एक बीमार अमीर लड़की को देखने शहर से दूर गए एक डॉक्टर की ज़िंदगी का एक दिन काफ़ी रोचक उतार-चढ़ाव भरा गुज़रता है. डॉक्टर और मरीज़ की मुलाक़ात जीवन के कई पहलुओं पर से पर्दा हटाती है.
एक प्रोफ़ेसर को ल्यालिकफ़ कारख़ाने से फ़ौरन आने के लिए एक तार मिला. उस मुड़े-तुड़े तार के बिखरे अक्षरों से उसने सिर्फ़ इतने ही मायने निकाले कि कारखाने की मालकिन मिसेज़ ल्यालिकोवा की बेटी बीमार है.
प्रोफ़ेसर ख़ुद नहीं गए और अपने बदले उन्होंने अपने हाउस सर्जन कराल्योफ़ को भेज दिया. हाउस सर्जन को दो स्टेशन रेलगाड़ी से और बाक़ी तीन मील सड़क के रास्ते से जाना था. उसे स्टेशन से लाने के लिए तीन घोड़ोंवाली गाड़ी भेजी गई थी, जिसका कोचवान एक फ़ौजी की तरह हर सवाल पर “एस सर और “नो सर ” के साथ चीखकर जवाब देता था. जब कोरोल्योव घोड़ागाड़ी से जा रहा था, कारखाने से लेकर स्टेशन तक सड़क के किनारे पर खड़े कामगार उन घोड़ों को देखकर झुक जाते थे. उस शाम अपने दोनों तरफ़ के ज़मीन-जायदाद और बंगले, सनोबर के दरख्तों और चारों और फ़ैली ख़ामोशी के जादू में वह गिरफ्तार था जबकि ऐसा लग रहा था कि उस शनिवार की शाम ज़मीन-जंगल और सूरज उन कारखाने के कामगारों की छुट्टी में शामिल होने जा रहे थे और यही नहीं, शायद उनके साथ प्रार्थना भी करने जा रहे थे.
कराल्योफ़ मास्को में पैदा हुआ था. वहीं बड़ा हुआ था. गांव की ज़िन्दगी उसके लिए अजनबी थी. उसकी दिलचस्पी कभी कारखाने में नहीं थी. यहां तक कि वह वहां कभी गया भी नहीं था. लेकिन उसके बारे में पढ़ चुका था. कारखाना मालिकों ने उसे कई बार बुलाया था जहां उनसे बात करने का मौक़ा मिला था. चाहे दूर से हो या क़रीब से वह कारखानों के बारे में हमेशा सोचता था, कि वैसे बाहर से वहां सब कुछ अमन-चैन भरा लगता है लेकिन इनकी दीवारों के भीतर वहां पक्के तौर से और कुछ नहीं, मालिकों का अंधा अहंकार होता है. वे पूरी तरह से अज्ञानी होते हैं, उबाऊ होते हैं. सेहत ख़राब करने वाले जितने काम होते हैं, वे वहां के बंधुआ कामगार करते हैं. वहां गंदगी, वोदका और कीड़े-मकोड़े होते हैं. और अब जब ए कामगार उसकी घोड़ेगाड़ी के लिए आदर और विनम्रता से रास्ता दे रहे थे, तो उसे उन कामगारों के चेहरों पर गंदगी, शराब की खुमारी, बैचनी और घबराहट के पक्के निशान दिख रहे थे जो माथे पर उनकी झुकी हुई टोपियों और उनके चाल से पता चल रही थी.
कारखाने गेट से उनकी घोड़ागाड़ी दाखिल हुई. दोनों तरफ़ कामगारों की झोपड़ियों, कपड़े पचीछटती औरतों के चेहरों और आगे की सीढ़ियों पर बिछे कंबलों पर उसकी उड़ती हुई नज़र पड़ी. जब घोड़ों की लगाम को कोचवान पूरे जोर से छोड़ देता तो चिल्लाता,‘‘बचो’’. वे एक खुले चौरस्ते पर पहुंचे जहां घास नहीं थी. यहां चिमनी के साथ थोड़ी-थोड़ी दूर पर चिमनीवाले पांच बड़े-बड़े कारखाने मौजूद थे, गोदाम थे और लकड़ी से बनी झोपड़िहां थीं. हर चीज़ पर एक अज़ीब किस्म की मटमैली परत छाई हुई थी जो धूल भी हो सकती थी. छोटी-छोटी दयनीय फुलवारियां और प्रबंधकों के हरे-लाल छतवाले मकान रेगिस्तान में नखलिस्तान की तरह इधर-उधर छितरे हुए थे. कोचवान ने एकाएक रास खींची और घोड़ागाड़ी एक मकान के बाहर रुक गई जिसकी पुताई हाल में धूसर रंग से हुई लगती थी. वहां बाहर एक छोटा सा बगीचा भी था जिसमें धूल से अटा एक बकाइन का पेड़ भी था. यही नहीं, पीले पोर्च से नए पेंट की तीखी गंध आ रही थी.
“इस तरफ़ से आइए डॉक्टर साहब” दाखिल दरवाज़े पर कुछ महिला आवाज़ें आईं जिनके साथ कुछ ठंडी आहें और कनबतियां सुनाई दे रही थीं. ”आ जाइए! इंतज़ार करते-करते हम थक चुके हैं. यह बड़े सदमे की बात है. जी इधर आइए!”
मिसेज़ ल्यालिकोव गोलमटोल उम्रदराज़ महिला थीं. वह हालांकि आधुनिक फैशन का बांहवाला काला रेशमी लिबास पहने हुए थीं लेकिन उनका चेहरा बताता था कि वह सीधी-सादी एक अनपढ़ औरत थीं. उन्होंने डॉक्टर पर उत्सुकता से नज़र डाली और अपना हाथ उनसे मिलाने के लिए अपने को तैयार नहीं कर सकीं या यूं कहिए कि वह साहस नहीं कर सकीं. एक दुबली पतली, मझौली उम्र की औरत उनके बगल में खड़ी थी जिसके छोटे-छोटे कटे बाल थे, नाक पर चश्मा टिका था और चमकीले फूलोंवाला ब्लाउज़ पहने हुए थी. नौकर-चाकर उसे क्रिस्टीना कहकर पुकार रहे थे. कोरोल्योय ने अंदाजा लगाया कि वह गवर्नेस होगी. वह इस घर में सबसे अधिक पढ़ी-लिखी थी और यही शायद कारण था कि जरा सा भी समय बर्बाद किए बिना सही तरीक़े से डॉक्टर के अगवानी की ज़िम्मेदारी उसे सौंपी गई थी. बिना यह बताए कि कौन बीमार है और उसे क्या तक़लीफ़ है, उसने थकानेवाले छोटी-छोटी जानकारियों के साथ बीमारी की वजहों का एक बारीक़ लेखाजोखा उसके सामने पेश कर दिया.
डॉक्टर और गवर्नेस बैठकर बात कर रहे थे जबकि घर की मालकिन एक इंच हिले-डुले बिना दरवाज़े के पास खड़ी इंतज़ार कर रही थी. बातचीत से कोरोल्योव को पता चला कि इक्कीस साल की लड़की लीज़ा बीमार है. वह मिसेज़ ल्यालिकोव की एकलौती बेटी है और इस जायदाद की उत्तराधिकारी है. वह लंबे समय से बीमार है. कई डॉक्टर उसका इलाज़ कर चुके हैं. पिछली पूरी रात उसके दिल की धड़कन इतनी तेज़ थी कि घर में कोई सो नहीं पाया था और हर कोई उसकी ज़िन्दगी को लेकर डरा हुआ था.
“वह छुटपन से ही बीमारू बच्ची रही है” मिस क्रिस्टीना ने अपने होंठ थोड़े-थोड़े वक़्त पर अपने हाथों से पोंछते हुए सुरीली आवाज़ में डॉक्टर से कहा. फिर बात आगे बढ़ाई,‘‘यह नाड़ियों का मामला है, जब वह छोटी थी, गण्डमाला की शिकार हो गई थी. हो सकता है कि बीमारी की यही वज़ह हो.”
कराल्योफ़ ने मरीज़ पर एक नज़र डाली. वह एक भरी-पूरी, लंबी, काफ़ी बड़ी लड़की थी. लेकिन अपनी मां की ही तरह बदसूरत थी. उसी की तरह छोटी-छोटी आंखें थीं. उसी की तरह उसका निचला जबड़ा बड़ा और फैला हुआ था. उसके बाल काढ़े हुए नहीं थे. कम्बल ठोढी तक खींचा हुआ था. कोरोल्योव को उस लड़की को देखकर सीधे यह ख़्याल आया कि वह एक दयनीय और नाख़ुश प्राणी है और चूंकि वे सब उस पर दया करते हैं, इसलिए उसे ठण्ड से बचाने के लिए भलीभांति कम्बल ओढ़ाया गया है. उसे यक़ीन नहीं हो रहा था कि यह लड़की पांच बड़े कारखानों की उत्तराधिकारी है.
“मैं आपका कुछ इलाज़ करने आया हूं. आप कैसी हैं?” डॉक्टर ने बातों का सिलसिला शुरू किया. उसने अपना परिचय दिया और उसके बड़े, ठंडे और बदसूरत हाथ मिलाकर उसने हिलाया. वह उठकर बैठ गई और उसको अपनी पूरी कहानी सुनाई. ज़ाहिर है कि उसे डॉक्टरों की आदत पड़ी हुई थी और वह अपने खुले हुए कंधे-छाती को लेकर बेपरवाह थी.
“मेरी धड़कन बढ़ी हुई है. मैं पूरी रात अपनी ज़िन्दगी को लेकर डरी रही. हालत इतनी ख़राब थी कि मैं मर ही जाती. कोई दवा मुझे दीजिए”उसने कहा.
हां ज़रूर दूंगा, ज़रूर, अब शांत हो जाओ”
कराल्योफ़ ने उसकी जांच की और नकारने की मुद्रा में अपने कंधे उचकाए. ‘‘आपका दिल पूरी तरह से दुरुस्त है. उसमें कोई गड़बड़ी नहीं है. आपकी नाड़ियां बहुत अच्छी तरह नहीं चल रही हैं. लेकिन सामान्य हैं. मुझे नहीं लगता कि अब आपकी और धड़कन बढ़ेगी. नींद लाने की कोशिश कीजिए और सो जाइए. ”
तभी एक लैंप लाया गया. रोशनी से लड़की ने अपनी आंखें मिचमिचाकर बंद कर ली. अपना सिर पकड़कर बैठ गई और फूट-फूट कर सुबकने लगी. बेचारी और बदसूरत वाली उसकी पहली छवि सहसा कोरोल्योव के सामने से ग़ायब हो गई और अब उसे न तो उसकी छोटी-छोटी आंखें दिख रही थीं और न ही गैरमामूली बड़ा जबड़ा बल्कि उसके चेहरे पर एक शरीफ़ाना अक्स दिख रहा था जो बहुत समझदारी भरा और दिल को छूने वाला लग रहा था. अब वह सभी स्त्रियोचित, गरिमापूर्णऔर स्वाभाविक गुणों की खान लग रही थी और वह उसे अब सोने वाली दवाइयां अथवा बीमारी से जुड़ी सलाह देना नहीं चाहता था बल्कि उसकी ज़गह कुछ मामूली और मरहमभरे लफ्ज़ कहना चाहता था. उसकी मां ने उसका सिर पकड़ लिया और उसे हौले-हौले दबाने लगी. उफ़! उस बूढ़ी औरत के चेहरे पर कितनी गहरी निराशा छाई हुई थी! एक सच्ची मां की तरह उसने अपनी बेटी को पाला-पोसा, बड़ा किया, ख़र्च की परवाह किए बिना अपनी पूरी ज़िन्दगी उसके लिए सर्फ़ कर दी ताकि वह फ्रेंच भाषा, नृत्य और संगीत सीख सके. उसके लिए दर्ज़न भर ट्यूटर, डॉक्टर रखे, एक गवर्नेस रखी. अब वह उसके उन सभी आंसुओं और उन सभी तक़लीफ़ों की वज़ह समझ नहीं पा रही थी. नतीजा था कि वह बुरी तरह चकराई हुई थी. उसके चेहरे पर अपराधबोध, चिंता, निराशा छाई हुई थी मानो उसने कुछ ऐसी चीज़ की अनदेखी की है, कुछ चीज़ों को जाने दिया है, जो बहुत महत्त्वपूर्ण था. कुछ ऐसे लोगों को बुलाना भूल गई थी लेकिन कौन से लोग, यह भी एक रहस्य है.
“लिज़नका! अब क्या हुआ! मेरी छोटी गुड़िया! मुझे बताओ, क्या परेशानी है? मेहरबानी करके कुछ तो बताओ” उसने अपने बेटी को सहलाते हुए कहा.
दोनों बुरी तरह रोने लगे. कोरोल्योव बिस्तर के किनारे बैठ गया और लीज़ा का हाथ थाम लिया. ‘‘अब बहुत हो चुका. इस रोने का अब कोई मतलब है? यक़ीन करो इन आंसुओं की क़ीमत के बराबर संसार में कोई चीज़ नहीं हो सकती, अब आप रोना बंद करने जा रहे हैं. रोने की कोई ज़रूरत नहीं है.”उसने स्नेह भरी आवाज़ में कहा. फिर उसके मन में ख़्याल आया,‘‘अगर यह शादीशुदा होती…”
“कारखाने के डॉक्टर ने इन्हें थोड़ी ब्रोमाइड दी है लेकिन उससे इनकी हालत और ख़राब हो गई है. मेरा ख़्याल से दिल में कुछ गड़बड़ है तो कुछ बूंदें दी जा सकती हैं. मैं उसका नाम भूल रही हूं. मेरे ख़्याल से घाटी की कुमुदनी सा कुछ नाम था,’’ गवर्नेस ने कहा.
फिर एक बार उसके ब्यौरों की बाढ़ आ गई. वह गवर्नेस डॉक्टर की बातों में दख़ल देती रही. उन्हें एक भी लफ्ज़ सुनने का मौक़ा नहीं देती और उसकी यह कोशिश उसके चेहरे पर दिख रही थी. ऐसा लग रहा था कि उसने मान लिया था कि वह इस घर में सबसे अधिक पढ़ी-लिखी औरत है और यह उसकी ज़िम्मेदारी है कि वह डॉक्टर से लगातार बात करती रहे. ज़ाहिर है बातचीत केवल इलाज़ के बारे में.
कराल्योफ़ को ऊब होने लगी था.
कमरा छोड़ने के बाद उसने उसकी मां से कहा,‘‘अगर कारखाने का डॉक्टर आपकी बेटी का इलाज़ कर रहे है तो मुझे कोई वज़ह नहीं दिखती कि उन्हें रोका जाए. अब तक उनका इलाज़ सही रहा है और मुझे डॉक्टर बदलने की ज़रूरत नहीं लगती. दरअसल बीमारी बहुत मामूली है, ज़रा भी गंभीर नहीं है. ”
अपने दस्ताने पहनने के दौरान उसके बोलने में कोई हड़बड़ी नहीं थी. लेकिन मिसेज़ ल्यालिकोव पत्थर सी खड़ी रहकर आंसू भरी आंखों से उसकी ओर ताकती रहीं.
‘‘दस बजे वाली रेलगाड़ी आधे घंटे बाद यहां से चलेगी और मैं नहीं चाहता हूं कि वह गाड़ी छूटे” कराल्योफ़ ने कहा.
“लेकिन क्या आप रात में रुक नहीं सकते? मुझे इस तरह चिंता जताते हुए शर्म आ रही है लेकिन ईश्वर के लिए मुझ पर मेहरबानी कीजिए,” दरवाज़े के चारों ओर नज़र फिराते हुए वह फुसफुसाकर बोली. ‘‘मेहरबानी करके रात में यहां रुक जाइए. मेरे लिए बस यही है मेरी इकलौती बेटी. बीती रात उसने मुझे बेहद डराया. मैं अब तक उससे नहीं उबर पाई हूं,’’ मिसेज़ ल्यालिकोव ने आगे जोड़ा.
कराल्योफ़ कहना चाहता था कि मास्को में उसे बहुत काम करने हैं, उसका परिवार उसका इंतज़ार कर रहा है. एक पूरी शाम और रात एक अजनबी घर में बिताने के ख़्याल से ही उसे हताशा महसूस होने लगी, जबकि ऐसी कोई ज़रूरत भी नहीं थी. लेकिन उसने उसके चेहरे की तरफ़ देखा, ठंडी सांस ली और खामोशी से अपने दस्ताने उतारने लगा.
हॉल और बैठक में उसके लिए सभी लैम्प जला दिए गए. उसने ग्रैंड पियानो पर बैठकर संगीत के कुछ पन्ने उलटे-पलटे. दीवारों पर टंगी तस्वीरों पर नज़र डाली. मढ़े हुए फ्रेमों में तैलचित्र के विषय थे: क्रेमीयाई भू सैरे, समुद्र में तूफ़ान के बीच एक छोटा जहाज़, मदिरा का गिलास हाथ में लिए हुए एक कैथोलिक सन्यासी. ए सभी चित्र फ़ीके, विषयबहुल और कच्चे लग रहे थे. शबीहों में एक भी सजीला दिलचस्प चेहरा नहीं था. सबके गालों की हड्डियां फ़ैली हुईं थीं और आंखें चौंधियाई हुई थीं. मिस्टर ल्यालिकोव (लीज़ा के पिता)का माथा छोटा था, चेहरे पर दंभ था, उसके बेडौल शरीर पर बोरे की तरह वर्दी लग रही थी. अपनी छाती पर लगे रेड क्रॉस के निशान को वह दिखा रहा था. घर में तहजीब के जो कुछ निशान थे, वे ख्यालों की ग़रीबी को दर्शा रहे थे. यह उसी तरह असुविधाजनक था जिस तरह वह वर्दी थी. वहां वैसे विलासिता का स्पर्श शुद्ध रूप से संयोग था. फ़र्श पर भद्दी सी चमक थी (उसी तरह झाड़-फानूश में कुछ खिजाने वाली बात थी). किन्हीं वजहों से यह मुझे उस व्यापारी की कहानी की याद दिला रहा था जो नहाते समय अपने गले में मेडल पहने रहता था.
हॉल से फुसफुसाहट आ रही थी और उसे कुछ हलके खर्राटे सुनाए दे रहे थे. सहसा बाहर तीखी एकाएक एक धातुई आवाज़ हुई. ऐसी आवाज़ कोरोल्योव ने पहले कभी नहीं सुनी थी और इसे सुनकर वह परेशान हो गया. इससे उसके भीतर एक अप्रिय भावना जग गई और दुबारा संगीत की किताब के सफे पलटते हुए उसने सोचा,‘‘मेरा ख़्याल है कि मैं यहां नहीं रह सकता-किसी भी क़ीमत पर भी नहीं.”
“डॉक्टर साहब मेहरबानी करके यहां आइए! और कुछ खा लीजिए,’’ गवर्नेस ने दबी आवाज़ में उसे पुकारा. वह खाने के लिए आया. एक बड़ी मेज़ खाने की लज़ीज़ चीज़ों और मदिराओं से सजी हुई थी, लेकिन उस पर खाने के लिए दो लोग ही बैठे. वह और मिस क्रिस्टीना. मिस क्रिस्टीना ने मदिरापान किया. जल्दी-जल्दी खाना खाया, आपनी नाक पर टिके चश्मे से झांकते हुए कहा,‘‘कामगार बहुत ख़ुश रहते हैं. कारखाने में हर जाड़ों के दिनों में शौक़िया नाटक होते हैं. इसमें कामगार ख़ुद हिस्सा लेते हैं. जादुई लालटेन स्लाइड के साथ व्याख्यान होते हैं. उम्दा कैंटीन है और भी बहुत कुछ है. वे पूरी तरह से हमारे लिए समर्पित हैं. जब उन्होंने सुना कि लीजा की हालत ख़राब होती जा रही है, उन्होंने उसके लिए प्रार्थना की. वे पढ़े-लिखे भले न हों, लेकिन उनकी भी अपनी भावनाएं हैं.’’
‘‘मुझे लगता है कि इस घर में कोई मर्द नहीं है,” कराल्योफ़ ने कहा.
“एक भी नहीं. मिस्टर ल्यालिकोव अठारह महीने पहले गुज़र गए और अब हम केवल तीन महिलाएं यहां हैं. हम गर्मियां यहां बिताते हैं लेकिन जाड़ों के दौरान मास्को के पोल्यंका में रहते हैं. मैं ग्यारह साल से इनके साथ हूं. एक तरह से इस परिवार का हिस्सा हूं.”
उन्होंने स्टर्जन मछली, तला चिकन और स्टू किए गए फल खाए. फ्रांसीसी महंगी शराब भी थी.
“डॉक्टर साहब! तकल्लुफ़ मत करिए. अच्छे से खाइए” मिस क्रिस्टीना ने खाने के बाद अपनी बांहों से मुंह पोंछते हुए कहा. साफ़ लग रहा था कि वह इस घर में अपनी ज़िन्दगी से संतुष्ट हैं.
खाना खाने के बाद डॉक्टर को एक कमरे में ले जाया गया जहां उनके लिए एक बिस्तर लगा हुआ था. लेकिन उनका सोने का मन नहीं कर रहा था, क्योंकि उस कमरे में घुटन थी और उसमें पेंट की गंध भरी हुई थी. उसने अपना ओवरकोट पहना और बाहर निकल गया.
बाहर मौसम ठंडा था. पौ फटनेवाली थी. ऊंची चिमनियों वाले पांचों कारखानों के सभी ब्लॉक, झोपड़ियां, गोदाम गीली हवा में साफ़ खड़े हुए दिख रहे थे. छुट्टी का दिन था लिहाज़ा कोई काम नहीं कर रहा था. एक ब्लॉक को छोड़कर सभी खिड़कियों पर अंधेरा था, जहां एक स्टोव जल रहा था जिससे खिड़कियां गहरे लाल रंग की दिख रही थीं. कभी-कभार चिमनियों से लपटें निकल रही थीं. धुंआ भी निकल रहा था. कारखाने के अहाते से दूर मेढ़क टर्र-टर्र कर रहे थे और एक कोयल कुहुक रही थी.
जब उसने कारखाने को ब्लाकों और उन झोपड़ियों को देखा जहां कामगार सोते थे, उसके मन में वैसे ही ख़्याल आने लगे जैसे उसे तब आते थे जब वह कारखानों को देखता था. हालांकि यहां कामगारों की ज़िन्दगी के स्तर को बेहतर बनाने के लिए लालटेन स्लाइड शो, कारखाने के लिए डॉक्टर और तमाम सुविधाएं थीं लेकिन वे वही कामगार थे जिनसे स्टेशन से आने वाले रास्ते में आज पहले मिल चुका था और वे उन लोगों से ज़रा भी अलग नहीं थे जिन्हें अपने बचपन से वह लम्बे समय से जानता था जब कारखाने की हालत को बेहतर बनाने के लिए न कोई शो होते थे और न ही बेहतरी के उपाय किए जाते थे. एक ऐसे डॉक्टर की तरह जो ठीक न होनेवाली उस गंभीर बीमारी की सही पहचान कर लेता है जिसका कारण उसे पता नहीं होता. उसने कारखाने को उसी तरह की पहेली की तरह देखा, उसी तरह अस्पष्ट और उसी तरह समझा पाना मुश्क़िल. दरअसल वह यह नहीं सोचता था कि ऐसे सुधार ग़ैरज़रूरी हैं बल्कि यह सोचता था कि यह कुछ वैसा ही है जैसे किसी न ठीक होने वाली बीमारी का इलाज़ करना है.
लाल रंग की खिड़कियों पर एक नज़र डालते हुए उसने सोचा,‘‘हां इन सबका कोई मतलब नहीं है. पंद्रह सौ या दो हज़ार कामगारों को बिना छुट्टी दिए बीमारू हालातों में घटिया सूती प्रिंट के उत्पादन के लिए ग़ुलाम बना कर आधे पेट भूखा रखा जाए, जिन्हें कभी-कभार दु:स्वप्न से राहत देने के लिए शराबखाने में शरण मिलती हो. सैकड़ों लोग उनके काम की निगरानी करते हैं और इन सैकड़ों सुपरवाइज़रों की ज़िन्दगी रिकॉर्ड बहियों में कामगारों पर किए गए जुर्माना को इन्दराज करने, उनको गालियां बकने और उनके साथ नाइंसाफ़ी करने में बर्बाद हो जाती है, उनमें दो या तीन तथाकथित बॉस मुनाफ़े का मज़ा उठाते हैं जबकि वे ख़ुद कोई काम नहीं करते हैं और सस्ते सूती कपड़ों के लिए उनके मन में और कुछ नहीं, बस हिकारत होती है. लेकिन सही मायनों में यह मुनाफ़ा क्या है और वे इसका इस्तेमाल किस तरह करते हैं? मिसेज़ ल्यालिकोव और उनकी बेटी दुखी हैं और उनको इस हालत में देखकर दुःख होता है. केवल कमबख्त बूढ़ी नौकरानी मिस क्रिस्टीना नाक पर ऐनक टिकाए ज़िन्दगी के मज़े ले रही है. मैं इसे इस तरह देखता हूं कि पूर्वी बाज़ार में सस्ती सूती प्रिंट की बिक्री के लिए ये पांचों कारखाने चल रहे हैं ताकि मिस क्रिस्टीना को शराब और मछली मिलती रहे.
अचानक उसे एक ख़ास किस्म का शोरगुल सुनाई दिया जैसे खाने के पहले सुनाई दिया था. कुछ ही दूर पर किसी एक ब्लॉक में धातु से बनी थाली को कोई बजा रहा था और उस आवाज़ के तुरंत बाद घुटी-घुटी आवाज़ें आ रही थीं. फिर तीखी अस्पष्ट आवाज़ के साथ एक छोटी-सी चुप्पी छा गई. लगभग आधे मिनट की चुप्पी के बाद पास में किसी दूसरे ब्लॉक से एकाएक नागवार आवाज़ें आने लगीं जिनके कमतर शोर में गहरी गूंज थी. उसने ग्यारह बार घड़ियाल बजाया था-ज़ाहिर था कि यह रात का पहरेदार था जो समय बताने के लिए उसे बजा रहा था. फिर तीसरे ब्लाक के पास से धातुई आवाज़ सुनाई दी. फिर बाक़ी ब्लॉकों से. फिर झोपड़ियों के चारों ओर से और गेट से परे से ऐसी आवाज़ सुनाई दी. ऐसा लग रहा था कि कोई राक्षस या ख़ुद शैतान रात की ख़ामोशी में यह हुड़दंग मचा रहा है.
कराल्योफ़ खुले मैदान में चला आया.
गेट पर किसी ने चुनौती भरी आवाज़ में पूछा,‘‘वहां कौन है?”
“यह एक क़ैद की तरह है” कराल्योफ़ ने सोचा और उसको कोई जवाब नहीं दिया.
कराल्योफ़ अब कोयल और मेढ़क की आवाज़ों को और साफ़ सुन रहा था. उसे यह मालूम था कि मई की रात का आलम चारों तरफ़ है. स्टेशन से ट्रेन की आवाज़ आ रही थी. कहीं-कहीं अलसाए मुर्गे बांग दे रहे थे. वैसे बाक़ी जगहों पर ख़ामोशी थी. दुनिया चैन से सो रही थी. कारखानों से ज़्यादा दूर नहीं, एक खुले मैदान में लकड़ी और इमारती सामान का ढेर लगा हुआ था.
कराल्योफ़ एक पटरे पर बैठ गया और उसके ख्यालों की गाड़ी जारी रही केवल गवर्नेस इस जगह पर ख़ुश है-और कारखाना उसके आनन्द के लिए काम कर रहा है. लेकिन ऐसा लगता है कि उसका यह कोई महत्त्व नहीं है. सबसे अहम बात यह है जिसके लिए सब काम कर रहे हैं, वह शैतान है. उसने शैतान के बारे में सोचा जिसके वजूद के बारे में उसे पता नहीं था. उसने फिर उन दो खिड़कियों को ताका जहां रोशनी जल रही थी. ऐसा लग रहा था कि वहां शैतान की दो लाल लाल आंखें हैं जो उसे घूर रही हैं. एक ऐसी रहस्यमय ताक़त जो कमज़ोर के साथ ताक़तवर के किए गए व्यवहार का ज़िम्मेदार हो, उस गंभीर ग़लती के लिए जिसे ठीक किया जाना नामुमक़िन हो. यह क़ुदरत का नियम है कि ताकतवर कमज़ोर को सताए लेकिन यह सिर्फ़ अखबार के लेखों और स्कूली किताबों में आसानी से समझ में आता है. उस अव्यवस्था में जहां रोज़ाना की ज़िन्दगी गढ़ी हुई लगती है. उस मामूली जीवन की अस्तव्यस्तता में जिनसे इंसान की बीच जटिल रिश्ते बनते हैं. हालांकि यह कोई क़ानून नहीं था बल्कि एक तार्किक असंगति है जब ताक़तवर और कमज़ोर दोनों एक दूसरे के बीच के अपने रिश्तों के शिकार बनते हैं और मनुष्य से पराए, आम ज़िन्दगी से परे खड़े किसी रहस्यमय ताक़त के प्रति आत्मसमर्पण के लिए दोनों मजबूर होते हैं. लकड़ी के पटरे पर बैठे-बैठे कोरोल्योव के मन में ऐसे ख़्याल आए और धीरे-धीरे वह इस अनुभूति से उबर गया कि वह अज्ञात रहस्यमई ताक़त वास्तव में उसके बेहद क़रीब है और उस पर नज़र रखे हुए है.
इस दरम्यान पूरब में आसमान कुछ पीला होता गया और वक्त कुछ जल्दी-जल्दी गुज़र गया. धूसर भोर की छाया में कारखाने के पांचों ब्लॉक और उनकी चिमनियां दिख रही थीं जहां एक भी आदमी दिखाई नहीं दे रहा था गोया सब कुछ खत्म हो गया हो. एक ऐसा नज़ारा जो दिन से बिलकुल अलग था. वह पूरी तरह से भूल गया कि इन ब्लॉकों के भीतर भाप के इंजन हैं, बिजली और टेलीफ़ोन है लेकिन कुछ अजीब वजहों से वह वहां जमा इमारती सामानों और लौह युग के बारे में ही केवल सोचता रहा और उसे यह महसूस हुआ कि कोई बेहूदी बेदिमाग़ ताक़त घात लगाए क़रीब बैठी है.
उसे घड़ियाल बजने की आवाज़ फिर से सुनाई दी.
इस बार बारह बार घंटे बजे थे. फिर यह आधे मिनट के लिए बंद हो गया. और कारखाने के अहाते के आख़िरी सिरे पर फिर शुरू हुआ लेकिन इस बार आवाज़ ज़्यादा गहरी थी.
“कितना बुरा है” कराल्योफ़ ने सोचा.
फिर तीसरी जगह से टूटी बिखरी थपथापने की आवाज़ आई जो तीखी और एकाएक थी और उसमें कोई भी नाराज़गी को सुन सकता था.
बारह बजाने के लिए पहरेदार ने चार मिनट लिए. फिर सन्नाटा छा गया और उसे वही अनुभूति हुई जैसे सब कुछ मर गया हो.
कराल्योफ़ कुछ मिनट वहां और बैठा और फिर घर लौट आया. लेकिन वह बहुत देर बाद बिस्तर पर सोने गया. कमरे के दोनों तरफ़ उसे कानाफूसी, फ़र्श पर चप्पलों और नंगे पैर घिसटने की आवाज़ सुनाई दे रही थी.
“पक्के तौर पर उसे दूसरी बार दौरा नहीं पड़ा है.” कराल्योफ़ ने सोचा.
उसने अपना कमरा छोड़ा और उस बीमार लड़की को देखने चला गया. कमरा चमकीली धूप से पहले ही भरा हुआ था और सुबह की धुंध से छनकर आती हुई सूरज की कमज़ोर किरणें हॉल की दीवारों पर खेल खेल रहीं थीं. लीज़ा के बेडरूम का दरवाज़ा खुला हुआ था. एक शाल की तरह हाउस कोट को अपने चारों तरफ़ लपेटे हुए और बिखरे बालों के साथ अपने बिस्तर के क़रीब आराम कुर्सी पर बैठी हुई थी. परदे खींचे हुए थे.
“आपको कैसा लग रहा है” कराल्योफ़ ने पूछा
“अच्छी हूं! शुक्रिया’’
डॉक्टर ने उसकी नाड़ी देखी और उसके माथे पर गिरे हुए बालों को ठीक करते हुए पीछे कर दिया.
“तो आप सो नहीं रही हैं. बाहर ख़ुशगवार मौसम है. बसंत आ गया है. कोयल कूक रही हैं और आप हैं कि यहां अन्धेरे में ख़्यालों में खोई हुई हैं. ” उसने कहा.
लड़की ने सुना और उसके चेहरे पर अपनी सीधी नज़र से टिका दी. लड़की की आंखें उदास और सजग थी और साफ़तौर से लग रहा था कि वह कुछ कहना चाहती थी.
“क्या यह अक्सर होता है” डॉक्टर ने पूछा.
“हां! लगभग हर रात बुरा महसूस होता है.”
ठीक इसी समय पहरेदार ने दो का घंटा बजाया. उस तीखी धातुई टनटनाहट से वह कांप गई.
“क्या आपको इस आवाज़ से परेशानी होती है?”
“मैं पक्के तौर से नहीं कह सकती. यहां मुझे हर चीज़ परेशान करती है.” उसने जवाब दिया और ख़्यालों में डूबी हुई बोली,” हर चीज़ परेशान करती है. मैं आपकी आवाज़ को सुनकर कह सकती हूं कि आप मुझे लेकर चिंतित हो और जिस पल मैंने आपको देखा. मुझे लग गया था कि मैं आप सरीखे किसी से अपने मन की बात कह सकती हूं -हर चीज़ कह सकती हूं.’’
“फिर तो आप ज़रूर कहिए…’’
‘‘मैं आपसे वह सब कहना चाहती हूं जो सोचती हूं. ऐसा लगता है मैं बीमार नहीं हूं. इस वज़ह से मैं चिंतित हूं और डरी हुई हूं. ख़ासतौर से इसलिए कि चीज़ें शायद बदल नहीं सकतीं. सेहतमंद आदमी भी चिंता करने से बच नहीं सकता-जबकि आपकी खिड़की के नीचे बीमारी सेंधमार की तरह घात लगाए बैठी है.” उसने फ़ीकी मुस्कान के साथ अपने टखनों को देखा और अपनी बात जारी रखी,‘‘मेरा इलाज़ हमेशा होता रहा है और मैं इसके लिए शुक्रगुज़ार भी हूं. मैं यह भी नहीं कहूंगी कि यह सब बेकार है. दरअसल मैं डॉक्टरों से बात नहीं करना चाहती बल्कि उनसे करना चाहती हूं जो मेरे क़रीब हैं-मेरे दोस्त जो मुझे समझ सकें और मुझे यक़ीन दिला सके कि मैं सही हूं या ग़लत.”
“क्या तुम्हारे कोई दोस्त नहीं हैं?’’ कराल्योफ़ ने पूछा.
“सब कुछ मैं ही हूं. मेरी मां हैं और मैं उन्हें प्यार करती हूं लेकिन फिर भी मैं अकेली हूं. इस तरह मेरी ज़िन्दगी बन गई है… अकेले लोग बहुत पढ़ते हैं लेकिन वे ज़्यादा कुछ नहीं कहते और सुनते नहीं. ज़िन्दगी इनके लिए रहस्य होती है. ऐसे लोग रहस्यवादी होते हैं और अक्सर उन्हें शैतान दिखाई देते हैं. लेर्मोंतोवा कथा की तमारा अकेली थी और उसे शैतान दिखाई देते थे. ”
“क्या आप बहुत पढ़ती हैं? ’’
“हां बहुत! आप देख ही सकते हैं कि सुबह से लेकर शाम तक मेरे पास अपना निजी समय है. दिन में मैं पढ़ती हूं लेकिन रात के समय मेरा सिर ख़ाली हो जाता है और विचारों की ज़गह पर काले साए दिखते हैं. ”
“क्या रात में आपको चीज़ें दिखाई देती हैं?” कराल्योफ़ ने पूछा.
“नहीं, लेकिन मैं महसूस कर सकती हूं.”
वह लड़की डॉक्टर को देखकर फिर मुस्कराई और उसने एक उदास परिचित नज़र से उन्हें देखा. डॉक्टर को लगा कि वह लड़की उसमें भरोसा करती है और वह दिल से दिल की बात करना चाहती है और वह उसी तरह सोचती है जैसा कि वह सोचता है. लेकिन उसने कुछ नहीं कहा और शायद वह लड़की भी डॉक्टर के बोलने का इंतज़ार कर रही थी.
डॉक्टर जानता था कि उसे उस लड़की से क्या कहना है. डॉक्टर के मन में ज़रा भी शक नहीं था कि उस लड़की को जल्दी से जल्दी अपनी पांचों कारखानों और लाखों रूबलों को यह सोचकर तज देना चाहिए कि उनके पास बहुत धन है. उस शैतान को जो रात में उस पर नज़र रखता है. जाहिर था कि वह लड़की भी उसी तरह सोच रही थी और वह भी उस आदमी का इंतज़ार कर रही थी जिस पर भरोसा करके इस बात की तस्दीक कर सके.
लेकिन डॉक्टर नहीं जानता था कि इसे लफ्ज़ों में किस तरह बयान कर सके. वह इसे कैसे कह सकता है? सज़ायाफ्ता आदमी से कोई उसकी सज़ा का कारण पूछना नहीं चाहता. और इसी तरह अमीर आदमियों से यह सवाल पूछना अटपटा लगता है कि वे इतने अमीर क्यों हैं और अपने धन का इतना ख़राब इस्तेमाल क्यों करते हैं, वे इसे क्यों नहीं छोड़ देते हैं जबकि वे जानते हैं कि उनके दुःख की वज़ह यही है. इस मुद्दे पर कोई चर्चा आमतौर से निषेधी, शर्मिंदगी भरी और ज़रूरत से ज़्यादा लंबी खिंच जाती थी.
“मैं उससे यह कैसे कह सकता हूं” कराल्योफ़ संदेह से घिरा था,‘‘क्या मुझे कहना चाहिए?”
और डॉक्टर ने उससे वह कहा जो वह कहना चाहता था-सीधे सीधे नहीं, कुछ घुमा फिराकर उसे कहा,“कारखाने की मालकिन और अपार सम्पत्ति की उत्तराधिकारी होते हुए भी आप ख़ुश नहीं हैं. आप अपने हक़ों में यक़ीन नहीं करती हैं और अब आप सो तक नहीं पाती हैं. संतुष्ट होने, गहरी नींद सोने और दुनिया में सब ठीक है, सोचने से ज़रूर यह बेहतर है. आपकी अनिद्रा कुछ आदर के क़ाबिल है. आप जो कुछ भी सोचती हैं, यह अच्छी निशानी है. दरअसल हम जिस तरह बातचीत कर रहे हैं, वह हमारे माता-पिता के लिए अकल्पनीय है. उन्होंने रात में कभी कोई इस तरह बात नहीं की होगी, बल्कि गहरी नींद लेते रहे होंगे. लेकिन हमारी पीढ़ी की नींद ख़राब रहती है, हम थके-मांदे रहते हैं. हमें लगता है कि हम हर चीज़ का जवाब खोज सकते हैं चाहे वह सही हो या ग़लत. समस्या चाहे सही हो या ग़लत, उसे हमारे बच्चों, पोते-पोतियों के लिए पहले ही हल किया जा चुका है. वे चीज़ों को हमसे ज़्यादा साफ़तौर से देखेंगे. पचास साल बाद ज़िंदगी अच्छी हो जाएगी लेकिन अफ़सोस है कि हम तब तक नहीं जिएंगे. यह देखना दिलचस्प होगा.”
“हमारे बच्चे, पोते-पोतियां क्या करेंगे?” लीज़ा ने पूछा.
‘‘मैं नहीं जानता. शायद हर चीज़ छोड़ देंगे और कहीं चले जाएंगे.’’
“कहां जाएंगे?”
“कहां जाएंगे? अरे! जहां उनका मन होगा. अच्छे और चतुर आदमी के लिए जगहों की कमी नहीं है’’ कराल्योफ़ ने हंसते हुए कहा.
डॉक्टर ने अपनी घड़ी देखी.
“आपको कुछ नींद ले लेनी चाहिए. कपड़े बदल लीजिए और अब अच्छे से आराम करिए.”
डॉक्टर ने लड़की से हाथ मिलाया और फिर बोला,‘‘मुझे ख़ुशी है कि आपसे मुलाक़ात हुई. आप कमाल की दिलचस्प इंसान हैं. गुड नाइट!”
डॉक्टर अपने कमरे में गया और बिस्तर में धंस गया.
अगली सुबह जब घोड़ागाड़ी आई, विदा देने के लिए हर कोई आगे की सीढ़ी पर पहुंच गया. लीज़ा रविवार की सबसे उम्दा सफ़ेद कपड़ों में अपने बालों में फूल लगाकर सजी-धजी खड़ी थी. वह मुरझाई और निस्तेज लग रही थी. उसने उदास और परिचित निगाहों से डॉक्टर की ओर देखा जैसा वह एक दिन पहले मुस्कराई थी. उसकी आवाज़ का लहज़ा यह इशारा कर रहा था कि वह उससे कुछ ख़ास और महत्वपूर्ण बात कहना चाहती है, सिर्फ़ उससे अकेले में.
लार्क पक्षी की चहचहाहट सुनाई दे रही थी. गिरजाघर की घंटियां बज रही थीं. कारखाने की खिड़कियां ख़ुशी से चमक रही थीं. जैसे ही उसकी घोडागाड़ी कारखाने के अहाते को पारकर स्टेशन की सड़क पर पहुंची, कराल्योफ़ कारखाने के कामगारों, वहां जमा इमारती लोहा- लंगड़ों, शैतान आदि को पूरी तरह भूल गए और उस वक़्त के बारे में सोचने लगे जब उनकी ज़िन्दगी उस तरह चमकदार और ख़ुशगवार होगी जैसी इतवार की सुबह होती है जो शायद बहुत दूर नहीं है. उसने यह भी सोचा कि उस वसंत की सुबह एक शानदार त्रोइका घोड़ागाड़ी पर सवारी करना और धूप में अपनी देह सेंकना कितना सुखद रहा.
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