ग़ज़लें तो यूं भी जीवन की सच्चाइयों, मोहब्बतों, तल्ख़ियों और ग़म के क़िस्सों में डूबकर ही लिखी जाती हैं. और यह ग़ज़ल तो आपको अपने हर अशआर में अपनी सच्चाई से मोह लेगी.
मलाल है मगर इतना मलाल थोड़ी है
ये आंख रोने की शिद्दत से लाल थोड़ी है
बस अपने वास्ते ही फ़िक़्रमंद हैं सब लोग,
यहां किसी को किसी का ख़याल थोड़ी है
परों को काट दिया है उड़ान से पहले
ये ख़ौफ़ ए हिज्र है शौक़ ए विसाल थोड़ी है
मज़ा तो तब है कि हम हार के भी हंसते रहें
हमेशा जीत ही जाना कमाल थोड़ी है
लगानी पड़ती है डुबकी उभरने से पहले,
ग़ुरूब होने का मतलब ज़वाल थोड़ी है
फ़ोटो साभार: पिन्टरेस्ट