एक ही परिस्थितियों में रहकर दो लोग किस तरह बिल्कुल भिन्न हो सकते हैं, अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध की कविता ‘फूल और कांटा’ बता रही है.
हैं जन्म लेते जगह में एक ही,
एक ही पौधा उन्हें है पालता
रात में उन पर चमकता चांद भी,
एक ही सी चांदनी है डालता
मेह उन पर है बरसता एक सा,
एक सी उन पर हवाएं हैं बही
पर सदा ही यह दिखाता है हमें,
ढंग उनके एक से होते नहीं
छेदकर कांटा किसी की उंगलियां,
फाड़ देता है किसी का वर वसन
प्यार-डूबी तितलियों का पर कतर,
भंवर का है भेद देता श्याम तन
फूल लेकर तितलियों को गोद में
भंवर को अपना अनूठा रस पिला,
निज सुगन्धों और निराले ढंग से
है सदा देता कली का जी खिला
है खटकता एक सबकी आंख में
दूसरा है सोहता सुर शीश पर,
किस तरह कुल की बड़ाई काम दे
जो किसी में हो बड़प्पन की कसर
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