एक राजा है, जिसे नींद नहीं आती है. उसके नींद नहीं आने का कारण बहुत समय बाद उसे ख़ुद समझ में आता है. वह कारण जानने के बाद राजा अपने मूल स्वभाव में लौट आता है. राजा का यह मूल स्वभाव बताने के लिए बुनी गई अनूप मणि त्रिपाठी की इस व्यंग्यात्मक कहानी में आपको सच्चाई की ख़ुशबू मिलेगी.
आज रात भी राजा सो न सका…
इस तरह से न जाने कितनी रातें राजा ने जाग कर बिताईं. जब वह नया नवेला राजा बना था तो शुरू में सब ठीक था, मगर अचानक प्रकट हुई यह समस्या धीरे-धीरे विकराल होती चली गई.
पिछले कुछ महीनों से यह समस्या लगातार बनी हुई है कि राजा को नींद नहीं आती है. इसका कारण यह है कि राजा जब-जब अपना मुकुट देखता है तो उस पर उसे ख़ून के छीटें नजर आते हैं. वह जब-जब दर्पण में झांकता है, तो उसे अपने चेहरे पर ख़ून के धब्बे दिखते हैं. ऐसा उसे क्यों दिखता है इसका कारण स्पष्ट न था. मगर यह स्पष्ट था कि इस कारण राजा की नींद उड़ी हुई थी.
समस्या के निदान हेतु राजा ने कई बार मुकुट बदलवाए. नए दर्पण मंगवाए. मगर सब बेकार. नतीजा सिफ़र ही रहा. यों तो राजा को ख़ून से कोई दिक़्क़त नहीं थी,बस वह इतना चाहता था कि ये धब्बे उसके मुकुट और चेहरे पर जाहिर न हों!
इस समस्या से परेशान होकर राजा ने कई बार सोचा कि वह मुकुट ही धारण नहीं करेगा, मगर बिना मुकुट के राजा कैसा? सोचने को उसने यह भी सोचा कि वह दर्पण देखना ही छोड़ देगा! जब स्वयं को ही न देख सको, तो इस शान-ओ-शौक़त का फिर फ़ायदा ही क्या? तंग आकर उसने न जाने कितनी बार मुकुट को धुलवाया भी, मगर उसे मुक्ति न मिली! वह दिन भर अपने चेहेरे को धोता रहता. इस चक्कर में उसके चेहरे का रंग ही बदल चुका था!
अब राजा करे तो क्या करे! कहे तो क्या कहे! न चाहते हुए भी उसने अपनी यह समस्या राजवैद्य को बतायी. चतुर राजा अपने राज़दार कम से कम बनाता है और क्रूर राजा तो और भी कम. राजवैद्य ने अपने कर्तव्य का निर्वहन किया. कौन-कौन सी, कहां-कहां की औषधियां खाने के बाद भी राजा को आराम न मिला. अंत में थक हारकर राजवैध ने हाथ जोड़ते हुए राजा से कहा, ‘महाराज मेरे बस की बात नहीं रही! कृपया अब आप कोई नशा करें!’
अब राजा को समझ में न आए कि दुनिया में सत्ता से बढ़कर कौन-सा नशा हो सकता है भला? फिर भी उसने दुनियाभर का नशा किया. उसने दुनिया का कोई भी नशा नहीं छोड़ा. दिन भर वह नशे में झूमता रहता, मगर अब भी नींद उससे कोसों दूर रहती.
समस्या विकराल से विकरालतम होती चली गई. स्थितियां जटिल से जटिलतम होने लगीं. राजा की हालत पागलों जैसी हो गई. राजा की हालत देख एक दिन मंत्री ने राजा से कहा, ‘महाराज! ख़ून से आपको क्या परेशानी हो सकती है!’
मंत्री की इस बात पर राजा जोर से चीख़ा, ‘मुझे ख़ून से दिक़्क़त नहीं, जागने से दिक्कत है! यदि ऐसा ही चलता रहा तो इस राजपाट का फिर क्या मतलब?’
राहत पाने लिए कोई क्या-क्या नहीं करता, फिर आदमी क्या अवतार क्या! राजा ने भी वही किया. तंत्र-मंत्र,जादू-टोना, झाड़-फूंक तरह-तरह के टोटके आज़माए. राजपुरोहित के कहे अनुसार वह प्रतिदिन जानवरों की बलि भी देने लगा. बलि देने कुछ लाभ अवश्य हुआ. उसे झपकियां आने लगीं. यह एक अच्छा संकेत था. उत्साहित होकर राजा ने बलि में जानवरों की संख्या दुगुनी कर दी. मगर झपकी से आगे बात न बढ़ी. आशा की किरण जितनी तेज़ी से चमकी थी ,वह उतनी ही तेज़ी से लुप्त भी हो गई.
एक दिन चिंतामग्न होकर राजा रथ पर बैठा कहीं जा रहा था. रथ सरपट भाग रहा था. सहसा कुछ मवेशी रथ के सामने आ गए. सारथी को अचानक रथ रोकना पड़ा. राजा जो पहले से अंसुतलित था, वह संतुलन न बना सका और उसका मुकुट भूमि पर टन्न से जा गिरा. मुकुट धूल से सन गया. राजा यह देखकर कुछ पल के लिए सन्न हो गया. फिर आग बबूला होकर चिल्लाने लगा. अविलंब मवेशी के मालिक का पता लगा कर राजा के सामने हाजिर किया गया. तत्तक्षण राजा ने तलवार निकाली और उसकी गर्दन उतार ली. राजा का ग़ुस्सा इतने पर भी शांत न हुआ. उसने उस गांव में आग लगवा दी. फसलों को रौंदवा दिया. रथ के सामने आने वाले एक-एक मवेशियों की पहचान करवाकर उनको चुन-चुन कर कटवा दिया.
ग़ुस्से में तमतमाया हुआ राजा राजमहल आया. उसने मुकुट उतारा. अरे ये क्या! उसे ख़ून का छींटा नहीं दिखा. उसने मुकुट को एक फिर देखा, मुकुट धब्बा रहित साफ़ दिखा. वह डरते-डरते दर्पण के सामने आया. ख़ुद को निहारा. कमाल है! चेहरे पर ख़ून के धब्बे भी नहीं दिखे! राजा बेदाग़ दिखता था. उस रात राजा को कुछ घंटों के लिए ही सही, मगर नींद आई.
अगले दिन राजा कुछ सोचता रहा. उधेड़बुन में खोया रहा. तमाम तरह के निष्कर्ष निकालता रहा. कुछ सोचते हुए शाम को राजा अपने दस्ते संग निकला. एक जगह उसने देखा कि एक नौजवान सिर झुकाए किताब पढ़ रहा है.
‘महाराज! जो किताब के सामने सिर झुकाते हैं, वे फिर सवाल बहुत उठाते हैं!’ मंत्री राजा से बोला.
राजा ने नौजवान को तलब किया. ‘मेरे सामने तुमने सिर क्यों नहीं झुकाया?’ राजा ने पूछा.
‘महाराज! किताब पढ़ने में मैं इतना तल्लीन था कि मुझे पता ही न चला कि आप कब आए!’
‘राजा से ज़रूरी कुछ भी नहीं!’ यह कहते हुए राजा ने उसका सिर धड़ से अलग कर दिया.
इस कृत्य के बाद राजा ख़ुशी-ख़ुशी राजमहल लौटा. आते ही मुकुट को निहारा. मुकुट उसे चमकता दिखा. दर्पण में देखा. चेहेरा दमकता दिखा. उस रात राजा को गहरी नींद आई.
अगली सुबह राजा उठा. ख़ुद को तरोताज़ा महसूस किया. राजा रहस्य समझ चुका था. उस रोज दर्पण के सामने मुकुट धारण करते वक्त वह ख़ुद से बोला, ‘अपना मूल नहीं बदलना चाहिए,नहीं तो फिर दिक़्क़त होती है!’
अब राजा रोज़ ख़ून बहाता है. उसकी नींद के लिए यह ज़रूरी है.
फ़ोटो: फ्रीपिक