हमारा दिल भले ही कितना भी सख़्त क्यों न हो जाए, पर शरीर के दूसरे अंगों का संवेनशील होना बताता है कि हम अभी भी इंसान ही हैं. एक डॉक्टर और मरीज़ के बीच की मज़ेदार बातचीत इसी सच्चाई को बयां करती है.
एक दिन परेशान होकर वह डेंटिस्ट के पास पहुंचा.
‘डॉक्टर साहब कुछ ठंडा-गरम खाओ, तो दांत में लगता है!’ उसने अपनी समस्या बताई.
डॉक्टर ने उसे ग़ौर से देखा. फिर वह मास्क लगाकर उसके दांतों का मुआयना करने लगा.
डॉक्टर को मास्क लगाए देख वह मुस्कुराया. सोचा,’यहां तो हम बिना मुंह ढंके ही काम कर देते हैं!’
‘चिंता की कोई बात नहीं!’ डॉक्टर बोला.
‘पर हुआ क्या!’ उसने पूछा.
‘सेंस्टीविटी है बस!’ डॉक्टर बोला.
‘ये क्या बला है डॉक्टर साहब!’ उसने समझने का प्रयास किया.
‘अरे कुछ नहीं….आपके दांत संवेदनशील हो गए हैं!’ डॉक्टर ने वैज्ञानिक कारण न बताकर सेंस्टीविटी का हिंदी तर्जुमा कर दिया.
यह बात सुनकर वह चौंका.
‘ये हो ही नहीं सकता!’ वह उचकते हुए बोला.
उसकी इस बात पर डॉक्टर चौंका.
‘आपके दांत महसूस करने लगे हैं!’ डॉक्टर ने फिर सरलीकरण किया.
‘मामला तो संवेदनशील है!’ उसने सोचा.
‘डॉक्टर साहब! यह अच्छी बात नहीं है!’ वह मायूस होकर बोला.
डॉक्टर ने देखा कि उसके माथे पर पसीने की बूंदें चमक रही हैं.
‘अरे यह सामान्य बात है! ऐसा होता है! डोंट वरी!’ डॉक्टर ने उसे समझाया.
‘फिर तो काम करने में दिक्कत होगी!’ उसने सोचा.
‘यह सामान्य बात कैसे!’ वह चिंतित स्वर में बोला.
उसकी बात सुनकर डॉक्टर परेशान हुआ. क्लिनिक संवेनशील इलाक़े में होने के बावजूद भी डॉक्टर कभी इतना परेशान न हुआ, जितना कि आज अकेले इस पेशेंट ने कर दिया.
‘डॉक्टर साहब आप ऐसा करें! जो दांत महसूस करने लगे हैं, उन्हें जड़ से उखाड़ दीजिए!’ उसने आदेश सरीखा दिया.
‘अरे इसकी ज़रूरत नहीं है भाई!’ डॉक्टर ने समझाने का प्रयास किया.
‘दांत जैसी सख़्त चीज़ को महसूस होने लगा! दिल तो फिर भी नरम होता है,उसे महसूस करने में कितना टाइम लगेगा!’ वह ख़ुद से बड़बड़ाया.
डॉक्टर को उसकी बात समझ में नहीं आई.
‘जो मैं कह रहा हूं,आप करिए! दांत को फौरन निकाल दीजिए!’ उसने डॉक्टर को अर्दब में लेने की कोशिश की.
‘डॉक्टर मैं हूं कि आप!’ डॉक्टर ग़ुस्से से बोला.
‘दंगाई मैं हूं कि आप!’ यह बात बोलते-बोलते वह रुक गया.
Illustrations: Pinterest