पेशे से पत्रकार प्रताप सोमवंशी अपनी ग़ज़लनुमा कविताओं के लिए जाने जाते हैं. कविता ‘झूठ कहूं तो दिल तैयार नहीं होता’ यह उनके कविता संग्रह इतवार छोटा पड़ गया की एक रचना है. इस कविता में उन्होंने जीवन के छोटे-छोटे विरोधाभासों को बड़ी ख़ूबसूरती से बुना है.
झूठ कहूं तो दिल तैयार नहीं होता
सच से लेकिन बेड़ापार नहीं होता
आप नफ़े में ख़ुश हैं, हम घाटे में ख़ुश
रिश्तों का हमसे व्यापार नहीं होता
राम की शबरी जंगल में तो रहती है
बेरों पर उसका अधिकार नहीं होता
सब केवल अपनी कमज़ोरी जीते हैं
रिश्ता तो कोई बीमार नहीं होता
सुनना, सहना, चुप रहना फिर हंसना भी
ख़ुद पे इतना अत्याचार नहीं होता
ख़ुद से डरना कश्ती पे भी शक करना
अब ऐसे तो दरिया पार नहीं होता
ये सच है वो वह हफ़्ते ही आता है
सबकी क़िस्मत में इतिवार नहीं होता
सीधे, सच्चे, अच्छे भी हैं लोग बहुत
कैसे लिख दूं दो-दो चार नहीं होता
कवि: प्रताप सोमवंशी
कविता संग्रह: इतवार छोटा पड़ गया
प्रकाशक: वाणी प्रकाशन
Illustration: Pinterest