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Home बुक क्लब कविताएं

(पर) लोक-कथा: गीत चतुर्वेदी की कविता

टीम अफ़लातून by टीम अफ़लातून
March 20, 2021
in कविताएं, बुक क्लब
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(पर) लोक-कथा: गीत चतुर्वेदी की कविता
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हिंदी के युवा कवियों में गीत चतुर्वेदी एक प्रमुख हस्ताक्षर हैं. उनकी कविताएं अपने अंदर गहरा दर्शन समेटे होती हैं. कविता संग्रह ‘न्यूनतम मैं ’की यह रचना उसी श्रेणी की कविता है.

एक समय की बात है
एक बीज था
उसके पास एक धरती थी
दोनों प्रेम करते थे
बीज, धरती की गोद में लोट-पोट होता
हमेशा वहीं बने रहना चाहता
धरती उसे बांहों में बांधकर रखती थी
और बार-बार उससे उग जाने को कहती
बीज अनमना था
धरती आवेग में थी
एक दिन बरसात हो गई
और बीज अपने उगने को स्थगित नहीं कर पाया
अनमना उगा, और एक दिन उगने में रम गया
अन्यमनस्कता भी रमणीय होती है
ख़ूब उगा और बहुत ऊंचा पहुंच गया

धरती उगती नहीं, फैलती है
पेड़ कितना भी फैल जाए,
उसकी उगन उसकी पहचान होती है

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दोनों बहुत दूर हो गए
कहने को तो जड़ें धरती में रहीं,
लेकिन जड़ को किसने पेड़ माना है आज तक?
पेड़ तो वह है जो धरती से दूर हुआ
उससे चिपका रहता, तो घास होता

पेड़ वापस एक बीज बनना चाहता है
धरती अपना आशीष वापस लेना चाहती है
पेड़ को दुख है कि अब वह
वापस कभी वही एक बीज नहीं बन पाएगा
हां, हज़ारों बीजों में बदल जाएगा
धरती ठीक उसी बीज का स्पर्श
कभी नहीं पा सकेगी
पेड़ उसके लिए महज़ एक परछाईं होगा

जीवन में हर चीज़ का विलोम नहीं होता
रात एक अंधेरा दिन नहीं होती,
और दिन एक उजली रात नहीं होता
चांद एक ठंडा सूरज नहीं,
और सूरज एक गरम चांद नहीं है
धरती और आसमान कहीं नहीं मिलते,
कहीं भी नहीं

मैं पेड़ के बहुत क़रीब जाता हूं
और उससे कहता हूं,
सुनो, तुम अब भी एक बीज हो
वही वाला बीज
क़द के मद में मत आना
तुम अभी भी उगे नहीं हो
तुम सिर्फ़ धरती की कल्पना हो

सारे पेड़ कल्पना में उगते हैं
स्मृति में वे हमेशा बीज होते हैं


कवि: गीत चतुर्वेदी
कविता संग्रह: न्यूनतम मैं
प्रकाशक: राजकमल प्रकाशन
Illustration: Pinterest

Tags: (पर) लोक-कथाAaj ki KavitaGeet ChaturvediGeet Chaturvedi PoetryHindi KavitaHindi PoemKavitaNyoontam Main by Geet ChaturvediPoem Collection Nyoontam MainRajkamal Prakashanआज की कविताकविताकविता संग्रह न्यूनतम मैंगीत चतुर्वेदीगीत चतुर्वेदी की कविताराजकमल प्रकाशनसंग्रह न्यूनतम मैं गीत चतुर्वेदीहिंदी कविता
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