• होम पेज
  • टीम अफ़लातून
No Result
View All Result
डोनेट
ओए अफ़लातून
  • सुर्ख़ियों में
    • ख़बरें
    • चेहरे
    • नज़रिया
  • हेल्थ
    • डायट
    • फ़िटनेस
    • मेंटल हेल्थ
  • रिलेशनशिप
    • पैरेंटिंग
    • प्यार-परिवार
    • एक्सपर्ट सलाह
  • बुक क्लब
    • क्लासिक कहानियां
    • नई कहानियां
    • कविताएं
    • समीक्षा
  • लाइफ़स्टाइल
    • करियर-मनी
    • ट्रैवल
    • होम डेकोर-अप्लाएंसेस
    • धर्म
  • ज़ायका
    • रेसिपी
    • फ़ूड प्लस
    • न्यूज़-रिव्यूज़
  • ओए हीरो
    • मुलाक़ात
    • शख़्सियत
    • मेरी डायरी
  • ब्यूटी
    • हेयर-स्किन
    • मेकअप मंत्र
    • ब्यूटी न्यूज़
  • फ़ैशन
    • न्यू ट्रेंड्स
    • स्टाइल टिप्स
    • फ़ैशन न्यूज़
  • ओए एंटरटेन्मेंट
    • न्यूज़
    • रिव्यूज़
    • इंटरव्यूज़
    • फ़ीचर
  • वीडियो-पॉडकास्ट
ओए अफ़लातून
Home बुक क्लब नई कहानियां

यू टर्न: डॉ संगीता झा की कहानी

डॉ संगीता झा by डॉ संगीता झा
April 25, 2021
in नई कहानियां, बुक क्लब
A A
यू टर्न: डॉ संगीता झा की कहानी
Share on FacebookShare on Twitter

एक होममेकर की ज़िंदगी तब पूरी तरह बदल जाती है, जब कोरोना के चलते लॉक डाउन लग जाता है. यह बदलाव कुछ अच्छे तो कुछ कड़वे तोहफ़े साथ लाता है. पर क्या होता है, जब घर के सभी सदस्यों की ज़िंदगी पहले जैसी हो जाती है? क्या हमारी होममेकर की भी लाइफ़ पहले वाले ढर्रे पर आ पाती है? डॉ संगीता झा की यह छोटी-सी कहानी पढ़ें और ख़ुद जान जाएं.

“मम्मा मैं कॉलेज से सीधे लाइब्रेरी चली जाऊंगी, वहां से आरोही के घर, हम सब साथ मस्ती करेंगे. मेरा वेट मत करना, खाना भी बाहर खा कर आऊंगी.”
मैं कुछ जवाब दे भी पाती, उससे पहले बेटी ने फ़ोन काट दिया. फिर घंटी बजी तो बेटे का फ़ोन था,“मॉम स्वीट मॉम मैं वेणु के घर पर हूं लम्बा प्रोग्राम है. दरवाज़ा खुला रखना, आके बात करता हूं ठीक.’’
आज पहला दिन था लॉक डाउन में ढील का, दोनों आधे घंटे में आने का कह घर से निकले थे. मुझसे तो कहा कॉलेज से बुक्स का पता करेंगे और प्रोफ़ेसर्स से भी मिलेंगे. मैं अब पशोपेश में पड़ गई कि सर पर बैठे हुए पति को क्या जवाब दूंगी. शादी के शुरू के दिनों में जब मैं और माधव यानी मेरे पति अकेले थे तब भी हमारी ज़िंदगी में कोई रोमांच नहीं था. वो अपने ऑफ़िस के काम में और मैं घर सजाने में लगी रहती थी.
बच्चे हुए तो मैं उन्हें बड़ा करने में और वो नाम और पैसा कमाने में. पता नहीं ये सबकी कहानी थी या मेरे साथ ही ऐसा था. बचपन से घर पर भी यही देखा था पापा को दहाड़ते और अम्मा को सम्भालते. लगा शायद ये ही जीवन है, और ऐसे ही जीते जाना है. घर पर मैं तो ठीक-ठाक ही रहती थी लेकिन भाई बुड़बुड़ाते रहते थे. मैं तो यहां मां से बेहतर मैनेजर थी, सो बच्चों को बुड़बुड़ाने की ज़रूरत नहीं थी. बच्चों की पढ़ाई, दवाई स्कूल सब कुछ मैं सम्भालती थी और कभी लगा ही नहीं कि कोई मुझे सहारा दे. ऐसी ज़िंदगी शायद सबकी होती होगी काफ़ी समय तक ऐसा ही मैं सोचती थी. एक बार राखी पर मैं और बच्चे भाई के घर पाया वहां भाई को भाभी के साथ मिल घर के सारे कामों में हाथ बांटते पाया मसलन बच्चों को नहलाना, उनके कपड़े बदलना, कपड़े फ़ोल्ड कर देना आदि. दिल के किसी कोने में कुछ देर के लिए टीस हुई फिर घर वापस आने पर सब भूल गई.
वैसे भी मैं रोमैंटिक क़िस्म की नहीं थी और पति की बेरुख़ी ने मुझे और ख़ुद से रूबरू करा दिया था. समय बचता ही नहीं था और बचा भी तो कभी बीके शिवानी तो कभी श्री श्री रविशंकर जी के रिकॉर्डेड प्रवचन सुन ही ख़ुश हो जाती.
परेशानी तो अब कोरोना महाशय ने कर दी. पति का दफ़्तर पूरी तरह से घर शिफ़्ट हो गया यानी वर्क फ्रॉम होम. एक महीने तक तो लगा जैसे कोई गेस्ट घर पर है और हम उसकी सेवा कर रहे हैं. बच्चे अपने-अपने कमरों में और मैं घर के सारे कामों में. बच्चों को भी पिता नाम के प्राणी को देखने की आदत ही नहीं थी. बेटा घर सफ़ाई और बेटी किचन के कामों में मेरी मदद करती थी. पति दूर से ही सारी उथल-पुथल देखते रहते थे, मेहमान जो थे. एक दिन मैं हमेशा की तरह नहाने के बाद आईने के सामने अपने बालों को झाड़ रही थी, ऐसा लगा पीछे से कोई मुझे लगातार निहार रहा है. पीछे मुड़ने पर पाया वो पति देव थे, बाप रे! मेरे तो पूरे बदन में सिहरन सी हो उठी.
“तुम अपने बालों को खुला क्यों नहीं रखती हो? रेशम से हैं.’’
पति देव ने कहा और पास आ मेरे बालों को सहलाने लगे. मैं तो शर्म से लाल-लाल हो गई. उम्र कोई भी हो प्यार और प्रशंसा की ज़रूरत तो हमेशा रहती है. मैं बालों को खुला ही छोड़ तुरंत रसोई में चली गई. पति के हमेशा बाहर रहने से बच्चों का मेरे ऊपर पूरा अधिकार रहता था. बेटे ने आवाज़ लगाई,“कहां हो मां? बड़े ज़ोरों की भूख लगी है.”
मैंने कहा,“आई बस दो मिनट.’’ बाहर आई तो पाया बेटा ग़ुस्से से नथुने फड़फड़ा रहा था कि उसकी यानी केवल उसकी मां एक आदमी चाहे वो उसका बाप क्यों ना हो के साथ इतनी देर एक कमरे में क्या कर रही थी. मैं धीरे से मुस्कुरा दी, बेटा ग़ुस्से से उठ जाने लगा, मैंने कहा,“तेरे पसंद की पूरी कचौड़ी बनाने वाली हूं. सारी तैयारी कर रखी है, तलना बाक़ी है.’’
बेटा ज़ोर से चिल्लाया,“आप ही खाओ और अपने पति को खिलाओ.”
मैं अवाक् कि क्या कहूं? मेरे खुले बालों को देख बेटे का पारा आसमान पर पहुंच गया. ग़ुस्से में बेटा टेबल छोड़ कमरे में चला गया.
थोड़ी देर बाद पति हंसते हुए टेबल पर आए. मुझे उदास देख मेरे साथ खड़े हो मेरे बालों को चेहरे से पीछे करते हुए कहने लगे,“अरे तुम उदास अच्छी नहीं लगती. क्या हुआ?”
मैं धीरे से बोली,“मुझे रसोई में आने में देर हुई तो बबलू ग़ुस्से में बिना खाए वापस कमरे में चला गया.’’
पति कहते हैं,“अभी तक बबलू बबली ही करती आई हो, मेरा भी कुछ ख़्याल करो. तुम्हारी कचौड़ी की ख़ुशबू ने मुझे पागल कर दिया है.” ऐसा कह पति ने धीरे से आंख मार दी. मैंने डर कर इधर-उधर देखा कहीं बबलू या बबली तो नहीं देख रहे हैं.
“अरे सोच क्या रही हो? जल्दी दो पेट में चूहे कूद रहे हैं.” पति कहते हैं.
इसके बाद तो लॉकडाउन में इश्क़ शुरू हो गया. बच्चे पहले तो चिढ़ते थे पर धीरे-धीरे मां-बाप के इश्क़ के आदत-सी हो गई. मुझे भी सब कुछ अच्छा लग रहा था. एक दिन तो ग़ज़ब हो गया जब बबली किसी काम से मेरे कमरे में आई और अलमारी खोलने पर उससे एक कॉन्डम नीचे गिरा, मैं तुरंत उसे पैरों से रौंद छिपाने में लग गई. बेटी ने घृणा की नज़रों से मुझे ऐसे देखा मानो मैं कोई देह व्यापार कर रही हूं. मानो कह रही हो मां ऐसा करते शर्म नहीं आती. अब तक की सारी ज़िंदगी बच्चों की मां बन के गुज़ार दी. बच्चों ने हमें कभी हाथ पकड़े भी नहीं पाया और यहां अधेड़ उम्र का इश्क़. लॉक डाउन में बच्चे भी घर पर थे वो भी पूरे समय. मां-बाप का इश्क़ उनसे देखा नहीं जा रहा था और पति को अब किसकी परवाह नहीं थी. मैं ठहरी मूर्ख, इतने दिनों की प्यासी रेत-सी, इश्क़ की बारिश में सुध-बुध खो भीगते जा रही थी.
काश… जीवन यहीं थम जाता, पर ऐसा होता कहां है? मेरा ये इश्क़ ऊपर वाले को भी नहीं भाया. पति कहां तो साथ में मेरे बरतन भी धुलवाने लगे थे, रात को सबके खाने के बाद टेबल भी साफ़ करने में मेरी मदद करते थे. जो कुछ जवानी में नहीं हुआ वो अब हो रहा था. कभी तकिए से लड़ाई तो कभी पानी डाल कर गीला करना. बच्चे मुझसे दूर जा रहे थे, लॉक डाउन की मजबूरी से घर पर थे. लेकिन मुझे कहां मालूम था ये इश्क़ भी लॉक डाउन तक ही था. जैसे ही लॉक डाउन ख़त्म हुआ मेरी ज़िंदगी ने फिर यू टर्न ले लिया. मेरी हालत तो ‘पुनः मूषको भव’ जैसी हो गई. पति ने अपना ऑफ़िस का बैग उठा लिया और मुंह पर ऑफ़िसर का लबादा ओढ़ लिया. पहले बच्चे मुझसे चिपके रहते थे, अब उन्होंने भी मुझसे अलग अपनी ख़ुशियां ढूंढ़ ली थीं. हाय कोरोना तूने मुझसे सब कुछ छिन लिया, ना माया मिली ना राम.

Illustration: Pinterest

इन्हें भीपढ़ें

फ़िक्शन अफ़लातून#14 मैं हार गई (लेखिका: मीता जोशी)

फ़िक्शन अफ़लातून#14 मैं हार गई (लेखिका: मीता जोशी)

March 22, 2023
फ़िक्शन अफ़लातून#13 लेकिन कैसे कह दूं इंतज़ार नहीं… (लेखिका: पद्मा अग्रवाल)

फ़िक्शन अफ़लातून#13 लेकिन कैसे कह दूं इंतज़ार नहीं… (लेखिका: पद्मा अग्रवाल)

March 20, 2023
फ़िक्शन अफ़लातून#12 दिखावा या प्यार? (लेखिका: शरनजीत कौर)

फ़िक्शन अफ़लातून#12 दिखावा या प्यार? (लेखिका: शरनजीत कौर)

March 18, 2023
फ़िक्शन अफ़लातून#11 भरा पूरा परिवार (लेखिका: पूजा भारद्वाज)

फ़िक्शन अफ़लातून#11 भरा पूरा परिवार (लेखिका: पूजा भारद्वाज)

March 18, 2023
Tags: Dr Sangeeta JhaDr Sangeeta Jha ki kahaniDr Sangeeta Jha ki kahani U turnDr Sangeeta Jha storiesHindi KahaniHindi StoryHindi writersKahaniNai KahaniOye Aflatoon KahaniU turnओए अफ़लातून कहानीकहानीडॉ संगीता झाडॉ संगीता झा की कहानियांडॉ संगीता झा की कहानीडॉ संगीता झा की कहानी यू टर्ननई कहानीयू टर्नहिंदी कहानीहिंदी के लेखकहिंदी स्टोरी
डॉ संगीता झा

डॉ संगीता झा

डॉ संगीता झा हिंदी साहित्य में एक नया नाम हैं. पेशे से एंडोक्राइन सर्जन की तीन पुस्तकें रिले रेस, मिट्टी की गुल्लक और लम्हे प्रकाशित हो चुकी हैं. रायपुर में जन्मी, पली-पढ़ी डॉ संगीता लगभग तीन दशक से हैदराबाद की जानीमानी कंसल्टेंट एंडोक्राइन सर्जन हैं. संपर्क: 98480 27414/ [email protected]

Related Posts

फ़िक्शन अफ़लातून#10 द्वंद्व (लेखिका: संयुक्ता त्यागी)
ज़रूर पढ़ें

फ़िक्शन अफ़लातून#10 द्वंद्व (लेखिका: संयुक्ता त्यागी)

March 17, 2023
फ़िक्शन अफ़लातून#9 सेल्फ़ी (लेखिका: डॉ अनिता राठौर मंजरी)
ज़रूर पढ़ें

फ़िक्शन अफ़लातून#9 सेल्फ़ी (लेखिका: डॉ अनिता राठौर मंजरी)

March 16, 2023
Dr-Sangeeta-Jha_Poem
कविताएं

बोलती हुई औरतें: डॉ संगीता झा की कविता

March 14, 2023
Facebook Twitter Instagram Youtube
ओए अफ़लातून

हर वह शख़्स फिर चाहे वह महिला हो या पुरुष ‘अफ़लातून’ ही है, जो जीवन को अपने शर्तों पर जीने का ख़्वाब देखता है, उसे पूरा करने का जज़्बा रखता है और इसके लिए प्रयास करता है. जीवन की शर्तें आपकी और उन शर्तों पर चलने का हुनर सिखाने वालों की कहानियां ओए अफ़लातून की. जीवन के अलग-अलग पहलुओं पर, लाइफ़स्टाइल पर हमारी स्टोरीज़ आपको नया नज़रिया और उम्मीद तब तक देती रहेंगी, जब तक कि आप अपने जीवन के ‘अफ़लातून’ न बन जाएं.

संपर्क

ईमेल: [email protected]
फ़ोन: +91 9967974469
+91 9967638520
  • About
  • Privacy Policy
  • Terms

© 2022 Oyeaflatoon - Managed & Powered by Zwantum.

No Result
View All Result
  • सुर्ख़ियों में
    • ख़बरें
    • चेहरे
    • नज़रिया
  • हेल्थ
    • डायट
    • फ़िटनेस
    • मेंटल हेल्थ
  • रिलेशनशिप
    • पैरेंटिंग
    • प्यार-परिवार
    • एक्सपर्ट सलाह
  • बुक क्लब
    • क्लासिक कहानियां
    • नई कहानियां
    • कविताएं
    • समीक्षा
  • लाइफ़स्टाइल
    • करियर-मनी
    • ट्रैवल
    • होम डेकोर-अप्लाएंसेस
    • धर्म
  • ज़ायका
    • रेसिपी
    • फ़ूड प्लस
    • न्यूज़-रिव्यूज़
  • ओए हीरो
    • मुलाक़ात
    • शख़्सियत
    • मेरी डायरी
  • ब्यूटी
    • हेयर-स्किन
    • मेकअप मंत्र
    • ब्यूटी न्यूज़
  • फ़ैशन
    • न्यू ट्रेंड्स
    • स्टाइल टिप्स
    • फ़ैशन न्यूज़
  • ओए एंटरटेन्मेंट
    • न्यूज़
    • रिव्यूज़
    • इंटरव्यूज़
    • फ़ीचर
  • वीडियो-पॉडकास्ट
  • टीम अफ़लातून

© 2022 Oyeaflatoon - Managed & Powered by Zwantum.

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist