं ,” ‘‘जीजू” का बहनोई भुने हुए काजू लेते हुए बोला.
केके जिनको पहले से ही घर का ख़र्च चलना मुश्क़िल हो रहा था, एकदम से भड़क गए,“कमरे में कुंवर साब भी तो रहेंगे…”
“अरे…बेटी इतना कहां से हो पाएगा? हमारी इसके बाद दो लड़कियां और भी तो हैं…” मिसेज़ श्रीवास्तव ने मामले को संभालने की कोशिश की.
कुछ सेकंड्स तक कमरे में तनावपूर्ण शांति पसर ही गई थी कि इतने में “जीजू” के सबसे छोटे रिश्तेदार यानी भांजे ने उस कालीन पर सूसू कर दी, जिस पर थोड़ी देर पहले ही जीजू ने दही-बड़ा फैलाया था और मिट्टी तो थोड़ी देर पहले सभी की चरण पादुकाओं से लग ही चुकी थी!
ज़रीना बानो, जिन्हें रसोई में बिरयानी बनाने के काम में जुटा रखा गया था, उनका दिल अपने कालीन की दुर्गति देख कर ज़ार-ज़ार रो रहा था. कालीन को साफ़ करने की जद्दोज़हद में कुछ देर सभा विसर्जित हो गई. जीजू और उनके रिश्तेदार बाहर निकल कर बरामदे में आ गए.
मिसेज़ श्रीवास्तव अपने कुछ पड़ोसियों को “जीजू” के मारुती 800 से आने की सफ़ाई दे रहीं थीं.
“लल्ली! इन पर इन्नोवा है, जो एक दोस्त मांग कर ले गया था, कल शाम को वापस आने वाला था पर आया नहीं. जे कारण इन्हें सुबह निकलने में देर हुई गई! इनकी जीजी की कार भी सर्विसिंग को गई थी, जे तो पीछे गेरज में खड़ी रहती है, फिर कोई रास्ता न देख मारुति की शरन लेनी पड़ी!”
इतने में बबली जो कि घर की सबसे छोटी और चंचल लड़की थी, एक बड़े से थैले में रामबाबू के प्रसिद्ध समोसे और गुलाब जामुन लेकर हांफती हुई कमरे में दाखिल हुई. रसोई में चाय उबल रही थी, सो सभा फिर से जम गई!
थोड़ी देर इधर-उधर घूमने के बाद ‘बात’ फिर दहेज पर आ कर अटक गई! जीजू की मां जो अब तक सिर्फ़ दर्शक की भूमिका में थी, मंच संभालने को उतारू दिखाई दीं. उन्होंने गला खखारा तो जीजू ऐंड फ़ैमिली एकदम चुप हो गए.
“भाभी जी, हमारा विशाल बहुत बड़ी कंपनी में है, रिश्ते तो बहुत आते रहते हैं, जहां संजोग लिखा होगा वहीं हो जाएगा! नौकरी वाली भी कई लड़कियां मिल रहीं हैं, जो अच्छे पैसे वाले घरों की हैं. ज़िन्दगी भर कमाएंगी सो अलग! आपकी रचना तो अभी बीएड भी नहीं है…” आवाज़ में थोड़ी रुखाई लिए उन्होंने रचना के लिपे-पुते चेहरे को घूरा.
ख़ैर, रात दस बजे जीजू ऐंड फ़ैमिली को मिठाई और तोहफ़ों के साथ विदा किया गया.
उन के जाते ही रचना जो अभी तक गौ-माता सरीखी बनी हुई थी, तुरंत रणचंडी के रूप में आ गई.
“मैं तो विशाल से ही सादी करूंगी. बड़ी दीदी की सादी में पांच लाख ख़र्च करे थे तुम लोगन ने. अब मेरी सादी में तीन लाख में ही तुमाय हाथ-पैर फूलन लगे? कितना बुरा लगा होगा उन लोगन ने, जब ढाई-तीन लाख में ही तुम लोग मुंह बिचका रहे थे. जब औकात न है तो काहे डाल दई इत्ती लड़कियां पैदा कर-कर के? “
“तोय तो पैदा होते ही मार देते तो अच्छा होगा, करमजली शादी हुई भी न अबी, अबई से तू ससुराल की सगी हो गई. गलत न कही जिनने भी कही-लड़कियां अपनी न हो सके हैं!” मिसेज़ श्रीवास्तव ने ग़ुस्से में इतनी ज़ोर से दरवाज़ा बंद किया कि नीले रेशमी परदे के कुछ फूल कुचल गए!
एक बार फिर बर्तनों के पटकने की आवाज़ें आने लगी, बाहर से ये बताना ज़रा मुश्क़िल था कि इस संग्राम में कौन, किस तरफ़ है. बरहाल टोह लेने वालो की नाईट वॉक शुरू हो चुकी थी.
कई दिनों तक विशाल उर्फ़ “जीजू” की तरफ़ से कोई फ़ोन नहीं आया, परिवार के भारी दवाब में आख़िर केके ने ही फ़ोन मिलाया .
उधर से थोड़ी रुखाई से बात की गई. मोल-भाव के बाद नतीजा ये निकला कि उन्हें तीन लाख कैश, पूरा फ़र्नीचर, कपड़े-लत्ते और शानदार शादी चाहिए.
घर में एक बार फिर से महाभारत छिड़ गया. केके इतना ख़र्च करने को तैयार नहीं थे, पर स्त्री खेमे में विशाल के नाम पर स्वीकृति बन चुकी थी. वो किसी भी हालत में “जीजू ” को हाथ से नहीं जाने देना चाहती थीं.
बात फ़ाइनल हो गई. जैसे-तैसे पैसों का इंतज़ाम हुआ. अब तो जीजू पुराण पूरा ज़ोर पकड़ चुका था!
“जीजू ने पच्चीस हज़ार का लहंगा लिया है दीदी के लिए, सौ से ऊपर बाराती आएंगे, बारात में दस कारें और एक बस आएगी, जीजू की कंपनी के बॉस भी आएंगे, जीजू को सब बहुत मानते हैं… जीजू…जीजू…”
पड़ोसियों का सामान जो एक-दो दिन को मांगा गया था, अब शादी होने तक बंधक बना लिया गया. उसके पीछे उनका ये तर्क था कि कभी भी अचानक जीजू ऐंड फ़ैमिली आ सकते हैं! पड़ोसियों के घर दो-दो, चार-चार गुलाब जामुन भिजवा कर सांत्वना दी गई.
शादी के दिन अलसुबह ही रचना और छोटी बहनें ब्यूटी पार्लर चली गईं. बाक़ी पड़ोसियों को काम में लगा रखा था, भाईचारा निभाते हुए सभी बड़े मनोयोग से लगे हुए थे.
बारात का इंतज़ार करते-करते रात के बारह बज गए. बाद में गिने-चुने मेहमानों की मौजूदगी में रात के करीब दो बजे जयमाल हुआ. गिने-चुने इसलिए क्योंकि दिसंबर की भारी ठंड में रात दो बजे तक खुले में ठिठुरते रहने का साहस बिरले लोग ही मजबूरी में उठा सकते हैं!
रचना जो शाम सात बजे से भारी भरकम मेकअप और नकली किराए के गहनों से लदी-फदी बैठी थी, उसने लिपस्टिक ख़राब हो जाने के डर से रात दो बजे तक होंठ नहीं खोले थे, वो अपनी हर भावना, जैसे-क्रोध, आक्रोश, चिड़चिड़ाहट, ख़ुशी सभी को इशारों से ही व्यक्त कर रही थी.
सुबह विदाई के समय जीजू के मामा बारात की बस का किराया मांगने लगे. केके जो पहले से ही कर्जे में थे, एकदम से भड़क गए, गरमा-गर्मी होने पर जीजू ऐंड फ़ैमिली ग़ुस्से में सारा सामान छोड़ केवल दुल्हन यानी अपनी रचना को ले गए.
मिसेज़ श्रीवास्तव करुण विलाप कर रहीं थीं. माहौल भारी हो गया था, जीजू ऐंड फ़ैमिली की बुराई ज़ोरों पर थी.
“बड़े लालची लोग हैं… इत्ता दिया पर पेट नहीं भरा इन लोगन का, इत्ता कमाबे से का फ़ायदा जब दहेज को लड़ाई कर रये… “
दो दिन बाद ‘‘जीजू” को मनाने के लिए शांति वार्ता दल गया, जो तीस हज़ार कैश और शादी का सामान लाद कर भेजा गया.
कुछ दिनों बाद फिर जीजू पुराण शुरू हो गया.
“जीजू तो दीदी को रानी बना कर रखते हैं, सास तो कोई काम करने नहीं देती, जीजू दीदी के लिए डायमंड सेट लाए…जीजू…जीजू…जीजू तो दीदी को हनीमून पर बैंकॉक ले जाने वाले हैं…”
कुछ समय बाद एक दिन जब फ़्लैट नंबर चार वालीं, फ़्लैट नंबर पांच की काम वाली को गन्दा पानी फैलाने पर गरिया रही थीं, तब उन्हें रचना सूजा मुंह लिए गलियारे में नज़र आई. बस फिर क्या था… प्रकाश की गति से समाचार फैल गया! और अब शुरू हुआ “जीजू निंदा पुराण.”
“हम सोच भी नहीं सकते थे, जीजू ऐसे निकलेंगे. दीदी को सारे दिन काम में लगाए रखते हैं. नौकरी भी नहीं करते. रोज़ रात में दारू पीते हैं. रचना दीदी को मारते भी हैं… जीजू…जीजू…जीजू ऐसे… जीजू वैसे…”
कुछ पड़ोसियों ने सुनाने के लिए मौके का फ़ायदा भी उठाया.”भाभी जी हम तो पहले ही कह रहे थे, लड़के वालों के सामने जितना हो उससे भी कम दिखाना चाहिए, पर आप तो सुनती ही नहीं. पूरा घर राजमहल बना दिया था. ऐसे में उनका मुंह फाड़ना तो बनता ही था.”
“हां, आप सही कह रये हो भाई साब. मैं तो इन लड़कियन की बातों में आ गई. आज से कोई दिखावा नहीं करूंगी. पहले ही इतना उधार हो गया है इन पर. अब कहां से और कईसे चुकाएंगे…?” कहते हुए उन्होंने साडी का पल्लू मुंह में ठूंस लिया और ज़ोर-ज़ोर से सुबकने लगीं
जैसे-तैसे बिरादरी के लोगो को बुला कर समझौता कराया गया और रचना को ससुराल भेज दिया गया. पर झूठ और दिखावे का अंजाम कभी अच्छा हुआ है भला? रचना ख़ुश नहीं रह पाई. रोज़ का क्लेश, ताने और मारपीट.
हमने बाक़ी दो लड़कियों को अच्छे से पढ़ाने और आत्मनिर्भर बनाने की सलाह दी. मिसेज़ श्रीवास्तव और उनके परिवार ने पूरे मनोयोग से सलाह सुनी और अमल करने का आश्वासन दिया.
सोचा,“चलो अच्छा हुआ, ठोकर खा कर ही सही, इन्हें अक्ल तो आई !”
डेढ़ -दो साल बीत गए हैं, रचना ने लड़की को जन्म दिया तो “जीजू ” ऐंड फैमिली के अत्याचार बढ़ गए हैं.
आज सुबह से ही मिसेज़ श्रीवास्तव के घर में बड़ी सुगबुगाहट है. सर्दियों की नर्म धूप में पापड़ सुखाती हुई वो तीन नंबर फ्लैट की भाभी को बता रहीं हैं,“पम्मी के लिए रिश्ता आया है. लड़का इंजीनियर है. अभी काऊ को बोलना मति… बिरादरी में पता लग गया तो लड़का लपक लेंगे….”
सबसे छोटी लड़की बबली को ज़रीना बानो के यहां चादर और कारपेट लेने भेजा गया. कुछ देर बाद मेरे दरवाज़े पर भी दस्तक हुई.
“दीदी… आपका सिल्वर वाला टेबल लैंप दे दो न! पम्मी दीदी को देखने जीजू आने वाले हैं!”