यौवन से लेकर बुढ़ापे तक औरतों का नींद से नाता उनके संपूर्ण जीवनचक्र को बयां कर जाता है. कवयित्री अनुराधा सिंह की यह कविता बताती है, क्यों औरतों को ईश्वर और प्यार करने वाले आशिक़ से अधिक नींद की ज़रूरत है.
औरतों को ईश्वर नहीं
आशिक़ नहीं
रूखे फ़ीके लोग चाहिए आस पास
जो लेटते ही बत्ती बुझा दें अनायास
चादर ओढ़ लें सर तक
नाक बजाने लगें तुरंत
नज़दीक मत जाना
बसों, ट्रामों और कुर्सियों में बैठी औरतों के
उन्हें तुम्हारी नहीं
नींद की ज़रूरत है
उनकी नींद टूट गई है सृष्टि के आरम्भ से
कन्दराओं और अट्टालिकाओं में जाग रही हैं वे
कि उनकी आंख लगते ही
पुरुष शिकार न हो जाएं
बनैले पशुओं/इंसानी घातों के
जूझती रही यौवन में नींद
बुढ़ापे में अनिद्रा से
नींद ही वह क़ीमत है
जो उन्होंने प्रेम परिणय सन्तति
कुछ भी पाने के एवज़ में चुकाई
सोने दो उन्हें पीठ फेर आज की रात
आज साथ भर दुलार से पहले
आंख भर नींद चाहिए उन्हें
कवयित्री: अनुराधा सिंह (ईमेल: [email protected])
कविता संग्रह: ईश्वर नहीं नींद चाहिए
प्रकाशक: भारतीय ज्ञानपीठ
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