• होम पेज
  • टीम अफ़लातून
No Result
View All Result
डोनेट
ओए अफ़लातून
  • सुर्ख़ियों में
    • ख़बरें
    • चेहरे
    • नज़रिया
  • हेल्थ
    • डायट
    • फ़िटनेस
    • मेंटल हेल्थ
  • रिलेशनशिप
    • पैरेंटिंग
    • प्यार-परिवार
    • एक्सपर्ट सलाह
  • बुक क्लब
    • क्लासिक कहानियां
    • नई कहानियां
    • कविताएं
    • समीक्षा
  • लाइफ़स्टाइल
    • करियर-मनी
    • ट्रैवल
    • होम डेकोर-अप्लाएंसेस
    • धर्म
  • ज़ायका
    • रेसिपी
    • फ़ूड प्लस
    • न्यूज़-रिव्यूज़
  • ओए हीरो
    • मुलाक़ात
    • शख़्सियत
    • मेरी डायरी
  • ब्यूटी
    • हेयर-स्किन
    • मेकअप मंत्र
    • ब्यूटी न्यूज़
  • फ़ैशन
    • न्यू ट्रेंड्स
    • स्टाइल टिप्स
    • फ़ैशन न्यूज़
  • ओए एंटरटेन्मेंट
    • न्यूज़
    • रिव्यूज़
    • इंटरव्यूज़
    • फ़ीचर
  • वीडियो-पॉडकास्ट
ओए अफ़लातून
Home बुक क्लब क्लासिक कहानियां

गौरा गाय: एक मार्मिक कथा (लेखिका: महादेवी वर्मा)

टीम अफ़लातून by टीम अफ़लातून
May 4, 2021
in क्लासिक कहानियां, बुक क्लब
A A
गौरा गाय: एक मार्मिक कथा (लेखिका: महादेवी वर्मा)
Share on FacebookShare on Twitter

पशु-पक्षी प्रेमी लेखिका महादेवी वर्मा ने अपने पालतू जानवरों और पक्षियों के लाजवाब संस्मरण लिखे थे. यह संस्मरण है उनके सानिध्य में आई एक गाय की. गौरा नामक उस गाय के जीवन के दुखद अंत का करुण वर्णन है यह संस्मरण.

गाय के नेत्रों में हिरन के नेत्रों-जैसा विस्मय न होकर आत्मीय विश्वास रहता है. उस पशु को मनुष्य से यातना ही नहीं, निर्मम मृत्यु तक प्राप्त होती है, परंतु उसकी आंखों के विश्वास का स्थान न विस्मय ले पाता है, न आतंक.
गौरा मेरी बहिन के घर पली हुई गाय की व:यसंधि तक पहुंची हुई बछिया थी. उसे इतने स्नेह और दुलार से पाला गया था कि वह अन्य गोवत्साओं से कुछ विशिष्ट हो गई थी.
बहिन ने एक दिन कहा, तुम इतने पशु-पक्षी पाला करती हो-एक गाय क्यों नहीं पाल लेती, जिसका कुछ उपयोग हो. वास्तव में मेरी छोटी बहिन श्यामा अपनी लौकिक बुद्धि में मुझसे बहुत बड़ी है और बचपन से ही उनकी कर्मनिष्ठा और व्यवहार-कुशलता की बहुत प्रशंसा होती रही है, विशेषत: मेरी तुलना में. यदि वे आत्मविश्वास के साथ कुछ कहती हैं तो उनका विचार संक्रामक रोग के समान सुननेवाले को तत्काल प्रभावित करता है. आश्चर्य नहीं, उस दिन उनके प्रतियोगितावाद संबंधी भाषण ने मुझे इतना अधिक प्रभावित किया कि तत्काल उस सुझाव का कार्यान्वयन आवश्यक हो गया.
वैसे खाद्य की किसी भी समस्या के समाधान के लिए पशु-पक्षी पालना मुझे कभी नहीं रुचा. पर उस दिन मैंने ध्यानपूर्वक गौरा को देखा. पुष्ट लचीले पैर, चिकनी भरी पीठ, लंबी सुडौल गर्दन, निकलते हुए छोटे-छोटे सींग, भीतर की लालिमा की झलक देते हुए कमल की पंखड़ियों जैसे कान, सब सांचे में ढला हुआ-सा था.
गौरा को देखती ही मेरी गाय पालने के संबंध में दुविधा निश्चय में बदल गई. गाय जब मेरे बंगले पर पहुंची तब मेरे परिचितों और परिचारकों में श्रद्धा का ज्वार-सा उमड़ आया. उसे गुलाबों की माला पहनाई, केशर-रोली का बड़ा-सा टीका लगाया गया, घी का दिया जलाकर आरती उतारी गई और उसे दही-पेड़ा खिलाया गया. उसका नामकरण हुआ गौरांगिनी या गौरा. गौरा वास्तव में बहुत प्रियदर्शनी थी, विशेषत: उसकी काली-बिल्लौरी आंखों का तरल सौंदर्य तो दृष्टि को बांधकर स्थिर कर देता था. गाय के नेत्रों में हिरन के नेत्रों-जैसा चकित विस्मय न होकर एक आत्मीय विश्वास ही रहता है. उस पशु को मनुष्य से यातना ही नहीं, निर्मम मृत्यु तक प्राप्त होती है, परंतु उसकी आंखों के विश्वास का स्थान न विस्मय ले पाता है, न आतंक. महात्मा गांधी ने ‘गाय करुणा की कविता है’, क्यों कहा, यह उसकी आंखें देखकर ही समझ आ सकता है.
कुछ ही दिनों में वह सबसे इतनी हिलमिल गई कि अन्य पशु-पक्षी अपनी लघुता और उसकी विशालता का अंतर भूल गए. पक्षी उसकी पीठ और माथे पर बैठकर उसके कान तथा आंखें खुजलाने लगे. वह भी स्थिर खड़ी रहकर और आंखें मूंदकर मानो उनके संपर्क-सुख की अनुभूति में खो जाती थी. हम सबको वह आवाज़ से नहीं, पैर की आहट से भी पहचानने लगी. समय का इतना अधिक बोध उसे हो गया था कि मोटर के फाटक में प्रवेश करते ही वह बां-बां की ध्वनि से हमें पुकारने लगती. चाय, नाश्ता तथा भोजन के समय से भी वह प्रतीक्षा करने के उपरांत रंभा-रंभाकर घर सिर पर उठा लेती थी. उसे हमसे साहचर्यजनित लगाव मानवीय स्नेह के समान ही निकटता चाहता था. निकट जाने पर वह सहलाने के लिए गर्दन बढ़ा देती, हाथ फेरने पर मुख आश्वस्त भाव से कंधे पर रखकर आंखें मूंद लेती. जब उससे आवश्यकता के लिए उसके पास एक ही ध्वनि थी. परंतु उल्लास, दु:ख, उदासीनता आदि की अनेक छाया उसकी बड़ी और काली आंखों में तैरा करती थीं.
एक वर्ष के उपरांत गौरा एक पुष्ट सुंदर वत्स की माता बनीं. वत्स अपने लाल रंग के कारण गेरु का पुतला-जान पड़ता था. माथे पर पान के आकार का श्वेत तिलक और चारों पैरों में खुरों के ऊपर सफ़ेद वलय ऐसे लगते थे मानो गेरु की बनी वत्समूर्ति को चांदी के आभूषणों से अलंकृत किया हो. बछड़े का नाम रखा गया लालमणि, परंतु उसे सब लालू के संबोधन से पुकारने लगे. माता-पुत्र दोनों निकट रहने पर हिमराशि और जलते अंगारे का स्मरण कराते थे. अब हमारे घर में मानो दुग्ध-महोत्सव आरंभ हुआ. गौरा प्राय: बारह सेर के लगभग दूध देती थी, अत: लालमणि के लिए कई सेर छोड़ देने पर भी इतना अधिक शेष रहता था कि आस-पास के बालगोपाल से लेकर कुत्ते-बिल्ली तक सब पर मानो दूधो नहाओ का आशीर्वाद फलित होने लगा. कुत्ते-बिल्लियों ने तो एक अद्भुत दृश्य उपस्थित कर दिया था. दुग्ध-दोहन के समय वे सब गौरा के सामने एक पंक्ति में बैठ जाते और महादेव उनके खाने के लिए निश्चित बर्तन रख देता. किसी विशेष आयोजन पर आमंत्रित अतिथियों के समान वे परम शिष्टता का परिचय देते हुए प्रतीक्षा करते रहते. फिर नाप-नापकर सबके पात्रों में दूध डाल दिया जाता, जिसे पीने के उपरांत वे एक बार फिर अपने-अपने स्वर में कृतज्ञता ज्ञापन-सा करते हुए गौरा के चारों ओर उछलने-कूदने लगते. जब तक वे सब चले न जाते, गौरा प्रसन्न दृष्टि से उन्हें देखती रहती. जिस दिन उनके आने में विलम्ब होता, वह रंभा-रंभाकर मानो उन्हें पुकारने लगती. पर अब दुग्ध-दोहन की समस्या कोई स्थायी समाधान चाहती थी. गौरा के दूध देने के पूर्व जो ग्वाला हमारे यहां दूध देता था, जब उसने इस कार्य के लिए अपनी नियुक्ति के विषय में आग्रह किया, तब हमने अपनी समस्या का समाधान पा लिया. दो-तीन मास के उपरांत गौरा ने दाना-चारा खाना बहुत कम कर दिया और वह उत्तरोत्तर दुर्बल और शिथिल रहने लगी. चिंतित होकर मैंने-पशु चिकित्सकों को बुलाकर दिखाया. वे कई दिनों तक अनेक प्रकार के निरीक्षण, परीक्षण आदि द्वारा रोग का निदान खोजते रहे. अंत में उन्होंने निर्णय दिया कि गाय को सुई खिला दी गई है, जो उसके रक्त-संचार के साथ हृदय तक पहुंच गई है. जब सुई गाय के हृदय के पार हो जाएगी तब रक्त-संचार रुकने से उसकी मृत्यु निश्चित है. मुझे कष्ट और आश्चर्य दोनों की अनुभूति हुई. सुई खिलाने का क्या तात्पर्य हो सकता है? चारा तो हम स्वयं देखभाल कर देते हैं, परंतु संभव है, उसी में सुई चली गई हो. पर डॉक्टर के उत्तर से ज्ञात हुआ कि चारे के साथ सुई गाय के मुख में ही छिदकर रह जाती है, गुड़ की डली के भीतर रखी गई सुई ही गले के नीचे उतर जाती है और अंतत: रक्त-संचार में मिलकर हृदय में पहुंच सकती है. अंत में ऐसा निर्मम सत्य उद्घाटित हुआ जिसकी कल्पना भी मेरे लिए संभव नहीं थी. प्राय: कुछ ग्वाले ऐसे घरों में, जहां उनसे अधिक दूध लेते हैं, गाय का आना सह नहीं पाते. अवसर मिलते ही वे गुड़ में लपेटकर सुई उसे खिलाकर उसकी असमय मृत्यु निश्चित कर देते हैं. गाय के मर जाने पर उन घरों में वे पुन: दूध देने लगते हैं. सुई की बात ज्ञात होते ही ग्वाला एक प्रकार से अंतर्धान हो गया, अत: संदेह का विश्वास में बदल जाना स्वाभाविक था. वैसे उसकी उपस्थिति में भी किसी क़ानूनी कार्यवाही के लिए आवश्यक प्रमाण जुटाना असंभव था.
तब गौरा का मृत्यु से संघर्ष प्रारंभ हुआ, जिसकी स्मृति मात्र से आज भी मन सिहर उठता है. डॉक्टरों ने कहा,‘गाय को सेब का रस पिलाया जाए, तो सुई पर कैल्शियम जम जाने और उसके न चुभने की संभावना है.’ अत: नित्य कई-कई सेर सेब का रस निकाला जाता और नली से गौरा को पिलाया जाता. शक्ति के लिए इंजेक्शन दिए जाते. पशुओं के इंजेक्शन के लिए सूजे के समान बहुत लंबी मोटी सिरिंज तथा बड़ी बोतल भर दवा की आवश्यकता होती है. अत: वह इंजेक्शन भी अपने आप में शल्यक्रिया जैसा यातनामय हो जाता था. पर गौरा अत्यंत शांति से बाहर और भीतर दोनों की चुभन और पीड़ा सहती थी. केवल कभी-कभी उसकी सुंदर पर उदास आंखों के कानों में पानी की दो बूंदें झलकने लगती थीं. अब वह उठ नहीं पाती थी, परंतु मेरे पास पहुंचते ही उसकी आंखों में प्रसन्नता की छाया-सी तैरने लगती थी. पास जाकर बैठने पर वह मेरे कंधे पर अपना मुख रख देती थी और अपनी खुरदरी जीभ से मेरी गर्दन चाटने लगती थी. लालमणि बेचारे को तो मां की व्याधि और आसन्न मृत्यु का बोध नहीं था. उसे दूसरी गाय का दूध पिलाया जाता था, जो उसे रुचता नहीं था. वह तो अपनी मां का दूध पीना और उससे खेलना चाहता था, अत: अवसर मिलते ही वह गौरा के पास पहुंचकर या अपना सिर मार-मार, उसे उठाना चाहता था या खेलने के लिए उसके चारों ओर उछल-कूदकर परिक्रमा ही देता रहता.
इतनी हष्ट-पुष्ट, सुंदर, दूध-सी उज्ज्वल पयस्विनी गाय अपने इतने सुंदर चंचल वत्स को छोड़कर किसी भी दिन निर्जीव निश्चेष्ट हो जाएगी, यह सोचकर ही आंसू आ जाते थे. लखनऊ, कानपुर आदि नगरों से भी पशु-विशेषज्ञों को बुलाया, स्थानीय पशु-चिकित्सक’ तो दिन में दो-तीन बार आते रहे, परंतु किसी ने ऐसा उपचार नहीं बताया, जिससे आशा की कोई किरण मिलती. निरुपाय मृत्यु की प्रतीक्षा का मर्म वही जानता है, जिसे किसी असाध्य और मरणासन्न रोगी के पास बैठना पड़ता हो.
जब गौरा की सुंदर चमकीली आंखें निष्प्रभ हो चलीं और सेब का रस भी कंठ में रुकने लगा, तब मैंने अंत का अनुमान लगा लिया. अब मेरी एक ही इच्छा थी कि मैं उसके अंत समय उपस्थित रह सकूं. दिन में ही नहीं, रात में भी कई-कई बार उठकर मैं उसे देखने जाती रही.
अंत में एक दिन ब्रहामुहूर्त में चार बजे जब मैं गौरा को देखने गई, तब जैसे ही उसने अपना मुख सदा के समान मेरे कंधे पर रखा, वैसे ही एकदम पत्थर-जैसा भारी हो गया और मेरी बांह पर से सरककर धरती पर आ रहा. कदाचित सुई ने हृदय को बेधकर बंद कर दिया.
अपने पालित जीव जंतुओं के पार्थिव अवशेष मैं गंगा को समर्पित करती रही हूं. गौरांगिनी को ले जाते समय मानो करुणा का समुद्र उमड़ आया, परंतु लीलामणि इसे भी खेल समझ उछलता-कूदता रहा. यदि दीर्घ नि:श्वास का शब्दों में अनुवाद हो सकता, तो उसकी प्रतिध्वनि कहेगी, ‘आह मेरा गोपालक देश.’

Illustration: Pinterest

इन्हें भीपढ़ें

Naresh-Chandrakar_Poem

नए बन रहे तानाशाह: नरेश चन्द्रकर की कविता

March 27, 2023
फ़िक्शन अफ़लातून#14 मैं हार गई (लेखिका: मीता जोशी)

फ़िक्शन अफ़लातून#14 मैं हार गई (लेखिका: मीता जोशी)

March 22, 2023
फ़िक्शन अफ़लातून#13 लेकिन कैसे कह दूं इंतज़ार नहीं… (लेखिका: पद्मा अग्रवाल)

फ़िक्शन अफ़लातून#13 लेकिन कैसे कह दूं इंतज़ार नहीं… (लेखिका: पद्मा अग्रवाल)

March 20, 2023
फ़िक्शन अफ़लातून#12 दिखावा या प्यार? (लेखिका: शरनजीत कौर)

फ़िक्शन अफ़लातून#12 दिखावा या प्यार? (लेखिका: शरनजीत कौर)

March 18, 2023
Tags: Classic KahaniyaFamous writers storyGaura GayHindi KahaniHindi KahaniyanHindi StoryHindi writersKahaniMahadevi VermaMahadevi Verma ki kahaniMahadevi Verma ki kahani Gaura GayMahadevi Verma storiesकहानीक्लासिक कहानियांगौरा गायमशहूर लेखकों की कहानीमहादेवी वर्मामहादेवी वर्मा की कहानियांमहादेवी वर्मा की कहानीमहादेवी वर्मा की कहानी गौरा गायहिंदी कहानियांहिंदी कहानीहिंदी के लेखकहिंदी स्टोरी
टीम अफ़लातून

टीम अफ़लातून

हिंदी में स्तरीय और सामयिक आलेखों को हम आपके लिए संजो रहे हैं, ताकि आप अपनी भाषा में लाइफ़स्टाइल से जुड़ी नई बातों को नए नज़रिए से जान और समझ सकें. इस काम में हमें सहयोग करने के लिए डोनेट करें.

Related Posts

फ़िक्शन अफ़लातून#11 भरा पूरा परिवार (लेखिका: पूजा भारद्वाज)
ज़रूर पढ़ें

फ़िक्शन अफ़लातून#11 भरा पूरा परिवार (लेखिका: पूजा भारद्वाज)

March 18, 2023
फ़िक्शन अफ़लातून#10 द्वंद्व (लेखिका: संयुक्ता त्यागी)
ज़रूर पढ़ें

फ़िक्शन अफ़लातून#10 द्वंद्व (लेखिका: संयुक्ता त्यागी)

March 17, 2023
फ़िक्शन अफ़लातून#9 सेल्फ़ी (लेखिका: डॉ अनिता राठौर मंजरी)
ज़रूर पढ़ें

फ़िक्शन अफ़लातून#9 सेल्फ़ी (लेखिका: डॉ अनिता राठौर मंजरी)

March 16, 2023
Facebook Twitter Instagram Youtube
ओए अफ़लातून

हर वह शख़्स फिर चाहे वह महिला हो या पुरुष ‘अफ़लातून’ ही है, जो जीवन को अपने शर्तों पर जीने का ख़्वाब देखता है, उसे पूरा करने का जज़्बा रखता है और इसके लिए प्रयास करता है. जीवन की शर्तें आपकी और उन शर्तों पर चलने का हुनर सिखाने वालों की कहानियां ओए अफ़लातून की. जीवन के अलग-अलग पहलुओं पर, लाइफ़स्टाइल पर हमारी स्टोरीज़ आपको नया नज़रिया और उम्मीद तब तक देती रहेंगी, जब तक कि आप अपने जीवन के ‘अफ़लातून’ न बन जाएं.

संपर्क

ईमेल: [email protected]
फ़ोन: +91 9967974469
+91 9967638520
  • About
  • Privacy Policy
  • Terms

© 2022 Oyeaflatoon - Managed & Powered by Zwantum.

No Result
View All Result
  • सुर्ख़ियों में
    • ख़बरें
    • चेहरे
    • नज़रिया
  • हेल्थ
    • डायट
    • फ़िटनेस
    • मेंटल हेल्थ
  • रिलेशनशिप
    • पैरेंटिंग
    • प्यार-परिवार
    • एक्सपर्ट सलाह
  • बुक क्लब
    • क्लासिक कहानियां
    • नई कहानियां
    • कविताएं
    • समीक्षा
  • लाइफ़स्टाइल
    • करियर-मनी
    • ट्रैवल
    • होम डेकोर-अप्लाएंसेस
    • धर्म
  • ज़ायका
    • रेसिपी
    • फ़ूड प्लस
    • न्यूज़-रिव्यूज़
  • ओए हीरो
    • मुलाक़ात
    • शख़्सियत
    • मेरी डायरी
  • ब्यूटी
    • हेयर-स्किन
    • मेकअप मंत्र
    • ब्यूटी न्यूज़
  • फ़ैशन
    • न्यू ट्रेंड्स
    • स्टाइल टिप्स
    • फ़ैशन न्यूज़
  • ओए एंटरटेन्मेंट
    • न्यूज़
    • रिव्यूज़
    • इंटरव्यूज़
    • फ़ीचर
  • वीडियो-पॉडकास्ट
  • टीम अफ़लातून

© 2022 Oyeaflatoon - Managed & Powered by Zwantum.

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist