ईश्वर से संवाद जीवन के सबसे गहनतम अनुभवों में एक होता है. दुनिया से विरक्ति का अनुभव करते हुए ही हम ईश्वर से मुखातिब हो पाते हैं. उज्जैन की स्वप्ना मित्तल विरक्ति और भक्ति की झूले में झूलते हुए, ईश्वर से कुछ गहन सवालों के जवाब चाह रही हैं.
देख रहे हो ना तुम
मैं जी रही हूं…..या यूं कहो बद्ध हूं जीने के लिए, हर दिन ही
कभी अपनी ही मस्ती में
तो कभी आंसुओं में डूबकर
कभी असीमित क्रोध में
तो कभी डर कर, अपने में ही सहम कर
कभी उफनती नदी की तरह विद्रोह करती हुई
कभी अपमान के घूंट पीकर,
कभी अपनों की उपेक्षा से तड़पकर
तो कभी अपनों से ही ख़ुद को छला हुआ देखकर
और कभी लगातार मिल रहे धोखों से छटपटाकर,
पर….
मैं जी रही हूं, और निरंतर प्रयासरत हूं जीने के लिए
थकी तो नहीं हूं मैं
पर सोचती हूं…
ये जीवन गंतव्य तक ले जाएगा
या फिर रास्ता इस हथेली में ही है
मुझे जानना है तुमसे ईश्वर..
ये जीवन कभी मंदिर की बजती घंटियों-सा बजता है
दूसरे ही पल उदास ढलती शाम की तरह क्यूं लगता है?
उदासी की सांझ कभी दीपक से प्रकाशित करती,
कभी तपते सूरज को बंद कर किवाड़ से अंधेरा करती
दिन कभी छोटे, कभी रात
जीवन की हिचकोले खाती तुच्छ सी बिसात..
जीवन के गंतव्य तक यही होना है, ये तो समझ चुकी…
किंतु पूछती हूं आज
इस यात्रा का अब मंतव्य क्या होगा?
मुक्ति का या फिर भुक्ति का?
दे देना जवाब अब जल्दी ही
कि मानस हो चुका विरक्ति का…
भगवान शिव की नगरी उज्जैन की स्वप्ना मित्तल एक योग टीचर हैं. इंग्लिश लिटरेचर में एमए हैं और मन की भावनाओं को हिंदी कविता के माध्यम से व्यक्त करती हैं. स्वप्ना को रीडिंग और कुकिंग का शौक़ है.
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